मेरे जीवन में ज्ञान का प्रकाश सदैव रहे

बैगलोर आश्रम, भारत

यह शुक्ल पक्ष का समय ईश्वर आराधना के लिये विशेष रहा है। हम प्रति दिन पूजा करते हैं। आज अंतिम दिन है और शरद पूर्णिमा भी है। हर पूर्णिमा की तिथि का एक विशेष ऐतिहासिक महत्व है।


ैशाख मास (अप्रैल/मई) में आने वाली बुद्ध पूर्णिमा, गौतम बुद्ध के जन्म, आत्मज्ञान पाने और महासमाधि की तिथि है। आषाण पूर्णिमा, महर्षि वेद व्यास को समर्पित है। व्यास जी भौतिक  और आध्यात्मिक, दोनों ही विषयों के महाज्ञानी थे। वे जगत को भी जानते थे और आत्मा को भी। वेद व्यास जी ने सभी प्रकार के ज्ञान को सुव्यवस्थित  किया।


पिछली पूर्णिमा अनंत को समर्पित थी। अनंतता का उत्सव - कोई दीवार नहीं, कोई आदि या अंत नहीं।

यह पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा है - सबसे उज्ज्वल, कोई दाग नहीं, ये लंबी भी चलती है, पूर्ण चन्द्र का उत्सव। हज़ारों साल पहले भगवान श्री कृष्णः ने इसी शरद पूर्णिमा के अवसर पर गोपियों के साथ नृत्य (रास) किया था। गोपियों के भक्ति का आचार्य कहा गया है। शरद पूर्णिमा नृत्य और उत्सव के लिये जाना जाता है। सभी भक्त भगवान श्री कृष्णः के साथ नृत्य करना चाहते थे। नाचते हुये सभी ने उन्हें अपने साथ ही पाया। शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा, सौंदर्य का भी प्रतीक है। आकाश साफ़ है, और बड़ा सा पूर्ण चन्द्र चमकता है। हमारा मन भी चन्द्रमा से संबंध रखता है। जब चन्द्रमा पूर्ण हो तो मन भी पूर्ण होता है। इस दिन ऊर्जा बहुत अधिक होती है, और उत्सव से ये और अधिक हो जाती है। परंतु, इस ऊर्जा का सही प्रयोग आवश्यक है।


हर पूर्णिमा पर हम उत्सव का कोई ना कोई प्रयोजन ढूंढ लेते हैं। आध्यात्मिक उत्सव। यह शुक्ल पक्ष एक दैवी समय था। हमने पूजा और यज्ञ किये। पूजा क्या है? जो ईश्वर हमारे लिये करते हैं, उसी का अनुकरण करना, पूजा है। भगवान सूर्य और चन्द्र को हमारे चारों तरफ़ घुमाते हैं, हमें बारिश, फल-फूल, इत्यादि देते हैं, तो हम भी इस ईश्वरीय प्रेम की अभिव्यक्ति का अनुकरण करते हैं। पूजा, अपनी कृतज्ञता और सम्मान दर्शाने का सब से स्वाभाविक तरीका है। हम पूजा में बिताये गये इस शुक्ल पक्ष के सुंदर समय की पूर्णाहुति, हृदय के उमड़ते आनंद के साथ इस संकल्प से करें कि, ‘मेरे जीवन में प्रकाश रहे और मेरे आस पास ज्ञान हमेशा रहे। मैं जीवन के प्रकश को अपने भीतर ग्रहण करूं। मैं प्रेम और ज्ञान को स्वीकार करूं।’


दिव्य शक्ति हर जगह है, जैसे कि हवा हर जगह है। पर, पंखे के पास हवा का विशेष अनुभव होता है। उसी तरह, दिव्य शक्ति हर जगह है, पर पंखे के पास उसका विशेष अनुभव होता है। ज्ञान, यज्ञ और गुरु उस पंखे की तरह हैं, जिस के पास आने पर उस दिव्य शक्ति का विशेष अनुभव होता है।
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