स्थिति को स्वीकार कर लेना मन में तुरंत शांति लाता है।

बैंगलोर आश्रम, भारत
अक्टूबर 18, 2010

प्रश्न : हम ये कैसे जाने कि हमे किस हद तक सत्य की खोज करनी चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर : एक बहुत खूबसूरत कहानी है। एक बार एक साधू और एक आदमी के बीच चर्चा होनी थी। वह आदमी एक ही आँख से देख सकता था और सुन नहीं सकता था। उसका बड़ा भाई सोचता था कि वो बहुत बेवकूफ़ है। तो उसके भाई ने उसे चर्चा में चुप रहने का सुझाव दिया। साधु को बताया गया कि वह आदमी मौन में है। पर साधु को एक प्रश्न पूछना था। साधू ने इशारों में बात करते हुए एक उंगली दिखा कर पूछा, "ऐसा कौन सा एक परम सत्य है" तो आदमी ने सोचा कि साधु उसकी एक ही आँख होने के कारण उसका मज़ाक उड़ा रहा है। उसने गुस्से में उसे दो उंगलियां दिखाई। इस पर साधु बोला, " हाँ, सत्य दो हैं - ब्रह्म और माया।" थोड़ा सोचने के बाद साधु फिर बोला, "नहीं, सत्य तीन हैं - ब्रह्म, माया और दोनो के बीच में कुछ। इस पर आदमी ने सोचा कि साधू फिर से उसका मज़ाक उड़ा रहा है कि केवल तीन आँखों में ही बातचीत हो रही है, और उसने गुस्से में साधू को मुठ्ठी दिखाई। साधु फिर उस की बात का अपना अर्थ निकाल कर बोला, "हाँ, वास्त्विकता में तो सब एक ही है। इतना कहकर साधू उस आदमी के भाई से कहने लगा, "आपका भाई तो बहुत बुद्धिमान है, वो ब्रह्माण्ड का रहस्य जानता है।

ज्ञान तो सृष्टि के हर कण में व्यापक है और यह आप पर निर्भर करता है कि आप कितना ले सकते हैं।

प्रश्न: यह कहानी सुनते समय मैं यह समझ गया कि मैं दुनिया को अपने मन की कुछ धारणाओं से ही देख रहा हूँ। पर मेरी एक समस्या है कि मैं हमेशा हर चीज़ में कुछ गलत ही देखता हूँ। मैं क्या करुँ?

श्री श्री रवि शंकर: स्वीकार कर लेने का अवसर जीवन में कई बार आता है। क्या तुमने कभी गौर किया है तुम जीवन में कितनी बार परिस्थिति, व्यक्ति या वस्तु में दोष देखते हो? दोष देखना गलत नहीं है, जब दोष देखते हो तभी तो उसका निवारण कर सकते हो। पर सिर्फ़ दोष ही देखते रहना, अगर यह आत्मा में गहरा बैठ जाए तो धीरे धीरे तुम्हे पता भी नहीं चलता तुम स्वयं वो दोष बन जाते हो। फ़िर तुम वैसी ही परिस्थिति अपने आसपास आमंत्रित करते हो और तुम्हारे संकल्प की शक्ति कम हो जाती है।

एक प्रयोग करके देखो - तुम अपने किसी दोस्त या घर के सदस्य से पूछो कि कितनी बार तुम दोष देखते हो या कहते हो यह ठीक नहीं है, या वो ठीक नहीं है। तुम खुद हैरान हो जाओगे! तुम हर साल अपनी मानसिकता में विकास देख सकते हो। मन के प्रति सजगता की आवश्यकता है।

प्रश्न : क्या आध्यात्म के मार्ग में स्त्री या पुरुष में कोई फ़र्क है?

श्री श्री रवि शंकर : चेतना के स्तर पर किसी भी वस्तु में कोई भी भेद नहीं है।

प्रश्न : मेरे जीवन का क्या उद्देश्य क्या है?

श्री श्री रवि शंकर: इससे पहले तुम यह जानो कि क्या तुम्हारे जीवन का उद्देश्य नहीं है - सिर्फ़ खाना, सोना या टी वी देखते रहना जीवन का उद्देश्य नहीं है। सिर्फ़ अपने लिए आनंद ढूंढना जीवन का उद्देश्य नहीं है। हमें जानवरों से क्या अलग करता है? जानवर भी खा कर, सो कर खुश हो जाते हैं। थोड़ी बहुत देखभाल और अपनेपन की भावना जानवरों में भी होती है। तुम्हे पता है जब हाथी का बच्चा बीमार हो तो वो भी नहीं खाता। हमें मनुष्य जीवन मिला है। हम यहाँ दूसरों की देखभाल करने के लिए हैं। अपने जीवन को अधिक उपयोगी बनाओ।

हमारे भीतर में जो "मैं" है, वो क्या है? क्या "मैं" केवल यह शरीर हूँ, या मन, बुद्धि, श्वास, अहंकार या स्मृति हूँ। उत्तर की चिंता मत करो। केवल यह प्रश्न ही तुम्हे ध्यान में गहरा लेकर जाएगा।

प्रश्न: अपनी आध्यात्मिक उन्नति नापने का मापदण्ड क्या है?

श्री श्री रवि शंकर: जब तुम कनवेयर बेल्ट के ऊपर आ गये हो तो खुदबखुद बढ़ते ही जाओगे, ये जान कर तुम्हें विश्राम करना चाहिये।

प्रश्न : मैं बहुत संवेदनशील हूं।मुझे क्या करना चाहिए ?

श्री श्री रवि शंकर: तुम अपने आप पर ये लेबल क्यों लगा रहे हो? लेबल लगाने से तुम्हारी ऊर्जा तुम्हें उसी दिशा में ले जाती है। जब तुम में ऐसे भाव जागे, तो जान लो कि ये प्रार्थना करने का समय है। अपना मन और हृदय दिव्य शक्ति को समर्पित कर दो। अपनी बुद्धि, अपना मन, अपना हृदय, सब कुछ दिव्य शक्ति यां ईश्वर को समर्पित कर दो।

प्रश्न : किसी नास्तिक व्यक्ति को इस पथ पर कैसे लायें?

श्री श्री रवि शंकर :उससे कहो कि शुरुआत के लिए यह बिलकुल सही कदम है।

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