हमारा पूरा जीवन भी साधना की तरह ही पूज्य है!

10 दिसंबर, भारत
प्रश्न: मुझे कभी कभी लगता है कि जीवन का कोई मतलब नहीं है, कुछ कठपुतली के खेल जैसा। तो फ़िर कुछ भी करने का क्या मतलब है।
श्री श्री रवि शंकर: पता है अगर कोई बाहर के ग्रह से धरती पर आकर क्रीकेट यां फ़ुटबाल का मैच देखे तो पता है उसे कैसा लगेगा? हैरान रह जाएगा! एक गेंद के पीछे २२ लोगों का भागना उसे बिल्कुल फ़िज़ूल लगेगा। हरेक को एक एक क्यों न दे दो!
तर्कसंगत मन के लिए यह सब फ़िज़ूल ही है। दुर्भाग्य से आज खेल जंग का मैदान और जंग खेल की तरह बन गए हैं। जीवन एक खेल ही है। समय के चक्र में अपना जीवन देखो! करोड़ों साल बीत गए हैं और करोड़ों और आएंगे। तुम्हारा जीवन कितने वर्ष का है? ६०, ७० यां १०० वर्ष? अंतरिक्ष की तुलना में, इतने व्यापक ब्रहांड की तुलना में तो यह शरीर है ही नही! मैं तुम्हे कोई उत्तर नहीं दे रहा। उत्तर तुम्हारे भीतर से उठना चाहिए। तुम खुद देखो इन सबका क्या उद्देश्य है?
अगर तुम्हे सबकुछ बेमतलब लगता है तो तुम्हारे लिए खुशी की बात है। पथ पर तुम्हारी शुरुआत हो चुकी है। बुद्धिमानी का यह पहला लक्षण है। नहीं तो हम रोज़ रोज़ उसी चक्र में फ़ंसे रह सकते हैं, और हमे इसकी सजगता भी नहीं होती। यह बहुत खूबसूरत प्रश्न है और तुम्हे खुश होना चाहिए कि यह तुम्हारे भीतर उठा है।


प्रश्न: लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं मैं इससे कैसे ऊपर उठुँ?
श्री श्री रवि शंकर: जब मन बाहर है यां किसी बाहर की वस्तु यां परिस्थिति में अटक गया है तो फ़िरसे उसे स्रोत की तरफ़ वापिस लाओ। बस यही करना है। कुछ अच्छा होता हैं यां कुछ बुरा, हमारे मन पर कुछ समय के लिए उसकी छाप पड़ती है। पर ज़्यादा समय के लिए कुछ नहीं रहता और समय के साथ सब धुल जाता है। बुद्धिमानी का लक्षण है कि किसी पर भी अधिक देर नही अटके रहना। ध्यान और साधना इसके लिए सर्वश्रेष्ठ उपकरण हैं।


प्रश्न: साधना और जीवन में क्या संबंध है?
श्री श्री रवि शंकर: पूरा जीवन ही साधना है! पूजा और क्रिया महत्वपूर्ण हैं पर हमारा पूरा जीवन भी साधना की तरह ही पूज्य है।


प्रश्न: आपके लिए जो मेरा सम्मान और प्रेम है, अक्सर बाकियों के साथ उसकी तुलना करता हूँ। क्या यह सही है?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हे अपने आप की किसी से तुलना करने की कोई आवश्यकता नही है। तुम्हारा प्रेम अद्वितीय है। प्रेम को प्रेम ही रहने दो कोई नाम न दो! जो प्रेम किसी रिश्ते से बंधा है वो सीमित है। इससे शुरुआत हो सकती है पर उस प्रेम की ओर अग्रसर रहो जो रिश्तों से परे असीम है। ऐसे दिव्य प्रेम का अनुभव करना ही मक्सद है। जो प्रेम रिश्तों से परे है वो ही सच्चा प्रेम है।

प्रश्न: मैने आपको पहली बार कल देखा, पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि आप कोई अन्जान हैं।
श्री श्री रवि शंकर: मुझे कभी भी किसी को भी मिलते हुए ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी अन्जान व्यक्ति से मिल रहा हूँ। जिस तरह तुम्हारी भावनाएं होती हैं, तुम वही अनुभव करते हो। तुम किसी भी व्यक्ति को मिलते हो वो तुम्हारी ही परछाईं है।

(अचानक बिजली चली गई, और किसी ने कहा, "गुरुजी आप यहाँ से मत जाना"। जिस पर गुरुजी ने कहा, "हो सकता है यह ध्यान करने की निशानी हो")

दुनिया में कोई अलग है ही नहीं। यही ध्यान का मंत्र है। ऐसा कोई नहीं है जो मुझसे नहीं जुड़ा हुआ। यही प्रेम का मंत्र है। हम सब के शरीर चेतना के समुद्र में गोते खाते हुए सीप जैसे हैं। यही सत्य है। 
सीप में कोई जीवन नहीं है, उसका जीवन पानी में है। मछली का जीवन किधर है - मछली में यां पानी में?
मछली का शरीर केवल जीवन का प्रदर्शन कर रहा है पर जीवन पानी में है। इसी को कारण शरीर कहते हैं।

प्रश्न: हम ईर्ष्या कयों महसूस करते हैं और इससे बाहर आने के लिए क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: ईर्ष्या क्यों महसूस करते हैं? क्योंकि हम यह भूल जाते हैं कि सब बदलने वाला है। ध्यान करो और जीवन को एक ऊँची दृष्टि से देखो। अगर तुम फ़िर भी ईर्ष्या महसूस करो तो संवेदना पर ध्यान दो और यह बीत जाएगा।
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