“लयतरंग” संगीत और नृत्य का मधुर आध्यात्मिक संगम

२०, फरवरी २०११, नागपुर , भारत

सृष्टि के सुन्दर स्वरुप की महिमा में गायन के उपरांत गुरूजी ने कहा जो कोई भी संगीत में विलीन होना जानता हैं वह इस जीवनकाल में ही परिपूर्ण हो जाता है|

जब ज्ञान, ध्यान और संगीत लय में होते हैं तो जीवन सामंजस्यपूर्ण/मधुरमय हो जाता हैं |

प्रकृति की एक लय हैं !
हमारे शरीर की भी एक लय हैं !
जब हमारी लय प्रकृति के साथ सामंजस्य में होती हैं तो जीवन एक सुन्दर उत्सव हो जाता हैं|

जब हम प्रकृति का ध्यान रखते हैं तो प्रकृति हमारा ध्यान रखती है। जब हम पृथ्वी पर गलत पदार्थो को ड़ालते हैं तो, उसका प्रभाव हम पर ही होता है|

जैसे दूषित,रसायनिक और विस्फोटक पदार्थ।

अब यह समय आ गया हैं कि हम प्रकृति के और अधिक निकट आ जाएं और अब जैविक तत्वों का उपयोग करें| संगीत बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|

संगीत मन में सामंजस्यता लाता हैं |

आज यहाँ पर कितने युवा हैं ?
रॉक संगीत!
क्या जापानी वैज्ञानिक द्वारा किये हुए शोध का आपने अध्ययन किया हैं – कैसे शब्द और स्पंदन हमारे शरीर-मन के जल तत्व पर प्रभाव डालते हैं!

संगीत में हमें फूल के जैसे खिलने की यां चट्टान के जैसे ठोस बनाने की क्षमता है|

एक और संगीत है – आपके भीतर का दिव्य संगीत !

जब आप ध्यान करते हैं तो आप स्वयं को भीतर के संगीत के स्रोत के निकट ले आते हैं , जो सिर्फ आनंदमय हैं |
हमारे संकल्प की शक्ति के अनुरूप हमारे कार्य पूर्ण होने लगते हैं |

महात्मा गाँधी का संकल्प कितना मजबूत था ?

ध्यान हमारे कार्यों की पूर्ती करता हैं ! वह प्रकृति को हमारी बात सुनने के लिए विवश कर देता हैं !

आध्यात्म का अर्थ हमारे अपनेपन के चक्र में बढ़ोतरी करना हैं। ब्रह्माण्ड के साथ स्वयं की एकाकी का अनुभव करना!

अब हम ध्यान करेंगे?
ठीक है! एक और गीत के बाद हम ध्यान करेंगे!

जीवन जीने की कला ने सेवा के ३० (तीस) वर्ष पूर्ण कर लिए हैं !

क्या आपको मालूम हैं कि हमारे पांच प्रमुख सिद्धांत क्या हैं !

लोगो और स्वयं को जैसे हैं वैसे ही स्वीकार करें और फिर कृत्य करें !

दूसरा: वर्तमान क्षण में रहे !

दूसरों के मंतव्यो का शिकार न बने |

जीवन में कभी अच्छा और कभी बुरा समय आता है! विरोधाभास मूल्य एक दुसरे के पूरक हैं !

दूसरों की गलतियों में कोई आशय न ढूंढें/खोंजे|

आज जीवन जीने की कला १५२ देशो में हैं ! आप उत्तरी ध्रुव के छोर पर जायें – आप को वहाँ पर आर्ट ऑफ लिविंग मिलेगा!

आप दक्षिणी ध्रुव पर जाये - आप को वहाँ पर भी आर्ट ऑफ लिविंग मिलेगा !

ठीक हैं! अब हम एक भजन के उपरान्त थोड़ी देर के लिए ध्यान करेंगे !

जब आप अकेले ध्यान करते हैं तो वह तपस्या है ! जब उसे समूह में किया जाये तो वह ध्यान यज्ञ है!

ठीक है! एक इच्छा!

एक इच्छा को मांगे और वह पूरी हो जायेगी!

ध्यान-शब्द से निशब्द, अस्थिरता से संतुलन, अव्यवस्था से परमानन्द की ओर ले जाता है!

ध्यान के तीन सुनहरे सूत्र :
आगे के कुछ मिनटों के लिए, मुझे कुछ नहीं चाहिए !

आगे के ८ - १० मिनिट तक मैं कुछ नहीं करूँगा !

तीसरा : मैं कुछ नहीं हूँ – न तो धनी और न निर्धन - न बुद्धिमान और न मंद बुद्धि – किसी भी किस्म का लेबल अगले १० मिनिट तक नहीं !

कोई प्रयास न करें , यदि विचार आते हैं तो आने दे! बस दृष्टा भाव में बैठ जाएं और ध्यान को होने दें।

ठीक हैं ! और अब ध्यान करते हैं !

हमने २० मिनिट ध्यान किया! क्या आपको समय का पता चला?
एक असीमित शक्ति आपसे प्रेम करती है! और वह शक्ति हमारे भीतर है! इसलिए इस विशवास के साथ आगे बढ़े! इस असीमित शक्ति का बोध होने का उपाय साधना है!

सेवा, साधना, सत्संग !!!

(समारोह का समापन शिव चेतना के सम्मान में समर्पित नृत्य से हुआ !!!! भारत में ब्रह्माण्ड के ध्यानस्थ स्वरुप को भगवान शिव के रूप में पूजा जाता हैं !)
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