दिव्यता को सबसे भयानक और सबसे सुन्दर स्वरुप में देखने से, आप दिव्यता का अनुभव हर जगह पर करेंगे |

१० मार्च २०११, बैंगलुरू आश्रम

प्रश्न: प्रिय गुरूजी अधिकांश धर्म तब आस्तित्व में आये जब लोग किसी महान व्यक्ति या आत्मा को मानने लगे ? हिंदू धर्म आस्तित्व में कैसे आया ?
श्री श्री रवि शंकर : हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है: यह जीवन जीने की शैली है | जब हजारो संत और पीर यहा पर थे और उन्होंने वेदो के आधार पर कुछ कहा – वेद विश्व का सबसे पहला धर्म ग्रन्थ है| और लोगो के कुछ आदर्श थे और उन्होंने वैसी जीवन शैली को अपनाया | हमारे पूर्व राष्ट्रपतिजी डॉ राधा कृष्णन से प्रश्न किया गया , हिंदू कौन होता है | उन्होंने हिंदू का वर्णन ऐसे किया : वह जो किसी पर या स्वयं पर कोई लेबल नहीं लगा देता, जैसे कि मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी या हिंदू ,वह हिंदू है, क्यूंकि हिंदुत्व सिर्फ एक जीवन जीने की शैली है | मुझे लगता है ,वे डॉ राधा कृष्णन ही थे, जिन्होंने इसे इस तरह से परिभाषित किया | परन्तु मै कहूंगा कि हिदुत्व का अर्थ है उदारतावाद | जिसमे एक वास्तविकता या सत्य की भक्ति करने के कई तरीके है| हिंदुत्व की तीन विशेषताये है |सबसे पहला जैसे आप चाहे वैसे भक्ति करने की स्वतंत्रता, किसी स्वरुप या नाम से | दूसरा सारा विश्व एक परिवार है | एक ही दिव्यता हैं जो स्वयं को अनेक रूपों में अभिव्यक्त करती है | एक ही भगवान परुन्तु अनेक रूप और नाम और इसको जान लीजिए | भगवान और उसकी सृष्टि कोई दो भिन्न चीज नहीं है |

जैसे शरीर और मन भिन्न नहीं है | एक प्रत्यक्ष है और दूसरा अप्रत्यक्ष है | आप मन को नहीं देख सकते परन्तु मन के बिना शरीर कुछ भी नहीं कर सकता | यदि मन न हो तो शरीर सिर्फ मृत शव है | इसलिए आत्मा और पदार्थ , प्रकृति और पुरुष यही इसका संपूर्ण सिद्धांत है | सारा विश्व दिव्यता का शरीर है | दिव्यता, जल,पर्वत, वृक्षो ,नदी आपमें, मुझमे और हर किसी में है | भगवान कोई वह नहीं हैं जो ऊपर स्वर्ग में बैठा है, परन्तु भगवान वह आधार है जिसमे सब कुछ आस्तित्व करता है | भगवान वह आकाश तत्व है, जिसमे हर तत्व समाये हुए है | इसलिए सबकुछ भगवान से बना है और भगवान है |यही हिंदुत्व का बुनियादी सिद्धांत है | अच्छाई और बुराई – सही और गलत , यह सब कुछ सिर्फ आपेक्षिक(पूरक) है, और पूर्ण नहीं है |उदारतावाद का अर्थ है स्वतंत्रता – स्वतंत्रता, समानता हिंदुत्व के मुख्य उपदेश है |

प्रश्न: जब प्रेम सिर्फ भावना नहीं है, और वह हमारा मूल आस्तित्व है तो फिर प्रेम किसी दिन कैसे गायब हो जाता है और फिर किसी अन्य दिन कैसे प्रकट हो जाता है ?
श्री श्री रवि शंकर: सूर्य भी गायब होना प्रतीत होता है ,परन्तु वास्तव में वह गायब नहीं होता है | यह सिर्फ छुपने के जैसे है या आप किसी अन्य दिशा की तरफ चले गए है | यह ऐसा ही है |

प्रश्न: क्या विचार पूर्व के कर्म या मन मे पूर्व के संस्कार के कारण उत्पन्न होते है?
श्री श्री रवि शंकर : कर्म कुछ नहीं सिर्फ मन मे पूर्व के संस्कार होते है जो समान विचार उत्पन्न करते है| और हां, यह संभव है |

प्रश्न: राधा कौन है ?
श्री श्री रवि शंकर : राधा वह है जो स्त्रोत्र के दिशा मे जा रही है | धारा प्रवाह है , और यदि धारा को उल्टा पढ़े तो वह राधा है| इसलिए वह जो स्वयं की ओर जा रहा है, वह राधा है|

प्रश्न: क्या आत्मा और चेतना समान (एक) है?
श्री श्री रवि शंकर: हां |

प्रश्न : मैं अक्सर क्रोधित हो जाती हूँ कि मै ज्ञान मे पूरी तरह से नहीं रह पा रहा हूँ | परन्तु मैं अपने आप को आपके बहुत निकट पाता हूँ| क्या यह भ्रम है या इसमें कोई सच्चाई है?
श्री श्री रवि शंकर: बिलकुल! अपने आप पर इतना अधिक रुक्ष न बने | स्वाभाविक बने रहे | ठीक है ?यह सोच कर मत परेशान हो कि “ मैं ज्ञान मे पूरी तरह से नहीं रह पा रहा हूँ |” यदि कभी कभी ऐसा होता है, तो वह ठीक है |आगे बढते रहे | जीवन चलता रहता है | नदी मे कई चीजे जैसे पत्तियां, फूल गिरते रहते है, लेकिन नदी उसे लेकर आगे बढती रहती है | समय जीवन को आगे बढ़ा रहा है | इसलिए आगे बढते रहे | और वास्तव मे हम क्या कर रहे है ? हमने अपने सिर को अतीत मे रखा हुआ है और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे है | आपको सिर्फ आगे देखते हुए आगे बढ़ना है | आपने अतीत मे जो गलतियां करी है, उसे स्वीकार करते हुए आगे बढ़े |

प्रश्न: मैं इस पीड़ित चेतना की अवस्था से कैसे निकलू खास तौर पर जब अतीत की यादें उसमे से निकलने ही नहीं देती ?
श्री श्री रवि शंकर: सिर्फ यह बात कि आप इस बात को समझ गई है, इसका मतलब है, कि इस बात का आपको एहसास हो गया है | यही से कर्म शुरुवात होती है| अतीत में यदि कुछ हुआ था, क्युकि उसे होना था इसलिए वह हुआ | अतीत में जो बीत गया उसे स्वीकार करे, और उस पर चिंता न करे, और आगे बढ़े | यदि आप ने कोई गलती करी है,जैसे आप ने किसी का अपमान किया है,और उस व्यक्ति ने उस घटना को पकड़ कर रखा है, यहाँ तक उस व्यक्ति से आपने उस घटना के लिए कई बार माफी मांगी है, फिर भी यदि वह व्यक्ति उसके लिए आप को माफ नहीं करता तो क्या किया जाए ?यदि किसी ने आप के साथ कुछ गलत किया है और आपने भी किसी के साथ कुछ गलत किया है, तो क्या आप माफी मांग कर आगे नहीं बढ़ जाते? आप भी नहीं चाहेंगे कि आप की कोई गलती कोई व्यक्ति जीवन भर पकड़ कर रखे, ठीक है न ? यदि वह व्यक्ति आपको माफ कर देता है, तो आगे बढ़ो, और अपनी स्थिति को समझ कर देखे कि आपको कैसा लगता है ? उस अन्य व्यक्ति को भी उसी तरह से देखे |

प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति अपनी गलती के कारण पछता रहा है, परन्तु शायद अपने अहंकार के कारण बात नहीं कर पा रहा है, इसके लिए कोई क्या करे ?
श्री श्री रवि शंकर: जब आपकी चेतना पीड़ा की अवस्था में होती जिसमे रोष और क्रोध हो तो क्या वह जीवन भर साथ रखने से आपको किसी भी तरह से मदत करेगा ? बिलकुल नहीं ! यह आपके समय, योग्यता और जीवन को सिर्फ बर्बाद ही करेगा | इसलिए आपको माफ करके, भूलकर आगे बढते रहना है | आपने किसी को दर्द दिया और किसी ने आपको दर्द दिया फिर वह अध्याय समाप्त हो जाता है |एक समस्या थी जिसे आना था और वह आई और आपकी स्वयं की मूर्खता ने उसे होने दिया | अब वह समाप्त हो गयी है इसलिए आगे बढे | इस तरह की सोच को आपने अपनाना चाहिए जिससे आप बेहतर महसूस करेंगे |

प्रश्न: जो लोग प्रकृति को हानि पहुचाते है, वे आराम की नींद में कैसे सो सकते है?
श्री श्री रवि शंकर: हां! आज यह बड़ी समस्या है | प्रकृति से बहुत कुछ लेकर उसे कुछ भी वापस में नहीं देना | वृक्षो को नहीं लगाना और लगे हुए वृक्ष और जल स्त्रोत्र का संरक्षण नहीं करना, अन्न की बर्बादी करना और प्लास्टिक का उपयोग करना ...! पूर्व के वर्षों की तुलना में हाल के ५-७ वर्षों में इसके प्रति जागरूकता आई है |

प्रश्न: एक शिशु का जन्म अमरीका में हुआ और उसके दादी/नानी को लगता है कि उसके पति का उसके नाती के रूप में पुनर्जन्म हुआ है| मेरा प्रश्न है कि क्या किसी आत्मा का मुंबई से अमरीका जाना संभव है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, हाँ! निश्चित रूप से ! बहुत ही कम समय में, बिना किसी टिकिट या वीज़ा और आप्रवासी की भी कोई समस्या नहीं |

प्रश्न: शरीर के मृत होने पर भी स्मृति कैसे आस्तित्व में रहती है?
श्री श्री रवि शंकर: स्मृति कोई भौतिक तत्व नहीं है| यह ठीक है कि उसमे भौतिकता होती है,परन्तु उसके सांसारिक प्रभाव/छाप चेतना पर भी होते है | आप माइक पर बोल रहे है, और उन शब्दों का विद्युतीकरण होकर, वे फिर से ध्वनि बन जाते है | यह कैसे होता है ? यही चेतना की बुद्धिमत्ता है | ध्वनि का विद्युत बनना और फिर से वही ध्वनि में परिवर्तित हो जाना | मस्तिष्क के कोशिका में संस्कार/छाप बन जाते है, जो एक जीवनकाल से अगले जीवन काल मे चलते जाते है | इसलिए चेतना में कई पूर्व की स्मृतियाँ होती है | यह अत्यंत स्वाभाविक है | कई घटनाये हो रही और कुछ चेतना में बैठ/छप जाती है |

प्रश्न: मै बहुत शरारती हूँ और बहुत शरारते करता हूँ, और उसके लिए मुझे बहुत डाँट भी पड़ती है | मुझे पता है कि आप भी बहुत शरारती थे तो फिर आपको कभी भी डाँट क्यों नहीं पड़ी ?
श्री श्री रवि शंकर: ओह ! मुझे भी डाँट पड़ती थी, और वह वयस्कता योग्य नही है जिसे बचपन में डाँट नहीं पड़ी हो !

प्रश्न: देवी के कुछ स्वरुप जैसे महाकाली का स्वरुप इतना भयानक क्यों है ?
श्री श्री रवि शंकर: प्रेम और भय एक ही चेतना के दो छोर है | यदि आप दिव्यता के इस भयानक रूप में प्रेम कर सकते है तो फिर आप किसी से भी प्रेम कर सकते है | और फिर कोई भय नहीं रह जाता है | जब आपका स्वीकार करने का स्थर विविध हो जाता है, और आप सुंदर और कुरूप को अपने स्वयं के रूप स्वीकार कर लेते है तो आ़प मजबूत और दृढ़ बन गए है | इसलिए दिव्यता की प्रस्तुति सुंदर और कुरूप स्वरुप में करना प्राचीन संतो की बुद्धिमत्ता थी |
भय और अहंकार भी उसी दिव्यता का स्वरुप है |निर्मलता से भयानक- जन्म से मृत्यु , जब किसी की चेतना का स्थर इतना जागृत होता है कि वह दिव्यता को हर स्वरुप में देख पाता है तो फिर इस सब को माया के रूप में देखा जा सकता है | जब मन शांत होता है तो दिव्यता यही पर होती है |
लोग कैक्टस (नागफनी) से भी सजावट करते है | सब कुछ में सुंदरता को देखते है- फूल में भी और कांटो में भी | यदि आप दिव्यता के इस भयानक स्वरुप को स्वीकार कर लेते है तो आपके शरीर और मन से भय पूर्णता निकल जाता है| जो कोई भी इन अवस्थाओ से निकल चुका है उनकी स्वीकार करने की शक्ति बहुत मजबूत हो गई है | सुंदरता और कुरूपता आपका स्वभाव है | सबसे सुन्दर और कुरूप स्वरुप ,यह सब कुछ एक ही सत्य के अंश है |

प्रश्न: माया क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: माया का अर्थ है जो बदलता है,और जिसे नाप किया जा सकता है | जो कुछ भी पांच इन्द्रियों के परिधि में आता है, वह बदल रहा है, वही माया है |

प्रश्न: क्या जन्म और पुनर्जन्म होता है ? यदि हाँ तो मानव होने का अर्थ क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर: मानव जन्म ही क्यों ? मानव जीवन , जीवन को जानने के लिए है |

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