प्रेम आत्मा को मजबूत करता हैं और घृणा और दुःख आत्मा को कमजोर करते हैं !!!

१५ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न: क्या कोई जीव अच्छा या बुरा होने के जैसा कुछ होता हैं ? यदि कोई बाहरी समस्याओं से बाध्य हैं, तो क्या नकारात्मक पथ उसका पीछा करेगा ? इससे कैसे निपटा जाए ?
श्री श्री रवि शंकर:
कोई भी आत्मा अच्छी या बुरी नहीं होती |आत्मा या तो मजबूत या कमजोर होती हैं | मजबूत आत्मा खुश रहती हैं और कमजोर आत्मा दुखी रहती हैं | फिर कोई आत्मा मजबूत कैसे बने ? भक्ति आत्मा को मजबूत और शक्तिशाली बनाती हैं | प्रेम आत्मा को मजबूत करता हैं और घृणा और दुःख आत्मा को कमजोर करते हैं |

प्रश्न: इस विशाल ब्रह्माण्ड की तुलना में यदि हमारा आस्तित्व कुछ भी नहीं हैं तो हमारे जन्म लेने या न लेने से उस का क्या प्रभाव होगा ?
श्री श्री रवि शंकर:
इस ब्रह्माण्ड में वैसे तो कुछ भी मायने नहीं रखता फिर भी सब कुछ का मायना होता हैं | यदि कोई भी एक प्रजाति लुप्त हो जायेगी तो इस ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा | यदि सारी मक्खियां लुप्त हो जायेंगी तो इस ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा और वह आस्तित्व में नहीं रह सकता | आजकल वैज्ञानिक भी यही बात कहते हैं, कि यदि किसी किस्म की तितली या फूल गायब हो जायेंगे तो ब्रह्माण्ड का आस्तित्व नहीं रह सकता |
एक मक्खी के लिए इसका कोई महत्व नहीं कि यहां पर कितने गृह, सौर मंडल या आकाश गंगा हैं ! फिर भी यदि मक्खी लुप्त हो जाए तो ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा | इसलिए मक्खियां महत्वहीन होने बावजूद महत्वपूर्ण हैं | उसी तरह हर कोई व्यक्ति महत्वहीन होने बावजूद महत्वपूर्ण हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी यदि ब्रह्माण्ड की शक्ति शिव हैं तो फिर नारायण तत्व क्या हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
मानवीय तंत्र में नारायण शिव तत्व की अभिव्यक्ति हैं | शिव तत्व पूर्णता अव्यक्त हैं ; और नारायण उसकी अभिव्यक्ति हैं |जैसे वातावरण में जल वाष्प या नमी, आप उसे देख नहीं सकते परन्तु जब बादलों से पानी बरसता हैं तो आप उसे देख सकते हैं | नारायण जल हैं और जल वाष्प शिव तत्व हैं | इसलिए जब आप स्वामियों, सन्यासियों और योगिओं को देखते हैं तो आप कहते हैं, ‘ ॐ नमो नारायणाय’ |

प्रश्न : मैं इस्लाम के एक पंथ से हूं | मैं देखता हूं कि इस्लाम के साथ बहुत हिंसा जुडी हुई हैं | आज विश्व मे इतने धार्मिक द्वंद क्यों हैं ? क्या इसके पीछे किसी अलौकिक सर्वोच्च शक्ति का हाथ हैं ? प्रत्येक धर्म को मानने के हमारे पथ का अनुसरण वे क्यों नहीं करते ? विभिन्न युग, स्थान और समय में गुरुओं की बातें इतनी भिन्न कैसे हो सकती हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
उस समय संचार सुविधाये इतनी पर्याप्त नहीं थी,टेलीफोन नहीं हुआ करते थे | लोगों को एक स्थान से दुसरे स्थान जाने के लिए महीने नहीं लेकिन कई वर्ष लग जाया करते थे | इसलिए उस समय पर उस क्षेत्र में जो कुछ प्रचलित था, वहीं उस समय के गुरुओं, संतों और पीरों उस पर ही अधिक व्याख्या की | पैगंबर मोहम्मद ने यहूदी और ईसाई धर्म के बारे में कहां, उन्होंने हिंदू या बुद्ध धर्म के बारे में इसलिए नहीं कहां क्योंकि वह वहां पर पहुंचा ही नहीं था | उन्होंने कहां कि प्रत्येक जनजाति के लिए भिन्न ज्ञान बताया गया हैं | उन्होंने यह भी कहां कि “ मेरे पहेले भी यहां पर कई पीर आये , उन सब का सम्मान करे और शान्ति से सभी का सम्मान करे |
उन्होंने कहां मेरे पहेले इस गृह पर एक लाख पीर आये , यदि आप उनकी गिनती हजारों में करेंगे तो उसमे कई ऋषि, महाऋषि और गुरु सम्मलित होंगे |उनकी महासमाधी के उपरान्त दुर्भाग्य से यह धर्म अत्यधिक सीमित हो गया हैं और इसने लोगों को भी सीमित कर दिया हैं |
पैगंबर मोहम्मद ने महिलाओं को अत्यधिक स्वतंत्रता प्रादन की परन्तु बाद में इसमें बदलाव आ गया | जैसे समय बीतता हैं हर धर्म में विकृतियां आ जाती हैं | जो कुछ भी मूल पैगंबर या गुरु ने कहां होता हैं,वह नहीं रहता और चीजें बदल जाती हैं |
आज पाकिस्तान में हर दिन मस्जिद में ही बम विस्फोट होते रहते हैं क्योंकि इस्लाम का एक पंथ सोचता हैं कि वे ही सही हैं और बाकी सब कोई गलत हैं | वहाबी पंथ सोचता हैं, कि हर कोई यहां तक सूफी संत भी गलत हैं| इसलिए धर्म गुरु ही इस प्रकार की समस्या उत्पन्न करते हैं ना कि धर्म के संस्थापक | प्रत्येक धर्म के संस्थापकों ने सिर्फ यह कहां होगा कि आध्यात्मिक पथ पर चलते रहो, अपने स्वयं के गहन में जाकर दिव्यता के साथ जुड जाओ | उन सभी ने योग, ध्यान और मंत्रोचारण करने की अनुशंसा करी होगी| दुर्भाग्य से आप धर्म के वास्तविक सार को छोड़ कर बहारी सतह को पकड़ लेते हैं और फिर लोग आपस में अनावश्यक रूप से लड़ने लगते हैं | इसलिय आप सब को आध्यात्म की ओर मुडना चाहिये |
गुरुओं और पैगंबर का मुख्य सन्देश हैं: स्वयं में,पर्यावरण में और विश्व में शान्ति बनाये रखे | दूसरा सन्देश हैं, सबसे प्रेम करो और सबकी सेवा करो | तीसरा सन्देश हैं एक भगवान पर विशवास रखो जिसके कई नाम हैं |
दिव्यता सिर्फ एक हैं जिसके अनेक नाम और अनेक रूप हैं | सबके लिए प्रेम और करुणा और स्वयं के दिल में शान्ति, यदि आप में यह गुण हैं तो आपको किसी को सुनने की आवश्यकता नहीं हैं, जो आप से यह कहते हैं, आप को यह नहीं करना हैं क्योंकि आप यह नहीं हो और बहुत कुछ |

प्रश्न: भगवान विष्णु का कार्य आसान हैं या पृथ्वी पर आपका कार्य आसान हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:
मैं कोई तुलना नहीं करता | मेरा कार्य आसान या कठिन हैं, इसके बारे मे मैं न तो चर्चा करता हूं या सोचता हूं |जो भी हो, यदि वह कठिन या आसान कार्य हैं तो भी उसे करना ही हैं और यह सब विष्णु शक्ति के द्वारा ही हो रहा हैं | विष्णु भगवान कोई वे नहीं हैं जो जल पर बैठे हैं, विष्णु भगवान वह हैं जिनका आस्तित्व सृष्टि के कण कण में हैं |

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