जीवन और गुरु अविभाजिनीय है !!!

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री श्री की वार्ता 
१५ जुलाई २०११, मॉन्ट्रियल, कनाडा

जीवन और गुरु अविभाजिनीय है | आपका जीवन गुरु तत्व से बना है | अपने स्वयं के जीवन पर प्रकाश डालिये | आपके जीवन के द्वारा ज्ञान चमकता है | उसका आपको सम्मान करना चाहिये, और उसे  सम्मान देना ही गुरु है | आपको जीवन ने कई बातें सिखाई है | आपने क्या गलत किया और आपने क्या सही किया, और जब आप अपने स्वयं के जीवन पर प्रकाश नहीं डालते तो फिर वहां गुरु की मौजूदगी नहीं होती है | इसलिए इसे आप अपने जीवन में प्रकट करे  और जीवन में आप को जो भी  ज्ञान प्राप्त हुआ है उसका सम्मान करे |  सम्मान देना ही गुरु है | क्या आप सब मुझे सुन रहे है? क्या यह एक गंभीर विषय है ? 


जीवन और गुरु अविभाजिनीय है | जब आप अपने स्वयं के जीवन पर प्रकाश डालते है और आपको ज्ञान प्राप्त होता है तो उसका सम्मान करे | ज्ञान ही गुरु तत्व है | इसलिए जब गुरु तत्व होता है तो वहाँ पर ज्ञान होता है | हम सब में ज्ञान और विवेक होता है, उस पर प्रकाश डालिए |जीवन में ज्ञान का उदय होता है और ज्ञान प्राप्त होता है उसका सम्मान कीजिये | जब आप ज्ञान का सम्मान करना छोड़ देते है तो फिर  अमावस्या के जैसे अँधेरा छा जाता है, जब पूर्ण चंद्रमा या चंद्रमा दिखाई नहीं देता | चंद्र ही मन है और जब वह ज्ञान से  परिपूर्ण होता है तो वहीं गुरु पूर्णिमा है | इसलिए आपका प्रत्येक दिन भी गुरु पूर्णिमा हो सकता  है जब आपको  जीवन ने जो कुछ भी दिया है आप उसका सम्मान करते है |


कई बार हम इसका विपरीत करते है और अपनी आँखे बंद करके अपनी इच्छाओं की तरफ भागते है | मुझे यह चाहिये, मुझे वह चाहिये कहते हुये आप अपनी इच्छाओ के वश में होकर ज्ञान का सम्मान नहीं करते | देने वाले ने वैसे भी बहुत कुछ दिया है | सबसे पहेले आपको ज्ञान का सम्मान करना चाहिये और फिर इस गुरु पूर्णिमा पर आपने यह प्रण लेना चाहिये कि जीवन में जो आपको उपहार मिला है आप उसका उपयोग करेंगे |  आप पर  बहुत सारा आशीर्वाद और कृपा निछावर की गई है | जो भी आशीर्वाद आपको मिले है यदि आप उसका उपयोग करेंगे तो आप को और आशीर्वाद प्राप्त होगा | देने वाला बिना थके आपको आशीर्वाद दे रहा है और इसके लिये वह सम्मान की अपेक्षा भी नहीं करता और आपको यह अहसास कराता है कि वह आपका  ही है | वह आपको यह अहसास कराता है  कि वह आपकी अपनी उपलब्धि है | देने वाले का कोई अंत नहीं है और वह देने से थकता नहीं और आपको असीमित और बहुत सारी प्रचुरता प्रदान करता है और आपको उसका  उपयोग अच्छे कार्यो में करना चाहिये |


आपको अच्छी वाणी मिली है उसका अच्छा उपयोग किजिये | अपनी वाणी का उपयोग दोष गिनाने में और शिकायत करने में या बुरी बातें कहने में नहीं कीजिये | आपको अत्यंत प्रतिभाशाली बुद्धि प्रदान की गई है, उस बुद्धि का अच्छा उपयोग करे | मुझे समझ में नहीं आता कि कई लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग करने में इतने कंजूस क्यों होते है | शराब जितनी पुरानी होती है वह उतनी ही बेहतर और महंगी हो जाती है | मैने ऐसा सुना है उसका सेवन कभी नहीं किया | वैसे जितना आप अपनी बुद्धि का उपयोग करेंगे वह उतनी बेहतर होती जायेगी | जितना आप उसका उपयोग अच्छे काम के लिये करेंगे वह उतनी ही तीव्र और प्रतिभाशाली बनेगी | इस बात को न सोचे या इसकी चिंता करे कि आप अपनी बुद्धि का उपयोग करने से उसे खो देंगे | उसका उपयोग न करने से आप उसे खो देंगे | अपने बुद्धि का उपयोग अच्छे काम के लिये करे | यदि आपकी वाणी मधुर और मीठी  है तो उसका उपयोग अच्छे से करे | यदि आपके शारीर में शक्ति है तो सेवा करे | आपको जो कुछ भी मिला है उसका उपयोग अच्छे कार्यो में करे | जब मैं कहता हूं, “अच्छा उपयोग करना” तो उसका तात्पर्य है, उसका उपयोग स्वयं के लिये न होकर समाज और विश्व  के उपयोग के लिये होना चाहिये | दिव्यता इसी संसार में रहती है | इसलिए इस संसार की सेवा करना दिव्यता की पूजा करने के जैसा है |


ज्ञान का सम्मान करने से आपका जीवन उन्नत हो जाता है| और जब आप इन दोनों बातों को समझ जाते है तो फिर आप कृतज्ञता का अनुभव करते है और फिर आप भाव,प्रेम और भक्ति में परिपूर्ण हो जाते हैं, जो दिव्यता को अति प्रिय है |


यह जान लीजिये आप सभी के भीतर एक गुरु छुपा हुआ है जो आपमें ज्ञान का प्रकाश देता है , आप उस भीतर के गुरु की आरती करे | आरती करने का तात्पर्य क्या है ?ज्ञान के साथ परमानन्द को प्राप्त करना और जीवन ने जो आपको दिया है, उस पर प्रकाश डालना चाहिये |  क्या वस्ताविक है और क्या वास्तविक नहीं है ? क्या सही है और क्या सही नहीं है? आप उसे क्यों चुनते है जो सही नहीं है और आप उसे करने के लिए कौन प्रलोभन देता है | और सही क्या है और गलत क्या है ? इसे आप को किसे से पूंछने की जरूरत नहीं है | आपके भीतर कुछ है जो आपको यह बताता है | आपके भीतर कुछ हैं जो आपको यह बताता है कि यह सही है | आपके भीतर कुछ चुभता जो यह बताता हैं कि यह सही नहीं है | उसी का सम्मान करे | क्या आप सभी लोग सुन रहे है?

यह बहुत  ही सरल है फिर भी  अत्यंत गहन है |

यह एक और सुंदर बात होती है कि आप सच्चाई और धर्म की राह पर होते हुये उसके होने का दावा नहीं करे | यदि आपको कोई व्यक्ति उपहार दे और आपको उपहार  देने का अहसास कराये तो क्या वह उपहार रह जाता है ? देखो मैं तुम्हे उपहार दे रहा हूं| दस बार कोई व्यक्ति आपको यह कहे कि मैं तुम्हे टोफ़ी दे रहा हूं तो आप क्या कहेंगे? आप कहेंगे कि आप ही उसे रख लीजिए | मुझे नहीं चाहिये | उसी तरह जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर होते है तो उस पर होने का दावा न करे कि, “मैं सच्चाई और धर्म की राह पर हूं”|सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | एक रूप में आप सही हो सकते है लेकिन किसी और रूप में आप गलत हो जाते है |क्या आप मेरे साथ है? क्या इसका कुछ तात्पर्य है ? सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा न करना , शुद्ध और पवित्र होने पर उस पर गर्व न करना, उदार होते हुये उसका प्रदर्शन न करना ही सही होता है | क्या आप समझ रहे है कि मैं क्या कर रहा हूं | समझदार होने का ढिंढोरा पीटना, कि देखो ‘मैं कितना समझदार और ज्ञानी हूं’ ऐसा कहने से उसका रस निकल जाता है | आपको समझदार, स्वाभाविक और सरल होना चाहिये और कभी कभी मूर्ख बनने के लिए भी तत्पर होना चाहिये | यह कितना सुंदर ज्ञान है | आपका जीवन आपको यह प्रदान करता है और फिर यह आप पर झलकता है | जीवन में इस ज्ञान का बार बार प्रदर्शन होना चाहिये |


दूर छोर पर कुछ लोगों की चाल को देखकर श्री श्री ने कहा :


ऐसे कई लोग है जो कई बार ऊपर और निचे आ जा रहे होते है और उन्हें पता ही नहीं होता है कि कहां जाना है और क्या करना है | ऐसी ही परिस्थिति में गुरु की आवश्यकता होती है | कई लोग उसी पथ पर चलते रहते है और उन्हें पता ही होता है कि द्वार कहां है और कहां प्रवेश करना है | अपने आस पास इन छोटी छोटी बातों का अवलोकन करने से आपको कई पाठ सिखने को मिलते हैं |


एक संत की कथा है; मुझे लगता है कि वे संत रामदास थे | वे एक गांव में प्रातः काल में सैर कर रहे थे, और एक महिला अपने झोपड़ी के सामने के भाग को साफ कर रही थी, और उसने कहा हे राम उठ जाओ, तुम कब तक सोते रहोगे? उसने अपने पुत्र से यह कहा जो भीतर सो रहा था और उस छोटे बालक का नाम भी राम था | जब संत ने यह सुना तो उन्होंने कहा कि कोई मुझे जागने के लिए कह रहा है | ऐसा कहा गया है कि उस क्षण वे सचमुच जाग गए और उन्हें ऊर्जा और स्फुर्ती महसूस होने लगी | उन्होंने कहा कि फिर मैं कभी नहीं सोया क्योंकि मैं अत्यंत  ऊर्जा और स्फुर्ती पूर्ण महसूस कर रहा था और पहेले मेरा मन पूरे समय अतीत और भविष्य में भटकता रहता था | 

उन्हें ऐसा करने को किसी ने नहीं कहा,और मन आपको ऐसी सैर पर लेकर जाता हैं | हमारा मन अपना स्वयं की माया निर्मित करता है और अपने स्वयं के विश्व और बबूले का संचालन करता है और आप अपने बबूले के आस पास ही घुमते रहते है|आप पूरी दुनिया को अपने ही चश्मे से और अपने दृष्टिकोण से देखना ही चाहते   है | इसे विपरार्य कहते हैं |

विपरार्य का अर्थ होता हैं रंगीन दृष्टि और न किकी वास्तिविक दृष्टि | इसलिए गुरु तत्व या जीवन में ज्ञान का प्रकाश आपको जगाता हैं और यह समझ देता है कि यह ऐसा है |

आप लोगों ने कितने बार यह महसूस किया है कि आपकी राय या मत गलत थे ?
 अधिकांश समय आपकी राय या मत गलत होते है पर आप सब उसी राय के साथ जी रहे थे और समझ रहे थे सब कुछ ऐसा ही है |यह वहीँ बबूल हैं जिसमे आप रहते है | इसी   बबूल से गुरु तत्व आता है ,जो आपके जीवन में प्रकाश देता है और उस ज्ञान पर प्रकाश देता है जो इस जीवन ने आपको दिया है | फिर आप देखेंगे कि आपकी राय या मत अधिक से अधिक सही होने लगेंगे | आपके ९०% राय या मत गलत होते है और सिर्फ १०% सही होते है | वास्तव में इसका विपरीत होना चाहिये | ९०% सही होना चाहिये और १०% गलत होना चाहिये | २ से ३ या १० % गलत हुआ तो कोई बात नहीं |
१.आपका स्वयं का जीवन ही आपका गुरु होता हैं |
२. जीवन और गुरु अविभाजिनीय है| यह कोई नर्सरी शिक्षक के जैसे नहीं है,कि आप उनसे कुछ सीखा और फिर आप चले गए परन्तु जीवन और गुरु अविभाजिनीय है |
३. जीवन का ज्ञान ही आपका गुरु है | अपने जीवन पर प्रकाश डालने से ज्ञान का उदय होता है |
४.देने वाले ने आपको प्रचुरता के साथ दिया है और वह आपको देता ही रहता हैं और आप उसका अच्छा उपयोग कीजिये | आप अपने कौशल और योग्यता  का जितना अच्छा उपयोग करेंगे उतना ही आपको और  अधिक प्राप्त होगा |
५. ज्ञान का सम्मान करे | ज्ञान का सम्मान इसलिए करना चाहिये क्योंकि गुरु और ज्ञान अविभाजिनीय है और जीवन और ज्ञान को भी अविभाजिनीय होना चाहिये | कई बार आप अपना जीवन ज्ञान बिना जीते है | फिर गुरु तत्व मौजूद नहीं रहता | और आप गुरु का सम्मान नहीं करते | समझ में आया क्या ?
वह सतगुरू है |
६. जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर रहे और  उस पर होने का दावा न करे | सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | यह अच्छाई के साथ भी है | जब आप सोचते है कि ‘ मैं अच्छा हूं फिर आपको लगता हैं कि दुसरे लोग बुरे है, और आप दूसरों को बुरा बना देते हैं | जब आप सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं , तो इससे आप में उदासी आती है | जो लोग सोचते कि वे बहुत अच्छे है वे उन लोगों की तुलना में दुखी होते है जो यह सोचते है कि वे बुरे हैं |जो लोग सोचते है कि वे बुरे है, वे परवाह नहीं करते लेकिन यदि कोई सोचता है कि वह बहुत अच्छा है तो वह यह सोचने लगता है कि उसे क्या हो रहा है | इसलिए यदि आप सोचते है कि ‘मैं  अच्छा हूं’ और उसका दावा करने से आप दुखी और निराश हो जाते है | अपनी अच्छाई का दावा करने से आप क्रोधित हो जाते है | आप कितने भी अच्छे हो परन्तु उसका दावा न करे | दूसरों को उसके बारे में बोलने दीजिए, और उसका ढिंढोरा न पीटे | उदार रहे और उदारता का दिखावा न करे | 

आप सब को यह सब करना है  और इन सभी बातों को बार बार इकट्ठा हुए इसे अपने बुद्धि में समाना हैं | यहीं सत्संग होता है | सत्संग सत्य, विवेक और आपके भीतर के ज्ञान की संगति होती है |  आपका परिचय  अपने भीतर के सत्य के होता है और यहीं सत्संग होता है |


देने वाला देने से थकता नहीं है और वह आपको यह अहसास करता है कि यह आपका है | उसकी उदारता इतनी अधिक है कि वह देकर आपको उस पर गर्व महसूस करवाता है | यह देखो’ यह मेरा है, वास्तव में आपका कुछ भी नहीं है | देने वाला आपको इस तरह से देता है कि आपको यह अहसास ही नहीं होता कि आपने कुछ लिया है | देने वाला आपको इस तरह से देता है कि आपको लगता है कि वह चीज़ आपकी ही है और आपने कुछ भी नहीं लिया | उसकी यहीं महानता और सुंदरता है |


उस महिला का अपने पुत्र के लिए चिल्लाना ही था जिसे एक संत जाग गए और उनका ज्ञानोदय हो गया | एक महिला ने कहा; राम तुम कब तब निद्रा लोगे ?- जाग जाओ, और इसी वाक्य ने शुरुवात करी | प्रकृति आपको काफी  सारे संकेत देती है कि प्रिय अब तो जाग जाओ, और कितने देर निद्रा में रहोगे और कब तक अपने मन से कहते  रहोगे कि “ क्यों, क्यों | एक रोता हुआ ढलता हुआ और शिकायत करने वाले मन को जागना होगा, जीवन बहुत छोटा है | जीवन की इस छोटी सी अवधि में जीवन का सम्मान करे | जीवन बहुमूल्य हैं | आपके कौशल, योग्यताओं और साधन जो कुछ भी आपको मिला है उसका अच्छा उपयोग करे | आपके पास जो कुछ है जैसे वाणी, बुद्धि इत्यादि उनका अच्छा उपयोग करे | बुद्धि का अच्छा उपयोग करे | गान करे चाहे उसकी कोई प्रशंसा करे या न करे |


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