यह जान लीजिये कि एक ही शक्ति है जो सबका ध्यान रखती है और वह शक्ति आप से प्रेम करती है !!!

मॉन्ट्रियल, कनाडा ९ जुलाई २०११                                                                             

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, कोई व्यक्ति सभी प्रकार के भय पर कैसे विजय प्राप्त कर सकता है और यदि वह इसमें सफल हुआ तो इस अनुभव से क्या अपेक्षा की जा सकती है ?
श्री श्री रविशंकर:ऐसा कुछ  भी नहीं  है जिसे सभी प्रकार के भय कहते है | सिर्फ एक ही भय होता है और वह लुप्त होने होने का भय है और इसे प्रकृति ने बनाया है | इसे सिर्फ समझ के द्वारा समाप्त किया जा सकता है | सबसे पहेले मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ , और फिर मेरे साथ सिर्फ अच्छा ही होगा | इसमें तीसरा कुछ भी नहीं है |

प्रश्न:प्रिय गुरूजी आप कई बार मेरे स्वप्न में आते है और मुझे आध्यात्मिक मार्गदर्शन और समस्याओं का समाधान देते है | क्या यह सत्य है और क्या मुझे इस पर विश्वास करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: जब तक सब कुछ ठीक हो रहा है, तब तक उस पर विशवास करे अन्यथा नहीं | यदि बातें  बिगड़ रही है तो यह आपका मन ही है!(हंसी)| यदि आपको अन्तर्बोध के द्वारा कोई विचार आता है, तो वह कब सच होता है | यदि वह वास्तविकता से परेह है तो आप यह नहीं कहते कि “ मुझे अन्तर्बोध हुआ था” आप उसे कैसे कहते है ? “मुझे भ्रम हुआ था” भ्रम और अन्तर्बोध में यह अंतर होता है कि अन्तर्बोध सही होता है और भ्रम गलत होता है |

प्रश्न: खुशी या अपने कर्तव्य में से क्या महत्वपूर्ण है?
श्री श्री रविशंकर: दोनों! आपको अपना कर्तव्य को पूरा करना चाहिये और साथ में खुश भी रहना चाहिये | आप इन दोनों में चुनाव करना क्यों चाहते है? यदि इनमे से किसी का चुनाव करना पड़े तो पहले अपना कर्म या कर्तव्य को करे क्योंकि यदि आप नाखुश है तो वह अस्थायी  है | खुशी तो है और वह  आ ही जायेगी | परन्तु यदि आप खुशी और कर्तव्य के मध्य में खुशी को चुनते है तो अंत में दुख ही मिलेगा |  इसलिए शुरुवात में दुखी रहना ही अच्छा है, उसे लंबा कार्यक्रम बनाने की तुलना में |  

प्रश्न: गुरूजी, कृपया कर के कर्म के नियमों को समझाये,रोगों से मुक्त होकर मैं निस्वार्थ सेवा कैसे कर सकता हूँ ? मेरे रोग मुझे सक्रीय, खुश और प्रेममय रहने में बाधा बन जाते है | मैं बहुत जल्दी थक जाता हूँ | कृपया मार्गदर्शन करे |  आपको बहुत सारा प्यार !!!
श्री श्री रविशंकर: इसका सबसे उत्तम उपाय है कि इसके बारे में बहुत अधिक चिंता न करे | ठीक है !!  कर्म मन में होता है फिर भी आप रोगों की चिंता करते है, “ ओह यह मेरा कर्म है”
शरीर की अपनी एक सीमा होती है  | सबके शरीर की एक सीमा होती है | और यदि आपने प्रकृति के नियमों का उल्लंघन किया है तो,फिर उसे ठीक होने में थोडा समय तो लगेगा | इसलिए अपने चेतना के स्तर को ऊँचा रखे और फिर सभी बातों का ध्यान  अपने आप रखा जायेगा |

प्रश्न: गुरूजी मुझे कब और कैसे परमान्द की प्राप्ति होगी ?
श्री श्री रविशंकर: किसी भी सूरत में नहीं !!(हंसी) उसके बारे में भूल जाये | क्या आप उसके बारे में भूलने के लिए तैयार है ? तो फिर वह आपको अभी प्राप्त हो जायेगा | आपका मन “परमान्द को प्राप्त करने के लिये उत्सुक रहता है, कि उसे मुझे एक दिन प्राप्त करना है” | 

प्रश्न: मेरा दिल आगे बढ़ना चाहता है परन्तु मेरा मन मुझे ऐसा करने नहीं देता, मैं क्या करूं? 
श्री श्री रविशंकर: उनमे आपसी टकराव होता रहता है |  किसी पुराने जोड़े के जैसे उनमे रोज ही टकराव होता है | (हंसी)

प्रश्न: जब मैंने कोई बड़ी गलती करी हो और जिसका प्रभाव दूसरों पर हुआ हैं तो मुझे शान्ति कैसे मिलेगी ?
श्री श्री रविशंकर: आप सही जगह पर आ गए है |

प्रश्न: गुरूजी प्रणाम! बड़ा इनाम जीतने के आशय से क्या लॉटरी खरीदना सही है ? (हंसी) या वैसा पैसा रखना ठीक नहीं है ? कृपया मार्गदर्शन करे !!
श्री श्री रविशंकर: मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा | मैं नहीं चाहता कि आपके मन में एक और टकराव शुरू हो जाये |

प्रश्न:  गुरु पूर्णिमा के अवसर पर क्या एक बड़ा लॉटरी का इनाम पाने की इच्छा कर सकते है ?
श्री श्री रविशंकर: मन कितना अजीब तरह से काम करता है | बिना कुछ करे आपको लॉटरी पाने की चेष्टा है | बहुत अच्छा !!!

प्रश्न: जय गुरुदेव गुरूजी , कृपया मुझे माफ कर दीजिये |
श्री श्री रविशंकर: माफ किया !

प्रश्न: पतंजलि कहते है कि सिर्फ योग से मुक्ति मिल सकती है | आदिशंकराचार्य के अनुसार सिर्फ ज्ञान से मुक्ति संभव है | कृपया इसे समझाये |
श्री श्री रविशंकर: आप भक्ति योग के बारे में भूल गए जिसके अनुसार सिर्फ भक्ति से मुक्ति संभव है | इसमें सिर्फ जुड़ने की आवश्यकता है | बुद्धि विचारों से शुद्ध होती है | यदि आप बुद्धिजीवी व्यक्ति है तो परमान्द पाने में बुद्धि ही सबसे बड़ी बाधा है | मन अक्सर बीच  में आकर बार बार प्रश्न करता रहता है और भ्रम पैदा करता है |
ज्ञान से बुद्धि को शुद्ध करे !
योग से शरीर, मन और चेतना को शुद्ध करे !!!
प्रेम और भक्ति से दिल को शुद्ध करे !!!

यदि आप इनमे से कोई भी एक पथ पर चलने लगते है तो शेष दो पथ अपने आप आ जाते है | ऐसा होयेगा और ऐसा ही होता है | योग का अर्थ है एक होना और मिलन होना और यदि आप दिल के पथ से चलेंगे तो मिलन अपने आप होगा और ज्ञान का उदय भी होगा | यदि आप ज्ञान के पथ पर चलेंगे और ज्ञान पाने की लालसा ही यदि आपमें न हो तो ज्ञान कैसे आप को प्राप्त होगा ? प्रेम की लालसा हो तो ज्ञान  में प्रेम मौजूद होता है | ज्ञान पाने की लालसा तब तक नहीं हो सकती जब तक उसके लिये प्रेम न हो | जब आप ज्ञान के मार्ग पर चलते है तब प्रेम मौजूद होता हैं पर दिखाई नहीं देता |वह साथ में होते हुए खिल रहा है | जितना आप उसे समझ पाते है उतना ही उस से प्रेम करने लगते हैं | यहीं इसका रहस्य है | अंग्रेजी भाषा की कहावत ‘ फिमिलीआरिटी ब्रिंग्स कंटेम्प्ट’( पहचान से अवमान आता है) काफी सतही प्रतीत होती है | आप इससे जितना अवगत होंगे उतना ही इसके लिये आपमें प्रेम खिलेगा | योग का अर्थ कर्म योग और सक्रियता होता है | शेष दोनों इसके साथ अपने आप आकर जुड जाते है |

प्रश्न: जिससे आप प्रेम करते है, उसे आध्यात्मिक पथ पर कैसे लाये, यदि वे इसका विरोध करते है और किसी भी किस्म का प्रयास विफल हो रहे हों |
श्री श्री रविशंकर: अपने सभी प्रयासों को निरंतर करते रहे और उसे न छोड़े | प्रश्न यह है कि किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ पर कैसे लाए यदि वह इसका विरोध करता है ? मैं कहूँगा प्रयास करते रहे और यदि वे हठी है तो आप उनसे अधिक हठी बन जाये | 

प्रश्न: गुरूजी अभी भी शंका होती जबकि मैं शंका करना नहीं चाहता कि आप कौन और क्या है | मुझे क्या करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: कोई बात नहीं जितना संशय कर सकते है उतना संशय करे | मुझे आपका संशय करना खराब नहीं लगता | यह जान लीजिये कि आप सिर्फ किसी सकारक बात पर ही संशय करते है | आप किसी के प्रेम पर संशय करते है लेकिन किसी व्यक्ति के क्रोध पर संशय नहीं करते | आप अपनी योग्यता पर संशय करते लेकिन आप अपनी कमजोरी पर संशय नहीं करते | आप अपनी खुशी पर संशय करते है | इसलिए अपने संशय के प्रकृति को समझ लीजिए | 

प्रश्न: गुरूजी किसी व्यक्ति को उसके क्रोध से कैसे मुक्ति दिलायी जाये यदि वह अत्यंत ज़िद्दी हों और आध्यात्मिक मार्ग का सहारा लेना नहीं चाहता ?
श्री श्री रविशंकर: मैं आप से कहूँगा कि हर किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता मिलनी चाहिये | आप किसी को नियंत्रित नहीं कर सकते | वह व्यक्ति यदि वैसा है तो आप उसके लिये क्या कर सकते है | किसी व्यक्ति को कुछ कहने से वह बदलने वाला नहीं है और आपको उसका नियंत्रण नहीं करना चाहिये | इस पर मेरा यहीं निष्कर्ष है ? किसी का नियंत्रण न करे | उन्हें वैसा ही रहने दीजिये जैसा वे रहना चाहते है | यदि वे आपकी बात सुनते है, तो उनका सरलता  के साथ मार्गदर्शन करे | यदि वे आप कि बात नहीं सुनते तो यह उनकी समस्या है | फिर आप क्या कर करते है |

क्या आप समझ रहे है कि मैं क्या कह रहा हूँ ? आप अपने बच्चों, पति या पत्नी और मित्रों को बिना किसी आशय के नियंत्रित करना चाहते है और उनको नियंत्रित करने में आपका आशय बिलकुल बुरा नहीं होता | परन्तु जब वे अधिक क्रोधित हों जाते है तो आप क्या कर सकते है |क्योंकि आप किसी को नियंत्रित करना चाहते है इसलिए आपको क्रोध आता है | जिस क्षण  आप किसी पर अपना नियंत्रण करना छोड़ देते है फिर आपका क्रोध  भी गायब हों जाता है | जब आपको कोई सुनता नहीं है तब ही आपको क्रोध  आता है | कोई बात आप उन्हें १० बार बताये फिर भी यदीं वे नहीं सुनते तो आप को  क्या मिलेगा ? क्रोध | फिर आपका ज्ञान उपयोग में आना चाहिये “ यह व्यक्ति  ऐसा ही है | आप क्या कर सकते है ? जय गुरुदेव” फिर तुरंत क्या होता है ? फिर कम से कम आपका दिमाक तो शांत हों  जाता है और आपको क्रोध नहीं आता | 

इसलिए मैं कहता हूँ किसी स्थिति या व्यक्ति को नियंत्रित करना बंद कर दीजिये | आप शान्ति है, नियंत्रण करने की चाहत ही समस्या है |क्या आपको समझ में आ रहा है? किसी भी परिस्थिति में चीजे अलग अलग रूप से होती रहेंगी | आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करे और फिर उसे छोड़ दीजिये |

इस बात को सुस्ती, नेतृत्व की कमी, पहल की कमी, या सुव्यवस्था के लिये गैर समझ नहीं करना चाहिये | क्या आप समझ रहे है कि मैं क्या कह रहा हूँ ? यह अत्यंत सूक्ष्म संतुलन है | एक ज्ञानी पुरुष बिना नियंत्रण करे नेतृत्व करने की पहल करता है | बिना किसी नियंत्रण के सरलता से नेतृत्व करने की पहल करे | फिर एक बार नहीं १० बार कहने का संतोष भी रखे | आपको पहली बार कहने के बाद यह नहीं कहना है कि “मैंने तो उसे कहा परन्तु उसने सुना नहीं” | आपको उसे १० बार कहने का संतोष होना चाहिये और यदि फिर भी वे इसे नहीं करते तो आपको उससे परेशान भी नहीं  होना चाहिये |

कोई बात को १० बार कहने का संतोष होना ही विवेक कहलाता है | आप उसे १० बार कैसे कहेंगे यदि वे आपकी बात पहली, दूसरी और तीसरी बार कहने पर भी नहीं सुनते और यदि फिर आप यह कहते है कि “ वे मुझे नहीं सुनते और मेरा कहना नहीं मानते और ये लोग ऐसे ही है” इससे आप यह दर्शाते है कि आप सुस्त हैं , आप में पहल करने की और प्रतिबद्धता की कमी है | मैं आप लोगों को वह बता रहा हूँ जो अत्यंत सूक्ष्म है | जब आप में प्रतिबद्धता होती है तो आप क्या करते हैं ? फिर उसे आप बार बार दोहराते है |

यदि आप को लकड़ी काटनी है और  यदि वह पतली है तो आप उसे एक बार में ही काट लेंगे | परन्तु यदि लकड़ी मोटी है तो उसे आप को पूरी तरह से काटने के लिये, उस पर कई बार प्रहार करना पड़ता है | आपने अपने मन में सभी लोगों के लिये यही मापदंड रखना चाहिये | “आप सोचते है कि सारी लकडियां एक बार में ही कट जाती है और यह मोटी लकड़ी भी एक बार में कट जानी चाहिये” | फिर आप क्रोधित हों जाते हैं | यह ठीक नहीं है | कुछ लकडियां पतली और कुछ मोटी होती है | प्रत्येक को काटने का अपना समय होता है | और जब वह नहीं कटती और वह लकड़ी नहीं है तो आप किसी और को बुला लेते है |

आप शांति है | यह मेरा निष्कर्ष है | आप उन्हें नियंत्रित न करे और उन्हें जो करना है, वह करने दीजिये | परन्तु उनका मार्गदर्शन करते रहिये ; यदि वे आप की बात नहीं सुन रहे है तो फिर वे अपने ही मन में कचरा एकत्रित कर रहे है | एक हाथी को स्नान करवाने के लिये ४-५ लोगों की आवश्यकता पड़ती है | कई बार वे हाथी को बैठा कर उस पर कई बाल्टी पानी डालते है | क्या आपने किसी हाथी को स्नान करते हुए देखा है ? नहीं? जब आप बैंगलुरू आश्रम आयेंगे तो आप को दो हाथी देखने को मिलेंगे | उन्हें साफ करने में दो घंटे लगते है और उन्हें स्पा स्नान करवाया जाता है | प्रतिदिन उन्हें साफ करके गुनगुने पानी से स्नान करवाया जाता है | फिर वे चमकने लगते है लेकिन १० मिनिट के लिये आप उन्हें अकेला छोड़ दीजिये फिर वे अपने पूरे शरीर में मिट्टी लगा लेते है | उनमे यह समझ नहीं होती है कि अभी मैने स्नान किया है और मैं फिर से शरीर में मिट्टी लगा रहा हूँ | जैसे ही उन्हें मिट्टी और धुल दिखाई पड़ती है, वे उसे उठाकर अपने सिर पर लगा लेते है और फिर से गंदे लगने लगते है | (हंसी) 
फिर क्या करे ?

प्रश्न: प्रिय गुरूजी सभी से मित्रतापूर्ण होने के अलावा मेरे जीवन में किस किस्म के मित्र होने चाहिये ? यदि वे जरूरत के समय मेरा साथ नहीं देते और मुझ पर विश्वास नहीं करते तो मैं क्या करूं ?
श्री श्री रविशंकर: किसी का भी विश्लेषण न करे | यह भी एक तरह से निष्कर्ष निकलना है | किसी का  भी विश्लेषण न करे | किसी का विश्लेषण करने का समय ही कहां है और अपने स्वयं का भी विश्लेषण न करे | सिर्फ विश्राम करे और  यह जान लीजिये कि एक ही शक्ति है जो सबका ध्यान रखती है और वह शक्ति आप से प्रेम करती है !!!!! यह जान लीजिये और विश्राम करे |  यही उत्तम उपाय है ? आप शान्ति है और उसी तरह आप की सहायता भी करी जायेगी | ऐसा नहीं है कि कोई आपकी सहायता करेगा परन्तु आपको अपना कृत्य करना ही होगा | इसके अलावा प्रकृति और एक शक्ति आपके साथ है जिसे कोई नहीं समझ सकता , यहां तक आप भी उसे नहीं समझ सकते | इसलिए उस शक्ति पर विश्वास रखे और विश्राम करे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी मैं सेवा और प्रत्येक ३ महीने के अंतराल में पार्ट २ कोर्स करना चाहता हूँ जिससे मैं कुछ पूर्व के बुरे संस्कारों से निकल सकूं| मैं अपने परिवार के सदस्यों के कारण ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ ? गुरूजी मैं क्या करू? कृपया सहायता करे | 
श्री श्री रविशंकर: कोई बात नहीं, आप वेब कास्ट को देखे, जहां भी हों वहां ध्यान करे | यह आपके अशांति का कारण नहीं हों सकता | इतना सारा ज्ञान है और कितनी ध्यान करने की सीडी है, उसे प्रतिदिन करे | अपनी साधना का अभ्यास करे; आपसे आपका ध्यान करने का अधिकार कोई भी नहीं ले सकता | समय निकालकर ध्यान करे | और इस ज्ञान को सजगता के साथ रखे | यह भी काफी है | अवसर निश्चित आयेगा और आपको यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि प्रत्येक  तीन महीने में या ६ महीने में आपको पार्ट २ कोर्से करना है | जब भी संभव हों तो यहाँ पर आये और यदि ऐसा नहीं हुआ तो पूरे साल में एक बार आये,  लेकिन फिर आपको यहां थोड़ा अधिक प्रयास करना पड़ेगा |

प्रश्न : गुरूजी क्या आपने भगवान को देखा है? आपको बहुत सारा प्यार !!
श्री श्री रविशंकर: क्या आपने अपने स्वयं को देखा है ? आईने में नहीं | आपको यह मालूम होना चाहिये कि भगवान कोई देखने की वस्तु नहीं है | यदि आप भगवान को देखते है तो इसका यह अर्थ हुआ कि भगवान कही और हैं और आप कही और है | आप द्रष्टा है और वह एक सुंदर दृश्य है | भगवान कभी भी दृश्य नहीं हों सकते वे द्रष्टा, दर्शक  है | और आप वहीं है और वैसा बन सकते है | जब मन स्थिर हों जाता है तो आप वैसे बन जाते है |

प्रश्न: गुरूजी मेरी बहन किसी को चाहती है जिसे मेरे पालक पसंद नहीं करेंगे और उसकी स्वीकृति नहीं देंगे | मेरा मानना है कि वह उसका चुनाव है | यदि मैं अपनी बहन को उस व्यक्ति के साथ बाहर घूमने देता हूँ तो मैं अपने पालको से झूठ कहूँगा, जो मैं नहीं चाहता | मुझे क्या करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर: शान्ति से आपसी सुलह  करवाये | यदि आप अपने पालको को नहीं बतायेंगे तो उन्हें लगेगा कि उन्हें दोहरे रूप में धोखा दिया गया है, वे सोचेंगे कि आप की बहन ने उनका सम्मान नहीं किया और उनका आप से भी विश्वास उठ जायेगा और यह ठीक नहीं होगा  | आपको अपने पालको को इसकी जानकारी देना चाहिये | और यदि आप पाते है कि वहीं सही व्यक्ति है तो फिर आप वकील भी बन जायेंगे |(हंसी)
The Art of living