सत्यम् परम् धीमहि

बेंगलोर आश्रम, १ अगस्त २०११  
अभी हम भगवत गीता के १६ वे अध्याय को पढ़ रहे है, इसमें अच्छे गुणों, दिव्य गुण, के बारे में बताया गया है जिसके साथ आप पैदा होते हैं और यह आपके भीतर होते हैं | नकारक भावनायें बाहरी सतह पर होती है | वह आपकी अच्छाइयों को चादर के जैसे ढक लेती है | इसलिये भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि आप में सारे अच्छे गुण होते हैं | आप उनके साथ पैदा होते हैं और नकारक गुण सिर्फ उसे ढक लेते हैं और आप उन से छुटकारा पायें | सबसे पहले उन्हें पहचानें और फिर उनसे छुटकारा पायें |

उन्होंने असुर संपत्ति के बारे में बताया है, सारे नकारक गुण  जैसे घमंड, मुझ से कोई प्रेम नहीं करता, हर समय शिकायत करते रहना इत्यादि | इन सभी नकारक प्रवृतियों ने सकारक गुणों को ढक लिया है | यह नकारक गुण आपके नहीं है और आप इनसे छुटकारा पा सकते हैं | फिर आप क्या करें ? आप कहें, “सत्यम् परम् धीमहि”, इस बुद्धि में दिव्यता का उदय होये | आप लोग मंत्रोचारण की कक्षाएं शुरू करें और “सत्यम् परम् धीमहि” का मंत्रोचारण करें | मेरी चेतना और बुद्धि में सत्य और दिव्यता का उदय होये |

आप अपने देश के लिये क्या कर सकते हैं और संसार में इस ज्ञान का प्रचार करने के लिये क्या कर सकते हैं | इन दो विषय पर सोचें | इस ज्ञान का और अधिक प्रचार करने के लिये हम क्या कर सकते हैं | आप सब लोग क्या कहते हैं  ? (सभी ने उत्तर हाँ दिया) | आपमें से ऐसे कितने यह सोचते हैं कि हमने यह सोचना चाहिये ? आप अपने विचार और सुझाव मुझे दीजिये | अब एक दिमाग को हिला देने वाले सत्र को करें | तूफान काफी छोटा होता है, इसलिये इसे दिमाग की सुनामी कहें |

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