यदि आँखे एक स्थान पर स्थिर है, तो मन का भटकना असंभव है !!


१९.१२.२०११ बैंगलुरू आश्रम, 

मन  इधर उधर भटकता रहता है | इस मन  को कैसे एक स्थान पर स्थिर रखें? इसे स्थिर रखने के तीन उपाय हैं |
पहला - अपने सामने कुछ ऐसा रखे  जो आपको  बहुत प्रिय है|  जब आपके  सामने कुछ ऐसा होगा जिसे आप  बहुत प्रेम करते है , तब आपका  मन नहीं भटकेगा |
दूसरा उपाय है, कि आप अपनी सांस पर ध्यान केन्द्रित करे |

और तीसरा उपाय है कि अपनी दृष्टि को स्थिर रखना |जब आपकी  आँखें इधर उधर भटकती हैं, तो मन भी भटकता है| जब आपकी आँखें स्थिर होती हैं तो मन भी स्थिर हो जाता है| यदि आँखें एक स्थान पर स्थिर हैं तो मन का भटकना असंभव है |

इसलिए सबसे सुन्दर मूर्तियाँ मंदिरों में बनायीं जाती हैं, ताकि आँखें बस उन्हें देखती  रहें और स्थिर रहें | उन दिनों में मन गहनों की ओर अधिक भटकता था, इसलिए उन्होंने मूर्तियों पर गहने सजा दिए जिससे  मन स्थिर रहे | इसलिये वह सारी वस्तुएं जिनके लिये  मन भटक  सकता हो, वे सब एक स्थान पर एकत्रित करके रखी जाती जाती थीं |

मन सुन्दर फूलों की तरफ भटक सकता था, इसलिए फूल भी रखे जाते थे |
वे मूर्तियाँ भी दो रखते थे , एक  देवता की और दूसरी देवी की | कुछ लोग देवी को पूजते थे और  कुछ देवता को और दोनों रूप सामने होने से मन वहीँ स्थिर हो जाता था | इसलिए आँखों को स्थिर रखने के लिए प्राचीन काल में यह सब किया जाता था |

मन बहुत चालाक होता है और उसे इसकी आदत हो गयी है | इसलिए, जब भगवान की मूर्ती भी  सामने हो तो भी मन भटकता रहता है |
फिर  उन्होंने मूर्ती को एक ऊंचे पहाड़ पर स्थापित किया, इस से, जब तक कोई इतना  ऊपर चढ़ कर पहुँचता तो उसकी सांस फूल जाती और जब वह  मूर्ती के आगे खड़ा होता तो मन अपने आप स्थिर हो जाता |

एक बार मन स्थिर हो गया तो उद्देश्य पूरा हो गया | उस मनःस्थिति में कोई जो भी मांगेगा भगवान उस  इच्छा को पूरा करेंगे |
अब एक  सुन्दर रहस्य के तरफ कदम बढ़ाये और जो व्यक्ति अपनी दृष्टि को बिना किसी वस्तु के स्थिर रख सके और अपने मन को बिना किसी सहारे के स्थिर रख सके, वहीं एक योगी और एक गुरु है |

इस तरह का ध्यान आप एडवांस कोर्स में करते हैं; शुरूआत  में थोड़ी मदद के साथ और फिर बिना किसी मदद के और फिर ऐसे मन स्थिर हो जाता है |

प्रश्न: गुरूजी, सुदर्शन क्रिया और ध्यान की सहायता से मैं केन्द्रित रहता हूँ | पर जब मैं केन्द्रित और संतुलित नहीं होता तो मैं उदास और व्याकुल हो जाता हूँ | मैं इस से कैसे निकल सकता हूँ ?
श्री श्री रविशंकर: आप  उदास इस लिए हो जाते है  क्योंकि आप  बहुत कुछ चाहते हैं, बहुत थोड़े समय में, और बहुत जल्दी और इसे पाने की शक्ति  नहीं है | यह  आपकी  उदासी का कारण हो सकता है | जीवन को एक बड़े दृष्टिकोण से देखे | अगर आप ज्ञान को सुनेंगे और उसको आचरण में लायेंगे, तो आप  उदास नहीं हो सकते | अष्टवक्र गीता को सुने | जिस  व्यक्ति में थोड़ा भी वैराग्य है, वह  उदासी में नहीं जा सकता |वैराग्य का अभाव उदासी का कारण है | प्राणायाम, क्रिया और ध्यान करने से आप इस स्थिति से निकल जायेंगे |

प्रश्न: गुरूजी, विरोधाभास मूल्य एक दूसरे के पूरक होते हैं, कृपया इसे समझाएं ?
श्री श्री रविशंकर: एक फिल्म में एक नायक और  एक खलनायक होता हैं | उस खलनायक  के कारण ही नायक एक नायक के जैसा  दिखता है | यदि कोई पराजित होगा तभी  आपकी जीत होगी | सिर्फ  इतना समझ जाये | आपको यह  जान कर कुछ करना नहीं है, बस सुनना ही पर्याप्त  है |

प्रश्न: गुरूजी, आप कहते हैं कि अतीत को भूल जाये | अगर हमें अतीत  का सब भूल जाना चाहिए, तो हमारे अध्यापक हमें इतिहास क्यों पढ़ाते हैं?
श्री श्री रविशंकर : अतीत को भूलने के लिए अतीत होना चाहिए | आप  अतीत को कैसे छोडेंगे यदि आपका  अतीत ही नहीं है ?
यदि  आपको  चॉकलेट का कवर हटाना है तो चॉकलेट पर कवर होना चाहिए |यदि  कवर है तभी उसे हटा सकते है |  इस लिए आपके  शिक्षक आपको इतिहास  पढ़ाते हैं ताकि  आप उसे सुन कर उसे छोड़ सके |

प्रश्न: गुरूजी  मुझे सिर्फ  "आर्ट ऑफ़ लिविंग" के लिए सेवा करना अच्छा लगता है |  मैं पूरे समय के लिये  आर्ट ऑफ़ लिविंग का शिक्षक बनना चाहता हूँ ,लेकिन  मेरे परिवार को  मुझ से  आर्थिक सहारा चाहिए, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: शुरूआत में पार्ट टाइम आर्ट ऑफ़ लिविंग के शिक्षक बने | एक महीने में संध्या में एक या दो कोर्स में प्रशिक्षण दे |  इस से आप  शिक्षक भी बन सकते है और अपनी नौकरी भी कर सकते है |  यहाँ हमारा "एच आर" भी  है जो आपको  नौकरी दिलाने  सहायता प्रदान कर सकता है |

प्रश्न: गुरूजी, मेरे पति और मेरी सोच में बहुत अंतर है क्योंकि वे धार्मिक नहीं हैं और मैं  बहुत धार्मिक हूँ |  अधिकांश समय वे  मुझे समझ नहीं पाते, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर:  धैर्य रखो और धीरे धीरे उनमे आध्यात्म पैदा करे |. अचानक किसी से आध्यात्मिक  होने की मांग न करे | आपको उन्हें  समय देना चाहिए |

प्रश्न: गुरूजी, सेवा सत्संग और साधना करते रहने के लिए क्या प्रतिबद्धतायें होनी  चाहिए? 
श्री श्री रविशंकर:  इसे अपना स्वाभाव बन जाने दीजिये | यदि कुछ आपके  स्वाभाव में है तो आपको  प्रतिबद्धता की आवश्यता नहीं पड़ती | प्रतिबद्धता की आवश्यकता आपको तब पड़ती है जब वह आपके स्वाभाव में नहीं है और आप उसे अपने में विकसित करना चाहते है |
सत्संग में बैठना अपना स्वाभाव मान लीजिये | सुबह उठते ही भस्त्रिका और ध्यान करे , इसे अपना स्वभाव बनाये और जब आप यह  सोच लेंगे कि यह आपका  स्वाभाव है तो फिर आप इसे करते रहेंगे |. फिर आप इसके बिना   रह नहीं पायेंगे |
यही होता है जब आदतें दृढ़ हो जाती हैं |व्यक्ति उसे अपना स्वाभाव समझता है, कि यह उसके खून में है | कोई व्यक्ति यह  नहीं सोचता कि वह  धूम्रपान करने के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि वह सोचता है कि यह  उसके खून और स्वाभाव में है | उनके शरीर को जिंदा रखने  के लिए उसकी ज़रुरत है | इसलिए, मैं चाहता हूँ कि आप  साधना को अपना स्वाभाव और अपना एक हिस्सा. समझें  |

प्रश्न: गुरूजी  पश्चिमी देश के लोग इतना अस्वस्थ  भोजन करते हैं फिर भी वहां इतने अविष्कार होते हैं | हम सामान्य और सादा भोजन करते हैं फिर भी कोई आविष्कार नहीं करते | ऐसा क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसी बात नहीं है. अगर आप देखे तो बहुत से नेक  वैज्ञानिक शाकाहारी हैं और खाने की अच्छी आदतें रखते हैं | वे फल और सब्जियां इत्यादि खाते हैं और कहीं अधिक अपनी सेहत का ख्याल रखते हैं |
आपको  सबकी हर बात नहीं अपनानी है | वे बहुत अच्छे वैज्ञानिक होंगे परन्तु यदि  उनकी कुछ बुरी आदतें हैं तो आपको  यह  नहीं सोचना हैं, कि वे  उन बुरी आदतों के कारण बड़े वैज्ञानिक हैं | यह सोच गलत है | कुछ लोग एक क्षेत्र में बहुत समझदार हो सकते हैं, और कुछ में बिलकुल नासमझ |

प्रश्न: गुरूजी, भगवान का नाम जपने को बहुत महत्व दिया गया है | ऐसा क्यों ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ. सब कुछ नाम में ही है | यदि आपको कोई   गधा बुलाये तो आपको  कैसा लगता है? आपको  अच्छा नहीं लगता | यदि आपको कोई सुन्दर कहे, तो सिर्फ यह  सुनते ही आपको  अच्छा लगता  है | इसी तरह, जब आप  भगवान का नाम लेते हैं, तो आपकी जीवन शक्ति बढ़ जाती है |

प्रश्न: यदि मुझे जीवन में कुछ समझ न आये तो मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : यदि आपको  जीवन में कुछ समझ नहीं आ रहा तो बस खुश रहे | और यदि सब कुछ समझ आ रहा है तब भी खुश रहे | सिर्फ  खुश रहे |  जो सोचते हैं कि वे जीवन  के बारे में सब कुछ समझते हैं, वे इस सोच के कारण ही बहुत दुखी होते हैं |  ऐसे न बने |

प्रश्न: कौन ज्यादा भाग्यशाली है - जो आनंदित है, या जो धन्य है? 
श्री श्री रविशंकर: धन्य हुए बिना आप आनंदित नहीं हो सकते | सबका अपना स्थान है | नेत्र  की अपनी जगह है और  कान की अपनी | आपको  तुलना नहीं करनी है | आप एक मोटर साइकिल चला रहे है  और आपने  एक बटन वाली कमीज़  पहनी है | यह सोचिये कि मोटर साइकिल चलाते समय यदि वे  सारे बटन गायब हो जायें तो  क्या होगा?  कमीज़ आपके  चेहरे पर उड़  कर आएगी और आप  किसी से टकरा जाएंगे |. कोई हादसा भी हो सकता है |  फिर  आपके कमीज़ के बटन कितने ख़ास हैं ? उतने ही जितनी आपकी  ज़िन्दगी | वह आपकी ज़िन्दगी बचा सकते हैं |

प्रश्न: गुरूजी, जब दो नौकरियां समान हो तो उनमे से  कौन सी चुनूं , इसके वजह से  मैं परेशान हूँ, मैं कैसे यह समझूं कि इसमें से  कौन सी नौकरी आगे चल कर मेरे लिए ठीक रहेगी? 
श्री श्री रविशंकर: मैं जानता हूँ कि आप  परेशान है, एक चीनी कहावत है – यह सबसे अच्छा होगा यदि आप परेशान है तो एक तकिया लेकर सो जाये | जब आप  इतने परेशान हो, यदि  आप कोई  भी फैसला लेंगे  फिर आपको कुछ और अधिक  बेहतर लगेगा |  इसलिए सब सृष्टि पर छोड़ दे  और जा कर सो जाये | फिर जो भी आपकी  झोली में आयेगा , वहीँ आपका  फैसला होगा और उसे आप स्वीकार कर ले | चीन में लोग यही कर रहे हैं, और वे जीवन में अच्छा कर रहे हैं |

प्रश्न: गुरूजी, मैं अपनी साधना और आध्यात्मिक  कार्यों में कैसे अटल बन जाऊँ ?
श्री श्री रविशंकर :कभी कभी घर पर आपका  साधना करने का मन नहीं करता, परन्तु जब आप  समूह में क्रिया करने के लिए जाते है , तो वहां आपसे  क्रिया करवाई जाती है.|  इसलिए समूह में क्रिया करे | एक और व्यक्ति के साथ आप और अच्छा महसूस करते है |
प्राचीन काल में   लोग कहते थे,  “एकस तपस्वी, द्विर अध्यायी” - जब उदास होना है , तो  अकेले बैठ कर उदास रहे और  अपनी नकारात्मक  भावना दूसरों में न फैलाये | जब आपको  तपस्या करनी है तो अकेले करे  और जब साधना करनी है  तो किसी और के साथ करना ज्यादा अच्छा है | और यदि कभी आप साधना न पाये तो उसका पछतावा न करे और आगे बढ़े | परन्तु यह सिर्फ कभी कभी ही होना चाहिये |

प्रश्न: गुरूजी, मेरे देश में कुछ लोग मानते हैं कि कुछ पदार्थों से मन बदल सकता है. |  मैं उनसे क्या कहूं जिससे वे बदल जाये ? 
श्री श्री रविशंकर:  पदार्थ अच्छे नहीं हैं क्योंकि वे  कुछ समय के लिए आपके मन को ऊंचाई पर होने का एहसास देते हैं और जो  लोग इसका सेवन करते हैं फिर यहीं पदार्थ  उन लोगों की ऊर्जा,खुशी और सुन्दरता ले जाते हैं | आपको  उन्हें सुदर्शन क्रिया करने को कहना चाहिए |

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