गुरु के ५ लक्षण


गुरु के ५ लक्षण

१.दुःख क्षय 
दुःख कम हो जाता है | अपनी सारी समस्याएं गुरूजी को दे दीजिये |

२. सुख अविर भाव 
बिना किसी कारण आनंद और खुशी उन्नत होने लगती हैं | यदि ऐसा होता है, तो यह जान लीजिये कि या तो गुरु आपके विचारों में है या आप गुरूजी के विचारों में हैं | जब कोई सत्संग या कोर्स हो तो उसमे सहायता प्रदान कीजिये | समृद्धि और संवर्धन अपने आप प्राप्त होंगे |

३. ज्ञान रक्षा 
ज्ञान की रक्षा होती है | आपको कई चीजे पता होती हैं लेकिन जब आप कोर्स में भाग लेते है तो फिर वे पुनः प्राप्त हो जाती हैं | जो ज्ञान आपके पास वैसे ही है, उसकी रक्षा होती है |

४. सर्व समृद्धि 
कोई अभाव या कमी नहीं रहती | अभाव का भाव समाप्त हो जाता है | यदि आप किसी बच्चे से पूछेंगे कि उसे क्या चाहिये? वो कहेगा कुछ नहीं | समृद्धि मन और दिल में समाने लगती हैं |

५. सर्व संवर्धन
प्रतिभा, कौशल और योग्यता प्रकट होने लगती हैं | जिन लोगों ने कभी कविता नहीं लिखी, वे कविता लिखने लगते है | जो प्रतिभा, कौशल और योग्यता आप में थे ही नहीं, वे प्रकट होने लगते हैं | उदाहरण के लिये टी टी सी  में आधे घंटे  में आप को १०० लोगों के लिये भोजन पकाने के लिये कहा जाता हैं |  गुरूजी उन शौकिया और गैर पेशेवर स्वयंसेविओं का उदाहरण देते हैं जो  इस संस्था को चला रहे हैं |यह  संवर्धन के लक्षण है |
यह गुरु के पाँच गुण या विशेषतायें होती हैं |

गुरु के नजदीक आने का अर्थ गुरु के पास बैठना नहीं है | आपको दिल से गुरु के प्रति नजदीकी महसूस होनी चाहिये |

The Art of living © The Art of Living Foundation