आप जितना अधिक मुस्कुराते हैं उतना ही आप देवत्व के करीब होते हैं !!!


३ दिसंबर २०११ बैंगलुरू आश्रम

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, अतीत की यादों से कैसे बाहर आये, जो मेरे मन और आत्मा को परेशान करती हैं? कभी कभी इस से बहुत दर्द होता है|
श्री श्री रविशंकर: जब आप घटनाओं को बहुत ज्यादा महत्व देते हैं तब यह होता हैं| यह  जान लीजिये  कि सभी घटनाएं पानी की सतह पर बुलबुले की तरह हैं ,सुखद घटनाएं, अप्रिय घटनाएं लहरों की तरह हैं, वे आती हैं और चली  जाती हैं और आप उसे अछूते हैं, शुद्ध हैं ; आप को यह याद रखना चाहिए | दूसरी बात यह  है कि जब आप परेशान  होते हैं, तब आप अपने पेट में कुछ संवेदनायें महसूस करते हैं; उस वक्त   घटना के बजाय शरीर में हो रही संवेदनों पर अपना ध्यान दिजिये| यदि आप उत्तेजना पर ध्यान देंगे  तब अपने आप में बदलाव आ जाएगा|

प्रश्न: प्रिय गुरुजी, अगर भगवान सब कुछ जानते हैं तो उनके लिए जीवन कैसे रोचक और रोमांचक है?
श्री श्री रविशंकर: भगवान जानते हैं और नहीं भी, दोनों! जैसे जब आप अपने सिर का एक बाल खींचते है तो  आप को महसूस होता हैं; लेकिन क्या आप जानते है  कि आप के सिर पर कितने बाल हैं? आप यह नहीं जानते | तो एक तरफ आप को हर एक बाल के बारे में पता हैं क्योंकि अगर आप इसे खींचते है तो आप को दर्द होता हैं, लेकिन आप नहीं जानते हो कि वहाँ कितने बाल हैं | तो ज्ञान और अज्ञान इस सन्दर्भ में एक साथ चलते हैं|

जैसे एक लाइब्रेरियन पुस्तकालय में लगभग सभी पुस्तकों को जानते हैं और किताब कहां है, इसके बारे में  आप का मार्गदर्शन कर सकतें है| लेकिन अगर आप उंनसे पुछो कि पुस्तक के किस पृष्ठ पर क्या कहा गया है, वह नहीं जानते| वह किताब कहां है यह जानते हैं और वे वह किताब जानते हैं, लेकिन सभी किताबों का  सारांश उन्हें  पता नहीं है | इसी तरह से खेल और भी दिलचस्प हो सकता है यदि आप को पहले से खेल के परिणाम का पता नहीं हो | यदि आप जानते हैं कि कौन जीतने जा रहें हैं और कौन हारने जा रहें हैं तो आप खेल में ईमानदार नहीं हो सकते |

प्रश्न: गुरूजी, मुझे लगता है कि सबसे बड़ा आकर्षण आत्मा को जानना है | आत्मा का एहसास करने का तेज तरीका क्या है? जिससे कि मैं सांसारिक आकर्षण में नहीं उलझ जाऊ ?
श्री श्री रविशंकर: आप सही समय पर  सही जगह पर हैं|

प्रश्न: प्रिय गुरुजी, अध्यात्म क्या है? यह धर्म के बारे में है या यह व्यक्तित्व के बारे में है?
श्री श्री रविशंकर: आप प्राकृतिक पदार्थ और आत्मा से बने हैं | आपका शरीर एमिनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आदि से बना है| आपकी आत्मा भावना, प्रेम, करुणा, शांति, उदारता, प्रतिबद्धता, देखभाल, जिम्मेदारी, खुशी से बनी है| ये सभी आत्मा की प्रकृति हैं  |

जो आप में जांच, प्रतिबद्धता, करुणा की भावना को बढ़ाता है,  वह अध्यात्म है | आध्यात्मिकता आपको ब्रह्मांड से जोडती है| यदि आप हर धर्म की जड़ में जा कर देखे सभी यह कहते हैं| ईसाई धर्म में यीशु ने कहा, प्यार भगवान है और भगवान प्यार है| हिंदू धर्म में यह 'अस्ति, भाती, प्रीति' है| कहा जाता है कि प्रीति (प्यार) परमेश्वर का स्वभाव है| इस्लाम शांति, प्रतिबद्धता, करुणा और दान के बारे में बात करता है|
तो अलग अलग रूप हैं, लेकिन पदार्थ एक ही है| सच्चे पदार्थ को पकडना अध्यात्म है| और आप गहन ध्यान में जाकर कर यह अनुभब कर सकते हैं|

प्रार्थना करने के लिए आप किस  शब्द का उपयोग करते है,  वह महत्वहीन है| आप मन: स्थिति में हो यह सबसे महत्वपूर्ण है| यदि आपकी भावना कोमल, भीतर से सुंदर हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं| अन्यथा चाहे आप एक पुजारी हो, लेकिन भीतर से बहत कठोर हैं तो आप आध्यात्मिक नहीं हो| चाहे आप मंदिर या चर्च में जाये और कई बार प्रणाम करते रहे , इस का कोई मतलब नहीं है| लेकिन यदि आप सड़क में भी अच्छे भावनाओं के साथ चल रहे हैं, तो आप भगवान के करीब हैं| आप जितना अधिक  मुस्कुराते हैं उतना ही  आप देवत्व के करीब होते हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरुजी, मैं हमेशा अकेला और अलग महसूस करता हूँ , जबकि मेरे आस पास सब है| इस से बाहर आने का कोई तरीका बताए?
श्री श्री रविशंकर: यह अच्छा है,  इसे एक उपहार के तौर पे ले| मत सोचीए कि यह बुरा है|
जब आपको लगता है कि आप अकेले हो सोचो, ‘जब मैं अकेला हूँ ,मैं भगवान के साथ हूँ और जब मैं लोगों के साथ हूँ फिर भी मैं भगवान के साथ ही हूँ’| जब आप अकेले होते हो तब आप अपने आप को मुक्त महसूस करते हो| ‘ मैं इस दुनिया में अकेले आया था और इस दुनिया से वापस अकेले जाना होगा’| इस विचार से अचानक आपका मन खिल उठता हैं और  आपके भीतर से बाहर आ जाती है|

प्रश्न: प्रिय गुरुजी, प्यार का दूसरा पहलू ‘लगाव’ है| प्यार सुंदर है लेकिन लगाव दर्द का कारण बनता है | लगाव बिना प्यार कैसे कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: अब आप अपने को अलग करने के लिये संघर्ष मत कीजिए| आपको लगता है लगाव है, तो है! आपको लगाव है तो उस से बाहर निकल ने के लिये कोई रास्ता नहीं है | यदि आप सेवा करते हो तो आप देखोगे कि लगाव को एक बड़ा आयाम मिलेगा|
और अगर आप लगाव पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं रखोगे, तो आप पाओगे वह खुद ही हो जाएगा| यह उम्र, समय, और परिपक्वता के साथ आप में आ जाएगा|

प्रश्न: जब ध्यान करो तो आज्ञा चक्र में कुछ कंपन आती है| उस समय कुछ करे  या बस चुप रहे ?
श्री श्री रविशंकर: यदि कुछ कंपन आज्ञा चक्र में आती है उसे वहाँ रेहने दे | इसे बढ़ाने या इस से छुटकारा पाने की कोशिश मत करे, सिर्फ आराम करे और कुछ भी नहीं | जो कुछ हो रहा है उसे होने दे|

प्रश्न: एक शोरगुल से भरे शहर में कैसे ध्यान करे?
श्री श्री रविशंकर: ध्यान के लिए एक शांत वातावरण अनुकूल है, इसमे कोई संदेह नहीं है| अच्छी ऊर्जा के साथ एक शांत जगह सबसे अच्छा ध्यान करने के लिए उपयुक्त है, लेकिन शोरगुल से भरी जगह में भी ध्यान कर सकते हो | क्या आप एक शोरगुल से भरी जगह में सो सकते हो? हां|

जो एक शांत जगह में रहते हैं और अचानक वे न्यूयॉर्क में किसी राजमार्ग के बगल मे कोई अपार्टमेंट में रहे, तो वे कहेंगे कि, 'हे मेरे भगवान, पूरी रात यातायात की आवाज़ थी| यह महसूस किया कि कार मेरे सिर पर चल रही है और मैं सो नहीं सका| ' लेकिन अन्य लोग हैं, जो वहाँ रहते हैं, शोर के आदी है और वे सो जाते हैं, क्योंकि वे शोरगुल को स्वीकार करते हैं|

जब भी आप अंतर मुखी जाना चाहते हो, तो बाहरी स्वीकार की जरूरत है| बाहरी विरोध रखकर आप अंतर मुखी नहीं हो सकते| तो आप शोरगुल के साथ कैसे निपटते हो यह आपकी खुद की पसंद है|

प्रश्न: गुरुजी, वयस्क के लिए ध्यान की कमी दूर करने के लिये क्या सुझाव है| कैसे वे इस से बाहर आ सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: उन्हे पता होना चाहिए कि मृत्यु निकट है| ध्यान की कमी है क्योंकि उन्हें लगता है मौत दूर है| वे या तो नहीं जानते हैं कि वे अधिक खुश हो सकते हैं या उनकी सोच  में कुछ बेचैनी है ,कुछ जो केवल कल्पना में है प्राप्त करने के लालच में है|
तो प्राणायाम से मदद मिलेगी, भोजन से मदद मिलेगी क्योंकि कोई भी लंबे समय के लिए यह ध्यान की कमी के साथ नहीं कर सकते | कभी न कभी  उन्हे बदलना होगा | उदासीनता ज्ञान सुनो बहुत मदद मिलेगी |

प्रश्न: गुरुजी, कभी कभी सामाजिक दायित्वों के कारण जो लोग शराब पीते हैं, उनके साथ बैठने की जरूरत होती है| क्या यह ठीक है?
श्री श्री रविशंकर: जब तक आप उनके साथ बैठतें हैं पर पीना नहीं शुरू करते हैं|
आप सामाजिक कारण से बैठते हो, लेकिन आप कहें कि, 'मैं शीतल पेय पसंद करता हूँ और मैं केवल शीतल पेय लेता हूँ |'

प्रश्न: गुरुजी, जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: पहले जीवन का उद्देश्य क्या नहीं होना चाहिए उसकी एक सूची बनाते हैं| जीवन का उद्देश्य है दुखी नहीं होये  और दूसरों को दुखी नहीं करें| दिखावा नहीं करें| जीवन का उद्देश्य अल्पावधि खुश के लिए और थोडे सुख के लिए छोटा सोचना नहीं है| तो आप इसके बारे में सोचते रहें और एक दिन आपको पता चल जाएगा| जब आपको पता चलता है आप कहेंगे की, 'वाह!'

प्रश्न: गुरुजी, मैं किसी भी तरह लोगों को बहुत नज़दीक होने की अनुमति नहीं देता| क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: इसका इतना विश्लेषण मत किजिए| वैसे भी कौन किसके करीब है? यदि कोई स्वयं के पास नहीं है तो वे किसी के भी करीब नहीं हैं| यदि आप अपने करीब हैं तो आप सभी के करीब हैं |

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