जब आप प्रेम में होते हैं, तब जीवन में उच्चतम पुष्पण होता है!!!


२०.१२.२०११, बैंगलुरू आश्रम



प्रश्न: जीवन के गीत को, जो कि भगवद गीता है पॉप और ट्विटर (कंप्यूटर पर) पीढ़ी में कैसे लोकप्रिय बना सकते हैं? क्या हम भगवत गीता का ट्विटर संस्करण बना सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: हाँ
, ज़रूर!
गीता में हर पीढ़ी
, हर आयु वर्ग और हर मानसिकता के लिये कुछ है|

प्रश्न: गुरुजी, मैं एक मनोवैज्ञानिक हूँ| आध्यात्मिकता मेरी जानकारी में कैसे वृद्धि र सकती है और इसे और अधिक समग्र बना सकती है?
श्री श्री रविशंकर: ध्यान कई मानसिक समस्याओं को बदल सकता है
| चेतना का और अधिक गहराई में अध्ययन करो| भगवद गीता का अध्ययन, योग वशिष्ठ का अध्ययन और तब आपको, चेतना क्या है, के बारे में अधिक समझ आएगा| भगवान बुद्ध और महावीर के शिक्षण को पढ़ें| उन्होने चेतना के विभिन्न पहलुओं और चेतना के विभिन्न भागों के बारे में बात की है| इससे भी मदद मिलेगी|


प्रश्न: गुरुजी मैं आपका आदी हूँ, क्या यह एक समस्या है या क्या यह भविष्य में एक समस्या पैदा करेगा?
श्री श्री रविशंकर: चिंता मत करो! बस निश्चिन्त रहे|

प्रश्न: एक आस्तिक के रूप में मुझे क्या करना चाहिए जब लोग मेरे गुरु, मेरी धार्मिक पुस्तकों या मेरे विश्वास की आलोचना करते हैं?
श्री श्री रविशंकर: बस एक बड़ी मुस्कान दे दीजिये| उन्हें बताओ कि आप उनके अज्ञान पर मुस्कुरा रहे हो| यह एक टिप्पणी उन पर गुस्सा करने की तुलना में अधिक काम करती है|यदि कोई, जो आपको प्रिय है, के खिलाफ कुछ कहते हैं, हो 'मुझे आपके अज्ञान पर दया आती है|' बस इतना ही| आप क्या कर सकते हैं? आप बल द्वारा किसी की गलत सोच नहीं बदल सकते| वे ऐसे नहीं मानेंगे| उन स्थितियों में, व्यंग करके इसे संभालना सबसे अच्छा तरीका है| आपका व्यंग उनके मन में एक तीर की तरह चला जाता है और जो बाधा उन्होनें खुद के लिए बना है वह टूट जाती है| उनसे कहो, ''मुझे आपकी अज्ञानता के लिए खेद है' और यह ही काफी अच्छा है|
देखो, अब वहाँ रूस में भगवद गीता पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास हो रहा है| मैंने कहा कि यह रूस के लोगों के लिये अन्याय हैं| हम वैसे भी भगवद गीता का लाभ उठा रहे हैं| लेकिन रूस के लोगों को अपने ही लोगों द्वारा भगवद गीता से दूर किया जाना एक अन्याय है| हम तो कुछ नहीं खोयेंगे, लेकिन उनका ही नुकसान है|

प्रश्न: गुरुजी, कुछ दिनों पहले आपने कहा था अर्जुन का स्थान खाली है| मैं उस पद के लिए कोशिश करना चाहता हूँ| क्या मैं सही हूँ? गुरुजी, मुझे कैसे आप को अपना आवेदन पत्र देना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: यह पहले से ही हो गया है| यह सवाल ही एक आवेदन पत्र है|
अब जो ज्ञान सुना है आप उस को लागू करते रहें|

प्रश्न: हालांकि भारत में एक लंबी अवधि के लिए इतना आध्यात्मिक धन था, इतने सालों के लिए अंग्रेज शासन के अधीन कैसे भारत पर आक्रमण था? क्या इसका कोई आध्यात्मिक महत्व है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, परिवर्तन का पहिया हावी हो जाता है|
जब शरद ऋतु ती है, पत्ते रंग बदलते है और सर्दियों में पत्ते पेड़ से गिरते हैं, लेकिन पेड़ रहता है| उसी तरह, कलयुग में पतन होना था| यह लगभग हर देश के लिए हुआ|
यदि आप वैश्विक परिदृश्य देखो, भारत एक समय पर शीर्ष बिंदु पर था और फिर इसका पतन हो गया| इससे पहले, मंगोलिया शीर्ष पर था और मंगोलिया का पतन हो गया था| मंगोल यूरोप गए थे और फिर वे भारत आए थे| मुगल मंगोलिया से आए थे| भारत तब एक समय पर चमक रहा था| भारत का प्रभाव दक्षिण अमेरिका में पेरू चला गया था| शिव लिंग और गणेश की मूर्तियां मेक्सिको में पायी गईं| भारत का प्रभाव महाभारत के समय के दौरान ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान तक चला गया था| भारत सभी जगह पर था| कनाडाई प्रांत, नोवा स्कोटिया (नव कोशा) का उल्लेख महाभारत में किया गया था| 'नव' का मतलब है नौ, कोशा का मतलब है समय की माप| भारत और कनाडा के प्रांत नोवा स्कोटिया के बीच नौ घंटे का अंतर है|
कैलिफोर्निया कपिलअरन्य के नाम से जाना जाता था| जब भारत में दिन है, कपिलअरन्य में रात है| यही शास्त्रों में हा गया है और आज कैलिफोर्निया और भारत के बीच बिल्कुल बारह घंटे के समय का अंतर है| तो एक समय पर यह सभ्यता दुनिया भर में मौजूद थी और फिर यह कम हो | उसके बाद इंग्लैंड आया था| उत्तर यूरोप के एक छोटे से देश का प्रभाव दुनिया भर में फैल गया| यहाँ तक के न्यूजीलैंड, कनाडा और अमेरिका तक| सारा अफ्रीका जीत लिया था| फिर इंग्लैंड का प्रभाव भी कम होना शुरू हुआ और आज यह इंग्लैंड ही है| एक समय था जब ब्रिटेन के राज्य में सूरज कभी नहीं छुपता था| लेकिन यह भी कुछ एक दशकों के लिए ला| उसी समय, पुर्तगाली ब्राजील की पूरी बस्तियों में थे| स्पेन का उपनिवेश पूरे लैटिन और दक्षिण अमेरिका में था| सभी स्थानीय भाषायें गायब हो गई और दक्षिण अमेरिका और मध्य अमेरिका के पूरे महाद्वीप में स्पेनिश भाषा फैल गई|
तो समय की अपनी लय है| चीजें ती और जाती हैं|

प्रश्न: जब मुझे आप की बहुत याद ती है तब मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: ज्ञान सुने और सेवा में संलग्न हो जाएँ| रचनात्मक हो जाएँ, कुछ लिखें| इतनी सारी चीजें आप कर सकते हैं| आकांक्षा और प्रेम साथ-साथ रहते हैं| वे एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते|

प्रश्न: गुरुजी, जब एक व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है, पिछले जीवन से क्या ज्ञान नये जीवन में प्रेषित होता है?
श्री श्री रविशंकर: कई अलग अलग विषय प्रेषित हो सकते हैं| पता करने के लिए कोई मापदंड नहीं है| आपके गहन संस्कार आगे प्रेषित हो जाते हैं|

प्रश्न: गुरुजी, विज्ञान भैरव क्या है? कृपया इस पर कुछ प्रकाश डालें|
श्री श्री रविशंकर: विज्ञान भैरव कश्मीरी शैव का एक अदभुत शास्त्र है|
केवल एक योगी या एक बौद्धिक इस का सार प्रदान कर सकता है| इस पुस्तक का सार यह है कि यह सब चेतना है और चेतना से पैदा हु है| ध्यान के माध्यम से चेतना में इतना गहरा जायें कि आपका हर कण चेतना में जाग जाए| यही इस का मुख्य सार है| बस यह एहसास करें|

प्रश्न: गुरुजी, रिश्ते हमें मजबूत बनाते हैं या हमें कमजोर बनाते हैं?
श्री श्री रविशंकर: यह मन पर निर्भर करता है|
रिश्ते या तो ताकत के रूप में या कमजोरी के रूप में मन के आधार पर सकते हैं| यदि मन मजबूत है तो रिश्ते हमारे लिए एक उपहार की तरह हो सकते है, लेकिन अगर मन कमजोर और नियंत्रण में नहीं है, तो रिश्ते बंधन की तरह महसूस हो सकते हैं|

प्रश्न: गुरुजी, आपने हमें सलाह दी थी कि सेवा, साधना और सत्संग के माध्यम से सामर्थ में वृद्धि करें| यही मैंने किया| अब मुझे लगता है कि मुझ में अधिक सामर्थ है, लेकिन बहुत कम हासिल हुआ है| यह मुझे उदास करता है| गलती कहाँ हु?
श्री श्री रविशंकर: नहीं! आप अपनी सामर्थ बढ़ाते रहो, और फिर अपने आप आपकी योग्यता विकसित होगी| दाता इतना दे रहा है, प्राप्त करने की जरूरत है| दाता एक हजार हाथों से दे रहा है, लेकिन आपके केवल दो हाथ हैं| आप दोनों हाथों से कितना ले जा सकते हैं? यही कारण है कि यह कहा जाता है, प्राप्त करने के लिए अपनी झोली (परिधान) खुली फैला दो| क्यों? इतना कुछ दिया जा रहा है जो आपके दो हाथों में नहीं समायेगा|
एहसास करें कि आपको इतना अधिक मिल रहा है, उससे अधिक जितना आप ले जाने के लिए प्रबंधन कर सकते हैं|

प्रश्न: यदि जीवन एक सपना है, इस पल में इस जगह में, कौन सपना देख रहा है - मैं देख रहा हूँ या सब जो यहाँ मौजूद है, एक ही सपने के साक्षी हैं, या कोई अलग संभावना है?
श्री श्री रविशंकर: ठीक है, कल तक जो भी हुआ क्या एक सपना था? आप कॉलेज , घर , खाना खाया, आपने यह सब कुछ किया था| आज, यह एक सपना प्रकट होता है या नहीं? यह एक सपने की तरह लग रहा है, नहीं?
यह किसका सपना है? आपका अपना सपना| उसी तरह, अभी भी, यह आपका अपना ही सपना है| हर किसी का स्वयं का अलग सपना है, और हम एक दूसरे के स्वप्न में हैं|

प्रश्न: गुरूजी, कल आपने तीन प्रकार की पीड़ा के बारे बताया था जिसमे मनुष्य और कर्म के कारण आई समस्या भी शामिल थी? परंतु इस की कुछ बातें मुझे सचमुच भ्रमित करती हैं, उदाहरण के लिये बाल श्रम और बंधुआ श्रम| इनको आप किस श्रेणी रखेंगे, मानव द्वारा निर्मित किये कर्म या कार्मिक कर्म?
श्री श्री रविशंकर: यह दोनों का समागम भी हो सकता है| कुछ उनके कर्मो के कारण हो सकते हैं और कुछ उनके स्वयं के द्वारा निर्मित किये हुये?
इसलिये मैं कहता हूँ गहन कर्मोनो गतिः कर्म के परिणाम इतने जटिल होते हैं कि सबसे विद्वान लोगों को भी इसका विश्लेषण करना असंभव तो जाता हैं| प्रत्येक बात में कुछ यह सत्य है और कुछ में कुछ और| यह भी सत्य है कि एक बालक अपने कर्मो के कारण ऐसे परिवार में जन्म लेता है और एक असंवेदनशील व्यक्ति उसकी सहायता करने के बजाय उसे वैसी परिस्थिति में ड़ाल देता है, यह मनुष्य द्वारा निर्मित किया हुआ कर्म है, यह भी सत्य है|

प्रश्न: क्या कभी विश्व का अकेन्द्रियकरण होगा जिसे कुछ लोग ही नियंत्रित नहीं करेंगे?
श्री श्री रविशंकर: यह तभी अच्छा होगा जब विश्व में पर्याप्त शिक्षा मुहैया हो रही हो| जब लोग नैतिकता में शिक्षित होंगे तो उसका परिणाम विश्व का अकेंद्रियकरण होता है| यदि लोग आध्यात्मिक होंगे तो यह उसका सहज परिणाम होगा| यही बात प्राचीन भारतीय ग्रंथो में कही गयी है| जब किसी समय सब ज्ञान में जीने लगे और ठीक से अपना कम करें तो फिर किसी राजा की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी| फिर पुलिस, सैनिक, थल सेना और यहाँ तक व्यवसायी की भी आवश्यकता नहीं थी क्योंकि जीवन के सभी पहलुओं में सुख समृद्धि हुआ करती थी| परंतु जब संसार में सभी स्तर पर जैसे सामाजिक स्तर, आर्थिक स्तर, राजनितिक स्तर पर, धार्मिक स्तर और शिक्षा स्तर पर अंतर होता है फिर ऐसे पदानुक्रम उत्पन्न हो जाते हैं|
प्राचीन वैदिक परंपरा में एक ग्रंथ जिसमे यह संहिताबद्ध है कि किसके क्या कर्तव्य और अधिकार हैं| उसमे कहा गया है कि अधिकार का प्रयोग न करें परंतु प्रत्येक व्यक्ति के लिये कर्तव्य निर्धारित हैं| इसलिये जब सभी लोग अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे तो कुछ नियंत्रित करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी| परंतु जब लोग अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते फिर अधिकार सत्ता में आ जाता है| यह एक स्वाभाविक बात है| कोस्टारिका में कोई पुलिस है| यदि आपको याद होगा, कुछ दशक पूर्व बैंगलुरू और मैसूर में कभी भी यातायात नियमों का उल्लंघन नहीं होता था या कोई अपराध नहीं होता था| आपको यहाँ वहाँ कम ही पुलिसवाले दिखते थे| यह बहुत पुरानी बात नहीं है|
४० से ५० वर्ष पूर्व मैसूर में में सिर्फ एक होटल था| प्रत्येक घर एक अतिथि गृह हुआ करता था| लोग अतिथिओं के लिये अपने घर खोल देते थे| अतिथि आकर उनके घरों में मुफ्त में ही रहा करते थे| वे उनकी सेवा करते थे और उन्हें भगवान जैसे पूजते थे| उनके लिये वे सबसे उत्तम भोजन पकाकर उन्हें परोसते थे| यदि उन्हें उपहार मिलता तो वे उसे लेने से इंकार कर देते थे| वे अपने घरों की छत पर पंडाल लगा कर उसमे बिस्तर बिछा देते थे, जिससे कोई भी किसी के घर में जाकर रह सके| आज कल यह पूरी तरह गायब हो चुका है| अपराध के कारण यह सब समाप्त हो गया है| लोग अपने घर खोलने से डरते हैं| जब ऐसा नैतिकता और आध्यात्मिक शक्ति का उदय होता फिर सत्ता व्यक्तिगत कर्तव्य में परिवर्तित हो जायेगी| लोग जो सब कुछ नियंत्रित करते हैं, फिर वे सभी बात का कारण बन जाते हैं जो कुछ भी समाज में उत्पन्न हो रहा हैं उसके लिये| उसी समय सत्ता से दूरियाँ नहीं बनायीं जा सकती यदि समाज में अपराध है| परंतु प्रश्न यह उठता है कि सत्ता किसे मिलनी चाहिये|
लोकतंत्र होना सबसे सुंदर बात है| लेकिन लोकतंत्र का दुरुपयोग तब होता है जब अपराधी संसद के लिये चुने जाते हैं और वे कानून बनाने वाले बन जाते हैं| तानाशही और भी बदतर होती है क्योंकि उसमे कोई जिम्मेदारी नहीं होती| लेकिन संसदीय लोकतंत्र में यह सबसे बड़ी समस्या है| मतों को पैसों से ख़रीदा जा सकता है और अन्य बाहुबल की मदद से| इसलिये हमें तंत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता है| प्रत्येक तंत्र में कुछ अच्छा होता है और कुछ गंभीर खामियां भी होती हैं|
यदि सत्ता की कमी हो तो अराजकता आ जाती है| सत्ता से लोगों की स्वतंत्रता दब जाती है और विकास में भी अवरोध उत्पन्न होता है, यदि वह सही परिपेक्ष में नहीं हैं इसलिये सही खुराक और सही हाथ आवश्यक हैं| जब सत्ता अराजकतावादी के चली जाती है या समाजवादी के लिये सत्ता का अभाव होता है, फिर वे भी कुछ नहीं कर सकते| कभी कभी विकासशील देशों में विकास में कमी इसलिये होती है क्योंकि वहाँ बहुत अधिक संसदवाद पनपा हुआ है|
एक सड़क निर्माण के लिये उसे संसद और कई स्तरों से गुजरना पड़ता हैं क्योंकि कोई भी उस कर्तव्य और जिम्मेदारी को लेकर कार्य करना नहीं चाहता| सबकुछ स्थगित हो जाता है या वहाँ पर टाल देनी की प्रवृत्ति आ गयी है| कुछ भी आगे नहीं बढ़ता| इसलिये एक मजबूत नेता आवश्यक है| उसी समय वास्तव में ज्ञान की आवश्यता होती है| लोगों में सेवक होने की भावना होनी चाहिये ना कि यह सोचना की लोगों पर हुकूमत करना है| व्यवसाइयों, राजनीतिज्ञयों या अधिकारियों और यहाँ तक आध्यात्मिक और धर्म गुरूओं को मन में बात बैठा लेनी चाहिये| यदि वे सोचते हैं कि लोगों पर उनका अधिकार और नियंत्रण है तो फिर यह बहुत बड़ी आपदा होगी| फिर वे लोगों को अच्छाई कम हानि अधिक पहुँचायेंगे| कई बार किसी विशेष समूह के धार्मिक प्रमुख सचेतक जारी कर देते हैं कि आप सभी को एक विशेष पार्टी या लोगों के पक्ष में ही मतदान करना होगा| यह बहुत गलत है| यह लोगों से उनकी स्वतंत्रता छीनने के जैसा है| कई बार उत्तरी पूर्व राज्यों में यदि योग कोर्स का आयोजन करना हो तो धार्मिक संस्था के प्रमुख से योग का कोर्स कराने के लिये अनुमति लेना पड़ती है| और फिर जब वे देखते हैं कि लोग योग कर रहे हैं तो वे लोगों में इतनी ग्लानी उत्पन्न कर देते हैं - तुम पापी हो, तुम शैतानी चीजें कर रहे हो यह सब नहीं करना चाहिये| इसलिये प्राचीन काल में इस देश के प्राचीन लोगों का बहुत ही भिन्न रुख हुआ करता था| उन्होंने सत्ता पर कभी जोर नहीं दिया| उन्होंने सिर्फ त्याग की बात की| कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि ईसाई या मुसलमान लोगों जैसे हिंदू धर्म में देश का एक ही पोप/बिशप क्यों नहीं है| मैं कहता हूँ कि व्यवस्था ऐसी है कि वह काफी भिन्न हैं| यह कोई एक सत्ता नहीं है, यह एक प्रेरणा है|
मुझे किसी से पदवी नहीं लेनी पड़ी कि आप आज से संत हैं| यह सब किसी के कृत्य से होता है| जब आप जो कहते है और उसी पथ पर चलते हैं तो फिर आप प्रेरणा के लिये आदर्श बन जाते हैं| महात्मा गाँधी को किसी ने अधिकार नहीं दिया लेकिन उनका जीवन बहुत लोगों को उस पथ पर चलने के लिये आदर्श बना| अरबिंदो के साथ भी किसी ने नहीं कहा कि आज से आपका यह अधिकार है| नहीं! लेकिन उनके शब्दों का बहुत लोगों पर प्रभाव पड़ा|

प्रश्न:गुरूजी नाम का महत्व क्या है? यदि इसका कोई अर्थ नहीं है तो स्वामी और ऋषि की पदवी मिलने पर उनके नाम क्यों बदल दिए जाते हैं?
श्री श्री रविशंकर: यह एक प्राचीन परंपरा है| नाम एक प्रेरणा है|
स्वामी और ऋषिओं को नवीन नाम इसलिये दिया जाता है क्योंकि उनके जीवन में कुछ से वास्तव में कुछ नहीं के नवीनतम अध्याय की शुरूआत हो जाती हैं|

प्रश्न: गुरूजी, मैं एक अत्यंत नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति से प्रेम करता हूँ और मैं उसे बदलने में असमर्थ हूँ?
श्री श्री रविशंकर: आशा न खोएं| कुछ समय प्रतीक्षा करें| कुछ और प्रयास करें| यदि वे बदल जाते हैं तो अच्छी बात है और यदि वे नहीं बदलते तो फिर आगे बढ़ते चलें|

प्रश्न: अच्छा मित्र कौन है?
श्री श्री रविशंकर: एक अच्छा मित्र वह है जिसके साथ बैठ कर बात करते हैं तो आपको अपनी समस्या का समाधान मिल जाता है| कम अच्छा मित्र वह है जिसके पास जाकर आप अपनी छोटी समस्या बताते है और फिर जब उससे दूर चले जाते हैं तो वह समस्या बड़ी लगने लगती है|

प्रश्न: मैं कुछ लोगों से जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ और कुछ से नहीं| ऐसा क्यों?
श्री श्री रविशंकर: अपने व्यक्तित्त्व को फैलायें और फिर एक दिन आप सभी से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे| गहन ध्यान में उतर जायें|

प्रश्न:गुरूजी मुझे ज्ञात है कि सत्य का मार्ग सर्वोतम होता है| जबकि व्यापार में थोड़ा बहुत झूठ बोलना पड़ता है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ! व्यापार में कुछ हद तक झूठ बोला जा सकता है, खाने में नमक के जितना| यदि आप खूब ज्यादा झूठ बोलेंगे तो निश्चित ही आप समस्या में फँस जायेंगे| और भोजन में यदि आप बिलकुल नमक नहीं मिलायेंगे तो भोजन खाने योग्य नहीं होगा| इसलिये जब झूठ एक सीमा से परे हो जाता है तो बात गंभीर रूप से बिगड़ जाती है| व्यापार में यह जानते हुये कि उत्पाद द्वितीय श्रेणी का है, आप उसे प्रथम श्रेणी या उच्च श्रेणी का बता कर बेच देते हैं जबकि आपको इसकी जानकारी भी नहीं होती कि वह अच्छा है या नहीं|
ऐसा कहा जाता है कि एक धार्मिक व्यक्ति, गुरु और संत को झूठ बोलने से प्रतिबंधित किया गया है, और ऐसा होता भी नहीं है| एक राजा के लिये थोड़ा बहुत झूठ स्वीकार योग्य है, और व्यापारी के लिये उससे थोड़ा और अधिक झूठ स्वीकार योग्य है|

प्रश्न: कल से टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स शुरू हो रहा है, टीचर बनने के बारे में आप कुछ कहें|
श्री श्री रविशंकर: टीचर बनने से आपको बहुत ही नेक काम करने का मौका मिलने वाला हैं| मुझे विश्वास है कि यह आप के लिये आनंदमय रहेगा| यह जीवन में बदलाव लाने वाला अनुभव है|

प्रश्न: मोक्ष मृत्यु के पूर्व मन का स्वाद/रस होता है या मृत्यु उपरांत ही मोक्ष की प्राप्ति होती है?
श्री श्री रविशंकर: जीवित रहते हुये मृत के जैसे रहना मोक्ष है| आपके जीवित रहते हुये जब मन विलीन हो जाये तो वह मोक्ष है|

प्रश्न: गुरु की वास्तविक उपस्थिति की लालसा करना क्या बुरा है?
श्री श्री रविशंकर: इस पर कोई राय न बनायें| जो कुछ भी है, वह अच्छा है|


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