दिव्यता की प्राप्ति ही हमारा ध्येय होना चाहिए!!!


२१.१२.२०११, बैंगलुरू आश्रम

श्री श्री रविशंकर: हमारे यहाँ सत्संग में एक नियम है, आप अपनी परेशानियों के साथ यहाँ आ तो सकते हैं, लेकिन आप उन्हें वापस नहीं ले जा सकते| अपनी व्यक्तिगत परेशानियाँ छोड़ दीजिये, और देश की परेशानियों के बारे में सोचिये|
प्रकृति का भी एक नियम है, जब आप बड़ी जिम्मेदारी ले लेते हैं तो आपकी आवश्यकताएं यूँ ही पूरी हो जाती हैं| आप यदि सिर्फ और सिर्फ अपने ही बारे में चिंतित रहेंगे तो कहीं भी नहीं पहुँच पाएँगे|
संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि केवल बड़ी चीजों में ही आनंद हैं, छोटी में नहीं, और जीवन का बहाव आनंद की ओर, आनंद की तलाश में होता है| दिव्यता में ही उच्चतम आनंद है, अतः दिव्यता की प्राप्ति आपका ध्येय होना चाहिए| इस प्रकार का उच्च उद्देश्य रखने से अन्य छोटी इच्छाएँ पूरी हो ही जाएंगी| यदि प्यास लगी हो तो पानी मिल ही जाएगा, परन्तु यदि प्यास ही न लगी हो तो क्या पानी होने/न होने की क्या कोई व्याकुलता होगी? इसी प्रकार दिव्यता प्राप्ति की एक प्यास, उच्चतम सत्य को जानने की चाह, यह जानने की लगन कि 'जीवन क्या है?’, 'मैं कौन हूँ?', हमारे अन्दर होनी चाहिए|
जब आप गुरु के पास आते हैं तो उन्हें कुछ देना होता है, मुझे फूल, माला या कम्बल न दीजिये, अपने सारे दुःख और कष्ट यहाँ छोड़ जाएँ| जब आप यहाँ से खुश वापस जाते हैं तो वही मेरे लिए गुरु दक्षिणा है| मैं प्रसाद में सिर्फ मिठाई, फल या फूल ही नहीं देता, एक प्रसन्न चित्त भी देता हूँ क्योंकि यदि कोई अपनी ही उलझनों में फंसा हुआ रहेगा तो समाज के लिए क्या कर पाएगा? कन्नड़ में एक कहावत है जिसका अर्थ है कि हाथ में मक्खन रखा है फिर भी घी नहीं होने की चिंता है ज़्यादातर लोगों की जीवन में यही दशा है| आपके भीतर असीम संकल्प शक्ति है जिसकी ओर आपने कभी ध्यान ही नहीं दिया| हम ध्यान द्वारा इस शक्ति का उपयोग करने के बजाए हर समय चिंता में लगे रहते हैं| जब हम दस वर्ष के थे उस समय गवर्नर ने पिताजी को किसी संस्कार के लिए आमंत्रित किया था| पिताजी ने मुझे साथ चलने को कहा, मैंने यह कहकर मना कर दिया कि यदि गवर्नर मुझे आमंत्रित करेगा तब ही मैं जाऊंगा| पिताजी अकेले ही चले गए| चार वर्ष बाद गवर्नर ने स्वयं ही मुझे आमंत्रित किया, किसी ने उनको बताया था कि एक छोटा बालक बहुत अच्छी तरह से ध्यान करना सिखाता है| पिताजी आश्चर्यचकित थे|
मैं यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूँ ताकि युवा बड़े सपने ले कर चलें, जीवन के वृहत आयाम को समझे| बेंगलोर में लायंस और रोटरी क्लब को देखकर मैं यह कहा करता था कि एक दिन मैं भी ऐसा एक समूह बनाऊंगा और उसे पूरे विश्व में फैलाऊंगा तो लोग इसे बेतुका मजाक समझते थे|
यह एक उदहारण ही है यह समझाने के लिए कि यदि हमारा चित्त परिष्कृत/शुद्ध है तो हमारे मंतव्य/विचार तेज़ी से प्रत्यक्ष में बदलते है|
हमारे देश में एक प्रथा है, किसी भी शुभ कार्य के पहले आप बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं| आपने देखा होगा, निमंत्रण-पत्र घर के सबसे बड़े सदस्य के नाम से दिया जाता है, मालूम है क्यों? क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ तृप्ति आ जानी चाहिए, और जब एक संतुष्ट व्यक्ति आशीर्वाद देता है तो वह ज़ल्दी फलीभूत होता है| हालाँकि आज ज्यादातर वयस्कों की चिंताएं उम्र के साथ बढ़ जाती हैं| लेकिन यदि आपकी स्वयं की कोई इच्छा न हो तो दूसरों की इच्छा पूरी करने की शक्ति आ जाती है|
उत्तरी ध्रुव में, जहाँ दो दो महीने सूर्य नहीं उगता, मैं एक बार २० नवम्बर को पहुंचा| जब मैंने पूछा कि सूर्योदय कब होगा, उन्होंने बताया २० जनवरी को! ऐसे स्थान में भी लोग सुदर्शन क्रिया कर रहे हैं, एअरपोर्ट पर दस लोग मुझे लेने आए| जिस यूनिवर्सिटी में मुझे भाषण देना था, मुझे देखकर आश्चर्य हुआ कि लोग वहाँ भी 'ॐ नमः शिवाय' का उच्चारण कर रहे हैं, ध्यान कर रहे हैं| इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव के एक दूर-दराज के कसबे में भी सत्संग के लिए १००० से भी अधिक लोग आए| भारत का अध्यात्मिक ज्ञान विश्व के हरेक कोने में पहुँच गया है, और ऐसा एक सकारात्मक संकल्प के कारण संभव हुआ| यह युवा वर्ग के लिए एक उदाहरण है, बड़े सपने देखिये! आप में से काफी लोगों को नहीं मालूम होगा कि पहला वायुयान भारत में बना| क्या आपको पता है वायुयान का पहला प्रारूप (डिजाईन) किसने बनाया? राईट बंधुओं ने नहीं बल्कि बैंगलुरू, आनेकड़ जिले के सुब्राया शर्मा शास्त्री ने| एक पारसी सज्जन नवरोजी ने उनकी मदद की और यह यान मुम्बई के चौपाटी में पंद्रह मिनट के लिए उड़ाया भी गया| अंग्रेजों ने उन दोनों को जेल में बंद कर दिया| पंद्रह साल बाद ही राईट ब्रदर्स सफल हो पाए| इंग्लैंड के अखबारों में यान बनाने में भारत के दो दोस्तों की सफलता की खबर छपी भी थी| आपको स्वयं को अपने सामर्थ्य का एहसास नहीं है|
संकल्प के साथ रहिये| जब अपने लिए कोई आवश्यकता न बचे तो दूसरों को आशीर्वाद देने की शक्ति आ जाती है| आज देश के सामने बड़ी समस्याएँ हैं| बड़ी चुनौतियों के बारे में सोचें| युवकों और वयस्कों को मिलकर देश, समाज के लिए कुछ अच्छा करना होगा| कितने लोग अपने पूरे जीवन का सिर्फ एक वर्ष अपनी ज़रूरतों से ऊपर उठ कर शहर, राज्य और देश के लिए देने को तैयार हैं?
सत्संग से उत्साह आता है, साधना से शक्ति और सेवा से प्रतिबद्धता| इनके साथ सप्ताह में सिर्फ रविवार को २ घंटे मिलकर काम करें, आस-पड़ोस की सफाई कर सकते हैं या आपस के मतभेद दूर करने के लिए भी काम करने की ज़रूरत है| हम सब एक ही दिव्यता के अंश हैं| वही एक दिव्य शक्ति हम सबके भीतर है| हमें आकांक्षा रखनी चाहिए एक हिंसा-मुक्त, तनाव-मुक्त समाज की| युवा ऐसी वृहत संकल्प रखें, उसे दिव्य शक्ति को समर्पित कर काम में जुट जाएं| प्रतिदिन ध्यान करें, इससे आतंरिक शक्ति मिलती है, स्वस्थ्य उत्तम और चित्त शांत रहता है, अंतर्ज्ञान बढ़ता है और मेघा तीक्ष्ण होती है| अतः आप जो भी करने लगते हैं, उसमे सफल हो जाते हैं|
२८ दिसंबर को रूस में भगवत गीता पर प्रतिबन्ध के बारे में एक महत्वपूर्ण निर्णय होना है| रूस महासंघ ने मुझे दो उच्च सम्मान दिए हुए हैं| मैंने उनसे कहा है कि मैं उनके दोनों सम्मान उन्हें वापस कर दूंगा यदि वे भारत में उच्चतम सम्मान प्राप्त ग्रन्थ गीता का आदर नहीं कर सकते, एक ऐसा ग्रन्थ जिसकी यहाँ पांच हज़ार वर्षों से अधिक समय से सप्रेम आराधना की जा रही है| रूस से मिले सम्मान का मुझे क्या करना है? मैंने सन्देश भेजा है कि भगवत गीता ने कभी भी, कहीं भी कोई आतंकवादी पैदा नहीं किया, केवल शांति फैलाई है| इस प्रकार के असहिष्णुता वाले विचार से सहमत नहीं हुआ जा सकता|

प्रश्न: मैंने अपने जीवन में बहुत कष्ट भोगे हैं, क्या उपाय है?
श्री श्री रविशंकर: जीवन एक नदी की तरह है| इसमे कष्ट भी हैं और आनंद भी| समय के साथ मित्र शत्रु और शत्रु मित्र बन जाते हैं, यह सब होता रहता है| आपको कष्ट मिले, यह सोच कर उदास न हो जाएँ| अतीत को समर्पित करते जाएँ, आगे बढ़ते जाएँ| दिव्यता हमेशा आपके साथ है|

प्रश्न: गुरूजी, बेहतर भारत के लिए क्या आप एक बेहतर राजनीतिक दल बना सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: एक सुधारक शासक नहीं बन सकता, और एक शासक सुधारक नहीं| लेकिन मैं चाहता हूँ कि अच्छे लोग राजनीति में आएं| यदि मैंने राजनितिक पार्टी बना ली तो सारे अच्छे लोग एक जगह जमा हो जाएँगे, यह समाज के लिए ठीक नहीं है| अच्छे लोग हर स्थान पर फैले होने चाहिए| अच्छे और बुरे लोगों को मैं विभाजित नहीं करना चाहता| प्रत्येक पार्टी में अच्छे लोग हैं, उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिए| अच्छे लोगों को ऊपर आना पड़ेगा और उन्हें खूब मेहनत करनी होगी|

प्रश्न: गुरूजी, मैंने आर्ट ऑफ़ लिविंग के कोर्स के लिए कई लोगों को प्रोत्साहित किया लेकिन मेरे पति ही यह नहीं करना चाहते, क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर: अपने पति के मित्रों को यह कोर्स कराएं और उन मित्रों से कहें कि वे आपके पति को ले कर आएं| पत्थर डाल पर मारा जाए, आम पर नहीं| परोक्ष युक्ति से काम लें|

प्रश्न: गुरूजी, आपका उद्देश्य क्या है?
श्री श्री रविशंकर: मैं आपके चेहरे पर एक शाश्वत मुस्कान देखना चाहता हूँ| मैं हिंसा से मुक्त एक ऐसे समाज को देखना चाहता हूँ जहाँ सभी में निष्ठा है, भक्ति है|

प्रश्न: क्या देश की उन्नति आध्यात्मिकता से हो सकती है?
श्री श्री रविशंकर: अवश्य! सिर्फ अध्यात्म से ही देश की प्रगति संभव है| महात्मा गाँधी गहन अध्यात्मिक व्यक्ति थे, वे प्रतिदिन भगवत गीता पढ़ते थे| मेरे शिक्षक ने गांधीजी को भगवत गीता पढ़ाई, वे आज भी जिंदा हैं और ११३ वर्ष के हैं| गांधीजी रोज़ सत्संग किया करते थे| सत्संग के माध्यम से ही उन्होंने आन्दोलन का आयोजन और संचालन किया| अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान आर्ट ऑफ़ लिविंग के लोगों ने ही सत्संग किए, वे प्रतिदिन भजन गाते थे|

प्रश्न: गुरूजी, इंडिया अगेंस्ट करप्शन आन्दोलन में आपकी क्या भूमिका है?
श्री श्री रविशंकर: मैं संस्थापक सदस्य रहा हूँ| लोग पूछते हैं कि मैंने उपवास क्यों नहीं किया| मेरा उत्तर यही है, बिना किसी प्रतिवाद के मैं इस आन्दोलन का समर्थन करता रहूँगा, यदि मैंने उपवास किया तो १५० देशों में भारत के दूतावासों के सामने व्यग्र भीड़ जमा हो सकती है जिससे भारत की प्रतिष्ठा पर आँच आ सकती है| मैं अन्ना हजारे को तीस वर्षों से जानता हूँ| जब वे दिल्ली आए तो वहाँ उन्हें कोई नहीं जानता था| मैंने उनसे कहा आप उपवास में बैठे लोग आपको जानने लगेंगे| वे बहुत ही अच्छे, समर्पित व्यक्ति हैं|

प्रश्न: गुरूजी, साधना, सेवा और सत्संग करते हुए मैं प्रसन्न रहता हूँ, लेकिन फिर दिनचर्या के काम करते हुए मन विचलित हो जाता है| मैं जानना चाहता हूँ कि अध्यात्मिक प्रगति के लिए काम करने का क्या महत्व है?
श्री श्री रविशंकर: दोनों आवश्यक हैं| हमें शरीर और मन दोनों का ध्यान रखना है|


The Art of living © The Art of Living Foundation