सबकुछ छोड़कर अपने दिल के शांत कोने में आश्रय लीजिए!!!

०३.०१.२०१२,जर्मनी

प्रश्न: असुरक्षा की भावना से कैसे बाहर आ सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आप असुरक्षा इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि आपको लगता है कि आपका कोई नहीं है| जागिये और देखिये कि कितनी मानवीयता है, दुनिया में कितना प्रेम है और आपको असुरक्षित महसूस करने की ज़रूरत नहीं है| आप सड़क पर चल रहे हैं, और किसी को कुछ मदद चाहिए| वे अपना बैग नहीं उठा पा रहे हैं; क्या आप जाकर उनकी मदद नहीं करेंगे? सही है?
आपको पता है हम असुरक्षित कब महसूस करते हैं? जब हमें लगता है कि कोई मानवीयता नहीं है, कोई करुणा नहीं है, कोई भी दयालु नहीं है, और कोई भी स्नेहशील नहीं है| सिर्फ तभी हम असुरक्षित महसूस करते हैं|
यदि आप जागें और देखें कि इस दुनिया में इतना प्यार है, इतनी करुणा है, इतनी अपनेपन की भावना है, तब असुरक्षा की कोई ज़रूरत नहीं है, ठीक है|
प्राणायाम, श्वसन प्रक्रियाएं और ध्यान ज़रूर इस असुरक्षा की भावना से बाहर आने में आपकी मदद करेंगे| ऐसा पहले ही हो चुका है| आपमें से कितने लोगों को ऐसा लगता है कि आप इस असुरक्षा के भावना से बाहर आ चुके हैं? (बहुत लोग हाथ उठाते हैं)

प्रश्न: मुझे यह कैसे मालूम हो, कि कोई रिश्ता मेरे लिए ठीक है या नहीं? क्या वह सिर्फ मेरा इस्तेमाल कर रहा है, और मुझे इससे सीखना चाहिए, या फिर वह मेरे लिए अच्छा ही नहीं है?
श्री श्री रविशंकर: मुझे इस बारे में कोई अनुभव नहीं है, इसलिए मैं आपको बता नहीं सकता|
किसी दूसरे के बारे में राय बनाने से पहले यह देखें कि आप उनसे कैसे मिलते हैं| आपका दिल कितना बड़ा है, आप एक व्यक्ति से कितना निभाते हैं, और किसी को बदलने के लिए आप कितना प्रभाव डाल सकते हैं? यह है जिसे आपको ध्यान से देखना है|
कभी कभी जब हमें संशय होता है, तो वह संशय हमेशा किसी अच्छी चीज़ के लिए ही होता है| क्या आपने यह देखा है? हम किसी भी व्यक्ति की ईमानदारी पर शक करते हैं, हम कभी भी उसकी बेईमानी पर शक नहीं करते| यदि कोई आपसे पूछता है, क्या आप खुश हैं?’ आप संदेह करते हैं, आप कहते हैं, मुझे पक्का यकीन नहीं है, लेकिन आप कभी भी अपने दुःख पर संदेह नहीं करते| ऐसा है न?
आपका संशय हमेशा किसी सकारात्मक चीज़ के लिए होता है| तो इस नज़रिए से भी देखिये|

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, दूसरे लोगों के साथ सच्चा सात्विक रिश्ता कैसे बनाया जाता है?
श्री श्री रविशंकर: सबसे अच्छा है कि आप किसी के साथ कोई रिश्ता बनाने के कोशिश ही न करें| जैसे आप हैं, वैसे ही रहें| सहज रहें और सरल रहें| रिश्ते खुद ही बन जाते हैं| यदि आप रिश्ते को बनाने की कोशिश करते हैं, तब आप थोड़े बनावटी हो जाते हैं| तब आपका व्यवहार बनावटी हो जाता है जो सहज नहीं है|
ज़रा सोचिये, कोई आपको प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, तो क्या आपका ध्यान उस पर नहीं जाता? जब कोई आपको प्रभावित करने की कोशिश कर रहा होता है, तब आप क्या करते हैं? आप दूर हो जाते हैं| देखिये, जो आपको पसंद है, दूसरों को भी वही पसंद है| आपको पसंद है, यदि कोई ईमानदार है, खुले स्वभाव का, सहज और आडम्बरहीन हो, है न? दूसरे भी आपसे बिल्कुल ऐसा ही चाहते हैं| मान लीजिए आप एक बॉस हैं, तो आप किस तरह के सहायक या कर्मचारी चाहेंगे? जो साफ़ दिल हो! है ना? बस यही है जो आपका बॉस भी चाहता है|
अपने बॉस को बहुत ज्यादा प्रभावित करने की कोशिश न करें, ना ही अपनी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड को| तब सब कुछ गड़बड़ हो जाता है| सबसे उत्तम है, कि आप जैसे हैं वैसे रहिये, सहज रहिये, क्षमाशील और वर्तमान क्षण में रहिये| यह बहुत बड़ा फ़र्क लाता है|

प्रश्न: क्या करूँ यदि मुझे सब कुछ उदास, रूखा सूखा और उद्देश्यहीन लगे? कभी कभी मैं खुद को प्यार के बिना महसूस करता हूँ|
श्री श्री रविशंकर: यही समय है जब आपको ज्ञान पढ़ना चाहिए| मैंने बहुत सी ज्ञान की किताबें और सी.डी. बनाई हैं| अष्टवक्रगीता बहुत अनमोल है और ध्यान| ये दोनों चीज़ें आपकी मदद करेंगी| और यदि कहीं इस तरह का मौन का कोर्स है (एडवांस कोर्स), बस जाईये और भाग ले लीजिए| जब सब कुछ बहुत रूखा सूखा हो जाए, तब इससे जीवन में रस फिर से भर जाता है|
प्रश्न: महान आत्माएं महान कैसे बनीं और हम महान आत्माएं कैसे बन सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आपको महान बनने के लिए कोई महान कार्य करने की ज़रूरत नहीं है| बल्कि छोटी छोटी चीज़ों को अच्छे तरीके से करने से आप महान बनते हैं| सरल और सहज रहिये, और तब महान कार्य आपके द्वारा सहज ही हो जायेंगे| समझ गए? और आपको महान कार्य करने के लिए बहुत मशहूर होने की ज़रूरत भी नहीं है| महानता आपके अंदर निहित है| वह आपके अंदर एक बीज की तरह है|

प्रश्न: कभी कोई महिला गुरु, पैगम्बर या मशहूर शिष्य क्यों नहीं हुई है? मैंने सिर्फ पुरुष गुरुओं के बारे में ही सुना है, और बहुत कम महिला गुरुओं के बारे में?
श्री श्री रविशंकर: जगह खाली है! खाली जगह है, आप बन सकती हैं!

प्रश्न: क्या आप स्वास्थ्यप्राद (हीलिंग) के बारे में बात कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: हीलिंग अपने आप होती है! जब ऊर्जा का स्तर बहुत अधिक होता है, और जब प्रेम होता है, तब हीलिंग अपने आप होती है|

प्रश्न: गुरूजी, मैं क्या करूँ यदि मेरे पति हमेशा बॉस बन के रहना चाहते हैं और मेरे पीछे पड़े रहते हैं| मैं उन्हें प्रेम करती हूँ, पर वे मुझे बेचैन करते हैं|
श्री श्री रविशंकर: एक बार एक सज्जन से किसी ने पूछा, इस घर का बॉस कौन है?’ उन्होंने कहा, मैं! लेकिन ऐसा कहने के लिए मुझे अपनी पत्नी से इजाज़त लेनी होगी|’ तो उनकी पत्नी को उन्हें यह कहने की इजाज़त देनी होती थी कि, मैं बॉस हूँ’|
आप बॉस रहिये, लेकिन गूढ़ होकर| रिश्तों के बारे में एक रहस्य है| एक है, कि आप कभी भी अपने पति को छोटा महसूस न होने दीजिए| यदि आप अपने पति को कहेंगी, आप सब्जी जैसे हैं, आप किसी काम के नहीं है, आप महा आलसी हैं! उनका आत्म सम्मान बिल्कुल नीचे चला जाएगा और वे वाकई में किसी काम के नहीं रहेंगे| तो चाहे वे जितने ही गए बीते और कमज़ोर क्यों ना हों, आप उनसे हमेशा यह कहें, कि वे सबसे उत्तम हैं! आप उनके अहंकार को बढ़ाईये| चाहे पूरी दुनिया कहे कि उनके पास दिमाग नहीं है, लेकिन आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए| एक पत्नी होने के नाते, आपको कहना चाहिए, आपके पास दुनिया का सबसे तेज दिमाग है| सिर्फ इसलिए कि आप उसका इस्तेमाल नहीं करते, मतलब यह नहीं है कि आपके पास दिमाग है ही नहीं|
आप सिर्फ उसका इस्तेमाल नहीं करते, बस| आपके पास एकदम ताज़ा बिना इस्तेमाल किया हुआ दिमाग है’| आपको यह कहना चाहिए|
इसी तरह महिलाओं के लिए| आप कभी भी उनकी भावनाओं पर ठंडा पानी मत डालिए| महिलाओं के लिए, भावनात्मक सम्बन्ध बहुत ज़रूरी होता है| आप कभी भी उनके पिता, या माता या बहनें या भाई के बारे में शिकायत ना करें| यदि वे खुद शिकायत करें, तो आप कुछ न बोलें| कोई टिप्पणी नहीं, क्योंकि यदि आप उनका साथ देंगे, तब भी आप मुसीबत में पड़ेंगे, और यदि आप उनके खिलाफ़ बोलेंगे तब भी मुसीबत में पड़ेंगे|
यदि आप उनके माता पिता के खिलाफ़ कुछ कहेंगे, तो आप मुश्किल में हो जायेंगे, और यदि उनकी तरफदारी करेंगे तो उन्हें लगेगा जैसे वे अकेली पड़ गयी हैं| आप मुझे समझते नहीं हैं, वे रोना चिल्लाना शुरू कर देंगी|
हर तरह से आप मुश्किल में हैं, इसलिए चुप रहें| चुपचाप वहां से चलें जायें, या विषय पलट दें|
और यदि वे खरीदारी के लिए जाना चाहतीं हैं, आप उन्हें अपना क्रेडिट कार्ड दे दें| उनके पास हो सकता है दस जोड़ी जूते हों; वे ग्यारहवें जोड़ी जूतों के लिए जाना चाहतीं हों| यदि आप उनसे पूछेंगे, तुम्हारे क्या ग्यारह जोड़ी पैर हैं, जो तुम इतने जूते खरीद रही हो?’, तब वे मायूस हो जायेंगी| तो खरीदारी करने के लिए आप उन्हें मत टोकिए|

प्रश्न: मैं यह कैसे जानूं कि मैं जिस महिला से प्रेम करता हूँ वह मुझे वाकई में १०० प्रतिशत प्रेम करती है?
श्री श्री रविशंकर: मुझे इसका बिल्कुल आभास नहीं है, ना ही आपको है| ये ज़ोखिम उठाईये| यदि वह ९० प्रतिशत भी है, तो भी काफी है|
मान लीजिए, आपसे कोई यही सवाल पूछता है, तो आप क्या कहेंगे? आप किसी के लिए खुद अपने प्रेम की १०० प्रतिशत गारंटी नहीं दे सकते| हाँ, इस पल के लिए तो शायद फिर भी दे देंगे, पर अगले महीने की क्या गारंटी है? मैं आपको बताता हूँ, कि आप खुद अपने मन की गारंटी नहीं दे सकते| आप खुद अपने मन को ही नहीं जानते| तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि कोई किसी और के मन को जाने? जब आपका ही अपने मन पर कोई काबू नहीं है, तो आप किसी और के मन को कैसे काबू कर सकते हैं? यह असंभव है|
बस एक बात जानिए; जो आपका है, वह हमेशा आपका रहेगा| जो आपसे दूर चला जाता है, वह पहले भी कभी आपका था ही नहीं| यह एक बहुत अच्छी कहावत है, जो आपका है, वह हमेशा आपका रहेगा| जो आपसे दूर चला जाता है, वह कभी आपका था ही नहीं’| यदि आप यह जानते हैं, तो आप शांत रहेंगे|
यदि आप अंदर से स्वतंत्र महसूस करते हैं, और शांति महसूस करते हैं, तब सारी दुनिया आपकी है| सब आपके हैं| लेकिन इसके अभाव में, आप किसी को कितना भी अपनाने की कोशिश करें, वे आपसे छूट जायेंगे|
इसीलिए यह आध्यात्मिक ज्ञान इतना ज़रूरी है| यह ज्ञान न सिर्फ आपको आंतरिक शक्ति देता है, बल्कि आपको इस ब्रह्माण्ड का केन्द्र बना देता है| आप इतने केंद्रित, इतने स्थिर हो जायेंगे, कि आप तक सब कुछ सहजता से आ जायेगा|
भगवद गीता के दूसरे अध्याय में, एक बहुत सुन्दर छंद है जो कहता है, जो उच्च चेतना में स्थापित है, सारी इच्छाएं और सारी पूर्ति उस तक ऐसे आएँगी जैसे एक नदी सागर की तरफ बहती है’| कितना सहज है, है न? सारी नदियाँ, वे सागर की तरफ बहती हैं| इसी प्रकार सारी इच्छाओं की पूर्ति उसमे होती है, जो योगी है| इसीलिए, योग करिये, ध्यान और आध्यात्मिक ज्ञान में रहिये| तब सब आपके पास आ जायेगा| उसके पास नहीं, जो इच्छाओं के पीछे भाग रहा है| जो व्यक्ति जो भागता है, इच्छाओं के पीछे दौड़ता है, उसके हाथ कुछ भी नहीं आएगा|
इसीलिए सबकुछ छोड़ दीजिए, और अपने मन के शांत कोने में आश्रय लीजिए| तब सब कुछ आपका है| यह परम सत्य है|

प्रश्न: लगता है इन मूल्यों का मैं कार्यस्थल में उपयोग कर नहीं पाऊँगा| क्या मुझे नौकरी बदल लेनी चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : नहीं! आप इन जीवन मूल्यों को वहां स्थापित कर सकते हैं|| निश्चिन्त रहें, लोगों से बात करें| थोड़े समय उन्हें लग सकता है कि आप सनकी हो गए हैं| आप बात ज़ारी रखें| उन्हें कुछ समय में समझ आने लगेगा, वे स्वीकार करने लगेंगे| जब मैं पश्चिम देशों को गया लोगों ने मुझे सनकी ही समझा| मेरी बातें किसी के सिर में घुसती नहीं थी| मैं बार-बार आता रहा और धीरे-धीरे वे इसका आनंद लेने लगे| ऐसा ही आपके साथ आपके ऑफिस में भी होगा|
आप ज्ञान-बिन्दुओं और परिवर्तन के बारे में चर्चा करें| मुझे याद है, बीस साल पहले यदि कोई शाकाहार या पेड़ लगाने, पर्यावरण सुरक्षा की बात करता तो उसका उपहास होता था| याद है किसी को|? स्वच्छता या प्लास्टिक न उपयोग करने कि बात पर लोग कहते थे "यह सब मूर्खता है, अविवेक है, असंभव है"| तीस साल पहले धुम्रपान न करने को लोग 'बेतुका' समझते थे| यदि आप सिगरेट नहीं पीते तो आप 'फिट' नहीं है ऐसा सोचा जाता था| वायु यानों में सीट-बेल्ट के चिन्ह के साथ ही ऐश-ट्रे होता था यह याद दिलाने के लिए कि सिर्फ विमान के टेक-ऑफ और लैंडिंग के समय धूम्रपान न करें, बाकी समय सभी सिगरेट पीते थे| केवल तीन-चार पंक्तियाँ ही होती थीं धूम्रपान न करने वालों के लिए, जिसका कोई अर्थ ही नहीं था क्योंकि उन्हें पीछे से आता हुआ धुआं तो मिल ही जाता था| उन दिनों धूम्रपान नहीं करना, फैशन के बाहर मन जाता था| लेकिन आज, सभी एयरलाइन्स में यह निषेध है, ऐश-ट्रे होता ही नहीं|
तो आप भी बातें करते रहें| एक समय था, सुखासन लगा कर ध्यान में बैठे व्यक्ति को लोग अलग ही मानते थे| आमतौर में लोग ध्यान नहीं करते थे| आज ऐसा नहीं है| बड़ी कम्पनीयां जो अवकाश और विश्रांति की मार्केटिंग करते हैं, एक ध्यान में बैठे व्यक्ति को चिन्ह के रूप में उपयोग करते हैं| तो, परिवर्तन हो रहा है| आपके अन्दर सामर्थ्य है अपने कार्यस्थल में भी परिवर्तन लाने की| भागिए नहीं, वहीँ रहिये, और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इनकी चर्चा करते रहें| वे भी बदलेंगे|
कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए हमारे पास विशेष कोर्स हैं, प्रशिक्षित टीचर्स हैं| लोग वे कोर्स कर सकते हैं| हम जब यहाँ बात कर रहे हैं इस समय भी 'बाश' कम्पनी के उच्च अधिकारीयों का एक समूह बेंगलोर आश्रम में इस कोर्स के लिए आया हुआ है|
अर्थात, कार्यस्थल में भी अब माहौल बदल रहा है| मुझे याद है, कुछ २५ साल पहले लुफ्तहांसा और ब्रिटिश एयर लाइन्स से लोगों ने कोर्सेज़ किये थे, आज उनमे उड़ान के समय गाईडेड मेडिटेशन करवाया जाता है| लुफ्तहांसा के चैनल १३ में जर्मन और ईंग्लिश में गाईडेड मेडिटेशन चलाया जाता है| हालाँकि वे इतने सटीक नहीं होते, पर थोडा विश्राम तो मिल ही जाता है| उन्होंने भी मेहनत तो की है|
दुनिया बदल रही है, आप भी थोडा परिवर्तन ला सकते है| 
आप किसी और कारण से जॉब बदलना चाहें तो बदल लें, जैसे बेहतर सेलेरी, लेकिन इस कारण कि लोग ठीक नहीं है, बदलाव न करें| यदि लोग बुरे हैं तब तो आप का वहां रहना ज़रुरी है क्योंकि आप से ही परिवर्तन लाने की आशा की जा सकती है|

प्रश्न: अपने काम, परिवार के मामले में अच्छा ही कर रहा हूँ, समाज के लिए भी शिक्षा के क्षेत्र में थोड़ा काम कर रहा हूँ| लेकिन मुझे लगता है समाज के लिए मैं और योगदान कर सकता हूँ, पर कैसे, यह समझ नहीं आता| कृपया मार्गदर्शन करें|
श्री श्री रवि शंकर: आर्ट ऑफ़ लिविंग के सामाजिक कार्यों में आकर हाथ बटाएं| हमें बहुत काम करना है, और हमें आपकी ज़रूर आवश्यकता है| भारत में हम अपना पहला विश्वविद्यालय बना रहे हैं और मैं चाहता हूँ कि वहां पश्चिम और पूर्व की सबसे उत्तम शिक्षा बच्चों को मिले| अपनी-अपनी जगह दोनों में कुछ अच्छा है, कुछ कमियां है| हम दोनों ओर के सर्वोत्तम ज्ञान को लेकर मानव चेतना में परिवर्तन लाना चाहते हैं| हमें आप सब से सहयोग की आवश्यकता है|
हमें ज़रूरत है कोष जुटाने के लिए, बच्चों का खर्च वहन करने के लिए, ईमारतें बनाने के लिए लोगों की| और भी बहुत कुछ है करने को| तो आप सब का स्वागत है इन परियोजनाओं में|

प्रश्न: मुझे लगता है मैं बड़ा प्रेमी व्यक्ति हूँ, मेरे अन्दर देने के लिए बहुत सारा प्रेम है| हमेशा से मैंने सिर्फ एक इच्छा रखी, अपनी शादी, परिवार, बच्चे| परन्तु वर्षों हो गए ऐसा हुआ नहीं| प्रेम और विवाह मैं अपने जीवन में कैसे आकर्षित करूँ?
श्री श्री रविशंकर: मुझे नहीं मालूम| वहां बहुत प्रेम से भरे लोग भी हैं, अकेले पुरुष और महिलाएं भी हैं| शायद आप चयन में काफी कड़क होंगे| यदि आपको लगता है आप काफी प्रेमी हैं, तो आपको दूसरे कम प्रेमी लगते होंगे| दूसरों में कमियां ढूँढने लगते होंगे| इनका रूप ठीक नहीं है| इनकी ऊचाई कम/अधिक है, इनके कम/अधिक बहुत बाल है|
यदि सब को परखते रहेंगे, कमियां देखेंगे तो जीवन साथी कैसे मिलेगा| एक महिला ने एक बार मुझसे पूछा था "मैं एकदम परिपूर्ण, दोषहीन पति पाना चाहती हूँ"| मैंने उनसे कहा था "ज़रूर, लेकिन उन्हें भी परिपूर्ण, दोषहीन पत्नी की आशा होगी| आप वैसी तो हैं नहीं| आप क्या करेंगी|
जब स्वयं परिपूर्ण, दोषहीन नहीं हैं तो ऐसे जीवन साथी की उम्मीद क्यों रखते हैं|
कभी कभी हमारे विचार हवाई होते हैं, व्यावहारिक नहीं, इसलिए हम जैसा चाहते हैं वैसा होता नहीं| यदि आप सभी से परिपूर्णता की आशा रखते हैं तो आपके अन्दर छोटी बातों से भी चिड़चिड़ाहट या क्रोध आ सकता है| और यदि आप पूरे समय आवेश में रहते हैं तो लोग आप से दूर चले जाते हैं, उन्हें आप से डर लगने लगता है|
जब आप केन्द्रित होते हैं और ज्यादा चुनाव से दूर होते हैं तब वह होता है जो आप चाहते हैं|
प्रश्न: सत्संग या क्रिया में जब आपके दर्शन होते हैं तो बहुत उच्च अनुभव होता है, वैसी ही उच्चता हमेशा कैसे महसूस करें?
श्री श्री रविशंकर: 'हमेशा' को तो भूल ही जाइए| जब आप नहाते है तो आपको गर्म/ठन्डे पानी से ताजापन आता है और नहाने से शरीर की पूरे दिन के लिए सफाई हो जाती है| ताज़ा महसूस करने के लिए आप कह सकते हैं मुझे पूरे दिन नहाना है लेकिन इसके लिए आपको मछली बनना होगा| ऊर्जा के स्तर का ऊपर-नीचे होना स्वाभाविक है| सत्संग या क्रिया से ऊर्जा ऊपर उठती है और दिनचर्या के काम-धाम से, सिनेमा आदि देखने से, यह नीचे जाती है, कभी ध्यान दीजिएगा उनके चेहरे पर जो पिक्चर देखकर बाहर निकल रहे हैं; क्या चमक या उर्जा होती है उनके आँखों में? वे थके हुए, सुस्त नज़र आते हैं|
ऊर्जा का लहरों के सामान ऊपर-नीचे होना स्वाभाविक है, यह एक ही स्तर पर बनी रहे ऐसा तो नहीं होता|
लेकिन सत्संग आदि से यह सामान्यतः उच्च स्तर पर रह सकती है| और, कभी यह नीचे चली भी जाए तो उसे स्वीकार करें| आकुल न होएं कि "मेरी ऊर्जा नीचे चली गयी"| यदि आप सत्संग, ध्यान और क्रिया नियम से कर रहे होंगे तो एक स्थिरता रहेगी|

प्रश्न: नकारात्मक भाव, दुख, खिन्नता या गुस्सा आने पर मैं खाऊ हो जाता हूँ, अपने भोजन पर काबू नहीं रख पाता| वजन बढ़ता जा रहा है| क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, इस समय तो मैं आपको कोई तरीका या सुझाव नहीं दूंगा, सोचिये क्यों? क्योंकि आप उसे भूल सकते हैं, या जब याद आएगा तो आपको और भी बुरा महसूस हो सकता है कि "मैंने निर्देशों का पालन नहीं किया"|
जब भी आप परेशान हों, कोई भी संगीत लगा कर, उसमें उदासी ही क्यों न हो थोड़ा नाच लें| उस थोड़े समय आप कुछ तो वजन गवाएंगे| नाचकर थक जाने से आपको भूख लग सकती है, अधिक खाने का मन कर सकता है| जब तक आप स्वयं इस के लिए खुद का पक्का निर्णय नहीं ले लेते, लोग शायद ही कुछ सहायता कर पाएंगे| आप खुद फैसला लें|

प्रश्न: ध्यान करते समय शरीर में कभी-कभी झटके का अनुभव, क्या यह सामान्य है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, यह ठीक है, यह अच्छा है|

प्रश्न: क्या आप ज़रूरत से कम खाने की प्रवृत्ति, सिर्फ उत्तम स्वास्थ्यकारी भोजन ही करना, और अत्यधिक अनुशासनपूर्ण जीवनशैली, इस पर दो शब्द कहेंगे, ऐसा क्यों, इसका इलाज क्या है?
श्री श्री रविशंकर: सदैव सिर्फ उत्तम स्वास्थ्यकारी भोजन करने से शारीरिक प्रक्रियाओं के सामंजस्य में गड़बड़ी हो सकती है, प्रतिरक्षा तंत्र गड़बड़ा सकता है| अतः भोजन के बारे में लचीले रहें| कभी-कभार साधारण भोजन भी कर लें| मै यह नहीं कह रहा कि जंक फ़ूड ही खाते रहें, लेकिन प्रत्येक भोजन ऑर्गेनिक ही हो, यह आवश्यक नहीं|
आपको मालूम है, मैं भारत के झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों की बात कर रहा हूँ| वे एकदम मज़बूत होते हैं, उनकी रोग-प्रतिरोध शक्ती ज़बरदस्त होती है| आपको देखकर आश्चर्य होगा| शहर वालों को थोड़े प्रदूषण से सर्दी-जुखाम आसानी से हो जाता है लेकिन ऎसी बस्ती के लोग तो तगड़े बने रहते हैं स्टील की तरह|. ऐसा इसलिए क्योंकि उनका प्रतिरक्षा तंत्र काम कर रहा है| यह आश्चर्यजनक है, पर सच है| झुग्गी झोपड़ी के लोग ज्यादा स्वास्थ्य होते हैं| हर जगह ऐसा ही हो यह ज़रूरी नहीं, लेकिन मैंने ब्राजील में रिओ दी जेनीरो और अन्य स्थानों पर भी ऐसा ही देखा है| मैं उन बस्तियों के अन्दर तक गया हूँ| लोग स्वस्थ्य और मज़बूत दिखते हैं|
तो अपने शरीर को सिर्फ सुपर-हेल्दी भोजन खिला कर संवेदनशील न बना लें, बीच का रास्ता लें, यानि, ज़्यादातर स्वास्थ्यकर भोजन लें, और कभी कभी साधारण खाना भी चलने दें|

प्रश्न: मुझे इन अभ्यास का पालन कर के अपनापन बढ़ने की बजाए अकेलापन लगता है| बताएं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर: आये| जाग जाए| शुरू में थोड़े समय ऐसा लग सकता है पर यह चला जाएगा| इस के साथ रहे| गहन में जाएं, अपार शक्ती मिलेगी|