अकेले पर एकाकी नही!


परम पूज्य श्री श्री रविशंकर के द्वारा
यदि कभी आपको लगे कि कोई भी आपको प्रेम नहीं करता तो यह जान लें कि आपके लिए प्रेम की वर्षा हो रही है। ये धरती आपको प्रेम करती है तभी तो ये आपको अपने उपर उठाए हुए है। धरती का प्रेम हम उसकी गुरूत्वाकर्षण शक्ति के रूप में देख सकते हैं। हवा को भी हमसे प्रेम है तभी ये हमारे फेफड़ों तक जा कर हमें जीवन प्रदान करती है, उस समय भी जब हम सो रहे होते हैं। ईश्वर का भी हमारे प्रति अगाध और गहरा प्रेम एक बार जब हमें इसकी अनुभूति हो जाएगी तो हमें कभी अकेलापन नहीं लगेगा।
किसी का साथ हमारे अकेलेपन को दूर नहीं कर सकता। और यदि करता है तो वह भी बेहद कम समय के लिए। आप किसी के साथ रहते हुये  भी अकेला महसूस कर सकते हैं। वास्तविक रूप में अकेलेपन को एकाकीपन से ही भरा जा सकता है। यदि आप कुछ समय तक आसानी से अकेले रह सकते हैं तो आप अकेलापन महसूस नहीं करेंगे। और जब आप अकेलापन महसूस नहीं करते हैं तब आप अपने आस-पास के लोगों में आनंद बाँट सकते हैं।
लोग पार्टियों और समारोहों के पीछे भागते हैं, परंतु जो लोग इनके पीछे नहीं भागते उनके पीछे पाटियाँ और उत्सव भागते हैं। यदि आप पार्टी या समारोहों से भागते हैं तब अकेलापन आपके पास जाता है और जब आप स्वयं के साथ अकेले में रहते हैं तब आपके चारों तरफ पार्टियों का माहौल रहता है।
जब आप स्वयं के साथ रहने का आनंद उठाने लगते हैं तब आप उबाऊ व्यक्तित्व वाले नहीं रह जाते। अगर आप में अकेलापन है तो आप दूसरे लोगों के लिए भी उबाऊ हो सकते हैं और ये बात आपको और भी अकेला कर देगी। और यदि आपको अपनी स्वयं की कंपनी उबाऊ करती है तो जरा सोचिए कि आप दूसरे लोगों के लिए कितने बुरे होंगे ?
जिन लोगों के पास किसी का साथ होता है वह हर समय अकेले रहने का सुख उठाना चाहते हैं और जो लोग अकेले रहते हैं वे एकाकीपन महसूस करते हैं। हर एक व्यक्ति पूर्ण संतुलन की तलाश में है। यह पूर्ण संतुलन किसी छुरी की धार/किनारे की तरह है और इसे सिर्फ स्व में ही पाया जा सकता है। यदि हम वर्ष में एक सप्ताह  अपने स्वयं के साथ रहने के लिए बाहर निकलें और अपने विचारों एवं भावनाओं को देखें तो पायेंगे कि वास्तव में शांति का मतलब क्या होता है।
कुछ समय केवल हमें अपने आप के लिए निकालना चाहिए और समय-समय पर हमें उन लोगों से कुछ दूरी बना कर रखनी चाहिए जो हमारे करीब हैं। सुबह सो कर उठने के साथ हम हमेशा लोगों से घिरे रहते हैं और हमारा मन सांसारिक विचारों के अधीन होता जाता है। इसलिए हम दिन में भी हम कुछ समय एकांत में बैठें और अपने हृदय की गहराइयों में प्रवेश करें। इससे हमें अकेला रहने पर भी एकाकीपन का एहसास नहीं होगा।
अपना जीवन अच्छे से जीएं। यदि हम अपने पूरे जीवनकाल में लोगों के लिए उपयोगी हैं तो हमारी देखभाल करने के लिए हजारों और लाखों लोग होते हैं। उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि मदर टेरेसा और आचार्य विनोबा भावे अपने जीवन में बीमार होकर काफी समय तक बिस्तर पर थे। क्या आपको पता है कि उनका साथ देने के लिए कोई नहीं था? उनकी देखभाल करने के लिए सैकड़ों लोग इंतजार में थे क्योंकि उन्होंने अपने आस-पास के लोगों के लिए उपयोगी कार्य किए थे।
जब हम सेवा को अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बनाते हैं तो इससे हमारे अंदर का डर दूर हो कर ध्यान केन्द्रित होता है, इससे हमारी क्रियायें प्रयोजनशील होती हैं और हमें लम्बे समय तक आनंद आता है।
हर बार जब हम नाखुश, दुखी या अकेले होते हैं तो हम अपनी स्वयं की सीमाओं के संपर्क में रहे होते हैं। ये हमारी सीमायें और हदें ही हैं जिनके कारण हम वास्तव में परेशान रहते हैं। जब तक हम अपनी सीमाओं के संपर्क में नहीं जाते तब तक हम शांत और सुखी नहीं होते। जैसे ही हम इनके संपर्क में आते हैं हमारा मन सैर पर निकल जाता है और हम अपने केन्द्र से बाहर निकल जाते हैं। उस क्षण हम क्या कर सकते हैं? हम तुरंत कृतज्ञ हो जाएं और शांति के लिए प्रार्थना करें। इससे उसी क्षण हम मुस्कुराना आरंभ कर देंगे और स्थिति चाहे जितनी भी निराशाजनक हो हम उससे बाहर निकल आयेंगे।

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