प्रत्येक जीवन का एक उद्देश्य होता है !

१२.०२.२०१२, बैंगलुरू आश्रम


यह भजन कितना अद्भुत है न? (बसवन्ना के द्वारा लिखे एक श्लोक को सुनते हुए, वे कर्नाटक के बारहवीं सदी के दार्शनिक थे) यह कहता है कि शरीर, मन और संपत्ति सब ईश्वर के हैं
फिर चिंता की क्या ज़रूरत है? एक भक्त होने का लक्षण यही है, जो किसी बात की चिंता नहीं करता
जीवन में अच्छा और बुरा समय आएगा लेकिन आपको हमेशा अपने आप को संतुलन में रखना है

अगर भक्तिभाव चरम सीमा पर होने के कारण आँखों में आँसू आते हैं, तो मन पवित्र हो जाता है
ज्ञान से बुद्धि की शुद्धि होती है
दान करने से धन की शुद्धि होती है
योग और आयुर्वेद से शरीर की शुद्धि होती है
सेवा से कर्म की शुद्धि होती है, और ध्यान से आत्मा की शुद्धि होती है
बुद्धि को शुद्ध करने के लिए, ज्ञान सुनिए
ज्ञान क्या है? यह वह सजगता है कि सब कुछ नश्वर है और जो भी कुछ हो रहा है मैं उसका साक्षी मात्र हूँ
मेरा मन आत्मा में विलीन हो जाए
मन लहर है, आत्मा समुद्र है
हमें निरंतर अपने मन को अंदर की ओर ले जाना है
तब आप देखेंगे, कि सारी चिंताएं गायब हो जाती हैं और मन खाली हो जाता है
‘मैं कौन हूँ?’; इस बात पर विचार करिये
रोज़मर्रा की अव्यवस्था तो रहेगी, लेकिन इस सबसे परे कुछ ऐसा है, जो साक्षी भाव से यह सब होते हुए देख रहा है
इस बात पर बार बार विचार करिये
आधा मिनट के लिए करिये, जैसे ही आप सुबह उठते हैं, और रात को सोने के समय, हर वक्त नहीं
अपने आप से पूछिए, ‘मैं कौन हूँ?’ अपने आप से कहिये, ‘मुझे इस दुनिया से कुछ नहीं चाहिये’
जैसे जैसे आप आगे बढ़ते हैं, आपको लगेगा जैसे आप इस दुनिया के है ही नहीं! आपको लगेगा, कि आप यहाँ किसी गांव में आये हैं, लेकिन आपका घर तो कहीं और है
आपको अनुभव होगा कि आपका घर कहीं और है और आप यहाँ सिर्फ घूमने आये हैं
तब आपको पता चलेगा कि आप वास्तव में कौन है
क्या यह आपका मन नहीं है, जो आपको सारी परेशानियां देता है? ज्ञान से मन शुद्ध होता है, और एक शुद्ध मन में दिव्यता झलकती है
दान करने से धन की शुद्धि होती है
अपनी आमदनी में से १-३ प्रतिशत समाज के लिए खर्च करें
जो ज्यादा कर सकते हैं, वे ज्यादा कर सकते हैं
अगर नहीं, तो जितना हो सके उतना खर्च करें

प्रश्न: मन के छह शत्रुओं(काम, क्रोध, मद, मोह, मात्सर्य और लोभ) से कैसे जीतें?

श्री श्री रविशंकर: अगर आपके पास कुछ भी करने को नहीं है, तब काम वासना आप पर हावी होती है
अगर आप दिन भर व्यस्त हैं, तब आपके मन में ऐसे विचार नहीं आयेंगे
आप थके हुए घर आयेंगे और सो जायेंगे
जब आपके जीवन में कोई बहुत बड़ा लक्ष्य है, तब छोटी छोटी इच्छाएं आपको परेशान नहीं करेंगी
अगर आपके मन में लालच या और अधिक से अधिक पाने के विचार आपको परेशान कर रहें हैं, तो आप सबसे उच्चतम चीज़ के लिए लालच करिये
और सबसे उच्चतम क्या है? ईश्वर!
आप अन्याय के खिलाफ़ क्रोध करिये
बड़े बड़े मुद्दों के कारण क्रोध करिये, छोटे मुद्दों के लिए नहीं
इस बात पर गर्व करें कि ईश्वर आपका है
ईर्ष्या हो, तो सेवा को लेकर हो! अगर कोई सेवा कर रहा है, तो उससे ज्यादा सेवा करने की चेष्टा करें
अगर कोई बहुत मृदु स्वभाव और उदार है, तो आप उससे ज्यादा अच्छे स्वभाव के बनिए, और ज्यादा उदार बनिए
सबसे ज्यादा ज़रूरी, प्राणायाम करिये
प्राणायाम से सारी अशुद्धियाँ चली जाती हैं
प्राणायाम हर तप से बड़ा है

प्रश्न: गुरूजी, प्रेम से हम दुनिया की नफरत मिटा सकते हैं, लेकिन यह व्यावहारिक तौर पर कैसे संभव है, कि हम जिसे नफरत करते हैं उसी को प्रेम करें?

श्री श्री रविशंकर: सबसे पहले, उन्हें प्रेम करने का प्रयास न करें
पहले उन्हें स्वीकार करें
आप उनसे नफरत क्यों करते हैं? आप इसलिए उनसे नफरत करते हैं, क्योंकि वे कुछ बहुत गलत काम करते हैं, है न? आप उस व्यक्ति के कर्म से नफरत करते हैं, इसलिए आप उस व्यक्ति से नफरत करते हैं
आप इसलिए किसी से नफरत करते हैं, क्योंकि वह चोर है, या झूठा है, या धोखेबाज़ है
झूठ बोलना और धोखा देना किसी व्यक्ति के कर्म होते हैं
आप यह जानें, कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्म से बड़ा होता है
कर्म तो बस आपके घर की छत होता है, आपका पूरा घर नहीं
अगर आप किसी व्यक्ति की तुलना एक घर से करें, तो कर्म केवल उसकी बालकनी है
घर तो बहुत बड़ा है
यह मत सोचिये कि बालकनी ही घर है
आप किसी से नफरत करते हैं, उसके कर्म की वजह से
अब कर्म को तो बदला जा सकता है, सही है न? तो वह ऐसे क्यों व्यवहार कर रहा है? ऐसा किसी वजह से है, क्योंकि हर कर्म का एक कारण होता है
जब आप उसके कारण में जाते हैं, कि क्यों कोई गलत काम हो रहा है, कोई क्यों गलत काम कर रहा है, तो आपको दो कारण मिलेंगे
एक है अज्ञानता, जो प्रमुख कारण है
दूसरा है, क्योंकि वे दुखी हैं या चोट खाए हुए हैं
अगर वे चोट खाए हुए हैं या उन्हें दर्द है, तो वे आपको भी दर्द ही देंगे
अगर आप आनंदित हैं, तो आप आनंद देते हैं
अगर आपके पास प्रेम है, तो आप प्रेम देते हैं
आपके पास जो भी है, आप वही दे सकते हैं
अगर वे आपको दुःख देते हैं, तो मानिये कि वे भी दुःख से भरे हुए हैं
वे या तो बहुत परेशान हैं, या अज्ञान हैं; उन्हें कोई सिखाने वाला नहीं है
जब आप यह जानेंगे, तब आप करुणामय हो जायेंगे
यदि कोई बच्चा कुछ गलत करता है, तो क्या आप उसे दोषी ठहराते हैं? नहीं
आप इतना ही कहते हैं, ‘ बच्चा है, गलती से कर दिया
गलती से फूलदान या गिलास तोड़ दिया’
आप बड़े दिल से और करुणा से उसे देखते हैं
तो ये लोग जिनसे आप नगरत करते हैं, आप सोचते हैं कि वे आपके बराबर हैं और ज्ञानी हैं
इसलिए आप उनसे नफरत करते हैं
लेकिन अगर आप अपनी सोच को और विस्तृत करें, तो आप पाएंगे, कि या तो वे अज्ञानी हैं, या दुखी हैं, बीमार हैं
आप एक दुखी या बीमार इंसान से कैसे नफरत कर सकते हैं? आप आम तौर पर क्या करेंगे? आप दया करेंगे
इसलिए उन्हें प्रेम करने का प्रयास न करें
अपनी विचारधारा को और विस्तृत करें; आप उन से करुणा करेंगे
और जब करुणा अपने चरम पर पहुँचती है, तब वह और कुछ नहीं, बल्कि प्रेम है
आपको दो कदम जाना है
पहले ही दूसरे कदम पर मत कूदिये

प्रश्न: गुरूजी, मैं एक लेक्चरर हूँ
मुझे आँखों से थोड़ा कम दिखता है, जिसके कारण मेरे छात्र इसका फ़ायदा उठाते हैं
जब मैं पढ़ाता हूँ, तब वे बातें करते हैं, या खाते हैं
मैं उन्हें कैसे काबू करूँ?
श्री श्री रविशंकर: सबसे पहले यह समझिए कि वे ऐसा इसलिए नहीं कर रहें हैं, क्योंकि आपको कम दिखता है
जो टीचर उन्हें देख पाते हैं, उन्हें भी यही समस्या हो रही है
बल्कि, छात्र आपसे कहीं ज्यादा नरम हैं
बाकी टीचर और प्रोफेसर, उन्हें तो और बड़ी समस्या है
वे उनके ऊपर टमाटर फेंकते हैं, और असभ्य तरीके से व्यवहार करते हैं
एक टीचर होने के नाते, आप में बहुत सहनशीलता होनी चाहिये और थोड़ा हास्य-विनोद भी
अपने हास्य से आप बात पलट सकते हैं

प्रश्न: गुरूजी, मैं दो लोगों को जानता हूँ, जो मदुरई के निकट के मंदिरों में अपनी नाडी दिखने गए थे
मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, वे अपने जीवन में कोई साधना नहीं करते और वे आध्यात्मिक भी नहीं हैं
उन्हें बताया गया है, कि यह उनका आखिरी जन्म है
उनके मुकाबले, मैं तो साधना करता हूँ, लेकिन फिर भी स्मृति में इतनी छापों और कमजोरियों से जूझ रहा हूँ
क्या यह संभव है, कि जिस व्यक्ति का यह आखिरी जन्म है, वह बिना कोई साधना किये जीवन व्यतीत कर रहा है?

श्री श्री रविशंकर: सबसे पहले, आप खुद की तुलना उनसे मत करिये, ठीक है? बहुत बार, ये नाडी रीडिंग १०० प्रतिशत सही भी नहीं होती हैं
वे अटकलें लगाते हैं, जो ६०-७० प्रतिशत सही होती हैं
इसीलिए थोड़ी गुंजाइश तो छोड़नी चाहिये
कभी कभी भक्तों को खुश करने के लिए वे कहते हैं, ‘ ये आपका आखिरी जन्म है; आप ज़रूर साधना करिये’
यह कहने का एक तरीका होता है
बड़े-बुज़ुर्ग कहते थे, ‘ चलो, यही आखिरी मौका है, साधना ज़रूर करो’
तो इस तरह से भी कहा जा सकता है
लेकिन आपको तुलना नहीं करनी है, ठीक है?
दूसरी बात है, कि आपको नहीं पता कि कौन कब साधना शुरू करेगा, या फिर वे भूतकाल में कितनी साधना कर चुके हैं
तो जीवन तो लंबा है, अनंत है
तो सबसे अच्छा है, कि हम स्वयं को देखें और यह देखें कि हम कितने आगे बढ़े हैं
क्या आप आगे नहीं बढ़े हैं? आप बहुत बढ़ें हैं
अपनी खुद का विकास देखिये और तब आपको आगे बढ़ने का और आत्मविश्वास आएगा
घबराईये नहीं, आपका भी आखिरी जन्म आएगा
और अगर हमें दोबारा आना ही है, तो आयेंगे, उसमें क्या हुआ? जब आप ज्ञान के साथ जाते हैं, तो आप ज्ञान के साथ ही वापिस आयेंगे
जब आप दुःख के साथ जायेंगे, तो आप दुःख के साथ ही वापिस आयेंगे
तो यह बात है

प्रश्न: गुरूजी, परीक्षा के समय बेचैनी से कैसे निपटें?

श्री श्री रविशंकर: उज्जयी साँस लीजिए
प्राणायाम और उज्जयी से निश्चित मदद मिलेगी
या ‘ओम् नमः शिवाय’ या ‘जय गुरुदेव’ का उच्चारण करिये, कुछ भी

प्रश्न: इस पूरी सृष्टि का अस्तित्व क्यों है?
श्री श्री रविशंकर: जिससे आप यह प्रश्न पूछ सकें, और मैं उसका उत्तर दे सकूं! (सब हँसते हैं)
उसका अस्तित्व क्यों ना हो? यह तो बहुत बढ़िया है
बस इस प्रश्न को सहेज के रखिये, आपको एक दिन इसका उत्तर मिल जाएगा, और फिर आप आकर मुझे अपना उत्तर बताईयेगा
तब मैं आपको बताऊँगा, कि वह सही है या नहीं

प्रश्न: वचन के तौर पर सत्य क्या है, और असत्य क्या है, और जब हम यह वचन लेते हैं, कि हम केवल सत्य ही बोलेंगे, तो हमारा उससे क्या मतलब होता है?
श्री श्री रविशंकर: स्वयं से सच बोलिए, स्वयं से ईमानदार रहिये
यही मतलब है
अगर आपका ईमान कहता है, कि आप यह करना नहीं चाहते, तो मत करिये
अगर वह कहता है, कि करना चाहिये, तो आपको करना चाहिये, समझ गए?

यदि आप झूठ बोलते हैं, तो आपका पूरा शरीर शक्तिविहीन हो जाता है
इसीलिए कहा गया है, ‘सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम अप्रियम, प्रियं च नानृतं न ब्रूयात’; सत्य बोलिए, मधुर सत्य बोलिए
अप्रिय सत्य मत बोलिए और मीठे झूठ मत बोलिए
यही पुराना सनातन धर्म है
ये कुछ श्लोक हैं, लेकिन हमें मालूम नहीं कि इन्हें किसने लिखा है, इन्हें सुभाषिता कहते हैं, माने स्वर्ण अक्षर, अमूल्य श्लोक
और ये हज़ारों हैं जो बहुत पुराने ज़माने से चले आ रहें हैं
स्कूल में ये हमारी किताबों में होते थे, पर अब पता नहीं क्या हुआ
आजकल उन्होंने यह सब कुछ किताबों में से हटा दिया है
हमें पुनः इनकी स्थापना करनी होगी

प्रश्न: मंदिरों में नाग-देवता होते हैं जिनके हाथ जुड़े हुए होते हैं
फिर वे आशीर्वाद कैसे देते हैं?

श्री श्री रविशंकर: ईश्वर और देवताओं में भी बहुत से स्तर होते हैं
वे सब शिव की आराधना करते हैं
आपने देखा होगा कि कुछ मंदिरों में हनुमान भी हाथ जोड़ कर खड़े हुए हैं, और कुछ में उनका हाथ आशीर्वाद देने के लिए उठा हुआ है

प्रश्न: गुरूजी, ऐसा क्यों है कि प्यार में पड़ना इतना आसान है, लेकिन उसमें बने रहना बहुत मुश्किल?

श्री श्री रविशंकर: आसक्ति के कारण, आप उसे पकड़ लेते हैं
आप प्रेम में पड़ जाते हैं, और फिर उनके पुलिसमैन बन जाते हैं
एक ख़ुफ़िया अधिकारी जो हर छोटी छोटी बात में टोकते हैं और फिर उसमे फँस जाते हैं
जब आपका दृष्टिकोण विशाल होता है, लक्ष्य बड़ा होता है और करने के लिए बहुत सा काम होता है, तब आप प्रेम में पड़कर भी, प्रेम में हमेशा बने रहेंगे

प्रश्न: प्रकृति बाहर है, मगर उसमें रहने से किस तरह हम अपने स्वाभाव में चले जाते हैं जो कि अंदर है? क्या आप कृपया प्रकृति और अध्यात्म के बीच के सूत्र को विस्तार से बता सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: इसे कहते हैं ‘लय समाधि’
अगर आप निरंतर आकाश को देखते रहें, देखते रहें, तब एक समय आता है, जब आपकी आँखें बंद हो जाती हैं, और आपको केवल यही लगता है, कि आकाश बाहर है, और आकाश अंदर है
आप खाली हो जाते हैं
इसी तरह अगर आप सूर्य को देखिये, सूर्यास्त होते हुए देखिये
आप सूर्य को बहुत देर तक नहीं देख सकते, केवल कुछ देर के लिए देखिये
फिर आप अपनी आँखें बंद कर लीजिए, आपका मन एकदम शांत और स्थित हो जाएगा

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, वे कहते हैं, कि संस्कृत भाषा प्रकृति में से उपजी है
इसमें ऐसा क्या महत्वपूर्ण है, कि हमारे सारे प्राचीन ग्रन्थ इसी भाषा में लिखे हैं? क्या अब यह अनुरूप है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ
मैंने पिछले हफ्ते या कभी सुना था कि न्यूज़ीलैंड के एक स्कूल में उन्होंने बच्चों को संस्कृत सिखाया, और अब सभी बच्चे उसके बाद से कंप्यूटर की शिक्षा में बहुत बढ़िया कर रहें हैं
वे कहते हैं, कि कंप्यूटर की शिक्षा के लिए, संस्कृत बहुत उचित है
इससे हमारे दिमाग में बहुत से तंत्रिका-भाषा (न्यूरो-लिंगुइस्टिक) सम्बन्धी परिवर्तन आते हैं, तो यह बहुत बढ़िया है

प्रश्न: गुरूजी, महाभारत में भगवान हनुमान का अर्जुन के रथ पर विद्यमान होने का क्या महत्त्व था?
श्री श्री रविशंकर: उन दिनों में, वे किसी तरह का झंडा इस्तेमाल करते थे, जैसे आजकल हर राजनैतिक पार्टी कोई झंडा इस्तेमाल करती है
कांग्रेस पार्टी ‘हाथ’ के चिन्ह का झंडा इस्तेमाल करती है, कोई और पार्टी ‘कमल के फूल’ का चिन्ह
इसी तरह से पुराने दिनों में, उन्होंने हनुमान को उपयोग किया था, क्योंकि यह सफलता का सूचक था, और कृष्ण ने यह इसलिए चुना था, क्योंकि कृष्ण जो भी काम लेते थें, उसमें सफल होते थे
उन्होंने अर्जुन से कहा, ‘तुम हनुमान को ही झंडे के लिए लो’
तो उन्होंने ले लिया, उनकी बात सुन ली
पिछले युग में, हनुमान सफलता के चिन्ह थे, जब राम ने श्रीलंका जैसे सबसे समृद्ध देश से युद्ध किया था
राम ने मात्र कुछ वानरों की सेना के साथ और सिर्फ कुछ चंद लोगों को साथ लेकर युद्ध किया था, वे बेहद कमज़ोर पक्ष थे
और दूसरी तरफ एक विशालकाय शक्तिशाली सेना थी, जो बहुत सी शक्ति और संपत्ति से लदी हुई थ
कहते हैं, कि उन दिनों में श्रीलंका इतनी समृद्ध थी, कि हर छत सोने की बनी हुई थी
वह स्वर्ण नगर था
हर घर के खम्बे हीरे-मोतियों से जड़े हुए थे
तो जब भारत से राम श्रीलंका पहुंचे, तो वे बोले, ‘यह नगर कितना अद्भुत है! मगर हालाकि यह स्वर्ण से भरा हुआ है, और इतना समृद्ध है, मैं अपनी मात्रभूमि पर वापिस जाना चाहूंगा
मेरी मात्रभूमि स्वर्ग से भी अधिक सुन्दर है’
इसीलिए युद्ध में विजय के पश्चात राम वापिस चले गए
देखने में कमज़ोर सेना में, हनुमान विजय के सूचक थे
जो शारीरिक तौर पर कमज़ोर हो, परन्तु आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत हो
इसलिए, पांडव केवल पांच थे, और कौरव सौ थे
यह लड़ने के लिए बराबर संतुलन वैसे भी नहीं था
लड़ने के लिए कम से कम ५०-५० तो होने चाहिये
तो इसलिए, अर्जुन को वह नैतिक और भावपूर्ण शक्ति देने के लिए, कृष्ण ने कहा, ‘हम हनुमान को अपने झंडे के रूप में रखते हैं
याद रखो, उन्होंने किया था
हम भी कर सकते हैं
यही कृष्ण ने हमेशा कहा था

प्रश्न: गुरूजी, क्या विवाह एक रिश्ता है, या बंधन? अगर रिश्ता है, तो बंधन जैसा क्यों लगता है, और अगर बंधन है, तो उसे रिश्ता कैसे बनाया जाए?
श्री श्री रविशंकर: यह निर्भर करता है, कि आप उसे कैसे देखते हैं
अगर आप एक-दूसरे की गर्दन पकड़ेंगे, तो यह बंधन लगेगा ही
अगर आप साथ साथ चलेंगे, एक दूसरे से कंधा मिलाकर, तो यही सहारा लगेगा
तो एक दूसरे का सहारा बनिए, साथी बनिए और आगे बढ़िए
एक दूसरे के जीवन साथी बनिए
इस दुनिया में इतने सारे लोग हैं, जो शादी करने के बाद अकेला महसूस नहीं करते और एक अच्छा साहचर्य बांटते हैं
अगर कोई अपनापन नहीं है, तो वह बंधन लगने लगता है
इसीलिए मैं कहता हूँ, कि पति और पत्नी का एक समान लक्ष्य होना चाहिये
अगर लक्ष्य बड़ा है, तो ध्यान वहां चला जाएगा और उनका रिश्ता अच्छा रहेगा

प्रश्न: गुरूजी, कभी कभी हमारे आस पास के लोग, खास तौर पर बड़े बुज़ुर्ग, जातिवाद के बारे में और समाज की बनाई हुई सीमाओं के कारण इतना बंध जाते हैं, कि उसके बाहर सोच ही नहीं पाते
अगर वह उनके लिए अच्छा है भी, तब भी वह उसे स्वीकार नहीं करते
तब ऐसी परिस्थिति में हम क्या करें?
श्री श्री रविशंकर: उन्हें धीरे धीरे समझाईये
उन्हें विश्वास दिलाईये
आप देखिये कि वे कितने मज़बूत हैं, और आप कितनी परेशानी उठाना चाहते हैं
उसी के हिसाब से कहीं न कहीं तो समझौता करना पड़ेगा
या तो आप उन्हें समझौता करने के लिए मनाईये, और अगर यह बिल्कुल नामुमकिन है, तब आपको समझौता करना होगा, और कुछ त्याग करना पड़ेगा
यह दोतरफा होना चाहिए
अगर दोनों ही पक्ष सख्त हैं, और अड़े हुए हैं, तब और मुश्किल है
लेकिन अगर आप मुश्किल उठाने को तैयार है, और आपको लगता है कि इससे बाद में कुछ अच्छा होगा, तब आपको यह करना चाहिये

प्रश्न: गुरूजी, मेरा पोता पूछता है कि क्या ब्रह्मा, विष्णु और शिव के भी माता-पिता और दादा-दादी थे
मैं उस बच्चे को क्या उत्तर दूं?
श्री श्री रविशंकर: आपको उत्तर देना चाहिये, कि विष्णु ब्रह्मा के पिता हैं, क्योंकि ब्रह्मा विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे
विष्णु शक्ति शिव से आयी और शिव का जन्म प्रकाश से हुआ
छोटे बच्चे इसी तरह से समझेंगे
उन्हें एक टेनिस की गेंद दे दीजिए और पूछिए कि उसकी शुरुआत कहाँ से होती है और वह खत्म कहाँ होती है

प्रश्न: जब हमें मालूम होता है, कि हम गलती कर रहें हैं, और फिर भी गलती करते हैं, तब हम क्या करें? हालाकि हम गलतियाँ करते रहते हैं, फिर भी ईश्वर हम पर दयावान रहता है
ऐसा क्यों?

श्री श्री रविशंकर: आप ये किताबें पढ़िए; मौन की गूँज और ‘सेलिब्रेटिंग लव’
मैंने इन सब बातों के बारे में वहां लिखा है


प्रश्न: मैं उत्तर प्रदेश से हूँ
हर जगह चुनाव सम्बन्धी झगड़े हैं
साइकिल (एक पार्टी का चुनाव चिन्ह) के पहिये की हवा निकल चुकी है; हाथी (एक पार्टी का चुनाव चिन्ह) हमें कुचल देना चाहता है; हाथ (एक पार्टी का चुनाव चिन्ह) हमारा गला दबाना चाहता है; और कमल का फूल तो खिल ही नहीं रहा है
ऐसी परिस्थिति में मेरे जैसे आम आदमी को क्या करना चाहिये? मैं जिस भी व्यक्ति को वोट दूंगा, मैं मुश्किल में ही रहूँगा

श्री श्री रविशंकर: मैं भी यही सोच रहा हूँ! चलिए साथ में मिलकर इसके लिए कोई समाधान सोचते हैं
हम क्या करें? हम साथ में बैठेंगे, और इसके बारे में सोचेंगे, लेकिन अभी के लिए, आप जाईये, और वोट करिये
आप किसी पार्टी के लिए वोट मत करिये, मगर चिन्ह के पीछे के व्यक्ति को देखिये, कि क्या वह अच्छा है
आप जाईये और उसके लिए वोट करिये, अगर उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है तो
बिना वोट किये मत रहिये
अबकी बार करिये, और फिर अगली बार देखेंगे
(सब हँसते हैं)
अगर कुछ अच्छे लोग जिन्हें आप वोट करते हैं, वे आगे आते हैं, तो देश उन्नति करेगा

प्रश्न: क्या हर एक व्यक्ति कोई भूमिका निभा रहा है या उनका जीवन में कोई मकसद है? क्या जन्म लेने से पहले चेतना कोई निर्णय लेती है?
श्री श्री रविशंकर: बिल्कुल सही, आप समझ गए! प्रत्येक जीवन का एक उद्देश्य होता है
यहाँ पर एक घास का तिनका भी बिना उद्देश्य का नहीं है
वह अपने आप सही समय पर प्रकट हो जाएगा
आप बस अपना कर्म करते रहिये
अपने आप को खाली और खोखला रखिये
ध्यान करिये, और सेवा करिये और आप देखेंगे कि सब अपने आप स्पष्ट हो जाएगा

प्रश्न: क्योंकि सब कुछ बदलता है, कुछ भी एक सा नहीं रहता, तो क्या हमारे जीवन का उद्देश्य भी कभी कभी बदलता है?

श्री श्री रविशंकर: हाँ, हर तरह का बदलाव संभव है

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