आपको अपने कर्मों के फल भुगतने होंगे!!!


०२.०३.२०१२, बैंगलुरु आश्रम
आज यहाँ आश्रम में किसी ने चन्दन के ७ पेड़ काट कर चुरा लिये| वेद पाठशाला जहाँ विद्यार्थी  वेद पढते हैं, वहाँ से रात्रि १ बजे और प्रातः ४ के मध्य में पेडों को काट कर चुरा लिया गया| इसलिये आश्रम के अधिकारी इस  बात को लेकर आज चिंतित थे| इतने सुरक्षा और सुरक्षा गार्ड होने के बावजूद ऐसी घटना घटी| सबने मिलकर उन पेड़ों को लगाया एवं उनका पोषण किया और उन पेड़ों को जड़ से काटकर चुरा लिया गया|
अभी कल ही की बात है कि अख़बारों में एक लेख प्रकाशित हुआ था कि सबसे उत्तम चन्दन की लकड़ी कर्नाटक में पाई जाती है और ६५ प्रतिशत व्यापार योग्य चन्दन की लकड़ी गैर कानूनी रूप से चुरा ली जाती है| चन्दन की लकड़ी के चोर वास्तव में विशेषज्ञ होते हैं| वे आश्रम में आये और चन्दन के पेड़ों को इस तरह से काटा कि बिलकुल भी कोई आवाज़ नहीं हुई| इस तरीके से ७ चन्दन के पेड़ काटकर चुरा लिये गये|
अगर कोई इस तरह से आपके घर से कोई चीज चुरा ले तो यह स्वाभाविक है कि आप उदास हो जायेंगे|

तब क्या होता है| आप चोर से नाराज हो जाते हैं जो कि आपको दिखा भी नहीं और आप यह भी नहीं जानते कि चोर कौन है| तो आपके मन में क्या होता है जब आप किसी पर नाराज होते हैं जो आपके सामने मौजूद नहीं है? तब आपके सिर में दर्द हो जाता है, आप बैचैनी का अनुभव करते है और आपको अच्छा महसूस नहीं होता|
तो मैं कह रहा था, कि चोरियां सदियों से होती चली आ रही है| यह आपकी कर्म भूमि है| हम सब यहाँ पर कर्म करने आये हैं| कुछ लोग अच्छे कर्म कर के जाते हैं और कुछ लोग बुरे कर्म कर के चले जाते हैं| हर कोई चला जाता है, पर उनको उनके कर्मों के फल भुगतने पड़ते हैं, एक चोर को निश्चित ही अपने कर्म का फल मिलेगा
जब हम अच्छे कर्म करते हैं तो हमें मालूम ही रहता है कि हम उसके अच्छे ही फल काटेंगे, और यह कोई नई बात नहीं है|
इसलिये रुद्राभिषेक में हम कहते हैं, नमो वन्चाते परिवंचाते स्तायुनाम पताये नमो नमो, निशान्गिनीशुधिमाते तस्करानाम पताये नमो नमः 
तस्कर का मतलब है चोर| तो यह श्लोक कहता है, आप उन लोगों के भगवन हो जो धोखाधड़ी और चोरी में लिप्त हैं, इसका अर्थ है कि चोरी काफी समय और युगों से चली आ रही है|
दुनिया ऐसी ही है|
यह कर्म भूमि है, तो जो भी आपको करना है, आप यहीं पर करेंगे| आप अपने कर्म करें पर यह जान लीजिए कि अपने कर्मों का फल आपको यहीं पर भुगतना होगा| तो क्यों आप दूसरे के कर्मों के लिये चिंतित हों? कोई भी व्यक्ति अगर गलती करता है तो उसे उसके कर्म का फल मिलेगा| आप समझ रहें हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
इस दुनिया में हमेशा ऐसे लोग रहेंगे जो बुरे कर्म करते हैं| आश्रम में भी ऐसे लोग मौजूद हैं| वे यहाँ पर हैं परंतु बाहर जाकर आश्रम की निंदा करते हैं| 
लोग कहते हैं, गुरूजी, क्यों उन लोगों को आप आश्रम से बाहर नहीं करते?'
मैं कहता हूँ, नहीं, वे यहाँ पर हैं अपने कर्मों का फल पाने के लिये| अगर कोई कुछ गलत करता है, कोई उसे बचा नहीं सकता| तो उन्हें करने दीजिये जो वे यहाँ करने आये हैं|

क्यों  हम उनकी गलतियों के बारे में विचार करके परेशान हों| यही बुद्धिमत्ता है| अगर कोई आपको गालियाँ दे रहा है, तो आप क्यों परेशान होते है? जो कहना है उन्हें कहने दें, वह अपने कर्म बना रहा है| अगर वह ऐसे शब्दों का उपयोग कर रहा है तो उसे करने दें| वास्तव में आपको उसे यह कहना चाहिये, आगे बढ़ो और जो कहना है कहो| तुम अपना कर्म करने आये हो, तो करो और छोड़ दो|
हर व्यक्ति जिसने जन्म लिया है स्वर्ग नहीं जायेगा, कुछ लोगों को नर्क भी जाना पड़ेगा! नहीं तो नर्क खाली रह जायेगा (हँसते हुए गुरूजी ने कहा)| जो यहाँ आया है और जिसने बुरे कर्म किये हैं उसे नर्क में जाना होगा|
जब मैं किसी को यह शिक्षा देता हूँ या चोरी ना करने के लिये कहता हूँ तो सिर्फ इसलिये कि मुझे उस पर दया आती है| मैं किसी को चोरी करने या बुरे शब्दों का प्रयोग करने से रोकता हूँ तो इसलिये नहीं के उनसे मुझे चोट पहुँचती है, नहीं| मुझे कोई भी चोट नहीं पहुँचा सकता| अगर कोई खराब शब्दों का प्रयोग करता है तो उसे उसके कर्मों के परिणाम मिलेंगे| 
इसलिये मैं कहता हूँ कि अच्छा बोलें और कुछ भी बुरा नहीं बोलें, इसलिये नहीं कि आपके बुरा शब्द बोलने से मुझे खराब लगता है| शब्द शब्द ही हैं, आप क्या कहते हैं इसके कोई मायने नहीं हैं|
पर कुछ लोग ऐसा व्यवहार करते हैं, हम क्या कर सकते हैं?
अगर कोई बुरे कर्म करता है, तो उसे उसके कर्मों का फल मिलेगा| इसलिये कहा जाता है कि अगर आपको अपनी गलती  का पश्चाताप है, तो आप वह गलती नहीं दोहराएंगे|
आपको दूसरों की गलतियों के लिये उदास नहीं होना चाहिये| आपको यह समझना होगा कि वे लोग यहाँ पर अपने कर्मों का फल भुगतने के लिये हैं और इसलिये वे ऐसा कर रहे हैं| आपको दूसरों की गलतियों के लिये दया आनी चाहिये और अपनी गलतियों का पश्चाताप होना चाहिये| अगर किसी की गलतिओं के लिये आपको दया आएगी, तभी आप उन्हें शिक्षा दे सकते हैं| आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ| अगर आप से कोई गलती हुई है तो संकल्प लीजिये कि आप यह गलती दोबारा नहीं दोहराएंगे| अगर आपसे फिर वह गलती  हो जाये, फिर भी आप उस संकल्प को बनाये रखें उस गलती को ना दोहराने का| अगर आप संकल्प लेने के बाद भी गलतियों से निकल नहीं पा रहे हैं, तो भगवान से प्रार्थना करें और उन्हें समर्पित करें| इसके यह दो तरीके हैं अपने आपको गलतियों से बचाने के लिये|
दूसरों कों गलती  करने से बचाने के लिये दया का भाव होना आवश्यक है| ‘आप क्यों नहीं समझते हैं, आप इससे अपना नुकसान करेंगे? आपको यह कहना होगा| उसके बाद भी वे गलती  करते हैं, तब आपका क्या नियंत्रण है? इस दुनिया में कोई भी किसी को गलतियाँ करने से रोक नहीं पाया है जिसकी किस्मत में वह गलती करना लिखा है| कोई कुछ भी करे, वह करेगा|
दुर्योधन को युद्ध छेड़ना था| भगवन श्रीकृष्ण ने पूरी कोशिश की उसे समझाने की, एक बार नहीं तीन बार| परंतु वह युद्ध को रोक नहीं पाए| युद्ध हुआ|
तब भी हमें कोशिश करनी चाहिये यह जानना चाहिये कि यह हमारी कर्मभूमि है और हमें यहाँ पर अपने कर्मों से मुक्ति पाकर आगे बढ़ना है|
एक और अन्य बात है कि आपको लगता है कि गलती करने से आप को नुकसान हुआ है| आप को उनके बारे में सोचना चाहिये जो बड़ी गलतियाँ करते हैं और अपने आप पर बड़े नुकसान सहते हैं|
लालच का परिणाम नुकसान ही होता है| किसी ने ५० लाख रूपये कमाये और किसी अन्य व्यक्ति ने उनसे कहां कि तुम अपना पैसा मुझे दे दो, मैं उसे २ करोड़ में परिवर्तित कर दूंगा| उन्होंने उस पर विश्वास किया और अपने कमाए हुये पैसे उसे दे दिए| वह आदमी पैसा लेकर भाग गया| फिर वह व्यक्ति अब सिर्फ रो रहा है| कल ही यह व्यक्ति मुझे चंडीगढ़ में मिला और कहा गुरूजी एक व्यक्ति मेरे ५० लाख रूपये लेकर भाग गया| वह मेरे पूरे जीवन की कमाई थी| मैंने उस से कहा यह तुम्हारे लालच के कारण हुआ| कोई बात नहीं यह तुम्हारा कर्म था| आप समझ रहे है कि मैं क्या कह रहा हूँ ?इसका यह अर्थ नहीं है कि आप उसे कर्म समझ कर भूल जाएँ| अब उसे पकड़ना भी आपकी जिम्मेदारी है|
इसलिये आश्रम में सभी को यह समाधान दे रहा हूँ कि वह अपना कर्म करने यहाँ आया था, इसलिये अब सब लोग चिंता न करे| जब सब कुछ व्यवस्थित हो गया तो मैंने उन से यह भी कहा कि पुलिस में शिकायत करे और २५,००० रूपये ईनाम की भी घोषणा करें जो चन्दन की लकड़ी के चोर को पकड़ेगा|
अब आप देखेंगे कि दोनों ही समाधान एक दूसरे के विरोधाभास है| एक तरफ हम चोर को पकड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर हम उसे उसका कर्म कह रहे हैं, और यही सत्य है
यदि हम सबके कर्म के बारे में सोचेंगे और चोर को पकड़ने के लिये कोई प्रयास नहीं करेंगे और इस विचार के साथ खाली बैठे रहेंगे तो यह हमारा अकर्मनन्यता होगा| चोर को पकड़ना हमारा कर्तव्य है| लेकिन अपने मन में यह जान ले कि यह कर्म की क्रीड़ा है और प्रकृति के नियम है जो अपना काम कर रहे हैं|
आप यह नहीं सोच सकते कि विश्व में कोई चोर नहीं होगा, यह संभव नहीं है| हमें यह देखना होगा कि ज्ञान में रहते हुये हम उसी समय अपना कर्म करें| कुछ लोग सिर्फ ज्ञान को पकड़ कर रखते हैं और कोई  कर्म नहीं करते| कुछ लोग बिना ज्ञान के सिर्फ कर्म करते रहते हैं| दोनों ही अधूरे हैं| इसलिये आपको जो भी कर्म करना है उसे करें लेकिन ज्ञान को न भूलें| मैने कहा कि यदि कोई आपके ५० लाख रूपये लेकर भागा है तो उसे न बक्शें| यह पता लगाएं कि वह कहाँ पर है,लेकिन यह भी जान लें कि उसने अपना कर्म किया, तो फिर इसमें कौन सी बड़ी बात है?
इस तरह आपको अपने आप में संतुलित रहना होगा|

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