समस्या का सामना करने के लिए शांति पहला कदम है!!!

०४.०३.२०१२, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न : यज्ञ के विभिन्न प्रकार क्या हैं और जीवन में यज्ञ का क्या महत्व है? कौन सा यज्ञ सबसे अच्छा है?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान यज्ञ, जप यज्ञ, द्रव्य यज्ञ; इन सब को यज्ञ कहा जाता है|
इन सब में से ध्यान यज्ञ सबसे अच्छा है| अकेले ध्यान करना और समूह में ध्यान करना दोनों को ही यज्ञ माना जाता है|
उसके बाद ज्ञान यज्ञ : बैठ कर ज्ञान को सुनना भी यज्ञ होता है|
फिर जप यज्ञ (यज्ञानाम ज्पयाग्योस्मी) : भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि जप यज्ञ (भगवान का नाम जपना) बहुत अच्छा होता है|
और यज्ञ क्या करता है? यह मन, शरीर और पर्यावरण को शुद्ध करता है|

प्रश्न : गुरुजी मेरे बाकी आध्यात्मिक साथी कहते हैं कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा बिना दीक्षा के संपूर्ण नहीं होगी, और मुझे दीक्षा नहीं मिली है|
श्री श्री रविशंकर : जब आपने पहली बार सुदर्शन क्रिया करी, तभी आपको दीक्षा मिल गयी थी| यदि आपने सहज समाधि कोर्स किया है, तो आपको मंत्र दीक्षा भी मिल गयी|

प्रश्न : गुरूजी, आप को ध्यान में कैसा अनुभव होता है? और मुझे ध्यान करते समय क्या अनुभव होना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : यही परेशानी है| जब आप किसी और के अनुभव पढ़ते हैं, तब आप को भी वैसे अनुभव की इच्छा होनी शुरू हो जाती है, और तब आप ध्यान नहीं करते, केवल इच्छा या उम्मीद करते हैं कि आपको भी वैसा अनुभव हो| जब ध्यान करें, तब केवल बैठें, और कुछ न करें, वही ध्यान है|

प्रश्न : क्या शादी से पहले कुंडली मिलवाना आवश्यक है? क्या केवल दो दिलों का मिलना पर्याप्त नहीं है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह पर्याप्त है| लेकिन यदि आपको संदेह है, तो कुंडली भी मिलवा सकते हैं| यदि कुंडली नहीं मिलती और अगर आप कुंडली में विश्वास करते हैं, तो जब भी कोई उतार चढ़ाव आयेगा तब मन कहेगा कि हमारी तो कुंडली कभी मिली ही नहीं| लोग ४० साल एक साथ रहने के बाद भी कहते हैं कि उनकी कुंडली नहीं मिली| जब मैंने पूछा की फिर आप ४० साल एक दूसरे के साथ कैसे रहे? तब उन्होंने बताया कि उनके विचार एक दिन के लिए भी नहीं मिले और जीवन के किसी भी स्तर पर कोई सामंजस्य नहीं था|
तो जीवन ऐसा ही है| जीवन एक समझौता है, एक व्यवस्था है| कहीं आपको देना पड़ता है, और कहीं लेना पड़ता है|
वैसे भी यदि कुंडली न मिले तो उपाय, जैसे जप या दान, करने से हल निकाला जा सकता है| तो हल है|

प्रश्न : गुरुजी, कृपया मुझे भिक्षु या स्वामी बनने के लिए कुछ सुझाव दें| क्या मुझे कुछ करना चाहिए या फिर यह अपने आप घट जायेगा?
श्री श्री रविशंकर : यदि आप स्वामी बनना चाहते हैं तो आश्रम आ जाएँ, और यहाँ कुछ समय रहें| सीखें, पढ़ें, ध्यान करें| देश की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करें और आप स्वामी बन जाएंगे| आश्रम आप की दैनिक ज़रूरतों (बिजली, पानी का खर्चा इत्यादी) का ध्यान रख लेगा| स्वामी बनने के लिए केवल आयें और बैठ कर साधना करें|


प्रश्न : गुरुजी, जब मैं किसी दिन बहुत सारे लोगों से मिल लेता हूँ, तो बहुत ज्यादा थक जाता हूँ लेकिन जब मैं आप को देखता हूँ, आप २४ घंटे सहस्त्रों लोगों से मिलते हैं परन्तु कभी थके हुए नहीं लगते| इसका क्या रहस्य है?
श्री श्री रविशंकर : मैंने अपने सभी रहस्यों को आर्ट ऑफ लिविंग के पार्ट १ कोर्स, पार्ट २ कोर्स, अष्टावक्र गीता और बाकी सब में रख दिया है|

प्रश्न : गुरूजी समय सफलता का एक बहुत महत्त्वपूर्ण कारक है| कार्य में सफलता पाने के लिए उसका सही समय पर किया जाना बहुत आवश्यक है| क्या हमारे पास सही समय जानने की अंदरूनी क्षमता है? यदि है तो उसका कैसे उपयोग करें?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, किसी भी काम को करने से पहले कुछ देर शांति से चुप बैठ कर अपने अंतर्ज्ञान को सुनें, फिर काम आरम्भ करें|

प्रश्न : गुरूजी, आपने कहा था कि व्यक्ति के पास शक्ति, कौशल, भक्ति और मुक्ति होनी चाहिये| कृपया प्रत्येक की भूमिका समझाएं|
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले आप स्वतंत्र महसूस कीजिये| स्वतंत्रता के साथ प्यार आता है| यदि आपको लगता है कि आप सीमित और बाध्य हैं, तो आप समर्पण या प्यार महसूस नहीं कर पाएंगें| तो पहले आप अंदर से स्वतंत्रता महसूस करें| अंदरूनी स्वतंत्रता प्यार और समर्पण लाएगी और उसके साथ ताकत और ताकत के साथ युक्ति (कौशल) आएगी|

प्रश्न : माया क्या है? क्या माया को गले लगाना चाहिये या इस पर सवाल उठाना चाहिये? इसको समझना इतना कठिन क्यों है?
श्री श्री रविशंकर: माया का अर्थ है जो केवल दिखे परन्तु वहाँ पर हो नहीं| आप उसे देख सकें किन्तु छू अथवा पकड़ नहीं सकें| दुनिया में सब माया ही है| आप कुछ सुन्दर देखते हैं, आप में उस सुन्दर चीज़ को पाने की चाह उठती है, किन्तु जैसे ही आप उसे पा लेते हैं, आपको उसकी सुंदरता उतनी सुन्दर नहीं लगती| जिंदगी में बाकी चीजें भी ऐसी ही होती हैं| आपको लगता है कि खुशी उस वस्तु में है, आप उस वस्तु के पीछे भागते हैं, परन्तु जब आप वह पा लेते हैं तो आपको यह ज्ञ्रान होता है कि आप फिर भी खुश नहीं हैं| इसलिए इसे माया कहा जाता है|
एक रविवार, भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने मुझे अपने दिल्ली से कुछ दूर एक फार्महाउस में आमंत्रित किया| वहाँ उन्होंने मुझे कहा गुरूजी, पिछले २६ साल से मेरा केवल एक लक्ष्य था कि मैं प्रधानमंत्री बन जाऊं| अब जब में प्रधानंमंत्री बन गया हूँ तो मुझे लगता है कि मैंने कितना मूर्ख लक्ष्य साधा था| इस से पहले में स्वतंत्रता से बाहर घूम सकता था, बैठ सकता था, परन्तु अब, मैं अपने घर में भी एक कैदी की तरह रहता हूँ| कहीं बाहर नहीं जा सकता, हर वक्त पहरे में रहता हूँ! मुझे लगता है कि सब व्यर्थ है| मैंने यह कुर्सी पाने के लिए सब जतन किये, और जब मुझे यह कुर्सी मिल गयी तो लगता है कि सब व्यर्थ है|” मैंने बोला कि आप भाग्यशाली हो कि आप को यह आत्म बोध हो गया है, बहुत लोगों को तो मरते दम तक यह बात का ज्ञान नहीं होता| वैसे वे ज्यादा समय तक प्रधानमन्त्री भी नहीं रहे|

प्रश्न : गुरूजी शास्त्र कहते हैं कि यह दुनिया माया ने रची है, किन्तु वेदान्त कहते हैं कि यह अज्ञान की है| कृपया समझाएं|
श्री श्री रविशंकर : माया के दो अर्थ है| पहला अर्थ है जो कभी हाथ में न आये| दूसरा अर्थ है जिसे मापा जा सके अंग्रेजी शब्द ‘measure’ का मूल शब्द है मियते”| मिया का अर्थ है मापना| यह पूरी सृष्टि को मापा जा सकता है, इस लिए इसे माया कहा जाता है| जो मापा नहीं जा सकता वह है सत्य, प्रेम, सौंदर्य| आप ३ किलो प्यार या २ ऑउंस सौंदर्य या १० किलो सत्य नहीं मांग सकते| आप इन्हें माप ही नहीं सकते, इसलिए यह अतुल्य हैं, माया नहीं हैं| दिव्यता को मापा नहीं जा सकता, आत्मा को मापा नहीं जा सकता, चेतना को मापा नहीं जा सकता| जो मापा जा सके वह माया है| अज्ञानता धारणा में है| सूर्यास्त हो रहा है और आप सोंचे की सूर्य ढल रहा है, तो यह अज्ञानता है क्योंकि धरती सूर्य की परिक्रमा कर रहीं है, सूर्य तो वहीं स्थापित है| धरती सूर्य के चक्कर लगा रही है, यह ज्ञान है, और इस धारणा पर विश्वास करना कि सूर्य ढल रहा है, यह अज्ञान है| वैसे ही यह प्रतीत होता है कि सब लोग अलग है और अलग अलग सोचते हैं, यह समझने का एक स्तर है| लेकिन सत्य यह है कि यह एक ही चेतना है जो हर किसी में है| यह ज्ञान है| अगर आप अपनी पुरानी धारणाओं के बारे में सोचेंगे तो यह पायेंगे कि पुरानी सब धारणाएँ गलत थीं| आप में से कितने लोगों ने यह अनुभव किया है? आपने एक धारणा बनायी फिर आपको लगा, अरे नहीं, ऐसा तो नहीं है| आपको जो लगा वो वैसा नहीं था| इसे अज्ञानता कहते हैं| कई बार आप क्या कुछ सोचते हैं और वैसा बिल्कुल नहीं होता है| यदि आप कभी चुनाव के पूर्वानुमानों को टेप कर के दो दिन बाद सुनेंगे, तो आप को लगेगा कि ये कितना समय अज्ञानता में बर्बाद कर रहे हैं! किसी भी अनुमान के साथ किसी का कहना कि यह व्यक्ति जीतने वाला है| और फिर घंटों चर्चा करना अज्ञानता है| यह बहुत ही हास्यास्पद है!

प्रश्न : गुरूजी, मैं काफी वक्त से सेक्स और समान प्रकार की गतिविधियों से ग्रस्त हूँ| मैं अपना मन कहीं और केन्द्रित नहीं कर सकता| मैं इससे बाहर निकलना चाहता हूँ पर नहीं हो पा रहा है| अगर मैं खुद को रोकता हूँ तो घुटन सी होती है|
श्री श्री रविशंकर : अगर आप किसी रचनात्मक काम से जुड़ जायेंगे तो सेक्स से आपको इतनी परेशानी नहीं होंगी| अगर आपके पास करने के लिए और कुछ नहीं है, या आपको कुछ भी हासिल नहीं करना है या आपका कोई लक्ष्य या ध्येय नहीं है तो स्वभावतः आपकी उर्जा का निर्गम मार्ग सिर्फ सेक्स ही रह जाता है| दिन रात वही आपको परेशान करता रहेगा| आप हर तरह की पोर्नोग्राफिक वेब साईट देख देखकर अपनी नींद खो बैठोगे| एक युवक मुझे बता रहा था कि वह ऐसी चीजें देखता रहता है और उसे नींद बिलकुल आती ही नहीं है| वह नींद पूरी तरह खो बैठा है| यह सब हो सकता है|
 
अपनी उर्जा को सही दिशा दें| सबसे अच्छा तरीका अपने आप को किसी काम में संलग्न कर देना ही ठीक है|

अपने स्कूल या कॉलेज के दिन याद करिये, जब परीक्षा के दौरान आपकी सेक्स की इच्छा बहुत कम होती थी क्योंकि आपका कोई लक्ष्य था| दिन रात आप पुस्तक पढ़ते थे या कुछ पाठांतर कर रहे थे, और कुछ करने के लिए आपके पास समय था ही नहीं| परीक्षा के समय पर सेक्स ने आपके मन को छुआ तक नहीं| पर अब आप जो इतने आजाद हैं, तब क्या होगा? आप भरी जवानी में हो ! इसके लिए कुछ विकल्प हैं|
सबसे पहला यह कि आप किसी रचनात्मक काम में लग जाईये|

दूसरा यह कि अपने भोजन पर ध्यान दें| अगर आप बहुत ज्यादा खा रहे हैं, तो उसका रूपांतरण ऊर्जा में हो रहा है और उसे किसी निर्गम की जरूरत है| अगर आप किसी भी प्रकार का व्यायाम, योग या प्राणायाम नहीं करते हैं तो स्वाभाविक रूप से आपको सेक्स की इच्छा होगी|

तीसरा, अगर कोई होर्मोनल असंतुलन है तो ज्यादा होर्मोन्स की वजह से भी किसी तरह का जुनून पैदा हो सकता है|

चौथा, यह बस उम्र का मामला है| कुछ साल के लिए रुक जाईये तो यह अपने आप खत्म होगा| १५ से ४०-४५ साल की उम्र तक सेक्स परेशान कर सकता है पर अगर उसके बाद भी , अगर आप ६० साल के हो और सेक्स परेशान कर रहा हो तो कुछ गंभीरता से गलत हो रहा है| तब आपको चिकित्सा की जरूरत है| तो इन सब बातों का ख्याल रखिये| अगर आप बीस, तीस उम्र के आसपास हो तो यह समय गुजर जायेगा क्योंकि यह बस उम्र का मामला है|

प्रश्न : गुरूजी, मेरे परिवार वाले अपनी भाषा में काफी बुरे शब्द इस्तेमाल करते हैं| वाणी का शुद्ध होना कितना महत्वपूर्ण है? क्या उसके भले बुरे परिणाम हो सकते हैं या यह बस सुसंस्कृत होने का दिखावा करना है?
श्री श्री रविशंकर : तो आपने यह जान लिया है और आप खुद वह भाषा इस्तेमाल नहीं करते हैं| अगर आपके माता पिता वे शब्द इस्तेमाल करते हैं तो क्या करें? उन्हें एक रात में तो नहीं बदला जा सकता ! आप खुद वे शब्द उपयोग में नहीं लाईये और ना ही अपने बच्चों को उन शब्दों के सम्पर्क में आने देना| जैसे ही किसी इन्सान में “सत्त्वबढ़ता  है , वाणी अपने आप शुद्ध होती है| यह हमारे अन्दर के सत्त्व के स्तर के साथ जुड़ा हुआ है| आप उसे संस्कृति कहिये या आदत , लेकिन यही सच है|

प्रश्न : गुरूजी, आप हमें वर्तमान क्षण में रहने के लिए कहतें हैं, तो एक साधक की साधना में उसके भूत और भविष्य काल का कितना महत्व है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, वर्तमान में रहिये| भूत और भविष्य काल वर्तमान में समाविष्ट हैं| वर्तमान में सब कुछ मिल सकता है| भूतकाल से आपने जो सबक सीखे, वे वर्तमान में आसानी से उपलब्ध हैं और आपको भविष्य में जो करना जरूरी है उसकी अन्तःप्रेरणा भी !

प्रश्न : गुरूजी, योग वशिष्ठ में जो ज्ञान बताया गया है उसके बारे में कुछ कहें| जब भी मैं वह पढ़ता हूँ तो भ्रमित हो जाता हूँ| कृपया मेरा भ्रम दूर करें|
श्री श्री रविशंकर : आप मुझे वो करने के लिए कह रहें हैं जो मेरा काम नहीं है|
मेरा काम तो और ज्यादा भ्रम पैदा करना है| जब भी आप भ्रमित होते हैं तो एक स्तर और आगे बढ़ते हैं| तो भ्रम पैदा करना मेरा काम है और उससे बाहर निकलना आपका काम है! अगर योग वशिष्ठ यही कर रहा हो तो अच्छी बात है|

प्रश्न : गुरूजी ,युद्ध से पहले अर्जुन को लगा था कि कौरवों को मार देने से मैं बड़ा खुश हो जाऊँगा पर युद्धभूमि पर जाने के बाद उसके विचार बदल गए| उसी तरह सत्संग में तो हम आपके समर्थन में हामी भरते हैं पर उसी ज्ञान को जब इस्तेमाल करने का समय आता है, तो वह बहुत कठिन लगता है|
श्री श्री रविशंकर : मैं आपको बताता हूँ, आप बस एक सूत्र का पालन करना|
जो चीज मेरे लिए सबसे आसान और सरल है, मैं बस वही करूंगा|”
इन ज्ञान सूत्रों के जितना आसान जीवन में और कुछ भी नहीं| जो कठिन लगता है वो असल में सबसे आसान है और जो आसान लगता है उससे कठिन और कुछ नहीं| बस यह जान लें|

प्रश्न : गुरूजी, ५००० साल पहले आपने रथ को अपना वाहन चुना था, अब आपने इनोवा को चुना है|
श्री श्री रविशंकर :  मुझे लगा था मैं आपके ह्रदय में बैठा हूँ पर आप तो मुझे इनोवा में बिठा रहे हो|.मुझे उस आसन पर बैठना पसंद है जो सबके दिलों में है|

प्रश्न : गुरूजी, मैं यहाँ मन की शांति ढूँढने आया हूँ| लेकिन मैं अपनी समस्याओं से भागने के लिए खुद को दोषी भी मान रहा हूँ| वास्तव में मन की शांति क्या है? समस्याओं से भागना या फिर समस्याओं का सामना करना?
श्री श्री रविशंकर : देखिए, समस्याओं का सामना करने के लिए भी तो मन की शांति चाहिए| तो जब आप यहाँ मन की शांति के लिए आये हो तो अपने आप को समस्याओं से भागने के लिए दोषी मत ठहराना| अगर आपको समस्या का सामना करना है तो बस करना है; आपके पास और कोई विकल्प नहीं है, समझ गए? पर जब आप इतने थके हुए हो और परिस्थिति का सामना करने लायक नहीं हो तब उसका सामना करने का कोई मतलब नहीं है| पहले आपको खुद को तैयार करना है|
समस्या का सामना करने के लिए शांति पहला कदम है| जब आप मन की शांति तथा अंदरूनी ताकत प्राप्त करते हैं, तब आप समस्या का सामना करने लायक बनते हैं| फिर वह समस्या भी समस्या नहीं लगेगी|

प्रश्न : गुरूजी, जब सत्संग में आप किसी के प्रश्न का उत्तर देते हैं तब वह उस विशिष्ट व्यक्ति के लिए होता है या सामान्य रूप से सब के लिए होता है?
श्री श्री रविशंकर : दोनों के लिए|
आपको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल रहें है, है न?
मैं आपको जो भी उत्तर देता हूँ, आपको तो अपना उत्तर मिल ही जाता है, मगर उससे उन लोगों को भी जवाब मिल जाता है, जो उसी तरह की परिस्थिति में होते हैं|

प्रश्न : गुरूजी, क्या जगत में अनिष्टता से मुक्ति संभव है? मैंने सुना है की सृष्टि के निर्माण के समय राक्षस भी उत्पन्न हुए थे| आज हमें अच्छे और बुरे; अँधेरे और उजाले दोनों के साथ रहना पड़ता है|
श्री श्री रविशंकर : सही बात है|.मैंने किसी आध्यात्मिक संघटन की किसी महिला को यह कहते हुए सुना कि कोई एक आत्मा सतयुग में बहुत ही शुद्ध थी , और धीरे धीरे कम शुद्ध होती गयी और कलयुग में तो बिलकुल अशुद्ध हो गयी| यह बिलकुल गलत है| ऐसा नहीं होता है|
सत्ययुग में भी हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप जैसे राक्षस थे और इस धरती से उन्हें हटाने के लिए चार बार अवतारों को आना पड़ा था| तो बस कलयुग या द्वापरयुग में ही राक्षस नहीं होते| ये सभी गलत विचार है और गलतफहमी है| मुझे आश्चर्य होता है जब वे ऐसी बाते करते हैं कि आत्मा नीचे आ रही है, यह हो रहा है, वह हो रहा है| आत्मा कोई लाल बिंदु नहीं है, जो नीचे आ सकती है| आत्मा तो आकाश की तरह है; हमेशा शुद्ध, हमेशा मुक्त, अस्पृष्ट|
आसुरी शक्ति और दैवीय शक्ति हमेशा से रही है|जब दैवीय शक्ति के पैरों तले आसुरी शक्ति होती है तब वह बेहतर युग कहलाता है| लेकिन जब आसुरी शक्ति, दैवीय शक्ति के ऊपर उठती है तब वह बड़ा विपत्तिजनक होता है| तो समाज में हमेशा बुरे तत्त्व रहेंगे| उनका कम या ज्यादा होना समाज के स्वास्थ्य पर निर्भर है|
घर कितना भी बड़ा और सुन्दर हो पर हरेक घर में एक कूड़ादान तो होता ही है| कूड़ादान हमेशा एक कोने में रहेगा और सभी कूड़ा कचरा उसमे पड़ता रहेगा और वह ढका हुआ होगा| नहीं तो पूरा घर ही एक कूड़ादान बन जायेगा|
यही फर्क है| या तो घर में ठीक से कूड़ादान की व्यवस्था होगी या फिर घर भर कचरा ही कचरा होगा और कहीं कोने में साफ़ सुथरी जगह होगी| उसी तरह दैवीय शक्ति और आसुरी शक्ति दोनों हमेशा इस धरती पर रहेंगी| कभी इसका प्राबल्य होगा तो कभी उसका|

प्रश्न : इस सीमित और समस्याओं से भरपूर सामाजिक जीवन में मैं अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पता हूँ| क्या आप कृपया मुझे सलाह दे सकते हैं, कि कैसे मैं जीवन के लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करूँ?
श्री श्री रविशंकर : तो आपको ध्यान करने की इच्छा है| यह अपने आप में अच्छा है, आप तो पहले से ही केन्द्रित हैं| आपको यह पता है कि आपको केन्द्रित रहना है और आपको यह भी जानकारी है, कि आप विचलित हो रहे हैं| इसका मतलब है आप पहले से केन्द्रित हैं| उस पर शक मत करिये, ठीक है?
और केन्द्रित होने को बढ़ावा देने के लिए आप जो कर रहे हैं , ध्यान , प्राणायाम और सत्संग; यह. बिलकुल सही है| आपको जो बात विचलित करती है उसे गौर से देखिये| आप बहुत ज्यादा सिनेमा देखते हैं , है ना ? यही करते हैं ना?

(
उत्तर हाँ)
जब आप बहुत ज्यादा सिनेमा देखते हैं तब मन पर काफी ज्यादा प्रतिमायें अपनी छाप छोड़ जाती है और आप उनसे भ्रमित हो जाते हो| सिनेमा देखना एक आदत सी बन जाती है| कम से कम एक हफ्ते के लिए सिनेमा देखना बंद कर दीजिए| जब आप काम से थके हुए घर लौटते हैं तो आराम से सो जाएँ|

प्रश्न : किसी भी कार्य का उद्देश्य क्या है? हमें कैसे पता चलेगा कि हम ने एक कार्य के लिए सौ प्रतिशत दे दिया है? जब भी मैं अतीत के कार्य को देखता हूँ तो मुझे हमेशा यह लगता है कि मैं बेहतर कर सकता था|
श्री श्री रविशंकर : यह बहुत अच्छा है! इसका मतलब है कि आप अपनी क्षमता पहचानते हैं जो बहुत अधिक है| आप एक बहुत अच्छी स्थिति में हैं, तो चिंता मत करिये|
कोई भी कार्य बिना उद्देश्य के नहीं होता| जब आप काम कर रहे हैं, तो आप पहले से ही काम का उद्देश्य जानते हैं|

प्रश्न : गुरुजी, अगर आप व्यापार करना चाहते हैं, और अगर आपकी कुंडली का समर्थन नहीं है, लेकिन आपको अपने आप में विश्वास है, तो क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : किसी और ज्योतिषी के पास जाईये!
अगर हर कोई एक ही बात कहते हैं तो यह करना बेहतर है क्योंकि तब मन कहेगा, 'सबने कहा कि मेरे लिए व्यापार अच्छा नहीं है|

प्रश्न : गुरुजी, मुझे लोगों में ज्ञान का प्रसार करना और YES+ प्रोग्राम के लिए अन्य युवाओं को लाना, यह सेवा करना बहुत पसंद है, लेकिन मेरे माता पिता मेरे पूरा दिन बाहर रहने के कारण खुश नहीं हैं| कभी कभी घर पहुँचने में देर हो जाती है| कृपया इस स्थिति को संभालने के लिए मार्गदर्शन कीजिए|
श्री श्री रविशंकर : यदि हर दिन आप बहुत देर से घर पहुँचते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से आप के साथ कुछ समय बिताना चाहते हैं| सेवा और घर पर अपने कर्तव्य में संतुलन करिये| घर पर जो जरूरत है वह भी करिये|
आपको पता है कि संतुलन कैसे करते हैं? हाँ! तो फिर करिये|

प्रश्न : भगवान का आरंभ कैसे हुआ था?
श्री श्री रविशंकर : पहले आप मुझे बताईये, एक टेनिस गेंद का प्रारंभिक बिंदु कहाँ है? क्या कोई प्रारंभिक बिंदु है? नहीं!
इसी प्रकार भगवान अनादि (बिना किसी शुरुआत के) और अनंत (बिना किसी अंत के) हैं|

प्रश्न : गुरुजी, विभिन्न धर्मों में अलग अलग रिवाज क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर
: सुनिए! क्यों नहीं होना चाहिए? सब कुछ एक जैसा ही क्यों होना चाहिए? भगवान विविधता पसंद करते हैं| आप केवल आलू खायें, यह वह नहीं चाहता| नहीं तो दुनिया में केवल एक सब्जी होती, आलू| विविधता प्रकृति है|

प्रश्न : गुरुजी, आपने कहा है कि हम रिश्वत न देनी चाहिये और न ही रिश्वत लेना चाहिए| २००९ में, मेरे पति का निधन हो गया, एक ट्रेन में यात्रा करते समय| 4 लाख रुपये मुआवजे के रूप में स्वीकृत किया गया था| लेकिन, वकील ने कहा कि अगर हम २५,००० रुपए रिश्वत में देंगे तो काम जल्दी होगा अन्यथा, यह उच्च न्यायालय में जाएगा और दो साल लग जायेंगे|
हमें इस बारे में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर
: उन्हें कहिये कि अगर वे रिश्वत लिए बिना काम करते हैं तो यह अच्छा है| अन्यथा, हम इसको लोकायुक्त में रिपोर्ट करेंगे| आप दृढ़ता से तय कर लें कि रिश्वत नहीं देंगे| ये लोग लंबे समय के लिए ऐसे कृत्यों को जारी नहीं रख पायेंगे|
अपने साथ पांच-छह लोगों को ले जाईये|
हाल ही में, अहमदनगर में, हमारे केंद्रों के सामने सड़क पर एस्फाल्ट(डामर) डालने की जरूरत थी| लेकिन, अधिकारियों ने दर्ज कर लिया कि काम पूरा हो गया है मगर वास्तव में काम पूरा नहीं हुआ था, और वे पैसे खा गए| तो, हमारे तीस युवा मेयर के कार्यालय के सामने बैठ ग और कहा कि न तो हम इस जगह को छोड़ कर जाएगें और न ही मेयर इस जगह को छोड़ कर जाएगें जब तक मेयर सड़क मरम्मत की अनुमति नहीं देंगे| सभी अधिकारी हैरान थे| अगले ही दिन सड़क मरम्मत की गई थी!

प्रश्न : (उपरोक्त व्यक्ति के ही द्वारा) कुछ लोगों ने यह भी सुझाव दिया है कि शुरुआत में हम रिश्वत देने के लिए सहमत हो जाएँ, लेकिन यह शर्त रखें, कि हम इसे काम होने के बाद ही देगें| एक बार काम हो गया, फिर हम कह सकते हैं कि हम आपको कुछ नहीं देंगे| क्या हम इस सुझाव का पालन कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, आप इस तरह की रणनीति भी इस्तेमाल कर सकते हैं!

प्रश्न : पिछले साल अगस्त में, मैंने अपना सब सोना(स्वर्ण) खो दिया| मैं ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं हूँ| मुझे यह परेशान करता है विशेष रूप से, क्रिया के दौरान|
श्री श्री रविशंकर
: जो होना था, हो गया| हमारा शरीर भी एक दिन हमसे दूर हो जाएगा| यह जान लीजिए और शांतिपूर्ण रहिये|
जो चला गया, चला गया है| इसके बारे में अब क्या किया जा सकता है?
अंग्रेज़ हमारे देश से सोने के भरे हुए ९०० जहाज ले गए| सौ करोड़ लोग इसके बारे में कुछ भी नहीं कर सके| उन लोगों ने इस तरह देश को लूट लिया| एक बड़े परिप्रेक्ष्य से सोचिये|
अब भी हमारे देश को लूटा जा रहा है|

The Art of living © The Art of Living Foundation