मन का स्नान!!!

परम् पूज्य श्री श्री रविशंकरजी के द्वारा
बैठ जायें और कुछ समय के लिए ध्यान लगायें, प्राणायाम, भजन और प्रार्थना करें। मन पर ध्यान दें। क्या होता है? मन धुल कर फिर से साफ हो जाता है।
मन के विरोधाभास स्वरुप को गले लगाने और स्वयं में अस्तित्विक समझ को विकसित करने के लिये यह आवश्यक है कि मन को नहलायें।
आप जब बाहर जाते हैं तो आप अच्छे कपडे़ पहनते हैं। हो सकता है कि कपड़े नये हों या इस्त्री किये हुये हों। दोनों अवस्था में आप उसे पहनकर बाहर जाते हैं। फिर क्या होता है, कपडे़ मैले हो जाते हैं और आपको उसे धोना पड़ता है। उसी तरह आप नहा कर पूरे शरीर में इत्र लगाते हैं। कितने देर इत्र की खुश्बू रहेगी। वह कुछ समय के लिए ही रहेगी। फिर आपको दूसरे दिन नहाना पड़ता है। यदि आप दो तीन दिन नहीं नहाते तो तीसरे दिन आपके पास कोई नहीं आयेगा। आपको स्वच्छ रहने के लिए फिर स्नान करना पड़ेता है। हमारा मन भी इसी के समान है। जब आप अपने शरीर को स्नान देते हैं तो आपको फिर से दूसरे दिन स्नान करना पड़ता है। कभी आपको उसी दिन संध्या में भी स्नान करना पड़ता है। यदि ठंड हो तो दूसरे दिन स्नान करना पर्याप्त है।
कोई नहीं कहता कि वे तभी स्नान करेंगे जब उनका शरीर मैला हो। कोई भी बार बार इस बात पर कि स्नान करे या न करे के लिए अपनी नाक नहीं चढ़ाता। यदि सूंघे या नही, यदि शरीर मैला हो या स्वच्छ, हम रोज स्नान करते हैं। उसी तरह कोई किसी के वस्त्र निकालकर नहीं देखेगा कि वे स्वच्छ है या नहीं। हम उस समय तक इंतजार नहीं करते जब तक वस्त्र पूर्ण रुप से मैला हो जाये। हम क्या करते हैं यदि थोड़ा सा भी मैल वस्त्र पर दिख रहा हो तो हम वस्त्र को धो लेते हैं।
ऐसा विचार करें कि आप के हाथ में कीचड़ लग गया है और उसमें डामर चिपका है। तो क्या रोते हुए बैठ जाते हैं? नहीं आप तुरंत जाकर साबुन से अपने हाथ धो लेते हैं। यदि मैल काफी कड़ा और गहरा हो और साफ नहीं हो रहा हो तो आप क्या करते हैं? आप उसे तब तक साफ करते हैं जब तक वह पूरी तरह साफ न हो जाये। फिर आप तृप्ति के साथ आते हैं कि आपके हाथ साफ हो गये हैं। यदि आप के हाथों में गहरा रंग या कोयला लगा हो तो उस रंग को निकलने में कम से कम दिन लग जाते हैं। फिर भी आप सारे प्रयास शुरु रखते हैं और अपने मन के शांत स्वरुप को नहीं बिगाड़ते।
उसी तरह हमे हमारी मन की अशुद्धियों को निरंतर साफ करना होता है। मन उसी तरह से बना हुआ है। उसमें खुशी और दुख बहते रहते हैं और आते और जाते रहते हैं। बैठ कर कुछ समय ध्यान लगाये, प्राणायाम, भजन और प्रार्थना करें। मन पर ध्यान दें; देखें क्या हो रहा है? मन धुल जाता है और फिर से स्वच्छ हो जाता है।

The Art of living © The Art of Living Foundation