सभी मूर्ख लोग इस दुनिया में इसीलिए हैं ताकि आप कुशल बन जाएँ!!!

०५.०३.२०१२, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, "मुझे वंदन करना, मैं तुम्हे मुक्त करूँगा, मेरे पीछे आओ!" और एक आम आदमी भी "मैं" और "मेरा" में फँस जाता है| तो फिर भगवान श्रीकृष्ण हमारे से भिन्न कैसे हुए?
श्री श्री रविशंकर : एक तरह के व्यक्ति वह होते हैं जो दूसरों के पाप लेने की क्षमता रखते हुए कहते हैं "आप वह (पाप) मुझे दे दो" और दूसरा वह होता है जो कुछ भी लेने में असमर्थ है और "मैं" कहता है
| दोनों में भिन्नता है|
जब एक डॉक्टर कहता है, 'तुम्हें बुखार है? मैं आप का ख्याल रखूँगा'| यह एक अलग बात है| लेकिन कोई है जिसे डाक्टरी का ज्ञान नहीं है, अगर वे कहते हैं, 'मैं आप की देखभाल करूँगा', उसका कोई मतलब नहीं है|
तो जिस दृष्टिकोण से भगवान श्रीकृष्ण का कहना है
, 'मैं', वह शरीर नहीं है| इसलिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं, "अवजनती मनुसिम तनुम असृतम रम भावं अजनान्तो मामा भूत महेश्वरम"| मुझ में जो "मैं" हैं वह बहुत ही भिन्न "मैं" है, जो लोगों को मेरी गूढ़ प्रकृति नहीं पता, और समझते हैं कि मैं केवल शरीर और मन हूँ|
तो यह फर्क है|
यहाँ तक जब अर्जुन ने युद्ध खत्म होने के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण से भगवद गीता दोहराने के लिए कहा, उन्होंने कहा, "नहीं, मैं नहीं कह सकता"| उस क्षण मैं समाधी मैं था एक भिन्न प्रकार की चेतना थी और इसलिए मैंने वह कहा था| अब मैं दोहरा नहीं सकता|

प्रश्न : गुरुजी, सोच और अभिप्राय के बीच अंतर क्या है?
श्री श्री रविशंकर : अभिप्राय भी एक विचार ही है, एक मजबूत विचार या एक सुलझा हुआ विचार| कितने सारे विचार आते हैं, और तैरते हैं, लेकिन कुछ ही विचार सुलझते हैं, उन सुलझे हुए विचारों को अभिप्राय कहते हैं|

प्रश्न : जीवन का पूरा उपयोग कैसे कर सकते हैं ? मुझे ऐसा लगता है की मैं ने अपने जीवन के सत्ताईस साल बर्बाद कर दिए हैं| मुझे अब उपयोगी बनना है|
श्री श्री रविशंकर : यह एक बहुत ही उत्तम अनुभूति है| आप उपयोगी बनना चाहते हैं, यह एक बहुत अच्छा इरादा है| तो पहले अनुभूति आती है "मैंने बर्बाद कर दिया" और बाद में संकल्प होता है, "मुझे उपयोगी होना है"| और बाद में आपको कुछ नहीं रोक सकता| आगे बढ़ि, यह बहुत अच्छा है|
लेकिन भूतकाल के विषय में पछतावा करने से कोई लाभ नहीं हैं| बैठकर पछतावा करना नहीं चाहिए| भविष्य में आगे बढ़िक्योंकि अपने भूतकाल की गलतियों द्वारा आपने जीवन में कुछ बहुत मूल्यवान चीज सीखी है|

प्रश्न : केना उपनिषद् में, ऐसा कहते है कि जो अज्ञानता की पूजा करते हैं, वह नर्क में जाते हैं और जो ज्ञान की पूजा करते हैं वह ज्यादा अँधेरे नर्क में जाते हैं| कृपया विस्तार से बताएं |
श्री श्री रविशंकर :  दो प्रकार का ज्ञान होता है: विद्या और अविद्या|
अविद्या का मतलब अज्ञानता नहीं होता, उसका मतलब तुलनात्मक ज्ञान होता है| विद्या का मतलब परम तत्त्व का ज्ञान |
अगर कोई केवल परम तत्त्व का ही ज्ञान पकड़ता है, तो वह नर्क में जाता है| अगर कोई सिर्फ तुलनात्मक ज्ञान पकड़ता है तो वह भी नर्क में जाता है|
तो वह यही कहता है, "वह सब ज्यादा अँधेरे में जाते हैं"|
यह शरीर और मन जैसा होता है| अगर आप सिर्फ मन के बारे में ही सोचते हैं और शरीर को नज़रंदाज़ करते हैं तो आप मुसीबत में पड़ जाओगे| उसी तरह यदि आप सिर्फ शरीर के बारे में ही सोचते हैं और मन पर ध्यान नहीं देते, तो भी आप पूर्ण नहीं हो सकते|
शरीर और मन जटिल होते हैं और वे साथ साथ चलते हैं| तो जो कहा गया है वह सही है|

प्रश्न : गुरूजी, हम अपना भोलापन कैसे बनाये रखें और कुशलता भी| यह इन दिनों बहुत कठिन लगता है|
श्री श्री रविशंकर : यह एक पूर्ण रहस्य है, कुशल होना और भोलापन बनाये रखना|
आप जानते हैं, भक्ति मदद करेगी| जब आप में भक्ति और विश्वास होता है कि एक शक्ति है जो नियंत्रण करेगी, तो आपका भोलापन बरक़रार रहता है|
यदि कुछ क्षणों के लिए भी यह जागरूकता आ जाए कि पूरा ब्रह्माण्ड एक सुव्यवस्था से संचालित है, कुछ इस ब्रह्माण्ड को शाषित करता है तो फिर आप बहुत होशियार हैं, यह नहीं सोचते और आप अपने भोलेपन में आ जायेंगे| और जब आप अपने काम पर केन्द्रित रहते हैं, एक उत्पाद के रूप में, कुदरती रूप से आप कुशल हो जायेंगे|
आप हर समय नहीं कह सकते कि, "कुछ शक्ति है जो हर पल मेरा ख़याल रखेगी'| यदि आप को कोई बस या ट्रेन लेनी होती है, तो आपको सही टिकेट लेनी होगी| यदि आप सही टिकेट नहीं लेंगें और यह सोचते रहेंगें, "ओह! कोई मेरी देखभाल करेगा| तो फिर पोलिस आकर आपका ख्याल रखेगी | वह पता करेंगे की क्यूँ आप टिकेट के बिना यात्रा कर रहे थे?
तो जीवन एक कुशलता और सर्वव्यापी जागरूकता का एक सयोजन है|

प्रश्न : गुरूजी, आलस्य योग निष्क्रियता से कैसे भिन्न है?
श्री श्री रविशंकर : आलस्य आपको सुस्त बना देता है| यह आपको भारी बना देता है| आलस्य आपको उर्जा, ख़ुशी और गतिशीलता प्रदान नहीं कर सकता| योग निष्क्रियता बहुत सारी उर्जा और उत्साह लाता है| यहाँ तक की यदि आप कुछ करना चाहते हैं, उससे पहले ही चीजें अपने आप हो जाती हैं| और इसे निश्कर्म्य सिद्धि कहते है| यह एक उच्च स्थिति है| जब आप उस स्थिति में आ जाते हैं, तब आपको यह प्रश्न भी नहीं होता, की यह आलस्य है भी या नहीं| यह प्रश्न उठता ही नहीं|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, कृपया मुझे बताएं की समूह में अहंकार के रूप में न देखा जाने वाला अपना व्यक्तित्व कैसे बनाये रखूं?
श्री श्री रविशंकर : बस सहज बने रहें| विचारशील बने, दयालु बने और टीम वर्क (सामूहिक कार्य) सीखें|

प्रश्न : गुरूजी, क्या मृत्यु के बाद जीवात्मा कुछ अनुभव कर सकता है? क्या जीवात्मा हमारे साथ सव्वाद कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ!
जीवात्मा या व्यक्तिगत आत्मा मृत्यु के बाद एक तल में रहती है; अपनी सारी सबसे गहरी छाप के साथ जब तक उसे दूसरा उचित शरीर नहीं मिल जाता वापस आने के लिए और उन सारे छाप से छुटकारा पाने के लिए| और उन सभी छापों से छुटकारा पाने की प्रक्रिया में, वह और छाप इक्कठा करता है और वापस आता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है| इसीलिए इस चक्र को तोड़ने के लिए - योग, ध्यान भक्ति यह सब रास्ते हैं| संतोष आवश्यक है, और गहरा संतोष मुक्ति लाता है|

प्रश्न : गुरूजी, आप हमें जीवन में मुक्ति की तलाश करने के लिए कहते हैं| मैं किसी चीज को चखे बिना कैसे तलाश करूँ? क्या यह केवल एक अन्धविश्वास नहीं है?
श्री श्री रविशंकर : देखो, क्या आपको मुक्ति नहीं चाहिए| एक प्रकार की आतंरिक स्वतंत्रता जहाँ आप कितने संतुष्ट और ख़ुशी का अनुभव करते हों| वह मुक्ति है|
आपको यह पता है की यह कहीं अन्दर गहरेपन में है, लेकिन उसे जो ढक देता है आपकी एक के बाद एक इच्छा और इत्यादि| एक इच्छा पूरी होती और दूसरी जगती है| तो आपकी आत्मा आवश्यकताओं और इच्छाओं से ढकी रहती है और आप वर्तुलाकार में गोल गोल फिरते रहेंगे और आपको यह एहसास ही नहीं होता की कुछ अंदर और भी गहरा है|

प्रश्न : गुरूजी, पिछले हफ्ते ही अडवांस कोर्स किया और बहुत उर्जावान महसूस कर रहा हूँ| लेकिन ऑफिस वापस जाने के बाद मैं अपना संतुलन अपने मालिक की वजह से खो बैठता हूँ| कृपया मुझे अपने गुस्से से छुटकारा पाने के लिए मदद कीजिये या कृपया अपने मालिक से छुटकारा पाने में मदद करें|
श्री श्री रविशंकर : दोनों ही किसी कारण से हैं| निरीक्षण कीजिये कैसे क्रोध होता है जब आपका मालिक जैसे बर्ताव करता है| क्या होता है? यदि अन्दर कुछ उबलने लगता है तो एक गहरी सास लें और अपने मालिक पर ध्यान देने के बजाय अपने शारीर में होने वाली संवेदनाओं पर ध्यान केन्द्रित करें| अपने आप पर काम करें, आप कुशल बन सकते हो| सभी मूर्ख और बेवकूफ लोग आपको कुशल बनाने के लिए हैं| वे आपके भीतर कुशलता लाते हैं| कैसा उनको संभालना है, कैसा बर्ताव करना है, यह सब कौशल आप में बाहर आता है|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मुझे कैसे पता चलेगा की यह एक उचित समय है किसी से जुदा होने के लिए? मैं पाच वर्षो से एक रिश्ते के साथ संघर्ष कर रही हूँ| यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष बन कर रह गया है|
श्री श्री रविशंकर : खैर, मैं तुम्हे इस पर सलाह नहीं दे सकता क्यूंकि मुझे किसी से जुदा होने का कोई अनुभव नहीं है| मैं यह कहूँगा, अपने आप से पूछिए, क्या आपने सौ प्रतिशत अपने रिश्ते को दिया है| यदि आपको लगता है की नहीं, तो एक कोशिश कीजिये| यदि यह काम नहीं कर रहा और यह एक संघर्ष बन गया है कोई आनंद या ख़ुशी पाने की चेष्टा है, अपने रास्ते  चलना ज्यादा बेहतर है| अपना जीवन बर्बाद न करें, आगे बढिए| कितनी सारी चीजे हैं करने के लिए रिश्ते के आलावा, तो कहीं अटक न जाएँ|

प्रश्न : गुरूजी, हम इस जनम में या किसी दूसरे जन्मों में कुछ बुरे कर्म किये हैं अपने विचारों, शब्दों या कर्मो द्वारा| किन कर्मो को मिटाया जा सकता है और किन कर्मो का फल भुगतना पड़ता है?
श्री श्री रविशंकर : बैठकर इन बातों का विश्लेषण न करें, बस जीवन में आगे बढिए| आपको पता नहीं|
भगवद गीता में भी कहा गया है, "गहना कर्मो गति" सबसे बड़ा आदमी भी इस पृथ्वी पर उलझन में है की कौनसा कर्म क्या करता है| तो, सबसे अच्छा यह है की सारे कर्मो को समर्पण किया जाए| कर्मो के बारे में सोचना बंद कीजिये और अपना धर्म करें और आगे बढिए| यदि आप अपना धर्म करते हैं, जो कर्म मिट सकते है स्वयं ही मिट जाते हैं| साधना निश्चित रूप से बुरे कर्मों को मिटाता है और कुछ कर्मो के लिए हमें उनसे गुजरना पड़ता है| कोई विकल्प नहीं है, आपको उससे गुजरना ही पड़ता है|

प्रश्न : गुरूजी, वर्तमान के राजनेताओं में कुछ अच्छे हैं पर वे बहुत कम हैं| क्या आप कुछ विद्यालय और महाविद्यालय स्थापित कर सकते हैं जहाँ उन्हें योग्य राजनेता बनने की शिक्षा दी जा सके?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, हमारे उड़ीसा के विश्वविद्यालय में हम एक अच्छे शासन का महाविद्यालय खोल रहे हैं| यह लोगों को समाज के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व पदों के लिए तैयार करेगा, जैसे ग्राम पंचायत, इलाके का प्रधान, जिला अध्यक्ष| जो भी व्यक्ति चुनावों में नगर निगम एवं नगर पालिका के लिए खड़े होंगे वे हमारे विश्वविद्यालय से पास होंगे| इस के लिए कार्य शुरू हो गया है|
मैं वकीलों और पत्रकारों ले लिए भी इसी दिशा में विचार कर रहा हूँ| उन्हें भी उपयुक्त व्यवहार सिखाना बहुत आवश्यक है|
देखिये आजकल बंगलोर में क्या हो रहा है| वकील एक प्रकार से व्यवहार कर रहे हैं, मीडिया एक प्रकार से, और पत्रकार एक और ही प्रकार से और सब मिल कर छोटी समस्याओं को भी गंभीर बना रहे हैं| इस जटिल समस्या को सुलझाने के लिए सबका ध्यान उनके अपने व्यवहार पर लाना आवश्यक है| इसी लिए गीता में कहा है, स्वल्पं अपि अस्य धर्मस्य त्रयते महतो भयत| थोड़ा सा धर्म, थोड़ा सा ज्ञान भी बहुत है| यदि व्यक्ति एक कदम इस दिशा में बढ़ाता है तो यह निश्चित है कि वह अपने सब भय से मुक्त हो जायेगा| वह बड़े से बड़े आतंक से भी भयभीत नहीं होगा| यह भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में कहा है|

प्रश्न : गुरूजी, मैं एक विद्यार्थी हूँ और सोचता हूँ कि मुझे और पढ़ना चाहिए| कल, आपने कहा कि हमें और अधिक पाने कि इच्छा को छोड़ देना चाहिए| किसे छोडें और किसमे अपना प्रयत्न लगायें?
श्री श्री रविशंकर : एक विद्यार्थी के लिए मैं कहूँगा कि आपको और पढ़ना चाहिए| यह मैंने बड़ों के लिए कहा था, कि और अधिक खुशी पाने कि लालसा छोड़ दें| पर जब ज्ञान, साधना, सेवा की बात हो, वहाँ और कि इच्छा करना ठीक है|

प्रश्न : गुरूजी, मेरे बड़े भाई ने कुछ वर्ष पूर्व विवाह किया था| अब वह कहता है, जैसे टी वी रिमोट से चलता है, वैसे ही पत्नी रुपयों के वश में रहती है| इन दिनों, पत्नी के साथ निर्वाह करना बहुत महँगा हो गया है|
श्री श्री रविशंकर : देखो, यह तो तुम्हें करना ही होगा| और कोई चारा नहीं है| यदि अनुपोषण का खर्चा अधिक है तो और प्रयत्न करो|

प्रश्न : गुरूजी, मैं आपको बहुत प्रेम करता हूँ| परन्तु, मैं जब भी आपके सामने आता हूँ, मेरी आँखों से आँसूं बहने लगते हैं| क्या मुझमें कोई खराबी है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, यह बिलकुल ठीक है| आँखों से आंसू गिरने में कुछ गलत नहीं है| यह स्वाभाविक और अच्छा है| जब दिल खिल उठता है, तो आंसू आते है, यह स्वाभाविक है|
क्या होता है जब आप किसी के पास आते हैं जो आपको बहुत प्यारा है, या जब गुरु के पास आते हैं? ग्रंथो में एक श्लोक है भिध्यथे हृदय ग्रंथि, चिध्यन्थय सर्व संशयः, क्शीयंथे च अस्य कर्माणि, तस्मिन दृष्ट परावरे|
हृदय कि गाँठे खुल जाती हैं, मन के प्रश्न और शंकाएं समाप्त हो जाती हैं, कर्म धुल जाते हैं, एक प्रियजन, गुरु या ज्ञानी के सामीप्य में| यह कहा गया है| इसका मतलब जो ग्रंथों में कहा गया है, वह सत्य है!

प्रश्न : गुरूजी, हमने सुना है कि कुछ ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति इस दुनिया में हैं लोगो की सहायता करने को, वैसे ही जैसे आप हमारी सहायता करते हैं| परन्तु, वे लोगों से दूर रहना पसंद करते हैं| क्या आज भी ऐसे व्यक्ति हैं?
श्री श्री रविशंकर : ऐसे व्यक्ति हो सकते है, कुछ साधक, जो साधना करते रहते हैं| और कुछ सोचते हैं, मैं क्यों इस सब में उलझूं, क्या आवश्यकता है, वे ऐसा सोचते हैं| विश्व में हर प्रकार के व्यक्ति हैं| एक, दो ही नहीं, दुनिया में बहुत से महान व्यक्ति हैं, पर इसका यह अर्थ नहीं है कि जो जंगलों में रहते हैं वे शहरों में रहने वालों से उच्च हैं|

प्रश्न : गुरूजी, आप सदैव कहते हैं, पसंद तुम्हारी, आशीर्वाद मेरा| परन्तु, सारी समस्या तो पसंद करने में ही है| कैसे सही पसंद करें? क्या कोई उपाय है या यह आशीर्वाद से ही होता है?
श्री श्री रविशंकर : समय तुम्हें बताएगा कि सही निर्णय क्या है| निर्णय के कुछ समय बाद तुम जानोगे कि तुमने सही निर्णय लिया या नहीं| आप सब कुछ मेरे करने के लिए क्यों छोड़ते हो? आप भी कुछ करो|

प्रश्न : गुरूजी, जब मैं कुछ व्यक्तियों को देखती हूँ तो बहुत भयभीत हो जाती हूँ| कभी कभी यह भय असहनीय हो जाता है| मैं क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर : एक महिला का यह महसूस करना बहुत स्वाभाविक है, खासकर यदि आप अकेली हैं और आपके आस पास सही नीयत के पुरुष नहीं हैं| ऐसे में आपको भय महसूस करना चाहिए, क्योंकि यह भय ही आपको सुरक्षित रखेगा क्योंकि आप वहाँ अकेले नहीं जायेंगी|
समाज अभी उतना शालीन और सात्विक नहीं हुआ है कि सब व्यक्ति भले हों| व्यक्ति को बुरी नियत वाले और बुरे लोगों से भय करना चाहिए, यह ठीक है| महिलाओं के प्रति अपराध बहुत अधिक हैं, विश्व भर में| इसे जाना होगा| केवल आध्यात्मिकता की एक लहर से हम स्थिति को बदल सकते हैं|

प्रश्न : परमहंस योगानंद जी ने लोगों को क्रिया योग में दीक्षित किया| मैं हमेशा से जानना चाहता हूँ यदि सुदर्शन क्रिया और क्रिया योग अलग हैं, और कैसे?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, क्रिया योग विभिन्न चक्रों पर ध्यान लगाना है| जैसे हम हरि ओम ध्यान में करते हैं, कुछ वैसा| परन्तु, सुदर्शन क्रिया इस से बिलकुल भिन्न है| सुदर्शन क्रिया में सांस, आत्मा की लय, मन की लय, यह सब शामिल है| इस लिए, यह आपको एक गहरा अनुभव देता है, गहरे ध्यान में जाने में सहायक होता है| जब आप करोगे, तभी आप समझ पाओगे|

प्रश्न : सरकार जो नीतियां बना रही है आजकल, वह समाज में से संस्कारों को तीव्रता से दूर कर रही है| इन्हें समझने और लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने में बहुत समय लगता है और बहुत उलझना पड़ता है| यदि मैं इस दिशा में काम करूं तो क्या ये मुझे आप से दूर ले जायेगा ?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, बिलकुल नहीं| आप सही में समाज सुधारक बन सकते हैं पर आपको अपने जीवन का संतुलन रखना होगा| ये कार्य करो और अपने लिए भी समय निकालो| अपने नित्य अभ्यास करो, प्राणायाम करो, ध्यान करो और उसके उपरान्त इस कार्य में लगो और समाज का सुधार करो|

प्रश्न : गुरूजी, जीवन कि सात तहों में मन और अहं को भिन्न तत्व बताया गया है, पर क्या अहं एक भावना, एक विचार नहीं है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं| अहं एक जागरूकता है स्वयं के बारे में| चारों मन, बुद्धि, स्मृति, अहं के अलग अलग कार्य हैं| पर ये सब एक ही चेतना से सम्बंधित हैं| मन विचार है| स्मृति इन को याद रखती है| बुद्धि निर्णय लेती है, सही और गलत में चुनाव करती है| अहं सब कुछ अनुभव करता है| यह जागरूकता है कि मैं हूँ| नींद में, बुद्धि विश्राम करती है, अहं रहता है, मन में विचार होते हैं और स्मृति भी रहती है| क्योंकि बुद्धि नींद में मौजूद नहीं होती इसलिए कोई तर्क वितर्क नहीं होता, और इसी लिए विचार सुलझे हुए नहीं होते| मन शांत होता है नींद में और स्मृति बस ये जानती है कि मैं सो रही हूँ| ध्यान में ये सब लुप्त हो जाते हैं| जैसे जैसे आप और ध्यान करेंगे, इसके बारे में और जानेंगे|