हमें अज्ञान, अन्याय, अभाव और अशुद्धिचिता को मिटाना होगा!!!

०६.०३.२०१२, इंदौर, मध्य प्रदेश
एक बार जब दिल जुड़ जाते हैं, तब कहने को कुछ भी शेष नहीं बचता; मैं फिर भी सबसे कहता हूँ, "Indoor" रहो I अंग्रेजी के Indoor और हिंदी के इंदौर में अधिक अंतर नहीं है| ऐसा कहा जाता है कि "अंतर्मुखी सदा सुखी" जो अन्दर जाता है, सुखी रहता है|
आप भले ही कुछ देर के लिए ही अपने मन के अन्दर जाते हैं, अर्थात अंतर्मुख हो कर मन को देखते हैं, तब एक शक्ति मिलती है|
अभी आदरणीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने "कन्या बचाओ आन्दोलन" के विषय में कहा; आपने मुझे भी ये कहते हुए अनेकों बार सुना होगा, मैं भी यही कहता रहता हूँ !
ऐसी मान्यता है कि एक गाय को मारना सबसे बड़ा पाप है, हमारी संस्कृति में ऐसा कहा गया है कि १०० गाय को मारना एक विद्वान को मारने के समान है, १०० विद्वानो को मारना एक संत को मारने के समान है, और १००० संतो को मारना कन्या की हत्या के समान है; अर्थात कन्या की  हत्या १००,०० गाय या १००० संतों की ह्त्या के समान है| अर्थात ये सब से बड़ा पाप हुआ| कन्या भ्रूण को माँ के गर्भ में ही समाप्त कर देना बिलकुल अनुचित है| आप सब पढ़े लिखे लोग हैं, आज शपथ लीजिये कि कन्या भ्रूण को नहीं मारेंगें|
यहाँ आने से पहले मैं एक विश्व-विद्यालय में व्याख्यान के लिए गया था| वहां मुझे पता चला कि इंदौर में प्रत्येक दिन एक व्यक्ति आत्म-हत्या करता है|
मैं कहता हूँ, जीवन अनमोल है, इसको ऐसे गंवाना उचित नहीं है; आप इसको ऐसे ही क्यों खो देना चाहते हैं? लोग आत्म-हत्या क्यों करते हैं? सिर्फ इसलिए कि परीक्षा में कम अंक आये या कर्जा बहुत ज्यादा है या किसी लड़के या लड़की ने आपको नकार दिया, आपके प्यार को नहीं स्वीकारा| छोड़ो इन सब को| आप जीवन में इतने हताश हो गए कि आत्म-हत्या कर ली| मैं कहता हूँ, मेरे पास आओ, अपना सब दर्द, सारी परेशानियाँ, सारी मुश्किलें मुझे दे दो|
हमारे देश में प्रथा है, माता, पिता, गुरु एवं देव क़ी|
जब हम बच्चे थे तब क्या करते थे; जब उदास हुए तो माँ को पुकारा और उनके पास चले गए, हाँ या नहीं?
जब भी एक छोटा बच्चा किसी परेशानी में होता है, माँ के पास जाता है| माँ से किसी बात पर अन-बन हो गयी फिर कहाँ जाता है? पिता के पास जाता है|
जब हम स्कूल में थे, तब क्या करते थे? कोई परेशानी हुई तो कक्षा-अध्यापक के पास जाते थे|
हर परिवार में एक संत, एक गुरु होता था| जब भी हमें कोई परेशानी होती थी, उनके पास जाते थे, उनके चरणों में सब परेशानी अर्पण करके ख़ाली कर के खुद को मुक्त कर देते थे| सभी तरह क़ी परेशानियों से|
अगर किसी के पास गुरु नहीं होता था तो कोई कुल-देवी या देव होता था| हर परिवार का कोई देव या देवी होते थे| आप उस देव या देवी के पास जाते थे और जो भी परेशानी या उलझन है वो उन्हें समर्पित करके मुक्ति पा जाते थे|
आज हमने ये सब छोड़ दिया है, इसीलिए ये आत्म-हत्या, भ्रूण हत्या शुरू हो गयी है|
इन सब का मुख्य कारण है अज्ञान| हमें इसी अज्ञान को मिटाना है| हमें लोगो को साक्षर करना है| साक्षरता का अर्थ केवल शिक्षा नहीं; इसका अर्थ है आध्यामिक ज्ञान| मानवीय मूल्यों का ज्ञान अर्थात दया, प्यार, अपनापन|
जहाँ अपनापन ख़त्म हो जाता है, वहां भ्रष्टाचार शुरू हो जाता है| आज तक कोई भी उनके साथ भ्रष्ट नहीं जो उनके अपने हैं; ऐसा हो ही नहीं सकता|
आध्यात्म क्या है? ये अपनेपन का विस्तार करना है| जब हम मानते हैं कि सब अपने हैं तब हम अनभिज्ञता के खिलाफ खड़े हो जाते हैं और नाइंसाफी के खिलाफ लड़ाई शुरू कर देते हैं|
अन्याय को बर्दाश्त मत करो| उसके खिलाफ खड़े हो जाओ| अगर आपको लगता है कि कहीं नाइंसाफी है, भ्रष्टाचार है, वहां -१० लोग मिल कर जायें और उन्हें कहें  कि हम अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे| सीधे मुख्यमंत्री के पास जाएँ|
अगर परिवार का कोई मुखिया होता है तब हमें पूरा हक है उस के पास जाने का| लेकिन केवल तब जब हम न्याय का पालन करें, उसकी सीमा में रह कर काम करें| केवल तब हमें अभाव को भी मिटाना है और अपना वातावरण स्वच्छ रखना है|
हमें ४ बातों से अज्ञान, अन्याय, अभाव एवं अशुद्धिचिता को मिटाना होगा |
अगर हम सब या हफ्ते में केवल घंटे इन कामों को दें तब हम अपने शहर को स्वच्छ बना सकते हैं| हर एक व्यक्ति एक झाड़ू उठाये और सफाई शुरू करे| अपने शहर को साफ़ बनाने का बीडा उठायें| पहल करें| अगर हम सब मिल कर काम करें तो इतना सारा कार्य हो सकता है, इतनी सेवा की जा सकती है|
मैं इंदौर साल पहले आया था, इन सालों में काफी तरक्की हुई है| मैं तो अभी इंदौर को पहचान ही नहीं पाया| इतनी उन्नति हुई है| लेकिन उन्नति के साथ साथ साफ़ सफाई की कमी हो गयी है| यहाँ वहां प्लास्टिक फेंकना, पेड़ काटना  दिखता हैं| हमें पर्यावरण के प्रति सजग होने की आवश्यकता है| हम सबको इसकी जिम्मेदारी उठानी होगी| नगर पालिका ये कार्य अकेले नहीं कर सकती| वो कैसे करेंगे अगर लोग इस काम में हिस्सा नहीं लेंगे तो? इसलिए हम सब को खड़ा होना है| अज्ञान हटाने को, अन्याय मिटाने को और संकीर्ण मानसिकता को मिटाने को जो जाति-सम्प्रदाय के नाम पर भेदभाव करती है|
जब हमारे देश में आध्यामिकता शीर्ष पर थी, हम बहुत खुशहाल थे| किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं था, जहाँ नारायण होंगे वहां लक्ष्मी तो आएगी ही| जब आध्यामिकता शीर्ष पर थी तब हम विश्व के ३३% जीडीपी के हिस्सेदार थे| जब आध्यामिकता में गिरावट हुई, हमारी आर्थिक स्तिथि में भी गिरावट गयी| इसलिए अभी आवश्यकता है खड़े होने की| इस अभाव को मिटाने के लिए हम सब को कुछ ना कुछ योगदान देना है|
मध्य प्रदेश हमारे देश का दिल है मैं चाहता हूँ कि यहाँ कोई बेरोज़गारी ना हो| हर युवक के पास काम हो, कोई रोज़गार हो|
देश में नौकरियों की कोई कमी नहीं है| बल्कि लोग कहते हैं कि काम है, नौकरी है लेकिन पर्याप्त लोग नहीं हैं| जब मैं यहाँ रहा था, तब एक सज्जन मुझे बता रहे थे कि बहुत से काम हैं लेकिन हमें उनके लिए लोग नहीं मिलते| देश के सभी उद्योगपति  यही कह रहे हैं कि हम नौकरियाँ बना सकते हैं लेकिन उनके लिए लोग तो हो अर्थात लोग उनके लिए काम करें|
इन सब का मुख्य कारण ये है कि हम सब ने सुना है कि हमारे अन्दर ईश्वर है किन्तु कभी उसको महसूस नहीं किया| हमें महसूस करने कि ज़रूरत है अपने अन्दर ईश्वर को; बस एक बार आपको इस बात का अहसास हो जाये तब आप देखेंगे कि जिसे बाहर ढूँढ रहे हैं वह तो आपके भीतर ही है| सिर्फ एक बार ये अहसास करके देखें| मैं कहता हूँ कि उसके बाद आपसे  कोई आपकी मुस्कराहट नहीं छीन सकता| आपकी सभी इच्छाएं बिना किसी प्रयास के स्वयं ही पूरी होने लगेंगी|
उसके लिए हमें थोड़ा वक़्त निकालना होगा, और अपने भीतर झांकना होगा| कुछ मिनट के लिए बैठें, अपने मन को शांत रखें, कुछ अभ्यास करें, और बस फिर भूल जाइये अपनी इच्छायों  को; आप बाकि लोगों की इच्छाएं भी पूरी करने लगेंगें क्योंकि समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी हमारे अन्दर ही है|
जब ईश्वर, सब का मालिक हमारे अन्दर ही है तब अभाव कैसे संभव है?
ये केवल धारणा नहीं है, सत्य है| ये सब आप सब के अन्दर भी हो सकता है|
यह मत सोचिये कि ईश्वर केवल उन्ही भिक्षुकों या संतो के लिए हैं जो हिमालय में जाकर बैठ गए, या जंगल में समाधी लगा कर बैठ गए हैं| सिर्फ उन्ही को ईश्वर मिलेंगें; नहीं ऐसा नहीं है| ईश्वर यहाँ पर ही है, हम में से हर एक के भीतरयही विश्वास है जिसे मैं ध्यान कहता हूँ|
मैं यहाँ आपको सिर्फ यही बताने आया हूँ| इसिलए मैं जगह जगह जाता हूँ लोगो को यह बताने, उन्हें याद दिलाने कि ईश्वर आपके अन्दर है| ज़रा अन्दर झाँक कर तो देखिये| कुछ भी असंभव नहीं है| क्या संभव नहीं है! यही है जिसे आध्यात्म कहते हैं|
बस एक बार इसका नज़ारा कर लें, इसकी एक झलक आप को कभी ना हटने वाली एक मुस्कराहट दे जाएगी, सब परेशानियां, सब दुःख समाप्त हो जायेंगे|
इन दिनों मैं सोच रहा था, कि अगर युवा पीढ़ी अपने देश की सेवा के लिए कुछ वक़्त दे तो हमारा देश समर्थ हो जायेगा, मज़बूत हो जायेगा| अपने देश को अपने सिर्फ महीने दे दीजिये| अगर युवा ऐसा करें तो हम अपने देश कि ये समस्याओं : अज्ञान, अन्याय, अभाव और अशुद्धिचिता को मिटाना होगा| हम गाँव गाँव जा सकते हैं, शराब की दुकानें बंद करा सकते हैं| लोग गरीब हैं क्योंकि वे अपनी आमदनी का ६०% हिस्सा शराब पर खर्च देते हैं|
हमें लोगो को जैविक कृषि सिखानी है| मैं समझता हूँ कि मध्य प्रदेश में बहुत से लोगों ने जैविक कृषि के लिए पहल की है, और लोगों को भी इसके लिए आवाज़ उठानी चाहिए, इस में मदद करनी चाहिए| आज देश में कैंसर जैसी बीमारियाँ बढती जा रही हैं, इसके पीछे एक बड़ा कारण है कि जो भोजन हम खाते हैं वो खादों और रसायनों के द्वारा उगाया जा रहा है| पहले समय में गेंहू चावल में कीड़े लग जाते थे, आज हमें अनाज में कीड़ा नहीं मिलता| हम वो भोजन खा रहे हैं जिन्हें कीड़े भी नहीं खाना चाहते| आप ही बताइए कि ऐसे में क्या होगा ! शरीर में जगह जगह दर्द और बीमारियाँ| जरा हाथ उठाइए कि कितने लोगों को शरीर में दर्द होता है| शायद ६०-७०% लोग हाथ उठा रहे हैं| अब जिन्हें ये सब दर्द नहीं वो हाथ उठायें| आप लोग शायद योग, ध्यान, प्राणायाम आदि कर रहे हैं या शायद झिझक के कारण हाथ नहीं उठा रहे हैं|
प्रतिदिन कुछ समय के लिए सत्संग करें|
सत्संग का अर्थ है बिना किसी औपचारिकता के आध्यामिकता में रहना| अगर औपचारिकता से बात कर रहे हैं और किसी का अपने घर में स्वागत करते हुए कह रहें हैं कि "आइये आइये आपका स्वागत है" लेकिन मन में सोच रहें हैं कि "ये क्यों गए?" इस तरीके से हम अगर अपनी ज़िन्दगी औपचारिकता में जीते हैं तो हम सब उदासीन हो जायेंगे| इस से हमारी ज़िन्दगी में उदासी ही उपजेगी और बढेगी और बीमारियाँ बढेंगी| इसलिए अगर हम स्वाभाविक, अनौपचारिक, सरल, आत्मविश्वासी और आध्यात्मिक हो जाएँ, तब हमारी ज़िंदगी बेहतर होने लगेगी| आज विश्व इस बदलाव के लिए तैयार है क्योंकि वो इस उबाऊ, नीरस और कमज़ोर ज़िन्दगी से थक गया है|
आज अवसाद विश्व की सबसे बड़ी बीमारी है| जब हम बच्चे थे, तब हमने कभी नहीं सुना था कि किसी को कुछ मानसिक समस्या है या अवसाद जैसी कोई बीमारी है| आज जहाँ भी जाओ लोग कहते हैं कि उन्हें अवसाद है|
अरे कैसा अवसाद!!! अगर कोई बहुत स्वार्थी है तब उसको सिर्फ अवसाद ही होगा और कुछ नहीं| जब हमारी ज़िन्दगी में कोई हमारा अपना है तब हम अपने जीवन को उत्साह से जी सकते हैं, उत्सव मना सकते हैं| अज्ञानता या विषाद हमें तब छूता भी नहीं| ये है आध्यात्म|
हमारे धर्म ग्रंथो में कहा गया है कि रसोमसाहा| परमात्मा क्या है?? जितना आप उसके पास जाते हो, उतनी ही आप की ज़िन्दगी रुचिकर हो ज़ाती है, उतना ही मज़ा, उतना ही आनंद, उतनी ही खुशियाँ|
क्या आप सब सुन रहें हैं?
मैं ज्यादा नहीं कहता वरना लोगों को ज्ञान भी अपाच्य हो जायेगा| अगर आप बहुत ज्यादा सुनेंगें तो वह हज़म नहीं कर पायेंगे| थोड़ा थोड़ा सुनें, उस पर मनन करें, चिंतन करें, मन में बिठाएं, व्यवहार में लायें|
तो सबसे आवश्यक क्या है? स्वयं के लिए समय निकालना|
ये समस्त संसार एक नाटक के जैसा है, सिर्फ कुछ देर बैठें, -१०-१५ मिनट और समझें कि ये नाटक एक दिन ख़त्म होने वाला है, एक दिन हम सबको यहाँ से अपना किरदार निभा कर चले जाना है| हमें अपना सामान समेटने का भी अवसर नहीं मिलेगा, बिना समेटे ही चले जायेंगे| कोई और समेटेगा आप का सामान भी, आप ऐसे ही चले जायेंगे| ऐसे ही छोड़ देंगें इस विश्व को, इस संसार को| बिस्तर आदि भी साथ नहीं ले जाना है| उस को भी आप के बाद कोई और ही संभालेगा|
अगर आप सुबह या शाम -१० मिनट को बैठतें हैं, अपने मन को शांत करते हैं, आप का शरीर भी स्वस्थ होगा, व्यवहार कुशल होगा, आप का मन शांत होगा तो बुद्धि कुशाग्र होगी, जो भी इच्छा मन में आएगी वो स्वतः ही पूरी हों जाएगी| ऐसा है ये उच्च ज्ञान| अगर एक बार इसकी झलक भी आप को मिल जाए तो आप इसको नहीं छोड़ेंगें ; ये एक नशा है| ज्ञान है ही ऐसा, ध्यान है ही ऐसा| वातावरण प्रफुल्लित हो उठेगा, जीवंत हो जायेगा|
इसके साथ आपको एक और शपथ लेनी है ; सामजिक कार्य के प्रति| हमारे  देश में चुनाव पद्धति इतनी खराब हो गयी है कि अब ज़रूरत है इसको सुधारने की| हम सब को इसके लिए खड़े होना होगा|
अगर एक विधायक बनने में - करोड़ रुपये खर्च हों तो वो उसे कहाँ से पूरा करेगा? उसको भ्रष्ट होना ही होगा| ये है भ्रष्टाचार की पद्धति| यह नहीं होना चाहिए, हम सब को इसके खिलाफ खड़े होना होगा, आवाज़ उठानी होगी| हाँ या नहीं? कितने लोगो को ऐसा लगता है; हाथ उठाइयें|
तमिलनाडू में चुनाव के दौरान वहाँ दो बात प्रचलन में थीं, लाल गाँधी और हरे गाँधी| हरे गाँधी का अर्थ था ५०० रुपये के पाँच नोट और लाल गाँधी का अर्थ था ५००० रुपये| यह सभी घरों में वितरित किये गए| गावों में प्रत्येक घर में एक निश्चित राशि तय थी, इस घर में ५०० रुपये और उस घर में ५००० रुपये| टेलीविज़न, प्रवचन के माध्यम से हमने लोगों से कहा यदि वे पैसे देते हैं तो पैसे ले लीजिये लेकिन उनको वोट न दीजिये| वे अपनी मेहनत की कमाई आपको नहीं दे रहे हैं बल्कि यह आपका ही पैसा है उसे ले लीजिये| अन्यथा लोग कहते गुरूजी हम लोग बहुत गरीब लोग हैं और ५००० रुपये हमारे लिये बहुत बड़ी रकम है| उन्हें अपने बच्चों के सिर पर हाथ रख के कसम खानी पड़ती थी कि वे सिर्फ उनको ही वोट देंगे| मैंने उनसे कहा आप कसम की चिंता न करें, आप कसम ले लीजिये और उस कसम को तोड़ने का पाप मैं अपने उपर ले लूँगा| मैं आपके पाप ले लूँगा और उससे आपको प्रभावित होने नहीं दूंगा, बस उन्हें वोट न दें| उन लोगों ने इनता पैसा खर्च किया लेकिन लोगों ने उन्हें उनकी जड़ से उखाड फेंका| देश हैरान हो गया| उन लोगों के इतना पैसा खर्च करने के बावजूद लोगों ने उन्हें उनकी जड़ से उखाड फेंका था| इसलिये मैं आप सभी लोगों से कहूँगा कि आप सभी लोग गाँव में जाएँ और वहाँ के लोगों से कहें कि हमें अपने देश को मजबूत बनाना है| यदि लोग सत्ता में पैसे या बाहुबल के तरीके से आते हैं, तो हमें उसके खिलाफ खड़े होना पड़ेगा|
मैं भारत के युवाओं से कहता हूँ कि यह समाज और देश आपका है| इसे सिर्फ बैठ कर बिगड़ने मत दीजिये| अब जाग जाएँ और आगे बढ़ें| बहुत लोग सोचते हैं कि राजनीति बहुत खराब है| लोग मुझे कहते है कि गुरूजी आप भ्रष्टाचार के बारे में क्यों बोलते हैं, आप इसे छोड़ दीजिये और इसके बारे में बात न कीजिये| आप सिर्फ आध्यात्म के बारे में ही बात कीजिये| आप लोगों को क्या लगता है, मुझे भ्रष्टाचार के विरोध में नहीं बोलना चाहिये? आप में से कितने लोगों को लगता है कि मुझे ऐसा करना चाहिये? मैं कहता हूँ यह मेरे हाथ में नहीं है, मेरे भीतर से जो आवाज़ निकलती है मैं वहीँ कहता हूँ| मैं भ्रष्टाचार के बारे में कहूँगा| आध्यात्म के लिये भ्रष्टाचार बहुत खतरनाक है| यह आध्यात्म का शत्रु है| हमें भ्रष्टाचार, हिंसा और अंधविश्वास इत्यादि को जड़ से उखाड़ना होगा| यह सिर्फ एक ही ब्रह्मास्त्र के द्वारा संभव है जिसका नाम आध्यात्म है| यह कानून के द्वारा संभव नहीं है| मैं जानता हूँ कि कानून आवश्यक है ल्रेकिन लोगों में एक लहर आना जरूरी है| हम सब लोगों को एक संकल्प लेना होगा कि ऐसी घटनायें फिर से और न घटें| आप क्या सोचते हैं? कुछ लोग अपने हाथ नहीं उठा रहे हैं, आप सिर्फ इधर उधर देखें और जो लोग हाथ नहीं उठा रहे हैं उनसे पूँछे कि आप की क्या समस्या है?
ऐसे कई समाजसेवी हैं जो सिर्फ नारे लगाते रहते हैं, जैसे मजदूर यूनियन| बे सिर्फ चिल्लाते रहते हैं लेकिन क्या सिर्फ नारे लगाने से किसी का कभी कोई काम बना है? यदि हमारे स्वयं के भीतर शान्ति न हो तो शांति के लिये चिल्लाने से क्या हमें शान्ति हासिल हो सकती है? यह संभव नहीं है| इसलिये वाणी और कृत्य में सामंजस्य होना आवश्यक है जो सिर्फ आध्यात्म के द्वारा ही संभव है| फिर वह आसानी से हो जाता है| इसलिये दो बातें आवश्यक हैं; पहली हमारे भीतर शक्ति होनी चाहिये| और फिर श्रद्धा और संकल्प के द्वारा हम एक सुंदर और दिव्य समाज का सृजन कर सकते हैं|
प्रश्न : गुरूजी भौतिक जीवन और आध्यात्म में संतुलन कैसे स्थापित करें?
श्री श्री रविशंकर : क्या आप साईकिल चलाना जानते हैं? उसी तरह से| जब आप आध्यात्म को छोड़ देते हैं, फिर एक चुभन और पीड़ा होती है और आपको फिर से आध्यात्म की ओर जाना पड़ता है| यदि आपको लग रहा है कि आप अपने कृत्य के प्रति लापरवाह हो रहे हैं तो अपने काम के प्रति ध्यान दीजिये| दोनों को साथ में लेकर आगे बढते चलें|

प्रश्न : अधिकतर आध्यात्मिक लोग बहुत गंभीर और रूखे होते हैं लेकिन आप हर समय मुस्कुराते रहते हैं| इसका क्या रहस्य है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ! मैं तो ऐसा ही हूँ|

प्रश्न : गुरूजी अहंकारी लोगों से कैसे निपटा जाये?
श्री श्री रविशंकर : चिंता न करें, उनसे निपटने की चेष्टा न करें| उनके भीतर कोई जख्म है, जिसे छुपाने के लिये वे अपना अहंकार दिखाते हैं|

प्रश्न : लोग कहते हैं कि सिर्फ एक ही भगवान को मानना चाहिये| यदि हम बहुत सारे भगवानों  को मानते हैं तो क्या होगा?
श्री श्री रविशंकर : पिछले बार जब मैं इंदौर आया था, मैं यहाँ से सीधे पाकिस्तान गया और वहाँ भी मुझसे यही प्रश्न किया गया था| हम लोग सिर्फ एक ही भगवान को मानते हैं और आप लोग हजारों की संख्या में भगवान को मानते हैं ऐसा क्यों? इस बार भी मैं इंदौर से पाकिस्तान जाने वाला हूँ| ११, १२ और १३ मार्च को मेरा पाकिस्तान दौरा है| हजारों लोगों ने वहाँ कोर्स किया है और सुदर्शन क्रिया की है| मुस्लिम समुदाय से कई लोग वहाँ मिलने आने वाले हैं| अभी वहाँ तैयारियाँ हो रही हैं| उस समय भी मैंने इस प्रश्न का उत्तर दिया था|
मैंने उनसे कहा कि आप समोसा, कचौड़ी और पराठा, विभिन्न प्रकार के व्यंजन उसी गेहूं से बनाते हो, क्यों? फुल्का, रोटी, पराठा और नूडल भी उसी से बनता है| उसी गेहूं को विभिन्न तरीकों से उपयोग में लाते हो| उसी तरह भगवान ने आपके लिये सिर्फ एक प्रकार की सब्जी नहीं बनायी है और जिंदगी भर आप सिर्फ बैंगन ही नहीं खायेंगे| भगवान ने आपके लिये कितनी विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ बनायी हैं? सृष्टिकर्ता ने जब इतने सारे प्रकार की चीजें  बनायी हैं तो फिर वह अपने आपको विभिन्न रूपों और रंगों में प्रकट करना नहीं चाहेगा| हम भी कहते हैं कि सिर्फ एक ही भगवान है लेकिन उसके अनेक रूप और नाम हैं| अनंत  गुणमये और अनंत नामी| हज़ारों नामों और गुणों में सिर्फ एक ही परमात्मा है| मानव को इस तथ्य की जानकारी थी| इसे जानने से बहुत खुश हो गये| चावाल वही है लेकिन उससे डोसा, इडली और अनेक प्रकार के व्यंजन बनते हैं| यदि आप केरल जायेंगे तो चावल के १० प्रकार के व्यंजन को पायेंगे| उसी तरह सिर्फ एक ही भगवान है लेकिन उसके विभिन्न नाम, रूप और गुण हैं| इसे समझने का यही सही तरीका है|

प्रश्न : भ्रष्टाचार को मिटाने में आध्यात्म की क्या भूमिका है?
श्री श्री रविशंकर : मैं इसके बारे में पहले ही बोल चुका हूँ|

प्रश्न : हम क्यों जन्म लेते हैं और जन्म लेने के बाद मरने, और फिर जन्म लेने का क्या तुक है?
श्री श्री रविशंकर : क्या आप खेल के बारे में जानते हैं? मुझे समझ में नहीं आता की आप लोग क्यों खेल खेलते हैं| आप क्रिकेट क्यों खेलते हैं? कोई गेंद फ़ेंक रहा है, कोई दौड के गेंद फेक रहा है, कोई बल्ले से उसे मार रहा है, और उसे पकड़ने के लिये कई लोग भागते रहते हैं| इस सब का क्या मतलब है| अगर उन्हें गेंद चाहिये तो सबको एक एक गेंद दे दो| बात खत्म हो जाती है| अगर कोई किसी दूसरे ग्रह से आकर फुटबाल मैच देखता है, कोई गेंद को यहाँ से लात मार रहा है, कोई वहां से लात मार रहा है, लोग दौड रहे हैं, गिर रहे हैं, कूद रहे हैं, परेशान हो रहे हैं, तब उसे यह नहीं समझ आयेगा की क्या हो रहा है?
वह सोचेगा की एक गेंद के लिये २२ लोग दौड रहे हैं! सब को एक एक गेंद दे दो और सब को गोल में बैठने दो| अगर दुनिया में किसी सभ्यता के पास इसका जवाब है, तो वह है भारतीय सभ्यता| भारतीयों के अनुसार जीवन संघर्ष नहीं है, जीवन खेल है, लीला| अगर जीवन को खेल के तौर पर जानने वाली कोई सभ्यता है, तो वह भारतीय सभ्यता है| यह परमात्मा का खेल है, लोग जन्म लेते हैं, मरते हैं, फिर जन्म लेते हैं, कर्म का प्रवाह हो रहा हैं, ज्ञान की लहर चल रही है, और उसके बीच में भक्ति उभर कर कर्म और ज्ञान को स्वच्छ करती है, अज्ञान की छाया पड़ती रहती है, और अज्ञान को साफ़ करने के लिये परमात्मा कुछ भिन्न प्रकार की गतिविधियों करते हैं, यह हमारा आकार है| परमात्मा कहीं दूर नहीं है| वह यहीं है, हमारे अंदर|

प्रश्न : भगवान हमें हमारे कर्मो, भक्ति, शक्ति या कोई अन्य आध्यात्मिक बातों से हमारा   मूल्यांकन करते हैं?
श्री श्री रविशंकर : भगवान निर्लिप्त है| यदि आपके पास भक्ति है तो यह आपके लिये अच्छा होगा, भगवान के लिये नहीं| यदि आपके पास भक्ति है तो आप हल्का महसूस करेंगे| यदि आप के पास ज्ञान है तो फिर दुःख से मुक्ति मिलती है|

प्रश्न : गुरु की भक्ति में घर की जिम्मेदारियां बीच में आ जाएँ तो क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, वह बीच में नहीं आ सकतीं| गुरु आपको उचित रूप से अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने की सलाह देंगे| सभी गुरू वहीँ बात कहेंगे और अपनी घरेलू जिम्मेदारी को पूरा करने के लिये कहेंगे लेकिन कुछ समय के लिये ध्यान करें और कुछ समय अपने आप के लिये भी निकालें| सिर्फ सांसारिक बातों में ही न बह जाएँ जिससे आप सिर्फ दुखी हो जाएँ | कुछ समय अपने आप के लिये निकालें और विश्राम करें|

प्रश्न : जन्म और मृत्यु के चक्र से हम कैसे मुक्ति पायें?
श्री श्री रविशंकर : जिस क्षण आपमें इसे पाने की इच्छा होने लगे, तो आप उस दिशा में चलने लगेंगे|

प्रश्न : क्या मध्य प्रदेश को शराब से मुक्त किया जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : यह निश्चित ही संभव है| आप सब लोग कुछ सेवा कृत्य में जुट जाएँ| जब लोग सुदर्शन क्रिया और ध्यान करने लगेंगे फिर यह संभव हो सकेगा| जो लोग शराब का सेवन करते हैं उन्हें हमारे पास आने के लिये कहिये, हम उन्हें और बेहतर नशा दे देंगे| इससे पैसा  भी खर्च नहीं होगा और मज़ा भी कभी खत्म नहीं होगा, आप हर समय ऊच्चता को महसूस करते रहेंगे|

प्रश्न : सत्य के लिये कैसे लड़ें? मैं सत्य के लिये लड़ते हुये थक गयी हूँ| क्या कलयुग में सत्य की विजय होगी? कृपया कर के मार्गदर्शन करें?
श्री श्री रविशंकर : निश्चित ही सत्य की विजय हर समय होगी, लेकिन आपमें में युक्ति भी होना चाहिये| धर्मराज युधिष्टर सिर्फ सत्य की बात करते रहे लेकिन उनमें युक्ति नहीं थी| इसलिये भगवान श्रीकृष्ण आये और उन्होंने उन्हें युक्ति प्रदान की| भगवान श्रीकृष्ण की मदद के बिना वे महाभारत का युद्ध जीत नहीं सकते थे| सत्य की विजय होगी जब उसमें भक्ति और युक्ति होगी| यदि आपको समाज में विजय प्राप्त करनी है तो आपको शक्ति और युक्ति दोनों की आवश्यकता होगी| यदि आपको जीवन में विजय प्राप्त करना है तो आपमें मुक्ति और भक्ति होनी चाहिये| इसलिये आप में चार बातें होनी चाहिये| सबसे पहले मुक्ति, आप यह महसूस करें कि आप मुक्त हैं| फिर प्रेम का उदय होगा| फिर मुक्ति और भक्ति| बंधन में आप प्रेम का अनुभव नहीं कर सकते| अपने आप की मुक्ति की अवस्था में अनुभूति होने से ही आप अपने आप में प्रेम का उदय कर सकेंगे|

प्रश्न : उदासी (अवसाद) से बाहर निकलने का क्या तरीका है?
श्री श्री रविशंकर : बैठकर सिर्फ अपने बारे में मत सोचिये| मुझे क्या होगा? आपको क्या होगा? यह सब सोचकर आप उदास हो जायेंगे| आप यहाँ इस दुनिया में समाज के लिये कुछ करने के लिये आये हैं| भगवान का काम करने के लिये आये हैं| मेरा काम करने के लिये आये हैं| सिर्फ सेवा की गतिविधियों में हिस्सा लीजिये| सुदर्शन क्रिया और ध्यान कीजिये| कुछ समय सुदर्शन क्रिया कीजिये और देखिये कि आपमें कितना परिवर्तन आयेगा| आप लोगों में से कितने लोगों को साधना करने के उपरांत फर्क महसूस हुआ? अपने हाथ उठायें| देखें कितने सारे लोगों को
अब हम १० मिनिट के लिये ध्यान करेंगे| जब हजारों लोग बैठकर ध्यान करते हैं तो उसे यज्ञ कहते हैं| जब आप अकेले ध्यान करते हैं तो उसे तपस्या कहते हैं| और यज्ञ का परिणाम तुरंत मिलता है और आपकी एक इच्छा निश्चित ही पूरी होगी|



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