न्याय संगत होना आपको वो सुकून देता है जो और कोई भी कार्य प्रदान नहीं कर सकता!!!



जिंदल पुरस्कार वितरण समारोह (२३ फरवरी, २०१२)

(श्री श्री को प्रतिष्ठित सीताराम जिंदल पुरस्कार वितरण समारोह में, मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है| जिंदल पुरस्कार, सामजिक उत्थान के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने वाले लोगो को सम्मानित करने के लिए प्रदान किये जाते हैं, अन्ना हजारे , जो कि ये प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वालो में से एक थे, उन्हें श्री श्री ने पुरस्कृत किया और वहां सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि न्याय संगत होने से जो सुकून और शांति मिलते है वो किसी और कार्य से नहीं मिलती|)

मेरे सभी प्रिय जो पुरस्कार लेने आये हैं, और सभी प्रिय जो पुरस्कार देने आये हैं और बहुत सी आँखें एवं कान जो इस घटना के साक्षी है, उन सब को शांति|
एक उभरते हुए युवा राजनीतिज्ञ मुझसे मिलने चेन्नई आये और उन्होंने मुझसे पूछा कि, "गुरु जी, अच्छा क्यों होना चाहिए? अच्छा होने का क्या फायदा है? हम सब देखते हैं कि जो भ्रष्ट हैं, गलत कार्य कर रहे हैं, निष्ठुर हैं, वो खुश हैं, अपने जीवन में उन्नति कर रहे हैं. कृपया बताएं कि हमें अच्छा क्यों बनना चाहिए?" उन्होंने कहा कि आप उदाहरण के लिए रावन को ही ले लीजिये, उसने पूरी ज़िन्दगी आराम से गुजारी और मरने के बाद उसको मोक्ष मिल गया| या दुर्योधन को देखिये, उसने सारे राज्य पर राज किया, सारा जीवन काल संपूर्ण भारत पर राज्य करता रहा और जब वो मरा तो युधिष्ठिर से पहले वो स्वर्ग में गया; इसलिए अच्छा बनने कि क्या ज़रूरत है? आप क्यों कहते हैं कि हमें नेक बनना चाहिए?"
किसी भी इतिहासविद या दार्शनिक के सामने ये एक बहुत बड़ा चुनौती पूर्ण प्रश्न है कि किसी को भी नेक क्यों होना चाहिए?
मैं ने उस से कहा कि दुर्योधन और रावण को भूल जाओ, अपनी बात बताओ; क्या तुमने कभी कुछ गलत काम किया है? उसने कहा कि हाँ, किया है|
"तो जब भी तुमने कोई गलत कार्य किया तब क्या तुम शांति से सो पाए या तुम खाना ठीक से खा पाए?"
"गुरूजी , मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ, जब भी मैं कोई गलत काम करता हूँ तब सो नहीं पाता, मैं शराब पीता हूँ और तब उसकी बेहोशी में ही खो जाता हूँ|"
"देखो, ये होता है तब; जब तुम कुछ गलत काम करते हो, तुम चैन कि नींद नहीं सो पाते, तुम उन चीजों का आनंद नहीं उठा पाते जो ज़िन्दगी ने तुम्हे दी हैं| इसलिए अच्छे होने का ईनाम कभी भविष्य में नहीं मिलता, वो अभी ही मिल जाता है| "
लोगो की सामान्यतः ये प्रवृत्ति होती है कि हमें अच्छे कार्यो के लिए कौन पहचानेगा? और ऐसी परिस्तिथियों में मुझे लगता है कि इस तरह के पुरस्कार जैसे सीताराम जिंदल संस्था ने प्रारंभ किये हैं, लोगो में सही पथ पर चलने का आत्मबल पैदा करते हैं और उन्हें ये विश्वास दिलाते हैं कि हाँ, तुम तुम्हारे अच्छे कार्यो के लिए पहचाने जाओगे|
धर्म या न्याय के रास्ते पर चलने में एक ऐसा संतोष मिलता है जो कुछ और तुम्हे नहीं दे सकता| एक सुकून, एक शांति तुम्हे अपने मन में महसूस होगी, वो शांति उस नींद, उस भोजन में महसूस होगी, जब जीवन में ईमानदारी होती है तभी हम ज़िन्दगी कि साधारण बातों में भी ख़ुशी महसूस कर सकते हैं|
जानते हो, भ्रष्टाचार तब शुरू होता है जब अपनत्व कि भावना समाप्त हो जाती है| आजतक किसी ने भी अपने किसी के साथ कुछ गलत या भ्रष्ट कार्य नहीं किया, जहाँ भ्रष्टाचार शुरू होता है वहां ही अपनत्व कि भावना समाप्त हो जाती है... और आध्यामिकता एक कोने में बैठ कर कुछ ज्ञान-ध्यान कि प्रक्रिया नहीं है, ये अपनेपन के भाव को फैलाती है| ये महसूस करना कि सब मेरा ही एक हिस्सा हैं और मैं सबका एक हिस्सा हूँ, ये है आध्यामिकता| और यहाँ हमारे पास अन्ना हजारे जी, संतोष हेगड़े जी, धर्मस्थल के वीरेन्द्र हेगड़े जी और हमारे सबके प्यारे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जैसे प्रेरणादायक व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से ऐसी मिसाल सबके सामने रखी है की आज इस संस्था को भी इन्हें सम्मानित करने में गर्व महसूस हो रहा है. मुझे आज ये सब का हिस्सा बनने में बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है| ये सब सितारे हैं, एक धागे में पिरोया हुआ ये एक ऐसा तारामंडल है जो युवा वर्ग को प्रेरित करता है और आने वाले बहुत समय तक ये एक मार्गदर्शक के रूप में सबको रास्ता दिखायेंगे|
यहाँ और भी लोग हैं जैसे तरुण तेजपाल जी और १५ अन्य महान हस्तियाँ| इन्होने ये सब महान काम किसी को खुश करने या कोई ईनाम पाने के लिए नहीं किये, ये इन्होने इसलिए किये क्योंकि ऐसा करने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था, ये इनकी प्रकृति में है, ये इनके DNA में है और ये सब वास्तविक है| किसी भी कार्य या सेवा की सत्यता ये है की वो तुम्हारी प्रकृति है, तुम उसके अलावा से हटकर कार्य करगे ही नहीं| और ये हर इंसान के अन्दर है, ये भाव सब में है| हर मनुष्य में सेवा का एक तत्व मौजूद है| सेवा का भाव तो सब में है बस वो कहीं खो सा गया है| हमें उसको ही बाहर निकलना है उसको उभारना है, इस तरह के पुरस्कार इस भाव को उभरने में मदद करते हैं| इंसानियत और सरलता हमारे अन्दर उभरती है क्योंकि सब एक दूसरे का अनुसरण करते हैं, उनकी अच्छाइयों से सीखते हैं| बहुत से नियम और कायदे होते हैं, उसूल होते हैं, लेकिन लोग उनका पालन नहीं करते, अनुसरण नहीं करते, वो अनुसरण करते हैं तो लोगो का और ऐसे माननीय और अच्छे लोग यहाँ एकत्रित हुए हैं की इनका सम्मान करना स्वयं में एक सम्मान है| यहाँ बहुत सोहार्दपूर्ण माहौल है|
आज के युवा वर्ग को यहाँ उपस्थित ऐसे महान लोगो से सबक लेना चाहिए, हमारे युवाओ को, हमारें देश को इन महान हस्तियों के पथ का अनुसरण करना चाहिए जोकि इस देश के लिए एक उम्मीद की किरण हैं| सीताराम जी का इन सब लोगो को एक मंच पर लाने का प्रयत्न सराहनीय है| जिंदल लोग इस बात के लिए जानते जाते हैं, आप लोग केवल शरीर का ईलाज ही नहीं करते आत्मा को भी स्वस्थ बनाते हैं|
इन चंद शब्दों के साथ ही मैं इस संस्था को बधाई देता हूँ और धन्यवाद देता हूँ उन सबको जिन्होंने ये पुरस्कार ग्रहण करने को सम्मति दी और यहाँ आये| ईश्वर आप सब का भला करे!

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