जो प्रयास करते हैं, उन्हें भगवान का आशीर्वाद भी मिल जाता हैं!!!

अप्रैल २०१२, सिंगापुर

जब आप मोमबत्ती को उल्टा करते हैं, उसकी लौ तब भी ऊपर की ओर ही जलती है| ऐसे ही, जीवन में कई घटनाएं आपको उत्साहीन कर देंगी, उस समय आपको याद रखना होगा कि मैं मोमबत्ती की तरह हूँ और मैं इन से उभर जाऊँगा’| ऐसा कुछ भी नहीं जो मुझ को उत्साहीन कर सकता है' इस तरह से आगे बढतें जाये|

प्राण शक्ति हमेशा बढ़नी  चाहिए| हिंदू और बौद्ध परंपरा में, जब भी कोई भेंट करने आये, तो उनकी आरती की  जाती है| एक दीपक जलाया जाता है और उनके चारों ओर घुमाया जाता है जिसका अर्थ है :आप इस लौ की तरह बने  और जीवन में आगे बढ़े, देवत्व और ज्ञान के साथ रहे|’ उसके बाद उनके माथे पर एक छोटा कुमकुम (सिंदूर) का टिका लगाते हैं, जिसका अर्थ है; 'आप ज्ञान में रमे रहें|'
सबसे अच्छा उपहार ज्ञान है| अन्य वस्तुएं आती जाती रहेंगी|

प्रश्न : जीवन के कुछ ३० साल बाकी हैं और लगता है कि यह भी एक सपने कि तरह बहुत जल्दी बीत जायेंगे| जब तक हम यहाँ हैं, जिंदगी का कोई उद्देश्य होना आवश्यक है| मुझे कुछ ऐसा करना है जिससे में परिपूर्णता अनुभव करूं| मुझे अब तक उस उद्देश्य की  तलाश है, अब तक खोज रहा हूँ|
श्री श्री रविशंकर:  बिल्कुल! आपको वह मिल जाएगा| अभी आपने जब ध्यान किया, क्या आपको मन की शांति मिली? यह आवश्यक है| उस आंतरिक स्थिरता, शांति में स्वयं को स्थापित करने की आवश्यकता है और अपने आसपास के लोगों के लिए जो भी सेवा कर सकें, वह करें| किसी भी सेवा गतिविधि में भाग लें|

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, कृपया २०१२ के बारे में बताएं| नई पृथ्वी में प्रवेश के लिये किन गुणों की  आवश्यकता है?
श्री श्री रविशंकर :  पृथ्वी वास्तविकता में नहीं, केवल अमेरिकी सिनेमा में गायब होगी| आपको बस यह जानना आवश्यक है कि यह एक नया युग है, जिसमें लोग अधिक आध्यात्मिक, अधिक मानवीय हो जायेंगे| लालच, ईर्ष्या, अपराध, सभी कम हो जायेंगे| लोग आध्यात्मिक बन जायेंगे, एक दूसरे की देखभाल करेंगे| यह होने वाला है|
चीनी कैलेंडर में, यह ड्रैगन का वर्ष है और इसे बहुत शुभ माना जाता है| हिंदू कैलेंडर में यह नंदा का वर्ष है जिसका अर्थ हैआनंद”| यह एक बहुत अच्छा साल होगा| और आपको इसमें प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं होगी, आप पहले से ही यहाँ है|

प्रश्न : हम कर्तव्यों और अपेक्षाओं के बीच के अंतर को कैसे समझें?
श्री श्री रविशंकर
: कर्तव्य वह है जब आपका दिल कहता है यह मुझे करना हैं, अपेक्षा वह है जब दुसरे आप से कुछ करवाना चाहते हैं| दोनों के बीच एक संतुलन बना के चलिए| कभी कभी आप दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं, लेकिन अपने कर्तव्य की  ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता भी है|

प्रश्न : खुद को शांत करने के लिये, और आप से सम्पर्क बनाने हेतु मैं हर दिन चालीस मिनट के लिए प्राणायाम एंव क्रिया का अभ्यास करता हूँ| मुझे इससे अधिक शांत रहने के लिये और क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : चार से छह महीने में एक बार, एडवांस कोर्स करना अच्छा है| एक साल में कम से कम दो बार मौन में जायें| जैसे आप अपनी गाडी (वाहन) का रख-रखाव करते हैं, वैसे ही, अपने शरीर, मन और आत्मा के रख-रखाव के लिये मौन, ध्यान एवं योगासन के तीन दिनों से आप ताजा और खुश हो जाते हैं|

प्रश्न : क्या मानसिक रूप से  ग्रस्त लोग सुदर्शन क्रिया अथवा साइलेंस कोर्स कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं उन्हेंसाइलेंस कोर्स में भाग लेने की  सलाह नहीं देता, लेकिन वे बेसिक कोर्स में बिना सुदर्शन क्रिया के, भाग ले सकते हैं| सरल ध्यान, प्राणायाम और कुछ योग उनके लिए बहुत अच्छा है| उन्हें श्री श्री योग  करना चाहिए|

प्रश्न : यदि हमे अपने व्यवसाय या जीवन में कुछ प्राप्त करने की इच्छा हो, तो क्या हमें क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : प्रयास करे और आशीर्वाद मांगे|
आशीर्वाद से आप बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं| दोनों आवश्यक हैं, आशीर्वाद और प्रयास| जो प्रयास करते हैं, उन्हें भगवान का आशीर्वाद भी मिल जाता है| इस तरह समझें, धूप है, लेकिन आपकी खिड़की खुली होनी चाहिए| यदि आप सूर्य की  रोशनी अपने घर में चाहते हैं, तो आप को पर्दे खोलने की आवश्यकता है| लेकिन यदि आप रात को पर्दा खोल कर धूप की  प्रतीक्षा करेंगे तो यह नहीं होगा| आप को सुबह की प्रतीक्षा करनी होगी|

प्रश्न : जब आपको सभी व्यापारों में असफलता मिल रही हो और फिर भी दुनिया को दिखाने के लिए कि आपने नकली मुस्कान बनाएँ रखी हो, तब क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : यह कभी न सोचें कि आप सभी व्यापारों में असफल हैं| आप मूल रूप से असफल इसलिए हुए क्योंकि अपकि विचार प्रक्रिया विफल थी| विचार प्रक्रिया, महत्वाकांक्षा एंव उत्तेजना की वजह से विफल होती है| यदि आप बहुत उत्तेजित या बहुत महत्वाकांक्षी हैं तो आपके मन में उचित विचार नही आते| नकारात्मकता भी ज्ञान युक्त विचार मन में नहीं आने देती| तो जब आप ध्यान करते हैं, आपके विचार सकारात्मक और अधिक सहज ज्ञान युक्त हो जाते हैं| संस्कृत में एक कहावत है कि सफलता, अंदरूनी सत्व और सामंजस्य की वजह से आती है, सुविधाओं या हथियारों की वजह से नहीं| कम से कम अपनी मुस्कान नहीं खोनी चाहिए| अपनी मुस्कान खोने से आप दोगुना विफल हो जाते हैं| विफलता मिली, कोई बात नहीं, कम से कम मुस्कान, जो अपका स्वभाव है, वह तो नहीं खोयी|

प्रश्न : मेरे जैसे बीस और तीस की उम्र के बीच युवाओं के लिए, हम अपने कार्य एंव भौतिक
लक्ष्य प्राप्त करते हुए, आध्यात्मिकता को व्यवहार में कैसे ला सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : यह एक दुसरे के विपरीत नहीं हैं| ऐसा न सोचें कि यह एक दूसरे के विरोधी हैं| आप नैतिकता से व्यापार कर सकते हैं| आप अपने कार्यस्थल में ईमानदारी  से कार्य कर सकते हैं| बुद्धि और कौशल के साथ, आप अपने जीवन में आगे बढ़ते जाएँ|
जब एशियाई महाद्वीप आध्यात्मिकता के शिखर पर था, यह बहुत अधिक समृद्ध भी था| १२०० ई., में भारत, श्रीलंका, सिंगापुर, इत्यादि दुनिया की  एक तिहाई सकल घरेलू उत्पाद के लिए जिम्मेदार थे| उस समय आध्यात्मिकता अपने चरम पर थी| लगभग दो सौ साल पहले भारत और मैकाले से कई यात्रियों ने लिखा है, 'मैंने भारत और एशिया की लंबाई और चौड़ाई में यात्रा करी, मैंने एक भी भिखारी नहीं देखा है, एक गरीब आदमी या एक बीमार व्यक्ति नही देखा| तो जब आध्यात्मिकता अपने चरम पर थी, लोगों भी अच्छे से जी रहे थे|

प्रश्न : चेतना और प्राण के बीच क्या सम्बन्ध है?
श्री श्री रविशंकर : वे शरीर और मन की तरह जुड़े हुए हैं| वे अलग हैं फिर भी वे जुड़े हुए हैं| शरीर, मन, प्राण, सांस और चेतना को पाँच अलग अलग परतों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है|

प्रश्न : आत्म राम, जहां हमारी चेतना स्थापित हैं, उसका क्या महत्व है?
श्री श्री रविशंकर : आप में से कितने लोगों को 'राम' शब्द का अर्थ पता है? अंग्रेजी शब्द रेज़' (किरण), रश्मि 'नामक एक संस्कृत शब्द से आता है| '' प्रकाश (रोशनी), ''  मुझमेंराम का अर्थ है मुझ में रोशनी’| दशरथ का अर्थ है दस रथ या दस इन्द्रियां ५ इन्द्रियां धारणा  के लिये और ५ अंग कार्य के लिये| तो आपका शरीर पांच इंद्रियों और धारणा के पांच अंगों का एक रथ है| कौशल्या का मतलब कुशल होना है| दस रथ के शरीर (आंख, कान, नाक, आदि) को कुशलता के साथ, इंद्रियों से परे, स्वयं में लाया गया, वह स्वयं ही राम है| तो, रामायण आपके शरीर में हर दिन चल रही है| आज रामनवमी (राम का जन्मदिन है)

प्रश्न : एक बच्ची, जिसे युवाकाल में उसके माता पिता ने उसेक साथ गलत व्यवहार किया हो, वह उन्हें कैसे क्षमा करे? ऐसे माता पिता के पास क्या नैतिक अधिकार है?
श्री श्री रविशंकर : अगर उन्होंने कुछ गलती करी है, वह इसलिए कि उन्हें उस से बेहतर शिक्षा नहीं मिली था| उन्हें अपने मन, भावनाओं एंव शरीर का प्रबंधन करने का ज्ञान नहीं मिला था| यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे उसी तरह जीवन जीते गए| उन्हें इसलिए माफ कर दे ताकि आप स्वयं शांत रह सके| यदि उनको आध्यात्मिक पथ या ज्ञान में रहने का मौका मिला होता तो उन्होंने ऐसा व्यहवार नहीं करना था| उन्होंने ऐसा अज्ञानता के कारण किया| ये जानने के बाद, आप बस उन्हें क्षमा कर दे ताकि आपके मन में शांति रहे| वरना अगर आपके मन में हर समय किसी के खिलाफ शिकायत रही, तो वहाँ विषाक्त पदार्थों उत्पन होंगे| यदि आप नकारात्मक महसूस करते रहेंगे, तो इन विषाक्त पदार्थों की
वृद्धि होगी| यह विषाक्त पदार्थों कैंसर सहित कई बीमारियों का कारण हैं| तो, हमे हमारे मन को इन से मुक्त रखना चाहिए और इस लिये हमे सबको माफ कर देना चाहिए ताकि हम शांति से रह सकें|

प्रश्न : जीवन में कठिन चुनौतियों के बावजूद, हम कैसे मुस्कुराते हुए रह सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : जब आप को ऐसा व्यतीत हो, वह मुझे दे दें| मैं आपके साथ हूँ|
जब भी आप के सामने कोई चुनौती आये, मुझे याद करें| मुझे अपनी चुनौतियां दे दें, और स्मृति में रखें कि आप अकेले नहीं हैं| मैं आप को आश्वासन देता हूँ कि आप उन कठिनाइयों से उभर जायंगे| यदि आप अपने आप को अकेला महसूस करेंगे तो यह मुश्किल है|
जब सब कुछ ठीक है, तब हर कोई मुस्कुराता है| असली उपलब्धि तब है जब चीजें गलत होंने के बावजूद आप अपनी मुस्कान बनाये रखें| जब सब कुछ बिखर गया हो, और आप तब भी मुस्कुरा रहे हों, तो आप आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य हैं| अच्छी तरह से ज्ञान में रमे हुए हैं|

प्रश्न : मैं  आपको तत्त्वरूप में कैसे जान सकता हूँ? मैं  आपके साथ २४ X  कैसे रहूँ, कैसे अनुभव करूँ, कैसे प्रेम करूँ? मैं  यह मौका गवाना नहीं चाहता|  
श्री श्री रविशंकर : बस विश्राम करें! प्रेम कोई क्रिया नहीं|  किसी से प्रेम करने की चेष्टा मत करें|  बस विश्राम करें और जान ले की प्रेम है|

प्रश्न : स्मोकिंग, मद्यपान जैसी हानिकारक आदतों की ओर हम क्यों आकर्षित होते है या उसके आधीन क्यों होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : क्योंकि आपको लगता है उससे आपको कोई ख़ुशी मिल सकती है, तभी आप उसके आधीन हो जाते हो| ध्यान, व्यसन मुक्ति में काफी मदद कर सकता है|  
प्रश्न : क्या हम मानवी सभ्यता के आखरी  चरण में जी रहे हैं?
श्री श्री रविशंकर : बिलकुल नहीं! जैसा मैं ने कहा है, यह सिर्फ फिल्मों मे होता हैं|  

प्रश्न : माफ़ करने का और भूल जाने का सबसे बेहतर तरीका कौन सा है?
श्री श्री रविशंकर : मुझे दे दीजिये! छोड़ दीजिये|  
अगर आप किसी को माफ़ नहीं कर सकते हो या फिर कोई चीज आपको सता रही हो, तो वह सब लेने के लिए मैं यहाँ हूँ| गुरु आपकी सभी समस्याएँ और चुनौतियाँ लेने के लिए हैं|  बस सब यहाँ छोड़ दीजिये|  

प्रश्न : कृपया जीवन की उत्पत्ति के बारे में बताए|  
श्री श्री रविशंकर : जब हम रेखाकार सोचते है तब यह सोचते है कि कही पर कुछ शुरू होगा और कही उसका अंत होता|  लेकिन हमको गोलाकार सोचना होगा|  क्या आप मुझे बता सकते हो कि टेनिस बॉल की शुरुआत कहा है और उसका अंत कहा? आप इस विश्व की शुरुआत क्यों जानना चाहते हैं? यह गणित गलत है|  दो तरह की सोच होती है, एक रेखाकार और एक गोलाकार|  
विश्व की कोई शुरुआत नहीं, ना ही उसका कोई अंत है, यह गोलाकार सोच है और यह वैदिक कल्पना है| वैदिकों का  यह मानना है की तीन चीजे शाश्वत है : विश्व, दिव्यता और जीवन|  इनकी कोई शुरुआत नहीं और कोई अंत नहीं, इनके आवर्तन होते है| विश्व के बारे मे यह सबसे दिलचस्प और वैज्ञानिक समझ है|
  
प्रश्न : आध्यात्म मार्ग पर चलने के लिए मुझे आपके आशीर्वाद की जरूरत है|  
श्री श्री रविशंकर : आशीर्वाद देने में मैं कंजूस नहीं हूँ, मैं काफी उदार हूँ|  
आप सभी को आशीर्वाद है| मैं आपसे कहूँगा की हर साल कम से कम चार, पाँच दिन निकालकर  यहाँ आइये, हम यहाँ बैठकर, गहन ध्यान अवस्था में जायेंगे| एडवांस प्रोग्राम कीजिये| आपको अच्छा लगेगा और आप वह एन्जॉय करेंगे| आपको कैलेंडर में हर साल आपके आध्यात्मिक विकास के लिए पाँच दिन निकालने चाहिए| तभी, आज हमने यहाँ जो बात सीखी है वह दृढ़ हो जाएगी और आपके साथ रहेगी|  

प्रश्न : मिड लाइफ क्रायसिस| उम्र के पचास साल बाद के जीवन में फिर से रस कैसे पाया जाये?
श्री श्री रविशंकर : बस मेरी तरफ देखो|  मुझे आपकी जरूरत है, मेरे साथ आइये|  हम दुनिया भर जायेंगे और काफी काम करेंगे| मुझे कई हाथों की जरूरत है| अगर आप पचास के ऊपर हो और आपने जीवन में सब कुछ कर लिया है, बच्चों को बसाया है, तब आप आ जाईये| अगर आप सेटल न भी हो तब भी एक या दो महीने निकाले और सफ़र करे| हमें और शिक्षकों की जरूरत है| आप जाकर दूसरों को बता सकते हैं कि कैसे केन्द्रित होना है, शांत कैसे होना है| जो भी थोड़ा बहुत ज्ञान आपने पाया है, उसे दूसरों को दे दीजिए| यहाँ इतना कुछ सीखने के लिए है और आप और भी गहराई में उतर सकते हो| हाँ! मैं कहता हूँ, यहाँ काफी चमत्कार होंगे ,आर्ट ऑफ़ लिविंग में उसकी कोई कमी नहीं है|  

प्रश्न : जब जीवन उबानेवाला और नीरस लगे तब हमें क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : व्यस्त रहे| यहाँ पर आर्ट ऑफ़ लिविंग सेंटर है और आप हमेशा वहाँ जाकर  कुछ देर बैठ सकते हैं| उस जगह को हम ध्यान से उर्जित कर देंगे ताकि कोई भी वहाँ जाकर  कुछ देर जब बैठ जाएँ, खुद को ऊँचा उठा हुआ महसूस करें|  

प्रश्न : गुरूजी, माफ़ कैसे करें? कृपया बताये|
श्री श्री रविशंकर : जब आप किसी अपराधी से मिलते हैं, तब आप उसे एक व्यापक दृष्टिकोण से देखना चाहिए|  वह अपराधी इसलिए है क्योंकि वह खुद एक पीड़ीत है| उन्हें ज्ञान नहीं हैं, वह अज्ञानी है और उनके दिल पर घाव तथा दुःख है| वह खुद एक पीड़ीत है इसलिए दुसरों पर दुःख थोपते हैं|  उन्हें ज्ञान पाने का  मौका कभी नहीं मिला|  इसलिए उनके प्रति मन में करुणा भाव रखे|  हर एक अपराधी के अन्दर झाँक कर देखेंगे तब एक मदद मांगता हुआ पीड़ीत व्यक्ति ही  मिलेगा और तब आप उसे माफ़ कर सकेंगे|  इस के लिए आप किसी जेल में जरूर जायें|  वहाँ  जाकर अपराधियों से मिलिए, आपको उनके प्रति करुणा का एहसास जरूर होगा|  उनसे हुए सभी पापों के लिए आप उन्हें माफ़ करेंगे|  बेचारों को मार्गदर्शन देने के लिए कोई नहीं मिलता|  उन्हें कोई मार्गदर्शन नहीं, प्यार नहीं और इसीलिए वह यह सब गलतियाँ कर बैठते हैं|

प्रश्न : क्या सही, क्या गलत है, हमें पता होता है| पर उसका हमेशा आचरण करना मुश्किल होता है| 
श्री श्री रविशंकर : अगर हमेशा नहीं कर सकते हो तो कभी कभी तो किया करो| 

प्रश्न : (श्रोतागण से पुछा गया प्रश्न सुनाई नहीं दिया)
श्री श्री रविशंकर : हम अलग नहीं| मैं आपका हिस्सा हूँ, आप मेरा हिस्सा है| जब आपको यह एहसास होता है कि सब एक है और सब जुड़े हुए है तब पराधीनता जैसी कोई बात नहीं होती|  मैं यह तो नहीं कह सकता कि अपने बाये हाथ  की मदद करने के लिए मैं अपने दाए हाथ पर निर्भर हूँ|

प्रश्न : (श्रोतागण से पुछा गया प्रश्न सुनाई नहीं दिया)
श्री श्री रविशंकर : आप जिसे तर्कहीन कहते हो वह ऐसी चीज है जिसे आप समझ नहीं पाते  हैं  या फिर जिसका तर्क नहीं कर सकते हो|  तर्क की  सीमा होती है|  असीमित तर्क जैसी कोई चीज नहीं|  तर्क माने आप कुछ जानते हो और उस जानकारी का उपयोग करके और कुछ जानना चाहते हैं|  उसकी अपनी जगह है| जब आप टेलीविजन देखते हैं तब आपके कान महत्व रखते हैं  पर आपकी आँखे भी महत्वपूर्ण होती है, उनका  अलग आयाम रहता है| 
तर्कसंगत तर्क वास्तव में आपके मस्तिष्क का है और वह बहुत महत्व रखता है| पूर्व के देशों  में यह कभी कहा नहीं गया कि तर्क बुरी बात है, पर हमने यह कहा कि तर्क ही सब कुछ नहीं , वह उसका एक हिस्सा है| दूसरा हिस्सा है, भावना, अनुभूति, उत्तेजना| यह भी उसका एक हिस्सा है|  दोनों जरूरी है और दोनों को साथ लेकर आपको चलना है| जब आप संगीत सुनते हैं तब उसे तर्क से नहीं सुना जाता| एक ही लाइन दस बार क्यों दोहराई जा रही है यह आप नहीं पूछ सकते|  उस वक्त आप बस उसके साथ बह जाते हैं|  जब आप अपना बही खता लेकर बैठ जाते हैं और एक ही बिल पाँच बार आता  है तब आप पूँछ सकते हैं कि यह बिल पाँच बार क्यों आया पर संगीत में नहीं| 
तो जीवन एक जटिल चीज है, वह सीधा गणित नहीं है| जीवन में कभी कभी तर्क के पार भी जाना पड़ता है और कई बार कई चुनौतिया ऐसी आयेंगी कि वह सहज रूप से होगी| सहज होना ही जीवन का सूत्र है|

प्रश्न : एक बार आपने कहा कि हम सब निरर्थक, धूलिकण समान है| और एक बार आपने कहा कि जीवन में पीछे मुड़कर देखो कि आपने हर चुनौती कैसे पार कर दी; जान ले कि एक मार्गदर्शक हाथ सदा साथ रहा है|  प्रश्न यह है कि अगर हम निरर्थक है तो सबसे पहले यह मार्गदर्शक हाथ क्यों है और अगर है, तो क्या यह कहना उचित है कि हम निरर्थक है?
श्री श्री रविशंकर : जब तक आप यह नहीं जानते हैं कि एक मार्गदर्शक हाथ सदा के लिए है, आप बिलकुल निरर्थक है| मगर एक बार आपने जान लिया कि कोई मार्गदर्शक हाथ है और आप उसका हिस्सा है, आप महत्वपूर्ण बन जाते हो| कोयला और हीरा एक ही सामग्री से बने हैं| कोयला खुद निरर्थक है पर वह जब हीरा बन जाता है वह बहुत ही महत्व रखता है| सत्य सदा विरोधाभासी होता है|

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