यदि आप शांत है तो आपके साथ सभी लोग भी शांत रहेंगे!!!

०६.०४.२०१२, इंडोनेशिया, बाली दिवस

संतोष और खुशी बहुत महत्वपूर्ण हैं| अन्य बातों का आना जाना लगा रहेगा|
हम इस ग्रह पर कई बार आए हैं, और दोबारा आएंगे| जीवन निरंतर बह रहा है, यह रहा है और जा रहा है|

प्रश्न : मैं अपनी प्राण शक्ति को कैसे हर समय उच्च स्तर पर बनाये रखूं?
श्री श्रीरवि शंकर : जब भी आप परेशान हो, बस यह याद रखो की यह छोटी छोटी बातें हैं और यह, कि सब कुछ ठीक हो जाएगा| तो जब आप देखेंगे कि यह सब तो आता जाता है, और सब कुछ ठीक हो जाएगा, तो आप कहते हैं, 'मैं इस से परेशान नहीं हूँ| मैं इस सब से बड़ा हूँ|' हाँ! बस मन में यह विचार रखें कि मैं इस से बड़ा हूँ, इससे प्राणशक्ति में सुधार आ जायेगा| मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर में हर क्षण कई परिवर्तन हो रहे हैं| कभी मैं थक जाता हूँ और कभी हष्टपुष्ट महसूस करता हूँ| मैं शरीर से अधिक विशाल हूँ| लोगों को लगता है कि मन, शरीर के अंदर है, यह गलत है, शरीर, मन के अंदर है|
मन एक मोमबत्ती की तरह है, वहाँ एक बाती है और ऊपर एक लौ है| यदि आप एक ढक्कन के साथ मोमबत्ती को लंबे समय के लिये ढक दें, वह केवल उतनी देर तक जलेगी जब तक उस ढके हुए स्थान में ऑक्सीजन है| उसी तरह, यदि आप एक कक्ष में किसी को बंद कर दें, वे केवल तब तक जीवित रहेंगे जबतक उस कक्ष में ऑक्सीजन है| तो मन एक लौ है जो ऑक्सीजन से जीवित है, चेतना से| तो पहले शरीर है और फिर मन है, मन बहुत बड़ा है| जब आप यह याद रखेंगे कि मन एक लौ की तरह है, यह बहुत बड़ा है, तब आप शांति महसूस करेंगे| यदि इसके उपरांत भी आप को कुछ परेशान कर रहा है, तो आप साँस लें (सुदर्शन क्रिया करे) तेज साँस लेने और भस्त्रिका प्राणायाम  करने से, सब बेहतर हो जाता है|

प्रश्न : गुरुजी, रिश्ते हमारी स्वतंत्रता क्यों ले लेते हैं?
श्री श्री रविशंकर : यदि रिश्ते ज्ञान पर आधारित हों तो स्वतंत्रता में कोई अंतर नहीं आता| जहां ज्ञान नहीं है, वहाँ कोई स्वतंत्रता नहीं है| रिश्ते आपकी स्वतंत्रता न लेते हैं और न देते हैं, ज्ञान की कमी है जो अंतर पैदा करती है|

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मेरा कर्तव्य क्या है?
श्री श्री रविशंकर : अपने दिल की सुनिए| आप का दिल आपको आपका कर्तव्य बता देगा|

प्रश्न : जय गुरुदेव, क्या हमारे जीवन में बुरी चीज़ें भी कृपा ही हैं?
श्री श्री रविशंकर : यदि आप एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से देखें, तो आपको यह व्यतीत होगा कि जो घटनाएँ दर्दनाक थी, उन्होंने आपको गहराई दी, आपको अधिक परिपक्व बनाया| दर्दनाक घटनाएँ गहराई और परिपक्वता देती हैं| जब भी आप दुखी हों, आप को आत्मसमर्पण करना चाहिए| आमतौर पर, आप गुस्से में कहते हैं बस! बहुत हुआ| मैं हार गया|” तो आप में यह शक्ति होनी चाहिए कि जब आप दुखी हों तब चीजों को मन से छोड़ दें, और जब आप खुश हों तब सेवा करें| दुख में त्याग और सुख में सेवा|

प्रश्न : गुरुजी, मैं एक बड़े पैमाने पर दुनिया के लिये कुछ करना चाहता हूँ| मैं यह करने का रास्ता कैसे खोजूं?
श्री श्री रविशंकर : मुझे आप जैसे लोगों की आवश्यकता है जो दुनिया में एक बड़ा अंतर लाना चाहते हैं| आप आईये और मैं आप को अलग अलग जगहों पर भेजूंगा जहाँ आप बहुत कुछ कर पायेंगे| आपके पास एक बना बनाया मंच है| आपको इसे शुरुआत से बनाने की  आवश्यकता नहीं है जिसमे तीस साल लग जायेंगे| आपके पास एक बना बनाया मंच है, इसे यहाँ से दूसरे स्तर तक लेकर जाइए| देखिये, ‘मैं कुछ करना चाहता हूँ, एक बात है, लेकिन, हमे वह करना है जिसकी दुनिया में जरूरत हैमैं एक अंतर लाना चाहता हूँ और हमे दुनिया में एक अंतर लाने की जरूरत है, में बहुत अंतर है| दुनिया में जिस की जरूरत है, हमें वह करना है| हम में यह भावना होनी चाहिए |
     
प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मुझे डर बहुत परेशान करता है, मैं क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर : जब मैं हूँ, तो डर क्यों! आप मेरे हो और मैं आपका| आपको केवल तभी डर लगता है जब आपको लगता है कि आप अकेले हैं और आपका कोई भी नहीं है|
अकेलेपन में डर महसूस होता है, जब आपको लगता है कि आप का किसी से सम्बन्ध नहीं है| भय, उल्टा खड़ा हुआ प्रेम है| कोई बात नहीं, बस कुछ उज्जायी सांसे लो और सत्संग में भाग लो, यह बदल जाएगा|

प्रश्न : गुरुजी, मुझे लगता है कि मुझे यौन-क्रिया की लत लगी हुई है| जब बात यौन-क्रिया की हो, तब मुझ से नियंत्रण नहीं होता| मैंने बहुत कोशिश करी, लेकिन मुझ से बिलकुल नियंत्रित नहीं होता|
श्री श्री रविशंकर : मुझे लगता है कि आप के पास बहुत व्यर्थ समय है| यदि आप व्यस्त रहें और मेहनत करते हों, तो आप इतना थक जाते हैं कि आप तकिये पर सिर रखने का इंतज़ार करते हैं और आप लेटते ही सो जाते हैं| यदि आपके पास बहुत व्यर्थ समय हो या फिर आप बहुत ज्यादा खा रहें हो, तो जुनून और व्यसन आते हैं| यह हमेशा बहुत ज़्यादा खाना और बहुत ज्यादा काम भावना से संबंधित होते हैं|

प्रश्न : आध्यात्मिक पथ के लिये, क्या शादी, और बच्चे होना बुरा है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, आप शादी कर सकते हो और बच्चे भी|
यही कारण है कि मैंने श्री श्री मैट्रीमोनी विभाग शुरू किया है, ताकि सभी
लड़के / लड़कियां जिन्होंने शादी नहीं करी, वे अपने नाम डाल दें फिर एक दिन हम उनका स्वयंवर करवाएंगे| उसमे आप उसे चुन सकते हैं जिससे आप शादी करना चाहते हैं| यह विभाग पहले से ही है, सिर्फ इसे विकसित करे जाने की जरूरत है| किसी को थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता है, कोई जो जोड़ियाँ बनाने में निपुण हो|

प्रश्न : गुरुजी, इन सभी वर्षों के बाद, मैं अभी भी संघर्ष कर रहा हूँ, क्यों? आपको बहुत प्यार करता हूँ गुरुजी!
श्री श्री रविशंकर : तुम मुझे प्यार करते हो और फिर तुम संघर्ष कर रहे हो| किस के लिए संघर्ष?
आप पैसे के लिए संघर्ष कर रहे हैं
, तो बैठ कर सपने मत देखिये, कड़ी मेहनत करिये| यदि एक व्यापार नहीं सफल हुआ, तो कोई और व्यापार कीजिये|
आप केवल दो कारणों के लिये संघर्ष कर सकते हैं
, नौकरी या संबंध (शादी)|
यदि आपकि शादी नहीं हुई, तो आप नुकताचीन है और इसलिए बात आगे नही बढ़  रही| और यदि आप पहले से ही किसी रिश्ते में हो और संघर्ष कर रहे हो, तो ज्ञान सूत्र  में सीखे पाठ जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करो, को जीवन में
उतारने की आवश्यकता है| आप उन्हें स्वीकार करने का प्रयत्न करते हो परन्तु मन नहीं मानता| यह जानिए कि ज्ञान से आप अपने को सक्षम बनाये रख सकते हैं| आप समझ रहे हैं?
तो ऐसा मत सोचिये कि आप के लिये कुछ भी काम नहीं कर रहा| मुझे नहीं लगता कि यह ठीक है| तीसरा मुद्दा स्वास्थ्य हो सकता है| कोई चौथा मुद्दा नही है| और आर्ट ऑफ लिविंग में होने से आपको इन तीनो का प्रबंधन करने के लिए मदद मिलती है| दिन में बैठ कर सपने मत देखिये और केवल किसी चमत्कार होने के बारे में मत सोचते रहिये| चमत्कार होते हैं, लेकिन अगर आप में चमत्कार के लिए लालसा है तो वे रुक जाते हैं| प्रकृति चाहती है कि आप गतिशील बनें| कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने मुझसे कहा गुरूजी, मुझे लौटरी टिकट के नंबर दे दीजिए मैं लोटरी जीतना चाहता हूँ ताकि उसके बाद में केवल साधना और सेवा कर सकूं|” बिलकुल नहीं| सबसे पहले यह निर्णय लीजिये कि आप जीवन से क्या चाहते हैं|
संघर्ष किस चीज़ के लिये? धन के लिये! क्या आप जानते हैं कि पैसा ऐसी वस्तु है कि लोग हमेशा इसकी कमी महसूस करते हैं| उदाहरण के तौर पर, सबसे समृद्ध देश अमरीका को देखिये, वह इस ग्रह का सबसे शक्तिशाली देश है, परन्तु अरबों डालरों के भारी कर्ज में दबा हुआ है| आप बड़ी कंपनियों को देखें, उनमे से बहुत सारी कर्ज में दबी हुई हैं| जो जितना अमीर हो जाता है, उसे उतना ही अधिक खर्चा करना पड़ता है| और दूसरी ओर गरीब लोग हैं जो दान देने में योगदान दे रहे हैं, गरीब लोग सेवा कर रहे हैं, यद अद्भुत है| वे बहुतायत में रह रहे हैं|
एक दिन, भारत में एक सज्जन मेरे पास आये| उनकी एक छोटी से दूकान है एक छोटा सा खोखा अपने लिये, उनको दो ज़मीन के प्लाट विरासत में मिले| तो वे मेरे पास आये और मुझे एक प्लाट देना चाहा, मुझे कहा मैं यह प्लाट आप को देना चाहता हूँ|” वे अपने पूरे परिवार के साथ आये थे, अपनी पत्नी, अपनी माँ के साथ, और कहा कि मेरे पास दो प्लाट हैं, मैं एक आपको देना चाहता हूँ और दूसरा रखना चाहता हूँ|” भूखंड शहर के एक बहुत महंगे स्थान में है और वह इसे से एक बड़ा भाग्य बना सकते हैं| लेकिन उस आदमी के दिल को देखिये| मैंने कहा ठीक है, मैं ले लेता हूँ, पर आप इसे अपने नाम पर रखेंगे और उस पर एक दूकान बनायेंगे| दूसरा प्लाट बेच कर आप उस पैसे से व्यापार करेंगे| मैं उन्हें मना कर के दुःख नहीं पहुंचाना चाहता था तो मैने  कहा कि हाँ यह मेरा है, पर आपके नाम पर रहेगा| आप इस व्यक्ति के उदार मन को देखें| एक और दिन, एक बहुत गरीब महिला आई, उन्हें विरासत में एक सोने कि चेन मिली थी, मैं गाड़ी में जा रहा था और वह भाग कर आयी और मेरे हाथ में एक लिफाफा रख दिया| आमतौर पर लोग मुझे लिफाफे में अपनी समस्याओं के बारे में बताते हैं, तो मैंने जब उस लिफाफे को खोला, उसमे सोने कि चेन को पाया, फिर मैंने कुछ लोगों को सोने की  चेन के साथ भेजा और कहा कि वे उस महिला को कहें कि गुरूजी ने चेन के साथ आशीर्वाद भेजा है| क्या आप जानते हैं कि हमारी रजत जयंती के दौरान कि एक बहुत सुन्दर कहानी है| मैं अंतिम दिन पर सीडियों से निचे उतर रहा था तो एक छोटा लड़का मेरे पास आँखों में आंसूंओं के साथ आया और मुझे एक लिफाफा दिया | मैंने  देखा कि उसमे रु ५००० हैंमैंने उनसे पूंछा कि आप क्या करते हो? उन्होंने मुझे कहा कि वह एक मजदूर है| लिफाफे में अपनी दो महीने की कमाई वह मुझे दे रहे थे| और मुझ से कह रहे थे 'कृपया यह लो|' उन्होंने कहा, 'मैं आपको बता नहीं सकता कि मेरा जीवन कितना बदल गया है| इसे स्वीकार करें|' मैंने उस में से रु १०० ले लिये और बाकी के रु ४९०० लौटा दिए, मैंने उनसे कहा, आप जानते हैं कि यह रु १०० मेरे लिए बहुत कीमती है, यह पर्याप्त है| उनके महीने का वेतन, कोई है जो एक मजदूर है, जो मजदूरी करता है, वह आता है और दान देता है| लोगों में इस तरह का बड़ा दिल है| मैं कह रहा हूँ कि आप भी बहुतायत महसूस करिये| बहुतायत महसूस करने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं है| वास्तव में कई अमीर लोग बहुतायत में नहीं रहते| वे कमी महसूस करते हैं| वे उदार नहीं हैं| लेकिन गरीब लोग बहुत उदार हैं; उनमे यह भाव है, यह कला है| यह कल्पना न करें कि एक दिन आप बहु धनी हो जायेंगे और फिर सेवा करनी शुरू करेंगे, नही, ऐसा नही होता| आप किसी भी क्षण बहुतायत के भाव में रहना शुरू कर सकते हैं, और जिस क्षण भी आप इस भाव में रहना शुरू करेंगे, आप देखेंगे कि चीज़ें बेहतर हो जायेंगी| इसी तरह, एक रिश्ते के बारे में बेताब न रहे, आराम से रहिये और आप देखेंगे कि आपके रिश्ते बेहतर हो जायेंगे| यदि आप एक जोंक की तरह किसी से चिपकते हैं, तो भले ही आप सभी अच्छे शब्द कहें, वह व्यक्ति आप से दूर जले जाते हैं क्योंकि वे यह नहीं संभाल सकते|
एक पहलू है प्यार देना, और दूसरा होता है प्यार को लेना व संभालना| यह केवल एक केंद्रित, प्रबुद्ध व्यक्ति कर सकता है| आप सब से इस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद मत करिये|
आप को अपने आप के साथ आराम से रहना आवश्यक है, यदि आप अपने आप के साथ खुश है, तो हर कोई आप को मिल कर खुश हो जाएगा|

प्रश्न : गुरुजी, मैं पूरी तरह से आप को आत्मसमर्पण करना चाहता हूँ|
श्री श्री रविशंकर : नहीं, यह बिल्कुल नहीं करना| आप क्यों आत्मसमर्पण करना चाहते हैं? आपको आत्मसमर्पण करने की क्या ज़रूरत है? कोई ज़रूरत नहीं है| बस आराम करो!
आत्मसमर्पण करने की  इच्छा आप के लिए और मेरे लिए एक बड़ा काम बन जाती है, एक सिरदर्द! आप को आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं है, बस आराम करिये| आपको क्या आत्मसमर्पण करना है? अपना दिल, दिमाग और आत्मा? यह तो पहले से ही 
मेरे अपने है| सब कुछ तो मेरा है| कोई गा रहा था, 'ओह, तुमने मेरा दिल चुरा लिया|’ जो पहले से ही मेरा है, मैं उसे चोरी क्यों करूं? मैं आपका दिल क्यों चोरी करूँगा? मुझे लगता है कि ग्रह पर सब लोग पहले से ही मेरे हैं, समझे! मुझे चोरी करने की, और आप को आत्मसमर्पण करने की, जरूरत नहीं है| आप पहले से ही मेरे हो| तो बस आराम करो! क्या आप को पता है कि यह शब्द समर्पण तब आपकी मदद करता है जब आप अपने सिर से नकारात्मकता के भार को हटाना चाहते हो| यदि आप में नकारात्मकता या घृणा है तो आपको समर्पण करना होगा| आप को किसी भी अच्छे गुण या अच्छाई का समर्पण करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह पहले से ही मेरे हैं| जो मेरा नही है, वह हैं सब नकारात्मकता, और यदि आप में यह है तो बस इसे छोड़ दीजिए|

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