बुद्धिमत्ता सर्वश्रेष्ठ आघात शोषक है!!!

१०.०४.२०१२, ताइवान
हम सब इस ग्रह पर बच्चों के रूप में आये थे। हम सब मुस्कान, खुशी और अपनापन लेकर आये थे। ऐसा ही है न? पर जैसे जैसे हम बड़े होते गये हम सब ने वह मुस्कान कहीं खो दी, हमने वह मित्रता खो दी और हमने हर एक के लिये वह प्रेम खो दिया।
क्या हुआ? हमें यही पता करने की आवश्यकता है।
क्या हम भीतर से फिर से एक बच्चे की तरह बन सकते हैं? जीवन कैसा होना चाहिये, इस के लिये हम प्राय: नारियल का उदाहरण देते हैं। एक नारियल के चारों ओर छिलका होता है, और जब यह ऊँचाई से गिरता है तो टूटता नहीं। इस पर आघात शोषक या गद्दी जो लगी रहती है। इसलिये, यदि हमारा व्यवहार मित्रतापूर्ण, बुद्धिमत्तापूर्ण होता है, और हम ऐसा जीवन जीते हैं जहाँ हम तनावमुक्त होते हैं, तो यह आघात शोषक का काम करता है। बुद्धिमत्ता सर्वश्रेष्ठ आघात शोषक है।
हमारा तन नारियल के छिलके के समान होना चाहिये; मजबूत, और हमारा मन अंदर की गिरी के समान श्वेत व कोमल। और हमारी भावनायें भीतर के पानी की तरह मीठी। यदि इससे उल्टा हो जाता है तो समस्या खड़ी हो जाती है। यदि तन कोमल और कमज़ोर होता है, मन छिलके के समान कठोर होता है और कोई भावनायें नहीं होती, सब सूख चुकी होती हैं तो जीवन एक बोझ बन जाता है। और यही कारण है कि इतने सारे लोग आत्महत्या कर रहे हैं और लोग अवसादग्रस्त हो रहे हैं। ऐसा ही है न? इसलिये हमें अपने में, समाज में और अपने परिवारों में यह परिवर्तन लाने की आवश्यकता है, जहाँ पर कि हम मूल्यों से जुड़े रहते हैं।
आज शाम को जब मैं प्रैस वालों से बात कर रहा था तो वे बता रहे थे कि ताइवान अपने पारम्परिक मूल्यों को खो रहा है। मैंने कहा कि उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिये। ताइवान का मूल्यों का एक लम्बा इतिहास है और यह मूल्य विकसित व परिरक्षित किये जाने चाहिये। विशेष रूप से पारिवारिक मूल्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा बहुत महत्वपूर्ण है। आप भी ऐसा ही नहीं सोचते क्या?
इन सांस्कृतिक मूल्यों को मज़बूत करने की आवश्यकता है, और साथ ही साथ गतिशील विकास की आवश्यकता है, जोकि ताइवान कर ही रहा है। ताइवान बहुत विकासशील है। और मैं यह भी कहूँगा कि ताइवान में सबसे उत्साही स्वयंसेवक हैं। हमारे सभी अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में, ताइवान से एक समूह होता है, जोकि सारा समय ऊर्जा और उत्साह से भरा रहता है। और जब ताइवान के लोग विश्व में कहीं भी जाते हैं तो वे हमेशा उपहार लेकर जाते हैं। हर एक कोई न कोई उपहार ले जाता है। यह दूसरों के साथ बाँटने की खुशी अति मूल्यवान है और इस संस्कृति के लिये मौलिक है। हमें उन मूल्यों को बनाये रखने की आवश्यकता है जोकि हर संस्कृति में बहुत ही अच्छे और उत्कृष्ट हैं। हम ये सब तभी कर सकते हैं जब हम तनाव मुक्त होते हैं और भीतर से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं।
जब महात्मा बुद्ध भारत में थे, तो उन्होंने चालीस साल तक यात्रायें की। उन्होंने बहुत ही सरल तरीके से कहा कि आइये दर्शन को एक तरफ रखें और एक बात समझ लें, यदि दु:ख है, तो दु:ख से छुटकारा पाने का रास्ता भी है। दु:ख से छुटकारा पाना और भीतर से मुक्त होना सम्भव है।
यह सार्वभौमिक संदेश है, और आज हमें इसी संदेश की आवश्यकता है। हमें ऐसे समाज के निर्माण की आवश्यकता है जोकि तनाव व हिंसा से मुक्त हो, और यहाँ तक पहुँचने का मार्ग है, ध्यान
बहुत बार जब हम ध्यान के लिये बैठते हैं, ध्यान सब तरफ भटकता रहता है। यहीं पर सुदर्शन-क्रिया, जो कि श्वासों की तकनीक है, और योग, दोनों मन को शांत करने और इसे स्थिर करने में सहायता करते हैं। जब आपका मन स्थिर और शांत होता है, और जब आप अपने लिये कुछ भी नहीं चाहते, तो आपको दूसरों को आशीर्वाद देने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। जब आपका मन खोखला और खाली हो जाता है और तब जब कोई कुछ चाहता है और आप उसे आशीर्वाद देते हैं, तो वह पूरा हो जाता है।
हमने एक ब्लैसिंग कोर्स बनाया है; एक बार आप जब इस कोर्स को ४-५ दिन कर लेते हैं तो आप लोगों को आशीर्वाद देना शुरु कर सकते हैं।
मैंने विश्व के एक मुख्य वैज्ञानिक से बात की और जानते हैं इस व्यक्ति ने क्या कहा? उसने कहा, “मैंने पदार्थ का ३० वर्ष तक अध्ययन किया केवल यह जानने के लिये कि यह है ही नहीं।”
वह एक क्वांटम भौतिकशास्त्री है, और वह कहते हैं कि आजकल वह जहाँ भी सम्भाषण देते हैं, लोग पूछते हैं कि वह बौद्ध ज्ञान या कुछ ऐसा ही सिखा रहे हैं क्या?
वह कहते हैं, “आजकल जब मैं सम्भाषण देता हूँ, लोगों को लगता है कि मैं बौद्ध धर्म या फिर वेंदांत के विषय में बात कर रहा हूँ।” वेदांत और बौद्ध मत एक ही विषय में बात करते हैं; दोनों उस आंतरिक चेतना के विषय में बताते हैं, केवल थोड़े से भिन्न तरीके से। बौद्ध मत में खालीपन वेदांत में संपूर्णता है। बस यह ही।
इसलिये पदार्थ व सब कुछ, तरंगें हैं, और ये तरंगे परिवर्तित होती रहती हैं, और यह हमारे जीवन को बदल सकती हैं। यह बदल सकता है या जो भी इच्छा हम करते हैं या जो भी हम अपने लिये चाहते हैं वह हमें दे सकता है। इसलिये जब आपका मन पूर्ण रूप से संपूर्णता के स्थान पर होता है तो आप दूसरों के लिये भी संपूर्णता ला सकते हैं।
इसलिये मैं चाहता हूँ कि आप अपनी सब चिंतायें और समस्यायें यहाँ छोड़ दें। मैं आपकी सब समस्यायें एकत्रित करने आया हूँ। मैं बस आपसे यही चाहता हूँ कि आप खुश रहें।
हर रोज़, १० मिनट के लिये ध्यान करें और खोखले व खाली हो जायें। व्यक्तिगत विकास हर एक के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
देखें कि, जहाँ भी और जैसे भी हम हैं, हम समाज की कुछ सेवा कर पायें। हर एक के साथ अपना जीवन बाँटे। और जब भी आप पर कोई परेशानी या कष्ट आता है तो यह न सोचें कि आप अकेले हैं। आप अकेले नहीं हैं। ठीक है! और आप किसी भी कठिन समय में से मुस्कान के साथ गुजर पायेंगे। हाँ! हमें अपनी आत्मा, मन और तन को मज़बूत बनाने की और अपने आसपास के लोगों के साथ अपने जुड़ाव को स्वस्थ व पक्का बनाने की आवश्यकता है। यही आर्ट ऑफ लिविंग है। हिंसा मुक्त समाज, रोग मुक्त शरीर, भ्रांति मुक्त मन, अवरोध मुक्त बुद्धि, आघात मुक्त स्मृति और ग्लानि मुक्त आत्मा। मुझे लगता है कि यह हर एक का जन्मसिद्ध अधिकार है।
इसलिये, आज अपनी सभी समस्यायें मुझे दे दें और मुस्कान के साथ वापिस जायें।
ताइवान एक मज़बूत अर्थ-व्यवस्था वाला छोटा देश है। यदि यहाँ हम सब थोड़ा सा प्रयत्न करें तो हम ताइवान को प्रसन्नता में भी मज़बूत बना सकते हैं।
हम अपराध मुक्त ताइवान के बारे में सोच सकते हैं; कोई हिंसा, कोई दु:ख, कोई आत्महत्या नहीं। मैं ऐसा ताइवान देखना चाहता हूँ। यह ताइवान के लिये मेरा स्वप्न है। यदि हम ऐसा ही कुछ अगले दो वर्षों में कर पायें तो यह ताइवान में एक आदर्श स्थिति बन जायेगी, और यह बाकि देशों के लिये उदाहरण बन सकता है। क्या आप जानते हैं कि विश्व में सर्वाधिक खुश देश भुटान है। यह एक बौद्ध देश है और यहाँ लोग बहुत ही साधारण हैं। हर कोई अहिंसा और खुशी में यकीन करता है। भुटान प्रसन्नता में पहले नम्बर पर है। अभी, कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र का प्रसन्नता पर एक सेमिनार हुआ। उच्च जीडीपी (GDP) का होना ही काफी नहीं है, उच्च जीडीएच(GDH – Gross Domestic Happiness) भी होनी चाहिये।  
असल में, मुझे इस कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र में शामिल होना था। भुटान के प्रधानमंत्री ने मुझे निमंत्रित किया था, पर क्योंकि मैं यहाँ दक्षिण पूर्व एशिया, सिंगापुर, बाली और फिर ताइवान आने का वादा कर चुका था, मैंने कहा कि मैं अपनी यात्रा रद्द नहीं कर सकता, पर मैं वही संदेश इन सब देशों में ले जा रहा हूँ। इसलिये आज मैं सोच रहा हूँ कि हम सबका एक स्वप्न होना चाहिये, हम सब को मिलकर सोचना चाहिये कि अगले दो सालों में हम सब किस प्रकार लोगों तक पहुँच सकते हैं और उन्हें तनाव से छुटकारा पाना और खुश रहना कैसे सिखा सकते हैं। स्कूलों में, कॉलेजों में, घरों में, हम केवल उत्सव ही मना सकते हैं।
जीवन को एक बड़े दृष्टिकोण से देखें। जीवन के ८० वर्ष हम जी रहे हैं, क्या यह तनावयुक्त या अप्रसन्न रहने लायक हैं? जीवन की इस छोटी अवधि में, हमें अपना समय प्रसन्न रहने में और दूसरों को प्रसन्न करने में व्यतीत करना चाहिये। आपको ऐसा नहीं लगता क्या? आइये आज सब यह स्वप्न देखें।
अत:, दो चीज़ें हैं, देश या विश्व के लिये एक बड़ा स्वप्न देखना। और दूसरी है आपकी व्यक्तिगत आवश्यकतायें और इच्छायें। दोनों पूर्ण हो सकते हैं। आप बड़े स्वप्न पर ध्यान केंद्रित करें और छोटे स्वप्न मुझ पर छोड़ दें। ठीक है!
आज, हमने सब ने साथ में ध्यान किया है, हम एक इच्छा कर सकते हैं। आज रात बिस्तर पर जाने से पहले आप उस एक इच्छा के बारे में सोच सकते हैं। इच्छा के बारे में सोचें, जाने दें और फिर अच्छे से सोंये।
अब, हर रोज़ थोड़ा समय निकालें और ध्यान करें, और अपने आप से कुछ सेवा करने का वादा करें। महीने में कम से कम चार घंटे की सेवा।
हमारा एक बड़ा स्वप्न है; तनाव-मुक्त और हिंसा-मुक्त ताइवान का निर्माण करना। अत: हम १० से २० व्यक्तियों के समूह में जा सकते हैं और लोगों को प्रसन्न रहने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। हम ताइवान में प्रसन्नता की लहर बहा देंगे।

प्रश्न : क्योंकि आज मैंने अपनी परेशानी टोकरी में छोड़ दी हैं, तो क्या कल जब मैं उठूँगा तो यह गायब हो चुकी होगी?
श्री श्री रविशंकर : आपने परेशानी टोकरी में फैंक दी है, अब इसे अपने दिमाग में न लेकर जाओ। मैं आपको यह तो नहीं बता सकता कि कितना समय लगेगा, शायद आज ही या फिर कल या १० दिन या १२ महीनों में, परेशानी अवश्य ही दूर होगी।

प्रश्न : मैं आपके जैसा कैसे बन सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : जब आप बच्चे थे तो आप मेरे ही जैसे थे। मैं वह बच्चा हूँ जिसने बड़ा होने से इन्कार कर दिया है। आपके भीतर अभी भी एक बच्चा छिपा है, बस उसे पहचानें। खोखले / पोला व खाली हो जायें।

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