जहाँ कहीं भी श्रद्धा होती है, वहाँ चमत्कार होते हैं!!!


०३
२०१२ कीव, युक्रेन
मई

हमें ख़ुशी फैलानी है, जो परमानन्द हमें मिला है| ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह जानना होगा कि जीवन में कितना कुछ है| हमें जीवन के बारे में थोड़ा सा ही पता है| जो हमें पता करना है वह बहुत है| यह ज्ञान कितना कीमती है, नहीं? तो हम सोचते हैं कि शरीर के भीतर मन हैं| नहीं, मन के भीतर शरीर है| यह शरीर मोमबत्ती की बाती की तरह है| मन चारों ओर चमक की तरह है| जितना ज्यादा आप विश्राम करते हैं, उतना ही ज्यादा आपका मन फैलता है और विस्तृत होता है| जितना ज्यादा मन भरा हुआ और संतुष्ट होता है, उतना ही ज्यादा आप बड़े और उज्जवलित होते हैं|

प्रश्न : गुरूजी, कीव में, सौ से भी ज्यादा पुण्यशाली पुरुषों के शरीर हैं| क्या इनके बारे में आप कुछ कहना चाहेगे?
श्री श्री रविशंकर : संत शरीर नहीं होता| संत एक आत्मा है| शरीर सब्जियों से, धान्य से और खाने से बनता है| यह कई युगों से हैं| शरीर का एक एक कण पृथ्वी से सम्बंधित होता है| यह इससे आया है और उसमें ही विलीन हो जाता है| लेकिन आत्मा बहुत महत्वपूर्ण है| यह सर्वव्यापी है|

प्रश्न : इन शरीरों का नाश नहीं होता| यह जैसे थे वैसे ही रहतें हैं|
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह भक्ति की वजह से है| जितनी ज्यादा भक्ति और प्रेम होता है, हमारे शरीर के हर एक कण को बदल देता है और कितना तेज उत्पन्न करता है| जहां कहीं भी श्रद्धा होती है, वहाँ चमत्कार होते हैं| यह न सोचें कि आत्मा केवल शरीर से ही जुड़ी है| आत्मा सर्वव्यापी है| तो आप जहां पर भी है, जब भी आप सोचते हैं, आप आत्मा से पहले से ही जुड़े हुए होते हो| हमारा शरीर एक टीवी की तरह है| जो असली उर्जा है वह चैनल की आवृत्ति है| तो जब भी आप टीवी चालू करते हो, आप चैनल देखते हैं परन्तु चैनल सिर्फ टीवी में ही नहीं हैं, वह पूरे कमरे में होता है|

प्रश्न : मन की नकारात्मक आदतों से कैसे छुटकारा पाया जाएँ?
श्री श्री रविशंकर : अच्छी संगत|
सच्चा मित्र वह होता है, जिसके साथ आप कुछ समय बैठते हो, आप नकारात्मक बातें करते हो और फिर आप सकारात्मक हो जाते हो| एक बुरा मित्र वही होता है जिससे आप थोड़ा सा नकारात्मक बोलते हो और आपकी नकारात्मकता बहुत बड़ी हो जाती है| तो पहला है अच्छी संगत, दूसरा है प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया और ध्यान और तीसरा है शरीर की शुद्धि|
कभी कभी यदि आपकी शौच क्रिया अच्छी नहीं होती है, यदि आपकी अंतड़ी सख्त होती है, वह आपके माथे/सिर को भी असर करती है| कभी कभी आपको शरीर की शुद्धि भी करनी पड़ती है| जीव विष की शुद्धि करें या अल्प आहार करें| आयुर्वेद और पंचकर्म, यह सब आपकी मदद करेगा|

प्रश्न : जीवन में रोग क्यों आते हैं? उनका उद्देश्य क्या है?
श्री श्री रविशंकर : इसका कारण यह है कि हम कुदरत के नियमों का उल्लंघन करते हैं| हम वह खाते हैं जो हमे नहीं खाना चाहिये या बहुत खाते हैं| हम पर्यावरण की भी अच्छी देखभाल नहीं करते हैं| सभी जगहों पर कितने सारे (दूरसंचार) टावर्स हैं| कितना विकिरण है| यह सब हमको असर करता है| और, यदि मन तनावपूर्ण है तो वह रोग प्रतिकारक शक्ति को भी असर करता है|

प्रश्न : हम किसके लिये जियें?
श्री श्री रविशंकर : पहले, उन चीज़ों की प्रति बनाएं जिनके लिये आप नहीं जीते हो| जीवन का उद्देश्य दुखी होना और दुसरो के जीवन को दुखी करना नहीं है| क्या यह नहीं है? तो फिर क्या उद्देश्य है हम हमारे भीतरी जीव, भीतरी स्वः से कैसे जुड़ सकते हैं? पता करें हम कौन हैं? यह अध्यात्मिकता है और आप सही जगह पर हो|

प्रश्न : दिव्य बच्चे के लिये मन और ह्रदय को कैसे तैयार करें?
श्री श्री रविशंकर : बच्चे की तरह रहें| एक बेबी की तरह रहें| कोई निषेध, पूर्वाग्रह नहीं| बस सरल, सहज रहें|

प्रश्न : मैं सोच रहा था कि मेरी किस्मत लोगों को संगीत और गान से ख़ुशी देना है ताकि वे ऊपर उठें|
श्री श्री रविशंकर : जीवन संगीत के बिना अधूरा है लेकिन संगीत ही जीवन में सबकुछ नहीं है| तो संगीत एक चीज़ है| आपके पास दूसरी भी चीजें हैं जीवन में करने के लिये| वह करें| लेकिन, इन सभी चीज़ों में से, पहला है ज्ञान| ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है| आध्यात्मिक ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है|

प्रश्न : मैं मेरे बेटे के जुए की लत से बहुत पीड़ित हूँ|
श्री श्री रविशंकर : आपका एक बेटा है, मेरे पास लाखों बेटे हैं, जो सभी गलत चीज़ों से आसक्त है| ज़रा जागिये और देखिये आप कैसे दुसरे लोगों की मदद कर सकते हैं जो आपके बेटे जैसे हैं| यह पीड़ा आपके भीतर इसीलिये है कि आप इसके बारे में कुछ कर सकें, कुछ समाज के लिये, दुसरे बच्चों के लिये|