विविधता से कोई खतरा नहीं होना चाहिये, बल्कि उसका तो उत्सव मनाना चाहिये!!!


१५
२०१२ वर्ल्ड फोरम फॉर एथिक्स इन बिज़नेस, आम्सटलवेन नीदरलैंड्स
जून


चलिए देखते हैं, क्या हम सब यहाँ मौजूद हैं? १०० प्रतिशत?
क्या आप जानते हैं, हमारा भूत और भविष्य दोनों, हमारे वर्तमान में समाहित हैं| भविष्य के प्रति व्याकुलता, और भूतकाल के प्रति ग्लानि; ये सब इस वर्तमान क्षण में मौजूद हैं|
अब चुनौती यह है, कि किस तरह हम अपने हाथों में आशा का प्रकाश लेकर, इन विपरीत लहरों में भी पार निकल पायेंगे| और अब यह आशा का प्रकाश भी तूफ़ान से घिरा हुआ है| हमें किसी भी तरह इस आशा रूपी प्रकाश को बचाना है|
मैं आपको १९९९ में घटित एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ|
पिछली सदी के अंत में, इस तरह की अफवाहें थीं, कि ३१ दिसम्बर, १९९९ को दुनिया खत्म होने वाली है| यह इसलिए था, क्योंकि, कंप्यूटरों को और आगे के प्रोग्राम लेने के लिए बनाया नहीं गया था, और इसलिए सब कुछ डूब जाने वाला था| और इसलिए, विश्व भर में यह डर बैठ गया था, और उत्तरी अमेरिका में तो यह कुछ ज्यादा ही था|
लोग अपने तहखानों में भोजन इकठ्ठा करने लग गए थे| वे सब्जियां और दूध पाउडर खरीद रहें थे| कनाडा में दूध पाउडर की कमी हो गयी थी, क्या आप ऐसा सोच सकते हैं? ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ खरीद रहा था, खाद्य सामग्री वगैरह और अपने अपने तहखानों में उसे बटोर रहा था, क्योंकि उन्हें लग रहा था, कि कोई बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है|
उस समय मैंने कुल ढाई महीने में कुछ १०० से भी अधिक शहरों का दौरा किया था| मैं सुबह एक जगह होता था, और शाम तक दूसरी जगह होता था, और मेरा केवल एक ही सन्देश था, सब कुछ ठीक हो जाएगा, आप परेशान मत होईये| व्यापार पहले जैसा चलते रहेगा, कृपया चिंता मत करें, और कृपया अपने तहखानों में भोजन इकठ्ठा न करें| इसकी आवश्यकता नहीं है
हर जगह बस यही एक प्रश्न था|
एक बार फिर, इस साल पिछले महीने, मैंने १४ देशों में करीब २० शहरों का दौरा किया, और हर जगह लोग पूछ रहें हैं, कि २०-१२-२०१२ को विश्व में क्या होने वाला है? हमने सुना है कि बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है|
मैंने कहा, कि ऐसा केवल अमेरिकी फिल्मों में होता है| दुनिया खत्म नहीं होने वाली है| अगर वह खत्म भी होती है, तो केवल फिल्मों में| सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा, और आप निश्चिंत रहिये
हमारे अंदर एक राहत सी महसूस होती है, जब हम सुनते हैं कि आस पास कोई क़यामत का दिन नहीं आने वाला है| हम आराम से बैठकर चैन की साँस ले सकते हैं, और एक गरम चाय के प्याले का लुत्फ़ उठा सकते हैं और टीवी देख सकते हैं|
किसी भी परिस्थिति से ज्यादा उस परिस्थिति की चिंता लोगों को मार डालती है| मौत तो तभी आएगी, जब उसे आना होगा, लेकिन मौत का डर (लोगों को) ज्यादा परेशान करता है, उनके मन की शान्ति हर लेता है| इसी तरह, गरीबी से ज्यादा, गरीबी का डर लोगों को ज्यादा मारता है|
हमें विश्व भर की मामलों की दशा को एक नए रूप में देखना होगा| जैसा गाँधी जी ने कहा था, प्रत्येक की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है, लेकिन उनके लोभ के लिए नहीं| यह एक लोकप्रिय कहावत बन गयी है| हमें लोभ से उदारता की तरफ बढ़ना है| उससे भाईचारे की तरफ और समाज में एक अपनेपन की भावना की तरफ कदम उठाना है|
आजकल की नयी पीढ़ी के समाज में जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है, अपनेपन की भावना कम होना, और पारिवारिक संस्कारों का घटना| एक परिवार में भी आपस में कोई अपनापन नहीं रह गया है| इसके परिणामस्वरूप, हमें बहुत सी सामाजिक बुराईयों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे हिंसा, तनाव, तनाव से जुडी बीमारियाँ और अवसाद|
क्या आप जानते हैं, कि यूरोप की ३० प्रतिशत जनता अवसाद का सामना कर रही है?
अभी हाल ही में, जब मैं जापान में था, मुझे पता चला, कि जापान में हर साल ३०,००० युवा आत्महत्या करते हैं! ये आंकड़े चौकानें वाले हैं! एक ऐसा देश, जो हर तरह से समृद्ध है, जहाँ की GDP भी पर्याप्त है, और प्रत्येक के पास भरपूर खाने को है, और आराम से जीवन यापन करने को है, ऐसे देश में भी हर साल ३०,००० युवा आत्महत्या कर रहें हैं! यह खतरे की निशानी है!
इसका क्या कारण है? क्या वजह है? हम इस परिस्थिति को कैसे बदल सकते हैं? हमें क्या करना होगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो हमारे सिर पर मंडरा रहें हैं, और इन्हें मंडराना भी चाहिये| हम मनुष्य हैं, हमें एक दूसरे से लगाव होना चाहिये, और हमें सुरक्षित महसूस करना चाहिये, कि अगर हमें कल कोई परेशानी होती है, तो इतने सारे हाथ आज हमारी मदद को आगे आ जायेंगे|
एक बार यदि हमारी मानसिकता में यह बदलाव आ जाए, (जो कि पहले था ही), तब परिस्थिति को बदलते देर नहीं लगेगी|
अगर आप पूर्वी यूरोप के देशों में देखें, कि साम्यवादी (communist) युग में लोगों में आपस में एक समुदाय की भावना थी| उनके पास भले ही खाने के लिए भोजन कम था, या जिंदा रहने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे, लेकिन फिर भी अपनेपन की भावना थी| लोग एक दूसरे की सहायता करते थे|
एक प्रतियोगिता-मुलक व्यापारी दुनिया में, ये मूल्य घट रहे हैं, हमें वापस इन मूल्यों को स्थापित करना है|
हम कह सकते हैं, कि वे समाप्त हो चुके हैं, और हमें वापस उस अपनेपन की भावना को जिंदा करना है|
यहाँ तक कि, एक कंपनी के अंदर भी कितने लोग एक दूसरे से लगाव महसूस करते हैं? या हम केवल मशीनों की तरह काम करने आते हैं, और वापस चले जाते हैं, एक दूसरे से कोई भी लगाव महसूस करे बिना?
आध्यात्मिकता इस खालीपन को भर सकती है, अपनेपन और लगाव की इस श्रुंखला में जो भाग गुम हो गया है, आध्यात्मिकता ही वह भाग है| यह उस जोश, अपनेपन, आशा और विश्वास को वापस जगा सकती है, जिससे हम आज की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं|
देखिये, विश्व कितने बड़े बड़े उपद्रवों से निकल चुका है, जिन्हें हम आज विश्व-युद्ध- १ और विश्व-युद्ध २ कहते हैं, ये बहुत बड़े उपद्रव थे|
और आज यूरोप की चरमराती अर्थव्यवस्था या कहीं भी और की, उतनी चुनौतीपूर्ण नहीं है, जितनी विश्व-युद्ध के समय थी, बिल्कुल भी नहीं| इसलिए, हमें लोगों में यह विश्वास जगाना होगा, कि वे ठीक रहेंगे| हमें यह सन्देश फैलाना होगा, सुनिए, आप बिल्कुल ठीक रहेंगे| आईये, हम लोग साथ में चलते हैं|
यहाँ आप पायेंगे, कि हमें दो चीज़ें करनी हैं|
कुछ देश हैं, जो उम्मीद करते हैं, कि बाक़ी सब उनकी सहायता करेंगे, उनकी ज़रूरतों का ख्याल रखेंगे, और उन्हें लगता है कि यह सब स्वीकार करना उनका हक है| यह एक बहुत बड़ी चुनौती है, बहुत बड़ी परेशानी|
मुल्ला नसीरुद्दीन की एक छोटी सी कहानी है| मुल्ला नसीरुद्दीन एक ज्ञानी लेकिन बेवक़ूफ़ आदमी था, वह किसान था|
तो मुल्ला जिस शहर में रहता था, वहां भयंकर अकाल पड़ गया, और करीब ६ साल तक वहां कोई बारिश नहीं हुई| तो मुल्ला हमेशा इस बारे में शिकायत करते रहता था, और धीरे धीरे उसे शिकायत करने की आदत पड़ गयी|
वह पूरे समय केवल शिकायत ही शिकायत करता रहता था| अंततः, उस साल में अच्छी बारिश हो गयी और फसल भी बहुत अच्छी रही, लेकिन फिर भी मुल्ला का चेहरा उतरा हुआ था, और वह शिकायत कर रहा था| तो उसके दोस्तों ने उससे पूछा, मुल्ला, इस साल तो तुम्हारे पास शिकायत करने के लिए कुछ नहीं होना चाहिये, क्योंकि तुम्हारे पास सब कुछ भरपूर मात्र में है, फसल कितनी अच्छी थी|
लेकिन मुल्ला फिर भी शिकायत करते रहा, और बोला, अब मेरे करने के लिए बहुत सारा काम हो गया है| मुझे पिछले ६ साल से काम करने की बिल्कुल भी आदत नहीं रह गयी है| इस साल मुझे काम करना पड़ रहा है, और मैं काम नहीं कर पा रहा हूँ|
जब आपके पास कोई काम नहीं होता, तो आपको लगता है कि कोई आपका ख्याल रखेगा, और जब आपके पास करने के लिए कुछ होता है, तब भी आपको लगता है, कि यह एक बहुत बड़ा बोझ है|
इसी तरह की स्थिति इथिओपिया में हुई, अगर आपको याद हो तो| सात लंबे सालों तक, वहां अकाल था, और इथिओपिया को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से सहायता मिलती रही| लेकिन सांतवे साल में जब वहां पर प्रचुर मात्रा में सब कुछ था, लोगों को लगने लगा, कि सहायता प्राप्त करना तो उनका हक है और वे खुद काम पर नहीं जायेंगे| यह एक चुनौती है|
यहीं पर हमें लोगों को शिक्षित करने की ज़रूरत है| मानसिकता में एक बदलाव होना चाहिये| जो देश उम्मीद करते हैं, कि बाक़ी उनकी सहायता करें, और जो समुदाय दूसरों से लाभ उठाते हैं, हमें उन्हें खुद अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये, कि वे स्वावलंबी बनें| और जो देश आगे आकर  उनकी मदद कर रहें हैं, उन्हें फिर भी उनकी मदद करनी चाहिये| इसलिए नहीं, कि इससे उन देशों की सहायता होगी, बल्कि इसलिए, कि मदद का हाथ बढ़ाना मानवता की निशानी है| तो यह दोनों तरह से अच्छा है|
गरीब लोगों को आत्म-विश्वास से भरना होगा, और यही आध्यात्मिकता करती है|
सन १९९९ के बारे में फिर से बात करें, तो तब मैंने बंगलौर के आस पास से करीब ५०० युवाओं को अपने आश्रम में आने का न्यौता दिया था| वे सब बेरोजगार नवयुवक थे| मैंने लघु-उद्योग के मंत्री और लघु उद्योग के डाइरेक्टर को भी बुलवाया था, और उनसे यह दरख्वास्त करी, कि वे उन युवाओं को वे सभी योजनाएं दिखाएँ जो सरकार ने उस समय लागू करी थीं|
सरकार के पास करीब २८० अलग अलग योजनाएं थीं, जिसके लिए सरकार कुछ बुनियादी सुविधाएं और कुछ प्रारंभिक पूँजी भी देगी| लोगों को सिर्फ उन प्रोजेक्टों को लेना है और शुरू करना है|
तो हमारे पास ५०० युवा थे, और उन्हें २८० प्रोजेक्ट दिखाए गए थे|
आप जानते हैं कि फिर क्या हुआ? उन युवाओं ने तरह तरह के अटकले लगे, कि किस तरह से उन में से कोई भी प्रोजेक्ट काम नहीं करेगा| आप किसी एक प्रोजेक्ट का नाम लीजिए, और वे कहते थे, यह नहीं होगा, यह नहीं हो सकता|
तो जब अंत में, उनसे यह पूछा गया, कि आपको क्या चाहिये? तब उन्होंने कहा, कि हमें सरकारी नौकरी दिला दीजिए| हम पुलिसकर्मी बनना चाहते हैं, बस ड्राईवर या कन्डक्टर, हमें कोई भी सरकारी नौकरी दे दीजिए|
मैंने कहा, ठीक है, मैं इस बारे में कल कुछ करता हूँ|
अगले दिन, मैंने उन्हें एक कोर्स करवाया जिसे मैंने कहा, Youth Leadership Training Program (YLTP)’ यह एक महीने तक चला| इस एक महीने में, हमने उन्हें कुछ इस तरह से ट्रेन किया, और सिखाया, कि उन्हें यह एहसास हुआ कि वे गलत कर रहे हैं, और उनमें एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया| आज उनमें से एक एक युवा उद्यमी (व्यवसायी) बन गया है, और उनमें से प्रत्येक अपने नीचे ३०० से ५०० लोगों को व्यवसाय दे रहा है|
लोगों में इतना बड़ा परिवर्तन देखन बेहद रोमांचकारी है| सिर्फ उनकी मानसिकता और सोचने का न ढंग बदलकर ही वे उद्यमी बन गए और खुद अपने पैरों पर खड़े हो गए, स्वावलंबी बन गए और कुछ कर दिखाया|
हमने इस कार्यक्रम को पूरे भारत में चलाया, और अफ्रीका में और दक्षिण अमरीका में| यह बहुत फायदेमंद रहा|
तो हम सब जो यहाँ मौजूद हैं, हमें यह जिम्मेदारी लेनी होगी, कि हम लोगों में एक सजगता लायेंगे; सजगता किसी विपत्ति या क़यामत के दिन के लिए नहीं, बल्कि सजगता अपने खुद की क्षमताओं की, हमारे मन में सोयी हुई प्रतिभाओं की| हर चुनौती और हर मुश्किल, अपने आप में एक मौका है| हमें केवल अपनी मानसिकता में थोड़ा सा बदलाव लाकर, इन चुनौतियों को मौकों में बदलना है, इससे हम एक बेहतर विश्व बना सकते हैं, और एक सार्वभौमिक परिवार| पूरे संसार को अपने ही परिवार की तरह देखें, और देखें कि किस तरह हम उसके लिए अच्छे से अच्छा कर पायेंगे|
एक आखिरी बात जो मैं कहना चाहूंगा हमें इस बात का एहसास होना चाहिये कि हम यहाँ सदैव नहीं रहेंगे हम यहाँ बहुत कम समय के लिए हैं| फिर चाहे वह ८० या ९०  साल हो, या १०० साल, या ज्यादा से ज्यादा ११० साल, हमें इस समय का भरपूर फ़ायदा उठाना है और आने वाली पीढ़ियों के लिए बढ़िया से बढ़िया कर के जाना है|
वैसे, मेरे शिक्षक जिन्होंने महात्मा गाँधी के लिए काम किया था, वे आज भी जिंदा हैं, और उनकी उम्र ११६ बरस की है|
तो जितने भी कम समय के लिए हम यहाँ हैं, हमें लोगों में आशा जगानी है, चिंता को कम करना है, और दुःख को घटाना है| हमें चाहिये कि ऐसे लोगों को साथ में लायें, जो अपना अधिकतर समय, पैसे और ऊर्जा को बिना-बात के झगडों में गवां रहें हैं| चलिए हम एक बेहतर विश्व बनाएँ| क्या आपको ऐसा नहीं लगता? आप क्या कहते हैं? क्या हम सब इस नज़रिए से एक साथ जुड़ सकते हैं?
एक तनाव-मुक्त और हिंसा-विहीन समाज, एक रोग-मुक्त शरीर, भ्रान्ति-विहीन मन, निषेध-मुक्त बुद्धि, आघात-मुक्त स्मृति और एक प्रसन्नचित्त आत्मा| क्या हम यह कर सकते हैं?
सबसे पहले हमें एक लक्ष्य रखना होगा एक ऐसे समाज को बनाना, जो एकजुट हो, जिसमें एक अपनेपन की भावना हो, और एक ऐसा समाज जिसमें लोग एक दूसरे की परवाह करें|
हम कुछ चीज़ों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते| हम सोचते हैं, हाँ, यह तो पहले से ही मेरे स्वभाव में है, मैं दूसरे लोगोंकी परवाह तो करता हूँ| लेकिन यह काफी नहीं है, इसे हमारे काम में दिखना चाहिये|
वैसे मैंने नीदरलैंड्स के वासियों को मुबारकबाद देना चाहूंगा, क्योंकि नीदरलैंड्स उन चंद ऐसे देशों में से है, जो हमेशा आपदा राहत के कामों में सबसे आगे रहता हैं|
जहाँ कहीं भी कोई आपदा घटित होती है, तो हॉलैंड ही सबसे पहले आकर मदद करता है| यह काफी हद तक नेदरलैंड्स के समाज और संस्कारों में समाहित है| भले ही सुनामी हो, या कहीं भूचाल आया हो, आप पायेंगे, कि नीदरलैंड्स से वहां राहत सामग्री पहुँची हुई है| KLM भी वहां सारी सामग्री के साथ होती है| हमारे स्वयंसेवक वहां पहले से ही हैं| आर्ट ऑफ लिविंग तो वहां है ही, और वे और भी अन्य गैर सरकारी संस्थाओं के साथ काम करते हैं, और सरकार के साथ, और KLM हॉलैंड से बहुत सी शुभकामनाएं, करुणा और सेवा लेकर आती है|
मुझे लगता है, कि हॉलैंड को एक कदम और बढ़ा कर, किसी भी आपदा को होने से रोकना चाहिये| किन्हीं भी दो समुदायों के बीच होने वाले अविश्वास और दूरियों को रोकना चाहिये| यहाँ मैं फिर से कहूँगा, कि आज जो सबसे बड़ी चुनौती हॉलैंड झेल रहा है, वह है मुख्य-धारा और प्रवासी सम्प्रदाय के बीच बढ़ती दूरियां| मैं दरख्वास्त करूँगा कि प्रवासी संप्रदाय हॉलैंड के रीति-रिवाजों और आचारों में खुद को ढाल लें, और इस बात से बिल्कुल न डरें कि वे अपनी जड़ों से अलग हो जायेंगे|
आप अपने मूल-आधारों से जुड़े रहें, लेकिन अपनी सोच को फैलाएं, अपनी मानसिकता को विस्तृत करें, और आप जिस जगह में हैं, वहां के मुताबिक खुद को ढाल लें|
मुख्य धारा से मैं यह अनुरोध करूँगा, कि वे विविधता से घबराएं नहीं| विविधता से कोई खतरा नहीं होना चाहिये, बल्कि उसका तो उत्सव मनाना चाहिये| विविधताओं को जोड़कर, उसे मानें, और उनके सहयोग से ही हमारे समाज में सामंजस्य बढ़ सकता है|और हमारा समाज तो यहाँ वैसे भी सदियों से सामंजस्य में रहा है| ये कुछ बातें हैं, जो मैं यहाँ देखना चाहूँगा|
मैं बहु-संस्कृति और बहु-धर्मों का बहुत बड़ा प्रशंसक और प्रसारक हूँ| हमें चाहिये, कि हर क्षेत्र में और अधिक त्यौहार मनाये जाएँ, जिससे लोगों को आपस में घुलने-मिलने का और एक दूसरे को जाने का मौका मिले|
इस साल की शुरुआत में, जर्मनी में Bad Antogast में ऐसा ही एक कार्यक्रम हुआ था| हम कुछ इजरायली लोगों को और कुछ पलेस्तिन महिलाओं को साथ में लाये| वे दोनों समूह आये, और हमने उन्हें एक ही घर में ठहरा दिया| हम उन्हें जर्मनी अलग अलग लाये, लेकिन ठहराया एक ही घर में| आपको देखना चाहिये था, कि पहले दिन कितना धमाका हुआ था| लेकिन वे उससे बच नहीं सकते थे, इसलिए वे वहीँ रहें|
हमारे आयोजनकर्ता और टीचर भी वहां मौजूद थे| पहले तो, इन महिलाओं ने अपने गुस्से और नाराजगी को बहुत दर्शाया| लेकिन एक बार जब उनका गुस्सा ठंडा हो गया, तब वे एक दूसरे के करीब आने लगे| वे एक दूसरे को पसंद करने लगे, और बहुत अच्छे दोस्त बन गए|
उस क्षेत्र की मीडिया ने इसे बहुत अच्छे से कवर किया था|
मैं यह कह रहा हूँ, कि हमें कुछ अलग अलग, बिल्कुल विपरीत धारणाओं वाले समूहों को साथ लाने के लिए कुछ साहसिक कदम उठाने होंगे, और उन्हें आपस में घुलने मिलने का और मज़े करने के लिए प्रेरित करना चाहिये|

प्रश्न : घर में डिनर टेबल पर हम अपने बच्चों के साथ बैठते हैं, और उन्हें अच्छी बातें सिखाते हैं| लेकिन जब बात व्यापार की आती है, तब हम लोभ और स्वार्थ की बातों को यूँ ही टाल देते हैं, कहते हैं, यह सिर्फ व्यापार है, बुरा मत मानिये| हम इस विरोधाभासी बात को कैसे समझ सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : व्यापार औपचारिक है, और परिवार अनौपचारिक है, लेकिन व्यापार को अवैयक्तिक न बनाएँ| एक मानवीय स्पर्श, एक व्यक्तिगत स्पर्श का होना ज़रूरी है, लेकिन साथ साथ हमें व्यापार को भावनाओं में बहकर नहीं करना चाहिये| हमें इस बारे में बिल्कुल सजग रहना चाहिये|
व्यापार को दिमाग से करना चाहिये, लेकिन जीवन जो दिल से जीना चाहिये, यानी कि, रिश्ते दिल से बनाने चाहिये| अगर आप ये उल्टा करेंगे, तो दोनों ही गडबड हो जायेंगे| लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है, कि आप व्यापार में बिल्कुल कठोर बन जाएँ| आपको अपने ज़मीर की आवाज़ को भी सुनना है, यह बहुत ज़रूरी है|

प्रश्न : क्या नैतिक सजगता दिल से आती है या दिमाग से?
श्री श्री रविशंकर : नैतिकता दिल और दिमाग दोनों के संयोग से आती है| ये दोनों को जोड़ती है|

प्रश्न : तो इसका मतलब, कोई व्यापार भी दिल से कर सकता है, आंशिक रूप से?
श्री श्री रविशंकर : आंशिक रूप से हाँ, लेकिन भावनाओं में बहकर नहीं| उसमें मानवता का हल्का सा स्पर्श होना चाहिये, और भावनाएँ भी|
नैतिकता एक ऐसा पुल है - जो आपका दिल कहता है, और जो आपके दिमाग को सही लगता है वह उसे जोड़ती है|

प्रश्न : क्या मैं आपको अपने व्यापारी दिल का एक हिस्सा इस मीटिंग के बाद दे सकता हूँ; इसमें सिर्फ एक मिनट लगेगा|
श्री श्री रविशंकर : हाँ, बिल्कुल| (उत्तर : बहुत अच्छा, धन्यवाद)

प्रश्न : क्या आजकल नैतिक उभयवृत्ति ज्यादा है? क्या सही और गलत के बीच का अंतर मालूम नहीं पड़ रहा? क्या यही समस्या का कारण है?
श्री श्री रविशंकर : सही और गलत तो हमेशा सापेक्ष है| जो आपको लंबे समय में फ़ायदा दे, चाहे उससे आज कोई नुकसान ही क्यों न हो वह सही है| और जो आपको आज फ़ायदा देता है, लेकिन लंबे समय में नुकसान देता है, तो वह गलत है| एक मापदंड यह हो सकता है|
अगर आप सही और गलत के बीच और अधिक आसान मापदंड ढूँढ रहें हैं, तो ऐसे जानिये, कि जो आपको अल्पावधि में दुःख दे रहा है, लेकिन लंबे समय में खुशी देगा वह सही है; और जो आपको अल्पावधि में सुख दे रहा है, लेकिन लम्बे समय में कष्ट ही देगा, वह सही नहीं है|
आप रातों-रात करोड़पति बन सकते हैं, लेकिन अगर उसके लिए आपको जिंदगी भर जेल की चक्की पीसनी पड़े, तो फिर वह ठीक नहीं है|

प्रश्न : मैं किस तरह एक लीडर की तरह युवाओं में जोश जगा सकता हूँ? जिन युवाओं के बारे में आप बात कर रहे थे, जिन्हें सरकारी नौकरी चाहिये थी, मैं उनके जैसे बहुत से लोगों से मिलता हूँ, और मैं एक ऐसा बटन ढूँढ रहा हूँ, जिससे मैं उन्हें जगा सकूं|
श्री श्री रविशंकर : अगर आप उन सबको इकठ्ठा करके, एक जगह पर आठ दिन के लिए रख सकते हैं, तब मैं आपके साथ वह सभी चालें बाँट सकता हूँ, जो अभी तक काम कर रही हैं, और उनके लिए भी करेंगी| मैं अपने एक शिक्षक को भेज सकता हूँ, और वे आपके साथ इस परिवर्तन को लाने में सहयोग कर सकते हैं| इसमें कम से कम ८ दिन चाहिये, हर दिन कुछ घंटे|

प्रश्न : मैं व्यापारी उद्योग में काम करता हूँ, और मैं इस उद्योग में बहुत प्रतियोगिता देखता हूँ, बहुत सी कंपनियां एक दूसरे के साथ भिड़ती हैं, कि किस तरह वे मार्केट शेयर पाएं और खुद को ऊपर ले जाएँ; और मैं देख रहा हूँ, कि दिन के अंत में, बहुत सा तनाव और गलत काम हो रहें हैं, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहें हैं|
तो मैं भ्रष्टाचार के बारे में आपकी राय जानना चाहूँगा और कैसे हम अलग अलग स्तरों पर इससे निपट सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं India Against Corruption (IAC) का संस्थापक रह चुका हूँ, और रूस में भी हमने भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए एक संस्था बनाई है|
भ्रष्टाचार वहां शुरु होता है, जहाँ अपनेपन की भावना खत्म होती है| जब आध्यात्मिक मूल्य खत्म हो जाते हैं, बस एक दम वहीँ भ्रष्टाचार का क्षेत्र फैलने लगता है| आज कोई भी भ्रष्ट नहीं होगा, और किसी से घूस नहीं लेगा, यदि वे उनके अपने होंगे| आज एक अफसर जो किसी दफ्तर में बैठा है, वह अपने सगे-सम्बन्धियों से घूस नहीं लेगा, या अपने दोस्तों से| वह उन लोगों से घूस मांगता है, जिनके साथ उसका कुछ लेना-देना नहीं है| इसलिए हमें एक अपनेपन की भावना को बढ़ावा देना है| लोगों के अंदर उन आध्यात्मिक मूल्यों को जगाना है, वह आवश्यक है शिक्षा!
दूसरा, प्रतियोगिता बुरी नहीं है, लेकिन अनैतिक प्रतियोगिता टिक नहीं पाएगी| यह ज़रूरी है|
एक पुरानी कहावत है, जो कहती है कि व्यापार में उतना ही झूठ बोलना चाहिये, जितना भोजन में नमक|
झूठ शायद बहुत बड़ा शब्द हो गया, लेकिन कहने का मतलब है, कि एक व्यापारी कह सकता है, कि उसका उत्पाद दुनिया में सबसे अच्छा है, हालाँकि वह जानता होगा, कि शायद वह सबसे अच्छा नहीं है| तो इतना कहें कि अनुमति है, और इसे काफी हद तक नैतिक भी समझा जा सकता है अपनी चीज़ को सबसे उत्तम कहना, जबकि आप जानते हैं, कि वह दूसरे या तीसरे नंबर पर है|
अगर आप कहें, मेरे पास यह उत्पाद है, लेकिन मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं है, कि यह सबसे बढ़िया है, हो सकता है, कि इससे भी बढ़िया कुछ मार्केट में हो तब आप एक बढ़िया सेल्समैन नहीं हैं| इसलिए, काम में थोड़ी सी युक्ति की अनुमति है, लेकिन यह उतनी ही होनी चाहिये, जितनी नमक आप भोजन में सहन कर सकते हैं|
अगर बहुत ज्यादा नमक होगा, तो आप भोजन कर नहीं पायेंगे, और अगर नमक न हो, तब भी स्वादिष्ट नहीं लगेगा| यह वेदों के समय का विचार है|
लेकिन यही बात किसी समाजसेवी या बुद्धिजीवी के लिए नहीं है, या राजा के लिए; सिर्फ एक व्यापारी के लिए यह अनुमति है|

प्रश्न : दुनिया भर में आपकी इतनी ज़बरदस्त मान्यता है, मैं देख रहा हूँ, कि आप कमाल का काम कर रहें हैं| युवाओं के साथ, लीडरों के साथ, लेकिन मेरे जैसा एक पुराना व्यापारी, जो इस कमरे से बाहर निकलने पर, आपके प्रेरणास्पद भाषण को सुनने के बाद भी वापस अपने गलत तरीकों को इस्तेमाल करेगा| क्या हम आपकी प्रतिष्ठा के द्वारा स्कूलों में नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा सकते? भारत में, और पूरे विश्व में?
श्री श्री रविशंकर : यहाँ आने से पहले, मैंने बंगलौर आश्रम में इकठ्ठा हुए कुछ २००० युवाओं से skype chat करी थी| वे वहां एक हफ्ते से हैं| उनके अंदर जो जोश था, वह अद्वितीय था!
मैं पूरे विश्व में बहुत से शिक्षक बना रहा हूँ| उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना में हमारा बहुत बड़ा बेस है| आपने पिछले दिनों अखबार में पढ़ा होगा, कि किस तरह बहुत से नाईट-क्लब बदल रहे हैं, और अब युवा नाईट-क्लबों में जाते हैं, लेकिन बिना शराब के, बिना ड्रग्स के, और बिना धूम्रपान के! वे शरबत पीते हैं, डान्स करते हैं, पूरे दिल से गाते हैं, और आनंद की चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं| ऐसा अर्जेंटीना के नाईट-क्लबों में हो रहा है|
बल्कि न्यूयॉर्क में भी इन्होंने योग रेव (Yoga Rave) पार्टी करके, कुछ शुरू किया है| लोग आते हैं, वे योगा करते हैं, ध्यान करते हैं और शांत हो जाते हैं|
क्या आप सोच सकते हैं, कि हज़ारों युवा एक नाईट-क्लब में आँख बंद करके शांत बैठे हैं, और बेहद खुश हैं? एक दूसरे के ऊपर खाली बोतलें नहीं फेंक रहें? यह परिवर्तन हो रहा है! लेकिन हाँ, मैं चाहूँगा, कि यह और बड़े स्तर पर, और ज्यादा जल्दी हो| हर जगह स्वयंसेवक हैं| मैं यह सारा श्रेय उन स्वयंसेवकों को देना चाहूँगा, जिन्होंने दिन रात काम किया है| उन्होंने अपने भीतर जब यह आनंद पाया, तब वे औरों के अंदर भी उस खुशी को लाना चाहते थे, और यही उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा थी|