मौन!!!


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२०१२ बून, उत्तरी केरोलिना
जून
मौन रखना अत्यंत लाभकारी होता है| साल में कम से कम दो बार हमें यह करना चाहिये| साल में एक बार करना तो आवश्यक है, और दो बार करना बहुत अच्छा है|
मौन से हमारी वाणी शुद्ध होती है| अक्सर, आपने देखा होगा, कि जब हम बोलते हैं, तो क्या होता है? आपको ध्यान देना चाहिये| जब आप बोल रहे हैं, तब आपकी वाणी का दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है हमें इस पर ध्यान देना चाहिये| बहुत बार, हम इस पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझते, हम केवल बकबक करते रहते हैं| हम वह सब बोल देना चाहते हैं, जो हम बोलना चाहते हैं और मुक्त हो जाना चाहते हैं| नहीं, आपको यह देखना चाहिये, कि आपकी वाणी का दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है|
भगवद्गीता में एक बहुत ही सुन्दर दोहा है, वह कहता है, अनुद्वेग-करम वाक्यम सत्यम प्रियहितं का यात् अर्थात, वे शब्द जो लोगों के मन को विचलित नहीं करते, और जो सत्य हैं| ऐसा सत्य जो उदार है और मधुर है, ऐसे शब्द बोलने चाहिये| इसे कहते हैं, वाणी की तपस्या|
इसी तरह शरीर के लिए, संयमित भोजन, संयमित व्यायाम, संयमित काम और संयमित विश्राम| यह एक अभ्यास है, शरीर की तपस्या|
और वाणी की तपस्या है, कि हम केवल वही शब्द बोलें, जो दूसरों के मन को विचलित नहीं करते|
देखिये, कभी कभी हमें लगता है कि हम सही हैं, और हम सही हो भी सकते हैं; ऐसा हो सकता है कि आप जो बोल रहे हैं, वह सत्य है, वह उदार भी हो सकता है, वह दूसरे व्यक्ति के लिए अच्छा भी हो सकता है, लेकिन अगर वह मधुर नहीं है, अगर वह दूसरे व्यक्ति के मन को विचलित कर रहा है, तो वह पूर्ण नहीं है|
तो यह एक बहुत बड़ी कला है, और इसे करना आसान भी नहीं है किसी के मन को विचलित ना करना या उन्हें दुःख ना देना|
क्या आप जानते हैं, कि यदि आपने किसी से कोई शब्द कहे, और वह व्यक्ति पूरे दिन रोता रहा, या दुखी रहा, तो उससे कुछ भला नहीं होगा| इसलिए, ऐसे शब्द बोलें, जो मधुर हो, सत्य हो, और उदार हो| और साथ ही, ऐसा झूठ ना बोलें जो बहुत मधुर हो| हमें वही बोलना चाहिये, जो सत्य हो, उदार हो, मधुर हो, और कोलाहल न मचाये| लोगों के दिलों और दिमागों को अपने कटु शब्दों से घायल न करें|
आप कह सकते हैं, मेरी मन्शा किसी को दुःख पहुँचाने की नहीं है, लेकिन कटु शब्द मेरे मुंह से खुद-ब-खुद निकल जाते हैं| मैं क्या करूँ?

मौन यह आपकी सहायता करेगा| आप मौन में रहिये| ध्यान और मौन ये सब आपकी सहायता करेंगे|
कभी कभी, अगर यह सब करने के बाद भी, अगर ऐसे शब्द आते हैं, ऐसा होता है, तब आप उस बारे में कुछ कर नहीं सकते, और तब आप केवल क्षमा मांग सकते हैं|
इसलिए अच्छा है, कि जब आप मौन में जा रहे होते हैं, तो क्षमा मांगिये कि यदि मैंने अपने विचारों, शब्दों या कार्य से कुछ ऐसा किया है, या किसी को दुःख पहुँचाया है, तो मुझे क्षमा दे दी जाए|’ इससे हम फ़ौरन बेहतर महसूस करेंगे| क्या यह बात आपको ठीक लग रही है? हाँ?
देखिये, जीवन में आप यह नहीं सोच सकते कि सब कुछ हमेशा बहुत अच्छा रहेगा, जीवन में फूलों के साथ साथ कांटे भी होते हैं| जीवन में दुःख के क्षण भी आते हैं, और वे आते हैं और चले जाते हैं| हमें कहीं भी अटकना नहीं है, सिर्फ आगे बढ़ते जाना है|