न कोई शिकायत न कोई सफाई!!!


१७
२०१२हॉलैंड, नीदरलैंड्स
जून
हमें हॉलैंड में खुशियों की लहर उठानी हैं, क्या आपको ऐसा नहीं लगता?
क्या आप जानते हैं, जब हम केवल अपने बारे में सोचते हैं तब हमारा जीवन सिकुड़ने लगता है, लेकिन जब हम सारे समाज के बारे में सोचते हैं, सबके लिए, तब और ज्यादा ख़ुशी आती है| हाँ, इसमें कठिनाइयाँ भी हैं|
सब खुश रहना चाहते हैं, ठीक? क्या यहाँ कोई ऐसा है जो खुश नहीं रहना चाहता? हर इन्सान, हर पशु-पक्षी, हर जीव खुश रहना चाहता है| अब खुश रहने का क्या तरीका है? ये खुशियाँ बांटने से होगा| जब आप खुशियाँ बांटते हो तब वो बढती हैं| जब आप उन्हें बांटते नहीं, सिर्फ खुद तक ही रखते हो, वो धीरे धीरे कम होनी शुरू हो जाती है और फिर ख़त्म हो जाती हैं| ये बात लोग नहीं जानते, वो खुश होना चाहते हैं लेकिन वो कैसे सबके साथ बांटना है, कैसे अपने परिवार में सबको शामिल करना है, ये नहीं जानते और यही जीवन जीने की कला है| ये लोगों को खुशियाँ बांटना और सबको अपने परिवार में शामिल करना सिखाती है| तो क्या हम सब ये करने के लिए वचनबद्ध हैं?
संस्कृत में एक पुरानी कहावत है, "असली पूजा, ईश्वर की असली प्रार्थना दूसरों को ख़ुशी देना है"| इसमें बेशक कठिनाइयाँ भी हैं| हर एक व्यक्ति की कुछ कुछ परेशानी है, कुछ कठिनाई है| लोगों को उनकी नौकरी, पति-पत्नी, बच्चे, भाई-बहन, माता-पिता, परिवार, स्वास्थ्य, आदि की चिंता है, परेशानी है| ये सब मुश्किलें हमारे आस पास हैं, ठीक? किसी के भी जीवन में ऐसा कोई वक़्त नहीं रहा होगा जब उसके सामने कोई मुश्किल, कोई चिंता नहीं होगी, अपनी नहीं होगी तो अपने मित्र की होगी, अगर मित्र की नहीं तो किसी रिश्तेदार की होगी, और अगर किसी की नहीं होगी तो सारे संसार की होगी| ग्रीस में आज चुनाव है| हर एक व्यक्ति जैसे खूँटी पर टंगा है, सोच रहा है कि अरे, पता नहीं क्या होगा? अगर ग्रीस डूब गया तो यूरोप में यूरो पर उसका असर पड़ेगा, ये डर है| तो सबको किसी किसी बात की चिंता है, ठीक? अब अगर ये सब बातों की चिंता की बजाय हम आगे बढें, अपनी बाहें पसारें, अपने पंख खोलें और एक प्रसन्न विश्व बनाने के लिए कार्य शुरू करें, मैं कहता हूँ, हम सब सफल होंगे, समझ गए?
आप जानते हो, मैं पहली बार हॉलैंड में १९८८ में आया था| मैंने एक छोटे से कमरे में प्रवचन दिया था, वहां लगभग १५ लोग थे जिनमें से - सूरीनाम भारतीय थे, उन्होंने कहा, "हॉलैंड में रहना बहुत कठिन है, वो आध्यात्म से कुछ करना नहीं चाहते, आप बेकार में अपना समय नष्ट  मत कीजिये"| मैंने सिर्फ मुस्कुरा कर उनकी बात सुनी, फिर मुझे सूरीनाम के छोटे से मंदिर में ले जाया गया, उन्होंने मुझे वहां प्रवचन देने के लिए अनुरोध किया, अगले दिन वो बोले कि एक और मंदिर है, वो मुझे वहां ले जाना चाहते थे| मैंने कहा, ठीक है, मैं आऊँगा आपके साथ वहां, लेकिन मुझे सबके पास पहुंचना है, समस्त जनता के पास| वो बोले, "आप जानते हैं कि यहाँ के लोग भारत से जुडी हुई किसी बात में रूचि नहीं रखते, यहाँ बहुत भेदभाव है" मैंने कहा, "कोई बात नहीं"| मैं सिर्फ मुस्कुराया और कहा कि सारा विश्व मेरा परिवार है, कोई एक नहीं, सब समुदाय मेरे अपने हैं, केवल डच, केवल सूरीनाम या केवल भारतीय नहीं| यहाँ सब अलग अलग मंदिर हैं, एक भारतीय समुदाय का है, एक अप्रवासी भारतीय समुदाय का है, एक सूरीनाम का है| मैं दोनों तरह के मंदिर में गया, मैं चर्च में गया, चर्च में एक छोटा सी सभा थी, उन्होंने भी ध्यान का आनंद लिया| तो, मैंने थोड़ा ध्यान सिखाया, थोड़ी सुदर्शन क्रिया सिखाई और कहा कि एक दिन हॉलैंड में बहुत से लोग होंगे जो सुदर्शन क्रिया सीखेंगे और मैं आगे बढता गया| अगर मैं सिर्फ बंगलौर में आराम से रहता, अच्छा मौसम, अच्छी आरामदायक जगह, सब आराम, मैं सिर्फ अपने आरामदेह स्तिथि में ही रह जाता| उन दिनों में भारत से बाहर सफ़र करना बहुत मुश्किल था, बहुत महंगा था| जिन दिनों में मैं यहाँ आया, तब यहाँ बहुत ठंड थी, अँधेरा था और ठंड भी| मैं एक कमरे वाले एक छोटे से घर में था और उस कमरे से बाहर निकल कर थोड़ी सी सीढियां उतरो तो सामने एक नहर थी| मुझे खिड़की खोलकर सोने की आदत है, मुझे बंद खिड़कियाँ पसंद नहीं| तो, जब मैं खिड़की खोलता था तो पूरी रात बहुत ठंडी हवा आती थी, लेकिन मुझे उसमें भी आनंद आता था क्योंकि मेरा लक्ष्य हॉलैंड के लोगों तक पहुंचना था| मैं चाहता था कि वो सब इस सुन्दर से तोहफे का लाभ उठाएं और आनंद प्राप्त करें| उसके बाद मैं यहाँ बहुत बार आया और बहुत से लोग और जुड़े| लेकिन अब भी हम उस रफ़्तार से नहीं बढ़ रहे जिस से हमें चलना चाहिए, क्या आपको ऐसा नहीं लगता? हम बड़ी धीमी कार में सब से आखिरी लेन में हैं| हमें खुद को धीमी लेन से तेज़ रफ़्तार वाली लेन में डालना है और पूरे हॉलैंड के लोगो तक पहुंचना है और ख़ुशी की एक लहर सब तक पहुंचानी है| हम लोगो को इकठ्ठा कर सकते हैं और उन्हें थोडा भस्त्रिका और ध्यान करा सकते हैं, सिर्फ उसका छोटा सा उदाहरण| चलिए, सब गाते हैं, नाचते हैं, और एक दूसरे के साथ सुख बांटते हैं, ज़िन्दगी इतनी छोटी है ! हम इस दुनिया में रोते हुए आये लेकिन हम यहाँ से रोते हुए नहीं जाना चाहते| कम से कम जब हम इस दुनिया से जायें तब मुस्कुरा रहे हो| हाँ, शरीर बीमार होता है, बीमारी तो इस ब्रह्मांड का सदियों से एक हिस्सा है| शरीर का ध्यान रखो, इस शरीर को भोजन, घर और जो भी इसकी ज़रूरत है, सब प्रदान करो लेकिन बैठ कर इसके बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, आप समझ रहे हैं? चिंता बेकार है|

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, कभी कभी लोग मुझे अदृश्य होने का अहसास करते हैं, उसके लिए क्या करना चाहिए? कृपया मेरे परिवार को आशीर्वाद दीजिये|
श्री श्री रविशंकर : अदृश्य, मतलब कि लोग आपको पहचानते नहीं? कोई बात नहीं, बल्कि ये अच्छी बात है| जब कोई आपको पहचानता नहीं तो कोई आपसे कुछ उम्मीद भी नहीं करता| जानते हो, गुरु बनना एक बहुत बड़ा काम है, इतनी सारी मांगे होती हैं ऐसे में ! आपको ऐसे में हर वक़्त बहुत सावधान और सक्रिय होना पड़ता है| ये अच्छा है कि आप अदृश्य हैं, निश्चिंत रहिये, कोई परेशानी नहीं की बात नहीं है

प्रश्न : क्या आप समझा सकते हैं कि ऐसा कैसे संभव है कि हम भौतिकवादी हैं और आत्मा के बारेमें हमें कोई ज्ञान नहीं फिर भी मेरे देश हॉलैंड के निवासी सुन्दर वस्तुएँ बनाते हैं?
श्री श्री रविशंकर : मुझे ऐसा नहीं लगता, लोगो में चेतना है, उन में इतनी दया है, हॉलैंड के निवासियों में इतने संस्कार हैं, और उनमें सेवा का, मदद का इतना जज्बा है| आपको उन्हें सिर्फ एक मौका और रास्ता देना है बस| जब भी कोई विपदा आई है, हॉलैंड से सबसे पहले मदद आती है| जब सुनामी आया हॉलैंड के लोगो ने उनकी मदद की, कपड़ों का एक बड़ा भंडार यहाँ से पहुंचा और हमारे स्वयंसेवको ने उसको बांटा| हॉलैंड से बहुत मदद आती है, यहाँ के लोगों के दिल बहुत बड़े हैं, आप उन्हें कम मत समझिये, वो एक गुलदस्ते के जैसे हैं

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैं एक योग का अध्यापक हूँ, मैं अपने आप को व्यस्त रखता हूँ, लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं और भी कार्य कर सकता हूँ, कृपया मुझे कुछ सलाह दीजिये|
श्री श्री रविशंकर : मुझे और स्वयंसेवियों की आवश्यकता है, यहाँ हमारे केंद्र हैं| इन केन्द्रों में कार्य करने को और स्वयंसेवी चाहिए इसलिए यहाँ स्वयंसेवी बनो, अगर आप महीने में दिन भी कार्य करते हो वो भी अच्छा है| आप महीने में दिन से घंटे के लिए आओ, जो भी कार्य यहाँ ज़रूरत है वो करो| आप में से कितने लोग यहाँ ऐसे स्वयं सेवी बनना चाहते हैं? आप जानते हो, आप स्वयं- सेवा कर सकते हो, बस आपको ये करना है कि यहाँ - घंटो के लिए आओ, और चले जाओ| कुछ घंटे केंद्र में आओ, कुछ टेलीफ़ोन का जवाब दो, जो भी केंद्र में आते हैं  उन लोगों  से कुछ अच्छी बातें करो| क्या हम ये नहीं कर सकते? आप जानते हो, इस देश के केंद्र इस के लिए प्रयाप्त नहीं| आप जानते हो दिल्ली में कितने सत्संग ग्रुप हैं? २८० सत्संग ग्रुप, इन सब जगह पर सुदर्शन क्रिया होती है| बंगलौर में जब कि आश्रम है, तब भी १९५ केंद्र हैं, हर क्षेत्र के लोगों के लिए सुदर्शन क्रिया करने को, ध्यान करने को, सत्संग के लिए, साथ मिल कर खाने के लिए एक केंद्र है| आप जानते हो एम्स्टर्डम और हेग जैसी जगह पर हमें बहुत सी जगह ऐसी चाहिए जहाँ सुदर्शन क्रिया हो सके, बहुत सी जगह जहाँ लोग इकठ्ठा हो सकें| मैं तो ये कहूँगा कि जितनी जगहों पर मैकडॉनल्ड्स हैं, उतने ही केंद्र हमें चाहिए, इस से देश में एक बड़ा बदलाव आएगा

प्रश्न : मैं पारिवारिक रिश्तों को कैसे सुधार सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : पारिवारिक रिश्तों को सुधारने के लिए, उन्हें सुधारने की कोशिश मत करो| ग़लतफ़हमी को सुधारने की कोशिश मत करो, उसको नज़रंदाज़ कर दो| समझाओ और छोड़ दो, आगे बढ जाओ, कुरेदने मत बैठ जाओ, "तुमने ऐसा क्यों किया, क्यों कहा, तुम मुझे प्यार नहीं करते" ये सब कचरा समय की बर्बादी है, हम इतने भावनात्मक कचरे में डूबते जाते हैं| हमें उन सब को बाहर फ़ेंक देना चाहिए और एकदम उत्साह रखना चाहिए, पूर्ण उत्साह से आगे बढ़ना चाहिए| अगर किसी में उत्साह की कमी दिखे तो उसमें उत्साह जगाओ, लोगो से शिकायतें मत करो, उनसे सफाई मत मांगो| पारिवारिक रिश्ते को सुधारने के लिए आपको काम करने होंगे, कोई शिकायत कोई सफाई, बस, समझे!
लोगों से सफाई माँगना एक बेवकूफी है और लोगों को सफाई देना कि जिससे वो आपकी बात समझ सकें, एक और बेवकूफी है| ये दोनों ही तरीके काम नहीं करते, सबसे अच्छा तरीका है कि बस आगे बढ़ो