हर कोई कुछ और नहीं पर केवल आपका प्रतिबिम्ब हैं!

२०१२
जुलाई
बैड एंटोगेस्ट, जर्मनी
प्रश्न : गुरूजी, मैं अपने विचारों और भावनाओं से कैसे मुक्त रह सकता हूँ और सभी रिश्तों से मैं कैसे अनासक्त रह सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप अपने रिश्तों से क्यों अनासक्त होना चाहते हैं? क्योंकि वह दर्द देता हैं, नहीं? वह दर्द क्यों देता हैं? क्योंकि आपके पास जीवन का विशाल दृष्टिकोण नहीं हैं| सभी रिश्तें कुछ दिनों के लियें, कुछ महीनों के लियें, कुछ साल के लियें हैं, लेकिन जीवन उससे कहीं ज्यादा विशाल हैं, इसीलियें रिश्तों से अपने आप को अनासक्त रखनें के बजाय, आप के लियें सबसे अच्छा यह हैं कि आप अपनी जागरूकता का विस्तार करें| अष्टावक्र गीता ज्ञान को ज्यादा सुनें, केवल एक बार नहीं, लेकिन बार बार, और अपनें विचारों को ब्रह्मन पर रखें, अनंत पर रखें, विशाल ऊर्जा पर, सबकुछ उसी का अंग हैं, सब कुछ उसी का अविर्भाव हैं| इसी कारण से उसे ब्रह्मचर्य कहा गया है| "ब्रह्म" का मतलब जो अनंत हैं, "चर्य" का मतलब उसमें जाना - आपके मन को देवत्व की ओर घुमाना| सिमित (ज्ञान) पर ध्यान न देना - उस आदमी ने यह कहा, यह औरत ने यह कहा, यह वो हैं, और वही सब संकीर्ण मनत्व| हमेशा दूसरों पर हावी होना और फिर बाद में आप लालसा और घृणा, घृणा और लालसा इस चक्र में आ जातें हैं, और यह हमेशा चलता रहता हैं| तो अपना दृष्टिकोण विशाल करें, आध्यात्मिक ज्ञान में ज्यादा रहे, यह जानियें कि हर एक मनुष्य एक पानी में बुलबुले की तरह हैं, वे कितनी देर रहेंगें? आकाश में बादल, वे कितनी देर रहतें हैं? यह जानिये कि सबकुछ अस्थायी हैं, क्षणभंगुर हैं|

प्रश्न : गुरूजी, मैं उलझन में हूँ, हरे कृष्ण आन्दोलन में, वे कृष्ण को समर्पण करनें के लिये कहते हैं और फिर वह प्रक्रिया आपको आधात्मिक दुनिया में ले जायेगी| आप कहतें हैं, "मुझे समर्पण कीजिये और अपनी सारी परेशानियों को जाने दीजिये| तो आर्ट ऑफ़ लिविंग में क्या प्रक्रिया है जिससे आध्यात्मिक दुनिया में जाया जा सके?
श्री श्री रविशंकर : यही तो है! और कृष्ण ने यह भी कहा था, "जो मुझे सब चीज़ों में और सभी लोगों में देखता हैं, और सभी लोगों को मुझमें देखता हैं, वह सबसे ज्यादा बुद्धिमान हैं|" आप यह क्यों भूल गएं?| और उन्होनें यह भी कहा था, "मैं सभी युगों में आता रहूँगा, सही हैं!| 

प्रश्न: मेरे पति गुस्सा होनें पर अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, और वे छोटी चीज़ों पर आसानी से गुस्सा हो जाते हैं| बाद में उन्होंने जो कहा था वह भूल जाते हैं और मैं रोती रहतीं हूँ| दूसरा, वे मुझे दोष देते हैं कि मेरी वजह से वे गुस्सा होते हैं| कृपया मार्गदर्शन दीजिये कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, वह बोलते हैं और भूल जाते हैं, नहीं? वे सब खराब चीज़ें बोलते हैं और उसे भूल जाते हैं, तो आप भी सुनकर भूल जाईए| बजाय उनसे कहना, "यह न बोलिये, न बोलिये, और अपने ह्रदय से उसे पकड़कर रखना, जब जब वे गुस्सा होते हैं, अपने पास इयर प्लग रखिये और तुरंत उसका इस्तेमाल कीजिये| हो सकता है कि आप अपने कान के बूंदों में दो इयर प्लग रख सकते है, और जिस क्षण वे कुछ कहते हैं, उसे इस्तेमाल किजीये और मुस्कुराइए| लोग बहुत बड़े झुमखें पहनते हैं, इतनें की पंछी भी आकर बैठ सकते हैं, तो आप भी कुछ कीजिये| यह एक फैशन बन सकता हैं, आप इसका दौर तय कर सकते हो, झुमखों पर इयर प्लग लटके हुवें| आप किसी जौहरी को निर्मित करने के लिये कह सकते हैं, अच्छे रंगों के साथ, और जिस क्षण वे कुछ कहते हैं, तुरंत उसे पहन लीजिये| उन्हें जो कहना है कहने दीजिये| या तो आप धीरे से वहाँ से हट जाईए| जब वे गुस्सा होने लगें, उनसे कहें की आप को जल्द से जल्द बाथरूम जाना होगा और अपने आप को आधा या एक घंटा बंद रखे| या तो टहलने निकल जाईए, कुछ योजना/चालाकी खोजिये| एक बार जब आपको पता चल गया कि इस व्यक्ति का स्वभाव ऐसा है, कोई मतलब नहीं है बैठे रहकर रोतें रहना और अपने आप को दुखी करना| वे वैसे ही बने है, उनका पालन पोषण वैसा ही हुआ है, हाँ!

प्रश्न : जब एक बहुत बड़ा और सुन्दर द्विफल वृक्ष घर के पिछले भाग की उत्तरी पूर्व दिशा में तैनात हो, तो वास्तु शास्त्र हमें यह सिखाता है कि उस वृक्ष का ख़राब प्रभाव उस घर में रहने वाले लोगों पर पड़ता हैं| क्या उस वृक्ष को वहाँ से हटाना उचित है या कोई अन्य कम हिंसक उपाय है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यदि आप को ऐसी कोई चीज़ उत्तरी पूर्व दिशा में दिखे तो उसका अगला उपाय यह है की उस वृक्ष पर एक छोटा सा शिवलिंग रखा जाएँ| आप उस वृक्ष पर एक छोटा सा शिवलिंगम रख सकते है या एक छोटी सी गणेशजी कि प्रतिमा चिपका सकते है, तब यह ठीक है| यह एक उपचार हैं वास्तु शास्त्र में| या केवल "ॐ नमः शिवाय" लिख दीजिये| आप को वृक्ष काटने की जरुरत नहीं है| मैं भी एक सुन्दर द्विफल वृक्ष को काटने के पक्ष में नहीं हूँ, नहीं! उत्तरी पूर्व कोना दिव्यता का है, तो उसे एक प्रार्थना और पूजा करने की जगह होना चाहिये| आप एक योगा की चटाई या एक छोटा सा तख़्त रख दीजिये जहांपर आप बैठकर ध्यान कर सके| ध्यान की जगह उत्तरी पूर्व दिशा है इसीलिये कहा जाता है कि कुछ अड़चन न हो तो बेहतर है| उत्तरी पूर्व दिशा में मंदिर होना ठीक है| आमतौर पर मंदिर लम्बा होता है, उच्च बड़े घंताचार के साथ| लेकिन उसकी चिंता न करे| वास्तु के अनुसार कोई भी छोटा सा दोष एक सामान्य चीज़ से सुधारा जा सकता है, "ॐ नमः शिवाय"|

प्रश्न : एक अनुरोध है गुरूजी, क्या कल, सोमवार सुबह में हम आपके साथ रूद्र पूजा में हो सकते है?
श्री श्री रवि शंकर : ठीक है, हम सब साथ बैठकर रूद्र पूजा सुन सकते है| हम वह करेंगे| जो लोग एडवांस कोर्स पहली बार कर रहे हैं, उन्हें शायद समझ में न आये, लेकिन वे केवल संस्कृत में जाप है| आप केवल बैठकर जाप को सुन सकते है| यह मंत्र स्नान जैसा है|

प्रश्न : गुरूजी, मैं भूतकाल को पकड़कर रहता हूँ, कि कैसे सबकुछ इतना अच्छा था| मुझें पता है कि मुझें जाने देना होगा लेकिन मैं भूतकाल को पकड़े रहता हूँ| मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, क्या कहा आपने, वह भूतकाल में था, अब कोई दरकार नहीं| अब क्या है?

प्रश्न : गुरूजी, सेवा से ध्यान में क्या मदद होती है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, जब आप सेवा करते हैं, जिसके लिये भी आप सेवा करते है, वह आपमें कुछ सकारात्मक उर्जा, कुछ योग्यता लाता है| और उस योग्यता की वजह से आप ध्यान की गहरायी में जा सकते है| यदि आप ध्यान की गहरायी में नहीं जा सकते है, तो वह इस लिये क्योंकि आप स्वार्थी है, हर समय केवल अपने लिये सोचते हो| लेकिन यदि आपने कोई भी सेवा की हो, चाहे छोटी सी सेवा ही सही, समाज के लिये कोई सेवा, वह आपको ज्यादा से ज्यादा योग्यता लाती है और उस योग्यता से आप ध्यान कि गहरायी में जा सकते है| यह केवल अनेक में से एक तथ्य है, किन्तु सिर्फ यह एक ही नहीं है!

प्रश्न : गुरूजी, मुझे अपने काम में आर्ट ऑफ़ लिविंग के सिद्धांतों और मूल्यों को लागू करने में परेशानी हो रही है| मुझें समाज में इन्हें लागू करना आता है, और अपने निजी जीवन में कैसे लागू किया जाये इसका भी ज्ञान है, किन्तु जैसे ही मैं काम पर जाता हूँ, मुझें व्यापार मूल्यों और आर्ट ऑफ़ लिविंग के सिद्धांतों का सामंजस्य करना मुश्किल होता है| क्या आप मुझें कुछ उदहारण देंगें कि कैसे इन सिद्धांतों को लागू किया जा सके?
श्री श्री रविशंकर : सिद्धांत अनायास और स्वाभाविक रूप से लागू होते है, आप को किसी भी सिद्धांत को लागू करने के लिये कोई प्रयास नहीं करना पड़ता| क्या सिद्धांत? - जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करे - जब यह आपके मन में पहले से ही कायम होता है, आप उसे स्वचालित रूप से ही करने लगेंगे| तो, आर्ट ऑफ़ लिविंग का कोई भी सिद्धांत ऐसा नहीं है जिनको लागू करने के लिये आपको श्रम करना पड़े, समझे? चाहे सफलता या विफलता मिले - धैर्य रखे और यह अनायास रूप से होता है| क्या आपने नहीं देखा? प्राणायाम, क्रिया, इत्यादि के बाद शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से आप कितना बेहतर महसूस करते है| आप परिस्थितियों को सँभालने के लिये ज्यादा सक्षमता अनुभव करते है| कितने लोगों को ऐसा लगता है? (कई लोगों ने हाथ उठाया) देखिये, लगभग हर व्यक्ति| मैं कहता हूँ, वर्तमान में जियो, और यह भी सबसे सहज रूप से होने लगता है, है ना!

प्रश्न : गुरूजी, कई बार ऐसा क्यों लगता है कि अपने मन की शान्ति को भंग करने के लिये चीज़ें हो रही है? और अपने उत्तम प्रयास के बावजूद लोग अस्वाभाविक/अविवेकपूर्ण रूप से क्यों व्यवहार करते है?
श्री श्री रविशंकर : अच्छा, क्या आप हर समय विवेकपूर्ण रूप से व्यवहार करते है? यह सवाल अपने आप से पूछिये| क्या आप अस्वाभविक रूप से व्यवहार करते है? सभी लोग वैसे ही है| हर कोई कुछ और नहीं पर केवल आपका ही प्रतिबिम्ब है, और आप कुछ और नहीं पर दूसरों का प्रतिबिम्ब है| तो यदि उनका व्यवहार अपरिपक्व है, तो उन्हें परिपक्व होने के लिये कुछ और समय लगेगा| धीरज रखिये| यदि उनमें ज्ञान की कमी है, तो उन्हे ज्ञान दीजिये| बैठकर यह कहना व्यर्थ है, "दूसरे क्यों ऐसे है?"
आप जो हो रहा है उसकी चिंता करते रहते है, "ओह, यह क्यों हो रहा है? यह व्यक्ति क्यों ऐसा है? आप को यह बंद करना चाहिये| आपको पीछे मुड़कर यह देखना चाहिये कि आप क्या कर रहे है क्योंकि आप जो कर सकते है या आप जो कर रहे है उसपर आपका नियंत्रण है| दूसरों द्वारा या परिस्थिति द्वारा जो कुछ भी हो रहा हैं\ उसपर आप का कोई नियंत्रण नहीं है|
लेकिन हम उल्टा करते है| आप यह गौर नहीं करते है कि आप क्या कर रहे है, कैसे आप व्यवहार करते है, आप का दृष्टिकोण क्या है और आपके भीतर क्या हो रहा है| जिसपर आपका नियंत्रण है, उसपर आप ध्यान नहीं देते लेकिन आप दूसरों को नियंत्रण करने की कोशिश करते है| आप परिस्थिति को नियंत्रण करने की कोशिश करते है और दूसरों को दोष देते है, जब उसके लिये आप कुछ नहीं कर सकते| क्या आपको पता चला? दूसरों के मन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है| और आप दूसरों के मन को नियंत्रित करने कि कोशिश करते है| आप अपने मन को नियंत्रित कर सकते है जिसे आप बिलकुल नहीं देखते| नहीं? पूरी दुनिया इस कारण से नाखुश है| आपको पता है, यदि जो भी हो रहा है उसे नियंत्रित करना आप बंद कर देगें और जो आप कर रहे है उसपर आपका प्रभाव रखे तो आप ज्यादा शक्तिशाली, प्रभावी, मजबूत, सफल और खुश हो सकते हैं| बस यही है|