क्षमा करना कमजोरी की निशानी नहीं होती!!!

३०
२०१२
जून
बून, उत्तरी केरोलिना, अमरीका

प्रश्न : गुरूजी कभी कभी बच्चों से निपटना इतना मुश्किल हो जाता है कि मैं अपना संयम खो देती हूँ| रोज मैं तय करती हूँ कि शांत रहूँ लेकिन जब वैसी परिस्थिति बनती है तो मैं अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पाती| मुझे क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : इसके लिए आप कुछ भी नहीं कर सकतीं और आपको जीवन को सहज ही जीना होगा| आप समझ रहीं हैं ना मैं क्या कह रहा हूँ? कोई बात नहीं यदि कभी कभी आपको क्रोध आता है| जीवन में आपको त्रुटियों के लिए जगह रखनी होगी और उसे स्वीकारना होगा|

आप ने आर्ट ऑफ लिविंग के बेसिक कोर्से में क्या सीखा? लोगों को और परिस्थितिओं को जैसी वे हैं उसे स्वीकार करें| यह जीवन भर की प्रक्रिया है| रोज आपको इसका स्मरण करना होगा| जब ऐसी परिस्थिति आएगी तो इसका आपको स्मरण होगा, मुझे ऐसा ही करना है|
इसलिये हम इसी दिशा में चलते हैं| कभी कभी आप इससे भटक जाते हैं लेकिन कोई बात नहीं सिर्फ आगे बढ़ते चलें| निश्चित ही एक दिन आप पूर्णता को प्राप्त कर लेंगे|
एक दिन एक आर्ट ऑफ लिविंग के प्रशिक्षक जो बीस वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं ने मुझसे यह कहा गुरूजी कभी कभी यह इतना अजीब सा लगता है कि मैं हर समय खुश रहता हूँ चाहे कुछ भी हो जाये और मैने उससे कहा, "अंततः"|
२० साल कोई बहुत लंबा समय नहीं है, यह ठीक है| लेकिन आपको २० वर्षों की आवश्यकता नहीं है| बीते समय को याद करें और यह देखें कि आपमें कितना विकास हुआ, इसलिए उत्सव मनाये जाते हैं| गुरु पूर्णिमा का उद्देश्य क्या है? साल में एक बार आप बीते हुये साल को याद करके यह देखते हैं कि आप कहाँ थे और आपने कितना विकास किया| आप किसी स्थिति में कितने अलग ढंग से पेश आते हैं और आपकी भावनाओं में कैसे कमी आयी और कैसे प्रतिक्रियाओं में वृद्धि हुई|
जीवन निरंतर चलने की एक प्रक्रिया है|
कितने लोगों को लगता है कि उनमें बदलाव आया? (बहुत लोगों ने अपने हाथ उठाये)
कोई भी ऐसा नहीं कह सकता कि उनमें बदलाव नहीं आया| कोई यह नहीं कह सकता कि "मुझमें कोई बदलाव नहीं आया"|
यही कोई आप से कहता है कि आपको उन्हें सलाम करना चाहिये क्योंकि उन्हें जन्म से ही ज्ञानोदय हुआ है| कुछ बच्चे आपको बहुत कुछ सिखा सकते हैं| माता और पिता के लिए यह ठीक है कि वे अपने बच्चों के लिए थोड़े परेशान हों| आपको उन्हें हर समय अच्छे अच्छे शब्दों और बातों के साथ बड़ा नहीं करना है| इससे वे कमजोर हो जायेंगे|
मैने ऐसे पालकों को भी देखा है जो अपने बच्चों पर कभी नाराज़ नहीं होते| जब ऐसे बच्चे बड़े होने लगते हैं तो वे किसी तरह की आलोचना नहीं सह सकते| थोड़ी सी आलोचना, कुछ थोड़ा सा अनादार और थोड़ी सी असफलता उन्हें झुंझला देती है| वे इसके कारण इतने परेशान हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपने घर में ऐसा कुछ नहीं देखा होता है| इसलिये घर में बच्चो के साथ थोड़ा बहुत परेशान होना उन्हें वह टीका देने के जैसे है जिससे वे घर के बाहर की दुनिया में मजबूत बन जाते हैं| लेकिन बच्चों को बार बार परेशान करने के लिए बहाना नहीं बनाना चाहिये, यह काम नहीं करेगा| इसका बहुत ज्यादा प्रयोग भी ठीक नहीं है| यदि आप बच्चों से बहुत अधिक क्रोध करेंगे तो वे इतने निर्लज्ज बन जायेंगे कि उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा| यह भी ठीक नहीं है| थोड़ा बहुत क्रोध करना ठीक है|

प्रश्न : ज्योतिष विज्ञान को कितना महत्व देना चाहिये खास तौर पर जीवन साथी चुनने के समय?
श्री श्री रविशंकर : यह ठीक है, आप यह देख सकते हैं कि स्वाभाविक रूप से आपकी कुंडली कितनी मिलती है और आपको कितना समझौता करना होगा|
सामान्यतः वैदिक ज्योतिष विज्ञान कहता है कि ३० गुणों में से २० गुण का मिलन हो रहा है और १० गुण के लिए आपको समझौता करना होगा| यह गणना तो होती है| इसे जानना ठीक है, और यदि आप परेशान हो रहे हों तो इससे यह स्मरण होना चाहिये कि कुछ और समझौते की आवश्यकता है|
ग्रहों के निश्चित ही प्रभाव होते हैं लेकिन इसे एक तरफा नहीं समझना चाहिये| आपका भी ग्रहों पर प्रभाव होता है| यह दो तरफा है| ब्रह्माण्ड में सब कुछ दो तरफा होता है|
इसके लिए आप क्या कर सकते हैं? आप मंत्रोचारण कर सकते हैं| इसलिये यह कहा जाता है कि ॐ नमः शिवाय वह मंत्र है जो सारे ग्रहों को नियंत्रित करता है| सभी ग्रहों के ऊपर शिव का सिद्धांत है| इसलिये सुधार यहाँ पर उपलब्ध है| वह सुधार है ॐ नमः शिवाय मंत्र क्योंकि इस मंत्र में वे सभी तत्व हैं जो सभी दुष्प्रभावों को प्रभावहीन कर देता है| क्या आपको पता है इसकी संख्या १०८ क्यों होती है? आप में से कितनो को यह पता है कि १०८ का क्या महत्व है? १०८ का अर्थ है ९ गृह और १२ राशियाँ, और नक्षत्र| जब ९ गृह १२ राशियों और नक्षत्रों पर से गुजरते हैं तो वे १०८ परिवर्तन लाते हैं| इसलिये इस १०८ प्रभावों या दुखद प्रभावों को प्रभावहीन करने के लिए हम ॐ नमः शिवायमंत्र का जप करते हैं|
यह एक कवच के समान है| इसे अत्यंत पवित्र मंत्र माना गया है| नीचे से इस हॉल में आने के लिए भी १०८ सीढियां हैं| इसका अर्थ है कि ग्रहों के प्रभावों से परे होकर पवित्र चेतना को उच्च कर लेता है| साधना, प्राणायाम, ध्यान, सत्संग, मंत्रोचारण और गान करने क्या फायदा यदि सब कुछ ग्रहों के प्रभावों से ही होता है? यह नियंत्रण और संतुलन के जैसे है| यह उसके प्रभावों का सामना करके उसमे से और स्वतंत्रता लायेगा अन्यथा हमारी चेतना समय और अवकाश पर आधारित होगी| साधना भी बहुत हद तक मुक्ति देती है| मैं १००% तो नहीं कहूँगा लेकिन काफी हद तक| यह वैसा है कि बारिश हो रही है तो आपके पास विकल्प है कि या तो भीग जाये या रेनकोट पहनकर नहीं भीगे|

प्रश्न : यदि हम अपने निर्णय से सुनिश्चित नहीं है जैसे शादी करे या ना करे तो क्या हमें हवा के साथ बहकर शादी कर लेनी चाहिये या तब तक इंतज़ार करना चाहिये जब तक हम सुनिश्चित न हो जाये?
श्री श्री रविशंकर : यह आपने अपने साथी से पूछना चाहिये जिससे आप शादी करना चाहते हैं| ऐसे कुछ लोग होते हैं जो मन से चंचल होते हैं और हर बात के लिए जिसमे शादी भी शामिल है उन्हें सहारे की आवश्यकता पड़ती है और कुछ ऐसे होते है जिन्हें जीवन में सिर्फ एक बार ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है| इसलिये इसका चुनाव मैं आप पर छोड़ता हूँ| कुछ ऐसे भी हैं जो जब भी किसी सुन्दर लड़की या लड़के को देखते हैं तो उनका शादी करने का मन हो जाता है और जिस क्षण यह गहराने लगता है तो उन्हें संदेह होने लगता हैं कि शादी करनी या नहीं करनी चाहिये या इससे कोई और बेहतर मिल सकता है| मैं फिर से यहीं कहूँगा कि अपने साथी का मत लीजिए कि क्या आप ऐसे चंचल मन के व्यक्ति से शादी करना चाहेंगी| सामान्यता मेरा इसके लिये उत्तर रहता है कि "चुनाव आपका आशीर्वाद मेरा"|

प्रश्न : मेरी बहुत बड़ी इच्छा है कि मैं प्रिज़न स्मार्ट कार्यक्रम को मियामी और फ्लोरिडा
में लेकर आऊं| मैं क्रिमिनोलोजी और सायकोलोजी में स्नातक हूँ| हमारे राज्य में काफी सारा पैसा प्रिज़न,भवन और शिक्षा के लिये आवंटित होता है| मैं कैसे मदद कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : यह अच्छा है, आगे बढ़े| और जब आप जेल के अधिकारीयों के साथ भेट करे तो अकेले न जाये| ४ से ५ लोगों के समूह में जाकर उनसे बात करके उन्हें समझाये| उन्हें वीडियो दिखाए और लोगों का अनुभव दिखाए जो इस कार्यक्रम को कर चुके हैं और उनके जीवन में कितना और क्या बदलाव आया| कोई भी समझदार व्यक्ति इसके लिये ना नहीं कहेगा जब वह इन अनुभवों को सुनेगा| ये बिलकुल अद्भुत हैं और किसी के भी दिल को छू सकते हैं|

प्रश्न: मृत्यु की कोई उम्र नहीं होती तो जब कोई युवा और वृद्ध की मृत्यु होती है तो क्या उनकी आत्मा की समान आयु होती है?
श्री श्री रविशंकर : आत्मा की कोई आत्मा नहीं होती और आपने सही कहा कि वह कभी नहीं मरती| मृत्यु का कोई समय नहीं होता और आत्मा की कोई आयु नहीं होती| सब कुछ शुरुआत से प्रारंभ हो जाता है|

प्रश्न : जब सबकुछ अस्पष्ट हो तो उसमे मैं स्पष्टता को कैसे प्राप्त करू?
श्री श्री रविशंकर : एक चीनी कहावत है जो कहती है कि जब आप भ्रम में हो तो एक तकिया लेकर सो जाये' और फिर आप जब सुबह उठेंगे तो आप और बेहतर महसूस करेंगे| आपको पता है कि यह हमारी महत्वाकांक्षा ही है जो हमें चीजों का चुनाव करने नहीं देती| मुझे अभी ही किसी का एक दिलचस्प एस.एम.एस., आया कि एक भक्त किसी अत्यंत धनी व्यक्ति के घर पर गया और उन्होंने उससे पूछा कि आप क्या पियेंगे? चाय, काफी, कोक हॉट चोकलेट, दूध, ओजस्विटा और तरह सूची चलती रही| फिर भक्त ने कहा कि मैं चाय लूँगा|
फिर उससे पुछा गया कि "आप कौन सी चाय पीना चाहोगे? सीलोन चाय, फ्रूट चाय,दार्जलिंग चाय, इंडियन चाय या बर्मीस चाय? और उन्होंने और १० चाय का विकल्प दिया|"
फिर उन्होंने पूछा कि आप कौन सी चाय लेंगे काली चाय, दूध की चाय ठंडी चाय या चाय के साथ नींबू? किस किस्म की चाय? उसने कहा दूध की चाय|
किस किस्म का दूध आपको चाहिये? क्रीम वाला या बिना क्रीम का, पूरा दूध २%, २.५? या १०%?
उसने कहा हे भगवान मुझे काली चाय ही दे दीजिये| तो क्या आपको उसमे शक्कर चाहिये| उसने कहा हां! फिर उससे पूछा गया कैसी शक्कर? क्रिस्टल शक्कर, भूरी शक्कर या शहद? उसने कहा मैं प्यास से मर रहा हूँ| फिर दुसरे व्यक्ति ने कहा कि आप कैसे मरना चाहते हो? हमारी कंपनी में शेयर होल्डर बनकर या सप्लायर बन कर? इसलिये कई सारे विकल्प आपके सिर को भारी कर सकते हैं|

प्रश्न : इस पर टिप्पणी करे| मैं देखता हूँ आपके निकट कई लोग है| मुझे लगता है कि मैं विशेष नहीं हूँ? मैं आपसे व्यक्तिगत संबंध कैसे बना सकता हूँ? मुझे लगता है कि इस पथ पर १००% होने के लिये व्यक्तिगत संबंध आवश्यक है?
श्री श्री रविशंकर : कुछ बातों को आपको मान कर चलना होगा और आपको यह मान कर चलना होगा कि आपका और मेरा व्यक्तिगत संबंध है और इस पर ही विराम लगा दीजिये और फिर इस पर कोई प्रश्न न करे| संबंध पर प्रश्न करने का कोई औचित्य ही नहीं है| हम सब आपस में जुड़े हुये हैं और इसका कोई विकल्प ही नहीं है न आपके पास और न मेरे पास| सिर्फ विश्राम करे यदि यह प्रश्न आपको ज्यादा परेशान करता है| यह न सोचे कि कुछ लोग मेरे करीबी है और कुछ नहीं और कुछ लोग विशेष है और कुछ नहीं| आप भी विशेष है और हर कोई अद्भुत|
अपने आप को किसी परियोजना से जोड़े| जितना ज्यादा आप किसी परियोजना से जुड़े होंगे उतना ही हमें आपस में चर्चा करनी पड़ेगी| अन्यथा बात करने के लिये कुछ भी नहीं है सिवाय आप कैसे हो, आपका कैसा चल रहा है? आप कहेंगे हाँ और मैं भी हाँ कहूँगा और फिर हम जुदा हो जायेंगे| लेकिन जब आपके पास कुछ करने को हो तो जैसे सुशांत ने ट्विटर पर कुछ किया तो मैने कहा इसे देख कर इसकी चर्चा करेंगे| मुझे भी सीखना है कि ट्विटर क्या होता है|
सुशांत को उसके लिये पुरस्कार भी दिया गया| क्या आपको उसके बारे में पता है? वह ओबामा के अभियान में था और सुशांत ने ट्विटर पर कुछ किया और उसे दो दिन पहले इसके लिये पुरस्कृत किया गया| ट्विटर कंपनी ने उसे सम्मानित किया| उसने बॉक्स से हट कर सोचा और कंपनी ने उसे पुरस्कृत किया| कोई परियोजना जो आपको पसंद है उसमे शामिल हो जाये|
मिनाक्षी एक बेहतरीन भोजन बनाने की किताब लेकर आई| मिनाक्षी और उसकी टीम एक बेहतरीन भोजन बनाने की किताब लेकर आई| यह वास्तव में किताब नहीं है बल्कि सिर्फ पन्ने हैं जिसे सामने रख कर खाना बनाया जा सकता है| यह एक योजना है और जो भी कोई एक योजना लेकर आता है तब बैठ कर कुछ बात करने का मतलब है| अन्यथा मौन में, ध्यान में हम आपस में जुड़े हुये होते हैं| (सभी ने अपने हाथ उठाये)| देखो सबको मिल रहा है| मैं अपना काम अच्छे से कर रहा हूँ|

प्रश्न : मुझे बहुत कामुक से विचार आते हैं| क्या यह हानिकारक होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : कोई बात नहीं, इसकी चिंता न करे अपने विचारों से अपने आप को न पहचाने| विचार सिर्फ विचार ही है|वे आते जाते रहते है| इसकी चिंता न करे| जब तक आप उन पर बल नहीं देते और उस पर कृत्य नहीं करते तब तक आप सुरक्षित है|
आपकी चेतना इतना केंद्रित होने के लिये और वैराग्यपूर्ण होने के लिये समय लगता है जिससे ऐसे विचार ही नहीं आये और यह इतने जल्दी ठीक नहीं होता| यह अपना ही समय लेता है| आपने देखा होगा कि जैसे आपकी साधना में सुधार होता है तो इस प्रकार के विचार में कमी आती है, ठीक है ना? फिर कामुक और हिंसात्मक विचार में कमी आती है|

प्रश्न : मुझे उद्घाटन में आशीर्वाद देने के लिये धन्यवाद| यह बहुत ही अद्भुत था| प्रत्येक वक्ता के शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया| मैं अपनी बहन और पालकों को धन्यवाद देना चाहूंगी जो ध्यान, प्रतिबद्धता और सेवा का मेल है| मेरे कल्पना के छोटे से दायरे में मैं अपने आप को यहाँ इस क्षण में पाती हूँ| मैं आर्ट ऑफ लिविंग के प्रशिक्षक, भाई और बहनों को धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मुझे इस पथ पर रहने के लिये प्रेरित किया| मेरे पति और बेटे ने मुझे अद्भुत प्रेरणा मुझे दी जिन्हें मैं अपना पहला गुरु मानती हूँ| उन्होंने मुझे साधक बनाया| इन सभी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद|
श्री श्री रविशंकर : यह अच्छी बात है| हमें इसी बात को समझना होगा| हमारे संबंध बहुत महत्वपूर्ण होते हैं| हमारे मित्र, रिश्तेदार हमें ऊपर उठा सकते हैं या हमें गिरा सकते हैं| आप को यह भी देखना होगा कि जो भी व्यक्ति नकारात्मकता की ओर जा रहा हो तो उसे आप को उठाना चाहिये| आप को उन्हें नकारक प्रवृतिओं से निकालना चाहिये| नकारक भावनाओं में फँसना बहुत आसान है और दुनिया भर में दोष देना और शिकायत करना काफी प्रचलित होता है लेकिन ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है| जब हम अपने आप को ज्यादा से ज्यादा ज्ञान में भिगों लेते है तो फिर हमें आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है और फिर हम सब को उठा सकते हैं|

सामान्यतः औपचारिक कार्यक्रम उबाऊ होते हैं, आधे से ज्यादा व्यक्ति सो जाते हैं| लेकिन आज का कार्यक्रम बहुत अच्छा था, सभी लोग जिंदादिल थे| और मुझे लगता है इसका श्रेय सिर्फ वक्ताओं पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि श्रोताओं पर भी निर्भर करता है| यह श्रोताओं पर निर्भर करता है कि वे वक्ताओं में से अच्छी बातें कैसे निकाले| इसलिये जब आप सब यहाँ होते हैं, बहुत सचेत और जागरूक लोग जब वे सुन्दर दिल, आशय और बड़े दृष्टि के साथ होते हैं तब वक्ता भी उचित बातें कहते हैं| इसलिये यह अक्सर वक्ता और श्रोता का ही मेल है| और वक्ता कितना भी अच्छा हो लेकिन यदि श्रोता ग्रहणशील न हो तो फिर अच्छे शब्द निकलते ही नहीं हैं और फँस जाते हैं|

प्रश्न : किसी व्यक्ति के प्रति क्रोध और घृणा से कैसे निपटा जाये जब हम उसे टाल नहीं सकते, खास तौर पर जब वे पूर्णता भिन्न आवृत्तियों पर होती हैं?
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले यह समझ लीजिये आप उदार है| यदि आप उदारता और अपने भीतर की सुंदरता पर विश्वास करते हैं तो इन सभी परिस्थितिओं से आसानी से निपट सकते हैं| जब आप अपने भीतर की ओर नहीं देखते तो फिर आपका ध्यान दूसरों के व्यवहार केंद्रित रहता है और फिर निश्चित की आपका मन झुनझुनाता है| फिर आप व्यक्ति को ठीक करने की कोशिश करते है जिसमे आप असफल हो जाते हैं|
जो व्यक्ति आपको किसी भी रूप में चिड़चिड़ाता है वह आपमें से आपका श्रेष्ठ लायेगा| वे लोग आपमें कौशल और प्रतिभा निखार सकते हैं| यदि आपके आसपास के सभी लोग अच्छे हो तो आपको किसी परिस्थिति को संभालने की आवश्यकता नहीं होगी| यह तभी संभव होगा जब आप समझते हैं कि आप के आसपास के कुछ लोग  अनुचित हैं| इसलिये यह एक अभ्यास है और जितना संभव हो इसे एक अभ्यास की तरह ही लीजिये| मुझे मालूम है कि यह आसान नहीं है लेकिन कम से कम आप अपने मन को तो बचा सकते हैं| मैंने इन सब के बारे में मौन की गूँज और Celebrating Love किताबों में कहा है आप उसे पढ़ सकते हैं| जिस क्षण आप में भीतर से स्वीकार करने की कला आने लगती है तो आप पायेंगे कि दूसरे व्यक्ति में भी बदलाव आने लगता है| यह अजीब जरूर है लेकिन सत्य है| जब हम बदलते हैं तो दुसरे भी बदल जाते हैं|

प्रश्न : मैं अपने परिवार वालो के लिये बहुत कुछ करता हूँ लेकिन वे फिर भी कहते हैं कि मैं गलत हूँ| मैं क्या करूं और इससे कैसे निपटूं?
श्री श्री रविशंकर : नहीं ऐसा मत कहिये कि वे हरदम ऐसा कहते हैं| यदि वे हर समय ऐसा कहते तो आपको कोई फर्क ही नहीं पड़ता और उनकी कोई बात आपको नहीं छूती| आप उसको उनका स्वभाव मान लेते| कभी कभी उन्होंने यह भी कहा होगा कि आप ठीक हो| ठीक है|
जब आप ठीक है और वे आपकी तारीफ करते कि आप जो कर रहे हो वह ठीक है तो फिर जब आप गलत है और वे आपकी तारीफ़ नहीं करते तो वह भी आपको स्वीकारना होगा| आपको एक मध्य मार्ग खोजना होगा| क्या आपको पता है कि हम अक्सर समस्या का सामान्यीकरण करके उसे बाह्यरूप दे देते हैं| ओह "मैं हर समय गलत हूँ", "ओह मैं हर समय ठीक हूँ", "मैं तो ऐसा ही हूँ", सब लोग खराब है| इस तरह समस्या का सामान्यीकरण करना और उसे बाह्यरूप देना बहुत ही सामान्य है| हमें इससे निकलने के लिये प्रयास करने के लिये कदम उठाना चाहिये और उससे परे हो जाना चाहिये| आप सिर्फ मुस्कुरायें| यदि आप को लगता है कि वे बहुत ही अनुचित हैं और उनकी आलोचना ठीक नहीं है फिर भी आप को मुस्कुराना चाहिये| आपको उससे फर्क नहीं पड़ना चाहिये| आपको उन्हें शिक्षित करके अनदेखा कर देना चाहिये और जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिये|
आप कर भी क्या सकते हैं
| जब आप ध्यान करते हैं तो कोई ना कोई शिकायत करता है कि तुम आँख बंद करके क्यों बैठे हो, यह सब बेकार है इसे करने की कोई आवश्यकता नहीं है| कोई बात नहीं| दुसरे दिन जब आप उठेंगे तब मुस्कुरायें और फिर से ध्यान में बैठ जाये और फिर वे अपना मुंह मोड़ लेंगे|

प्रश्न : जब हमारा सच्चा स्वभाव प्रेम है तो किसी को चोट पहुँचाने में क्यों अच्छा लगता है जब हम खुद चोट खाये हुये होते हैं? दुसरे के प्रति प्रतिकार करने से अपने आप को कैसे रोकना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : आपको सच्चे साधक की अंतरंग वार्ता नाम की पुस्तक पढ़ना चाहिये| मैंने इन विषयों पर उसमे काफी कुछ कहा है|
क्या आप श्रुंखला को निरंतर रखना चाहेंगे| आप उन्हें चोट पहुँचायेंगे फिर वे आपको और वे अपना प्रतिकार देंगे| क्या आप प्रतिकार लेना चाहेंगे? मैं आप से एक प्रश्न पूँछ रहा हूँ|
बिना किसी आशय के यदि आप से कोई गलती हो जाये| यदि कोई आप को आपकी गलती का प्रतिकार देने लगे| आपने जो कुछ भी कहा उससे उन्हें गहन चोट पहुंचाई और आपने उनसे सौ से अधिक बार माफी मांगी और फिर भी यदि वे अपना प्रतिकार देना चाहें और आप से बदला लेना चाहें तो आपके मन की स्थिति क्या होगी? वह आप को कैसा लगेगा? आप १ मिनिट दूसरों की जगह पर अपने आप को रख कर देखे? आप वैसा नहीं चाहेंगे| आप कहेंगे कि मैंने तो माफी मांगी थी| मैंने तो चाहा था कि मुझे माफ कर दिया जाये|
कल्पना करे कि कोई आप को छोटी सी गलती के लिये जो आपने बिना किसी आशय या अज्ञान में की थी, उसके लिये आप को माफ करने से इन्कार कर दे, तो फिर आप को कैसा लगेगा? जब आपको माफी मिल जाना अच्छा लगता है तो फिर आप क्यों माफ नहीं कर सकते? दूसरों को चोट पहुंचा कर उसमे आनंद पाना कोई अच्छी बात नहीं है| इस का अर्थ सिर्फ यह है कि आप अपने पर ध्यान आकर्षित करवाना चाहते हैं| इसे ठीक करने की आवश्यकता है| यह हमारा मानसिक रोग है| यह सिर्फ हमारे मन की बिमारी है कि हम किसी को दुखी करके खुश हो रहे हैं| इसे आप क्या कहेंगे| परपीड़क| किसी को दुखी करके खुश हो रहे हैं|
देखो तुम ने मुझे पीड़ा दी है अब मैं तुम्हे पीड़ा दूंगा उस किस्म की खुशी आप के लिये नहीं है| यह क्षण भर के लिये खुशी की तरह प्रतीत होता है लेकिन यह हज़ारो गुना बन कर आप के पास आ जाता है| इसलिये उसके पीछे न भागे| जब आप किसी को माफ कर देते है तो उससे कितनी अधिक खुशी और सुख प्राप्त होता है| यदि कोई आप से माफी मांगता है तो यह आप की उदारता होनी चाहिये कि कोई बात नहीं'| मैं आप से कहता हूँ आपकी उदारता माफ करने में हैं और वही हम करते हैं|
लेकिन यदि वे फिर भी गलत करते रहते हैं और वे आप के द्वारा मांगी गई माफी का सम्मान नहीं करते तो फिर एक डंडा लीजिये, उन्हें चुनौती दीजिये या न्यायालय की शरण में जाये इत्यादि| लेकिन आपको किसी को ठीक होने का पर्याप्त मौका और समय देना चाहिये| क्षमा करना कमजोरी की निशानी नहीं होती और ऐसा मान कर नहीं चलना चाहिये| और उसी समय आपका माफ न करना आपके लिये अच्छी बात नहीं है| आप क्या सोचते हैं? ठीक है ना?

प्रश्न : एक कष्टप्रद विवाह से कैसे निपटा जाये खास तौर पर जब उसके द्वारा दो बच्चों का जन्म हुआ है? उन दो बालिकाओं का मार्गदर्शन कैसे किया जाये जो इस कष्टप्रद विवाह के मध्य में फँस गयी है?
श्री श्री रविशंकर : जब कोई विवाह टूट जाता है तो फिर आपको बच्चों की मनोवृत्तियों को ध्यान से निपटना होगा| अधिकतर पालक अपनी परेशानियां अपने बच्चों पर उतार देते हैं| वे अपने पति या पत्नी के बारे में बुरी बातें कहते हैं जिससे बच्चे उनके पास रहे| ऐसा न करे| यह नहीं कहे कि तुम्हारी माँ या पिता बुरे हैं, इससे कोई भी फायदा नहीं होगा|
आपको उनको सिर्फ यह समझाना होगा कि हम दोनों ने मिलकर यह तय किया है कि हम दोनों अपनी राह पर चलेंगे लेकिन हम दोनों आप से बहुत प्यार करते हैं| यह बहुत ही नाज़ुक और मुश्किल लेकिन क्षणिक परिस्थिति होती है| आपको पता है कि यह बुरा वक्त भी निकल जायेगा, यह आपको मालूम होना चाहिये| सिर्फ धैर्य और भक्ति रखे| आपकी भक्ति, ध्यान और साधना से आपको सहायता मिलेगी| ठीक है|
कभी कभी हमको जीवन की कड़वी सच्चाई को सहना पड़ता है लेकिन उसके बारेमें सिर्फ सोचते नहीं रहना और उसके प्रति एक बड़ी दृष्टि होनी चाहिये| अपने बच्चों को आपने भविष्य का एक अच्छा चित्र दिखाना चाहिये| यदि आप उन्हें भविष्य के किसी प्रयोजन के लिये व्यस्त रखे तो वे वर्तमान के कड़वे क्षणों का सामना आसानी से कर लेंगे और उसे दिल से नहीं लगाएंगे| आपको उन्हें भविष्य का एक बेहतर चित्र दिखाना चाहिये या उन्हें यह बताना चाहिये कि उन्हें बड़े होकर क्या करना चाहिये या इस देश की क्या आवश्यकता है| जैसे जैसे आपके सामने बड़ी चुनौतियाँ और समस्यांए आती हैं तो छोटी छोटी व्यक्तिगत कड़वी बातें अपना महत्व खो देती है| यही इस स्थिति से निपटने का सबसे बेहतर तरीका है|

प्रश्न : छोटी पूजा करने के बजाय बड़ी और लंबी पूजा करने का क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर : यह बिलकुल वैसा ही है कि आप के रोज़मर्रा के ध्यान के उपरान्त आप एडवांस कोर्स में लम्बे ध्यान के लिये बैठते हैं| इन सबका प्रभाव होता है| पूजा को बहुत लंबा नहीं होना चाहिये लेकिन पूजा जनता के लिये की जाती है| सिर्फ एक व्यक्ति विशेष के लिये नहीं बल्कि पूरी जनसंख्या के लिये|


प्रश्न : सुदर्शन क्रिया के अंत में हम दाहिनी ओर क्यों मुड़ते हैं? मैंने इसके बारे में पहले भी पूंछा है लेकिन कोई इसका उत्तर नहीं देता?
श्री श्री रविशंकर : वे बुद्धिमान हैं| वे चाहते हैं कि आप टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स और टीचर्स रिफ्रेशर मीट में आयें जहां पर हम सब यह चर्चा करते हैं| यह सब वास्तविक रहस्य है|