मुक्त हो जाईये, खुश हो जाईये, और सेवा करिये!!!

२८
२०१२
जुलाई
बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न : बहुत संघर्ष के बाद मैंने आपको गुरु के रूप में प्राप्त किया है| अगले जन्म में मैं दोबारा खो जाऊं और फिर गुरु द्वारा उठाया जाऊं ऐसा न हो, इसके लिए क्या समाधान है?
श्री श्री रविशंकर : चिंता करने के लिए तो इस क्षण में ही बहुत सी बातें हैं| आप अगले जन्म के लिए उन्हें क्यों टाल रहें हैं? आज, अभी, इस समय आपके पास मौका है| मुक्त हो जाईये, खुश हो जाईये, और सेवा करिये, हाँ!
हम अगले जन्म के बारे में बाद में देखेंगे|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैं सत्संग में या फिर कुछ आर्ट ऑफ लिविंग कोर्सों में रोता क्यों हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप रोते क्यों हैं? मुझे लगता है, कि आपको हंसना चाहिये, है न? मुस्कुराईये!
उपनिषद में एक श्लोक है जो कहता है, बिध्यंती हृदया ग्रंथि, चिद्यांठे सर्व संशयः, क्शीनातेचास्य कर्मणि, यास्मिन द्रिस्टे परावरे (मांडूक्य उपनिषद)
अर्थात, जब आप अपने प्रियतम को देखते हैं, तब आपके दिल की गांठे खुल जाती हैं, और आंसूं आते हैं| मन की सारी विडंबनाएं और प्रश्न मिट जाते हैं, और सारे बुरे कर्म भी नष्ट हो जाते हैं| ऐसा उपनिषदों में कहा गया है|
इसलिए, आप नहीं जानते कि आप क्यों रो रहें हैं| ऐसा इसलिए, कि आपके दिल की कुछ गांठे ढीली हो रहीं हैं, खुल रहीं हैं यह एक बात है| और इसमें कुछ भी गलत नहीं है, जब दिल खिलता है, तब आंसूं आते हैं और भावनाएं उमड़ पड़ती है| कृतग्यता और प्रेम भी आंसूओं से सम्बंधित हैं, केवल दुःख से ही नहीं| इन्हें मीठे आंसूं कहते हैं|
भक्ति सूत्रों में कहा गया है स्वर्गदूत भी उन आंसूओं की बूंदों के लिए तरसते हैं, जो प्रेम के कारण बहते हैं
अब अगर आपमें से कुछ लोगों को आंसूं नहीं आते हैं, तो ऐसा मत सोचिये, कि ओह, मैं भाग्यशाली नहीं हूँ, मैं रो नहीं सकता| नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है| अगर आपको आंसूं आते हैं, केवल तभी आप विकसित हैं नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है| यह केवल कुछ लोगों का मेक-अप होता है| कुछ लोगों के लिए ज्यादा भावनाएँ होती हैं, उन्हें मन में ज्यादा खाली और खोखले का अनुभव होता है| कुछ लोगों को भावनाओं की लहरें बहा ले जाती हैं|
ये अलग अलग अनुभव हैं| और अलग अलग समय पर लोगों को ये भिन्न तरह के अनुभव होते हैं| हर एक को ऐसा हो, ये ज़रूरी नहीं है|
और ये किसी भी तरह से अधिक विकास के सूचक नहीं हैं| ये एक तरह के संकेत ज़रूर हैं, मगर सिर्फ यही एक संकेत नहीं है|

प्रश्न : गुरूजी, क्या आप कृपया अहिंसा के बारे में बात कर सकते हैं? एक मांसाहारी व्यक्ति अगर कहे कि तुम शाकाहारी लोग भी पेड़-पौधों को मारते हो, उन्हें भी दर्द होता है और वे भी दर्द से चीखते हैं तो इस बात का एक शाकाहारी व्यक्ति क्या जवाब दे सकता है?
श्री श्री रविशंकर : उन मांसाहारी व्यक्तियों से पूछिए, कि अगर उनके घर में एक पालतू कुत्ता है, तो क्या वे उसे डाइनिंग टेबल पर रखेंगे? नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे! कोई भी नहीं करेगा|
देखिये, हमारी मानवीय प्रणाली शाकाहारी भोजन करने के लिए बनी है| इसके ऊपर बहुत से संशोधन भी हुए हैं| आप गूगल में जाकर सर्च करिये, मुझे शाकाहारी क्यों होना चाहिये? आपको बहुत से उत्तर मिल जायेंगे| आपको गूगल में सारे उत्तर मिल जायेंगे|
आपकी नीयत ही अहिंसा है|
मन की जिस स्थिति में आप जाकर किसी चीज़ का विनाश करते हैं वह हिंसा है| अहिंसा वह है, जब आपका मन पूरी तरह से अहिंसात्मक है, और किसी भी वस्तु का विनाश नहीं करना चाहता, विध्वंस नहीं करना चाहता| यह अहिंसा है|
एक ऋषि हुए हैं, जिनका नाम था कणाद| वे फसल नहीं काटते थे, वे केवल खेतों में से जाकर बीज उठा लाते थे| तो कणाद महर्षि ने यह भी कहा, कि हमें पदार्थों को समझने की ज़रूरत है| पदार्थ ग्यानानद मोक्षः यदि आप उन पदार्थों को समझ लें, जिनसे यह संसार बना है, तो आप मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं|
पौधों से आप केवल फल तोड़ रहें हैं, सब्जियां तोड़ रहें हैं| कम हानि हो यही सराहनीय है|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, विशालाक्षी मंडप कमल के फूल की तरह क्यों है? क्या ये इसलिए क्योंकि आपको कमल का फूल बहुत पसंद है? विशालाक्षी और सुमेरु का अर्थ क्या है?
श्री श्री रविशंकर : ये अच्छा है, है न? (सभी लोग हँसते हैं)
आप सौ अलग अलग कारण ढूँढ सकते हैं| हमने बस सोच लिया कि ऐसा कुछ करते हैं, और अब यह अच्छा लग रहा है, बस इतना ही है!
अगर मैं इसे गुढल के फूल जैसा बनाता, तब भी आप मुझसे यही प्रश्न पूछते! कि गुढल क्यों? इसलिए इसका प्रयोजन बताने की कोई ज़रूरत नहीं है, कि यह फूल क्यों, वह फूल क्यों नहीं| मैं नहीं चाहता, कि कोई और फूल इसका बुरा मान जाए| (सब हँसते हैं)
विशाल माने बड़ा, अक्षी माने आँख, तो मतलब विशाल दृष्टिकोण| तो जब सब लोग इसके अंदर जाते हैं, तो उनका दृष्टिकोण विशाल हो जाता है और वे सभी चीज़ों को एक विशाल दृष्टि से देखने लगते हैं| है न? ( सभी लोग तालियाँ बजाकर हामी भरते हैं)
ध्यान करने से यही होता है आपकी दृष्टि विशाल होती है, और जड़ें मज़बूत होती हैं|

प्रश्न : गुरूजी, मैं पहले बहुत भक्ति का अनुभव करती थी, लेकिन अब लगता है जैसे समय के साथ ये कम हो गया है| पतंजली योग सूत्रों में आपका संभाषण सुनकर ऐसा महसूस हुआ कि ये मेरा स्वभाव नहीं है| कृपया क्या आप मुझे बता सकते हैं, कि मैं दोबारा वैसी भक्ति कैसे महसूस करूँ?
श्री श्री रविशंकर : भक्ति तो हमेशा होती है, लेकिन कभी कभी उस पर बादल आ जाते हैं| श्रद्धा समय के साथ ऊपर और नीचे होती रहती है| लेकिन अगर वह कभी नीचे चली जाए, तो ऐसा मत सोचिये, कि अब यह हमेशा वहीं रहेगी| वह दोबारा ऊपर अवश्य जायेगी|
यह मन का स्वभाव है, क्योंकि मन ऊपर नीचे जाता है, जिससे यह प्रतीत होता है कि हमारा प्रेम और श्रद्धा ऊपर और नीचे जा रहा है| और इन सब का सम्बन्ध प्राण से है| अगर प्राण ज्यादा है, तब श्रद्धा भी ऊपर है| अगर प्राण कम है, तब मन कहेगा, ओह, यह क्या है? क्या मैं सही जगह हूँ? क्या मैं ठीक काम कर रहा हूँ? तब मन में अनेक विडंबनाएं आती हैं|
इसलिए, जब आप अपने अस्तित्व के केन्द्रीय मूल में स्थापित हो जाते हैं, जब आप ज्ञान में बहुत अच्छी तरह से स्थापित हो जाते हैं, सिर्फ तभी वह स्थिरता आती है| इसीलिये, प्राचीन समय में संत यह प्रार्थना करते थे, प्रिय ईश्वर, मुझे अचल श्रद्धा प्रदान करिये|
इतने सारे संतों ने इस बारे में गीत गायें हैं, और अचल श्रद्धा व अटूट भक्ति की प्रार्थना करी है| अभंग प्रेम!
केवल यही है, जो हम वास्तव में मांग सकते हैं, क्योंकि यह अपने आप में एक उपहार है! जब आपके अंदर प्रेम और भक्ति है, तब देखिये कि जीवन में कितना परिवर्तन आ जाता है| और जब ये बिखर जाते हैं, तब देखिये क्या होता है एक तरह की जड़ता आ जाती है| मन में उदासी और निराशा उत्पन्न हो जाती है, और जीवन निरर्थक लगने लगता है| ऐसा लगने लगता है जैसे हर दरवाज़ा बंद हो गया है, और आपको हर जगह केवल अँधेरा ही नज़र आता है| इसे ईसाई धर्म में Dark Night of the Soul (आत्मा की अँधेरी रात) कहते हैं| आत्मा को इस तरह की अँधेरी रात से गुज़रना पड़ता है|
लेकिन मैं कहता हूँ, कि आपको इसमें से गुजरने की कोई ज़रूरत नहीं है, यदि आप योगी है तो|
योगसूत्रों में मैंने योग के पथ पर नौ बाधाओं के बारे में चर्चा करी है| और यह भी कि हम कैसे उनसे जीत सकते हैं|
एक-तत्व अभ्यास जब आप केवल एक सिद्धांत का पालन कर रहें हैं, तब आप इन बाधाओं को पार कर पाएंगे, या फिर जो बाधा जैसे दिख रहें हैं|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, जब मैं अत्यधिक प्रेम या भक्ति का अनुभव करता हूँ, तो मैं अपनी सजगता खो बैठता हूँ| लेकिन जब मैं सजग होता हूँ, तब मैं भक्ति की तीव्रता खो देता हूँ| मैं सजगता और तीव्रता दोनों को कैसे एक साथ कैसे कायम रख सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : मुझे लगता है कि आपके पास बहुत खाली समय है, सोचने का और ये देखने का कि क्या हो रहा है| व्यस्त हो जाईये, कर्म योग करिये| जब आप सेवा के कार्य में संलग्न होते हैं, तब आप बैठ कर यह नहीं सोचते, ओह, मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ? मैं कैसा महसूस नहीं कर रहा हूँ? भावनाएँ तो जीवन का हिस्सा हैं, इन सबसे आगे बढ़िए!
हमारे शरीर में १,७२,००० नाड़ियाँ हैं| कभी कभी ज्ञान की नाड़ी खुल जाती है, कभी संगीत की नाड़ी खुल जाती है| अलग अलग नाड़ियों के खुलने से आप अलग अलग चीज़ें अनुभव करते हैं| इसलिए, अपनी भावनाओं से इतने ग्रस्त न हों| ठीक है?
किसे परवाह है कि आप कैसा महसूस कर रहें हैं? हर एक कोई यह देखना चाहता है, कि आप क्या करते हैं| आप किस तरह इस पृथ्वी को अपना योगदान दे रहें हैं?
मैं क्या अच्छा कर सकता हूँ? इस पर ध्यान दें| इस पर ध्यान न दें, कि क्या हो रहा है| इस बात पर ध्यान लगाएं कि आप क्या कर सकते हैं और आपको क्या करना है| 
बहुत बार, हम इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं, कि हमें क्या करना है, बल्कि हम बैठ कर ये सोचते हैं कि क्या हो रहा है| जो हो रहा है इस बात को हम इतना तवज्जो देते हैं, बजाय इसके कि हम क्या कर रहें हैं| आप अपना सारा ध्यान उस पर लगाईये, जो आप कर रहें हैं, और जो हो रहा है- उसे प्रकृति पर छोड़ दीजिए| प्रकृति स्वयं ही आपको जो हो रहा है - उस के पार ले जायेगी|
मैं आपको बताता हूँ, कि चाहे वे विचार हों या भावनाएँ, ये अपने आप में कोई अकेली घटना नहीं है| यह दुनिया भर में होने वाली घटना है| मान लीजिए, कि आप किसी ऐसी जगह जाते हैं, जहाँ स्वतंत्रता दिवस का उत्सव मनाया जा रहा है, या और किसी राष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है, और सब लोग वहां बहुत ऊर्जा में हैं, और देशभक्ति के गीत गा रहें हैं, तो आप भी अचानक बहुत देशभक्ति का अनुभव करेंगे| आपमें से कितने लोगों ने ऐसा अनुभव किया है? (बहुत लोग अपना हाथ उठाते हैं)
आपकी आँखों से आंसूं आने लगते हैं|
इसी तरह अगर आप कोई कार्यक्रम देख रहें हैं, जिसमें कोई त्रस्त व्यक्ति अपनी कहानी सुना रहा है, कि किस तरह एक राजनेता ने बहुत से लोगों को कष्ट पहुँचाया है, तो अचानक आपको गुस्सा आता है| आपमें से कितने लोगों को ऐसा अनुभव हुआ है? (बहुत लोग हाथ उठाते हैं)
आपको इतना गुस्सा आ गया था| सब लोग अचानक एक तरह की देशभक्ति का अनुभव करते हैं, यह आपके अंदर उभर आता है|
फिल्म के डायरेक्टर और प्रोडयूसर ये बात जानते हैं कि किस तरह आपके अंदर इन भावनाओं को जगाया जा सकता है, और वहां कौनसा संगीत फिट होगा| वे बिल्कुल सही तरह का संगीत वहां लगाएंगे, और आप रोने लगेंगे, या हँसने लगेंगे| आप जानते हैं, भावनाएँ संगीत के साथ जुडी होती हैं, और भावनाओं को जगाया जा सकता है|
ये इतने बड़े बड़े दंगे कैसे होते हैं? भावनाओं को जगाया जाता है| और जो लोग अस्थिर होते हैं, वे इसमें कूद पड़ते हैं| जिन लोगों में कोई सजगता नहीं होती वे इसमें कूद पड़ते हैं, और कुछ भी कर देते हैं| वे बस उसमें जुट जाते हैं|

आज मुझे खबर मिली है कि असम में दंगे हो रहें हैं, और करीब २ लाख लोग कैंप में हैं| उन्हें अपने घरों से भागना पड़ा| ५०० गांव इससे प्रभावित हुए हैं| लेकिन इन सबके बीच में ३ ऐसे गांव थे, जिनपर कोई प्रभाव नहीं हुआ| क्या आप जानते हैं क्यों? उन ३ गांव में आर्ट ऑफ लिविंग की ज़बरदस्त मौजूदगी थी|
सविता और आशीष भूटानी (स्वयंसेवक जो असम के गांवों में राहतकारी काम कर रहें हैं) यहाँ हैं| सविता उन गावों के नाम भी बता रहीं थीं|
तो वे तीन गांव साथ में मिल गए और अपने गावों में कोई भी हिंसा नहीं होने दी| उन्होंने किसी को भी किसी का घर जलाने की अनुमति नहीं दी| वे पूरे के पूरे गांव बच गए, क्योंकि उन्हें यह यकीन था, कि हम One World Family हैं (पूरा विश्व एक परिवार है)|
मुसलमान, ईसाई, हिंदू, सब साथ में खड़े हो गए और उन्होंने न तो किसी मुसलमान द्वारा हिंदू को कष्ट पहुँचाने दिया और ना ही किसी हिंदू को किसी मुसलमान को कष्ट पहुँचाने दिया| उन्होंने किसी के भी द्वारा हिंसा होने नहीं दी|
सविता, आओ और हमें उन गांवों के नाम बताओ|
सविता “एक गांव में सभी तीन संप्रदाय थे बोडो, असामी और मुस्लिम| फिर भी वे सब साथ में इकट्ठे हुए और यह निर्णय लिया कि इन सभी गांव में कोई भी हिंसा नहीं होगी| यह सब इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि वहां आर्ट ऑफ लिविंग मौजूद था, और उनमें से बहुत लोगों ने पार्ट १ कोर्स और YLTP कोर्स किया था| इसलिए इन तीन गावों में बिल्कुल भी हिंसा नहीं हुई और कोई भी मारा नहीं गया| जबकि आस पास के १-२ किलोमीटर के गांव तो जलकर ख़ाक हो गए थे| लेकिन आर्ट ऑफ लिविंग की वजह से ये तीनों गांव बच गए|”
बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! जय गुरुदेव!
देखा आपने, कि कितना ज़रूरी है इस ज्ञान को फैलाना? आपमें से कितने लोगों को लगता है कि हमें इस ज्ञान को फैलाना बहुत ज्यादा आवश्यक है, वो भी ऐसे इलाकों में जो बहुत नाज़ुक हैं?
जहाँ शान्ति चरमरा रही हो, हमें ज़रूर वहां जाना चाहिये, और कुछ करना चाहिये!

प्रश्न : जय गुरुदेव, मैं २०१४ के लोकसभा चुनाव लड़ना चाहता हूँ| इसमें अभी दो साल बाकी हैं| इन दो सालों में मुझे जीतने के लिए क्या काम करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : बहुत अच्छा| सबसे पहले इलाका चुनिए, और फिर वहां बहुत काम करिये| वहां बहुत से कोर्स कराईये और बहुत से स्वयंसेवक बनाईये| वहां एक Pre-TTC स्वयंसेवक प्रशिक्षण कार्यक्रम रखिये| सब को इकठ्ठा करिये, और उन्हें इस बात का आभास कराईये कि वे किस तरह एक आध्यात्मिक समाज की स्थापना करने में अपना योगदान कर सकते हैं| एक ऐसा समाज जो कानून का पालन करे, भ्रष्टाचार से मुक्त हो| ये ज़रूर करिये|

प्रश्न : गुरूजी, वे कहते हैं, कि मरे बिना कोई स्वर्ग प्राप्त नहीं कर सकता| क्या मोक्ष प्राप्त करने के लिए मरना ज़रूरी है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा किसने कहा? अगर जिंदा रहते आपने मोक्ष का अनुभव नहीं किया, तो मरने के बाद कैसे करेंगे? तब मरने के बाद भी आप इसका अनुभव नहीं कर पाएंगे|
अगर जीते-जी आपने मुस्कुराना नहीं सीखा, खुश रहना और आनंद में रहना नहीं सीखा, तो आप मरने के बाद क्या सीख पाएंगे? मुमकिन ही नहीं है! ऐसा किसने कहा?
ऐसा किसी भी ग्रन्थ में नहीं कहा गया है, कि केवल मरने के बाद ही आपको स्वर्ग की अनुभूति होगी; बिल्कुल गलत है| तो फिर आप यहाँ क्यों आये हैं? आप यहाँ अपने कर्मों से मुक्ति पाने आये हैं, ताकि आप आज यहाँ स्वर्ग का अनुभव कर सकें|

प्रश्न : गुरूजी, भक्ति और समर्पण बुद्धिमत्ता के चिन्ह माने गए हैं| लेकिन भक्ति और समर्पण दोनों ही बुद्धि के परे हैं| तो फिर ये इसके सूचक कैसे बन सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, सत्य सिर्फ एक प्रकार का नहीं होता| सत्य के बहुत से रूप होते हैं| इसलिए आप किसी भी सिद्धांत को साबित भी कर सकते हैं, और उसका खंडन भी कर सकते हैं| किसी भी सिद्धांत को ले लीजिए, आप उसे सही और गलत दोनों साबित कर सकते हैं| दोनों संभव हैं, ठीक है!
ज़रा सोचिये! अगर आपको लगता है कि सही है, तो ले लीजिए, नहीं तो छोड़ दीजिए| अपनी खुद की बुद्धि के साथ इस पर चर्चा करिये| जब आप ऐसा करेंगे, तो आप पाएंगे, कि एक तरफ से ये ठीक लगती है, और दूसरी तरफ से गलत लगती है|

प्रश्न : गुरूजी, किस तरह कोई ईश्वर को पूर्ण रूप से समर्पित हो सकता है (शरणागति) ? कृपया विस्तार से बताएं|
श्री श्री रविशंकर : जागिये, और देखिये कि आपका कुछ भी नहीं है; आपके पास जो कुछ भी है, वह आपका नहीं है, तब आप पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित हैं| (शरणागति)
या फिर, ऐसे देखिये, कि आपने जो भी कुछ प्राप्त किया है, जबकि आप उसके लायक नहीं थे, - तब भी आप पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित हो जाते हैं|
ऐसा सोचते हुए, मैं तो इसके लायक नहीं था, लेकिन फिर भी मुझे इतना मिला है, यह आपको पूरी तरह से समर्पित कर देता है, और अपने आप ही आपके अंदर कृतज्ञता उमड़ पड़ती है|

प्रश्न : गुरूजी, आपसे मिलने के बाद भी मैं संतुष्ट नहीं होता| मुझे आपसे फिर से मिलने का मन होता है, दोबारा, और फिर दोबारा| मैं किस तरह अपने आप को आप से इतना सरोबार कर लूं, कि फिर दोबारा आपसे मिलने की इच्छा न हो?
श्री श्री रविशंकर : ओह! मैं नहीं जानता कि आप ये कैसे कर सकते हैं| मैं तो आज तक देख रहा हूँ, कि ये सभी के साथ होता है; यह भक्ति का संकेत है|
अगर आप एक तरह से देखें, कि भक्ति में कभी संतुष्टि नहीं मिलती, और दूसरी तरह से देखें, तो भक्ति से ज्यादा दुनिया में और ऐसा कुछ भी नहीं है, जो आपको संतोष दे सके|
इसका कोई अंत नहीं है, क्योंकि भक्ति तो ऐसा प्रेम है जो कभी कम नहीं होता|
इसलिए, ये एक ऐसी प्यास है, जो कभी बुझती नहीं, और ऐसा प्रेम है जिसका कभी अंत नहीं होता|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, आज और जबसे हम जानते हैं तबसे केवल एक ही चेतना का अस्तित्व है, तब फिर उसमें से मनुष्य कैसे बना, और क्यों? कुछ तो कारण होगा?
श्री श्री रविशंकर : ओह! चेतना अपने आप से बोर हो गयी, बिल्कुल अकेली! तो उसने सोचा, मैं एक से बहुत बन जाती हूँ| उस एक चेतना का ये एक विचार और हर एक चीज़ मौजूद हो गयी|
अब ये सही है या गलत, आप निर्णय लीजिए!