कला क्या है?

१३
२०१२
जुलाई
बैड एंटोगस्त, जर्मनी
अंधकार (तम) के बारे में क्यों बात करना चाहते हैं ? समस्त ब्रह्माण्ड अन्धकार से घिरा हुआ है, गहन ऊर्जा और गहन तत्व| आज वैज्ञानिक यह कहते हैं  कि जिसे हम प्रकाश कहते हैं वह सिर्फ एक कण है, बोतल के अन्दर एक बुलबुले की तरह| बोतल एक यथार्थ है, बुलबुला एक क्षणिक आभास है|
सूर्य जिसे हम अपार ऊर्जा के श्रोत के रूप में जानते हैं; के विषय में वैज्ञानिकों का कहना है कि वह शक्ति जो सूर्य को सघन और गोलाकार रूप में समेटे रखती है, उसके चारों ओर उपस्थित गहन ऊर्जा (डार्क एनर्जी) ही है| अर्थात गहन ऊर्जा और तत्व सूर्य से भी  कई   लाखो गुना  बहुत अधिक शक्तिशाली है|
जिस तरह बुलबुला हवा का एक अंश है जो पानी के अणुओं के घेरे के दबाव से बना है, पानी जो हवा से कई गुना अधिक बलशाली है, इसी तरह ब्रह्माण्ड भी भरा हुआ है जिसे आप देख नहीं सकते, पूरी तरह जान नहीं सकते; और सोच बैठते है कि उसमे तो कुछ भी नही है| वैज्ञानिक जिसे "ब्लैक होल" कहते हैं, पूरा का पूरा सूर्य निगल सकता है! हमारी पृथ्वी, सूर्य और सारा सूर्य मंडल ऐसे कई "ब्लैक होल्स" से घिरा हुआ है और इनसे बचकर दूर ही रहता है|
ब्रह्माण्ड ऐसे कई "ब्लैक होल्स" से भरा हुआ है| सूर्य यदि इनके पास आ  गया और ब्लैक होल ने उसे सोख लिया तो कभी किसी को पता भी नहीं लगेगा कि आखिर सूर्य गया कहाँ! पूरा ब्रह्माण्ड ऎसी ऊर्जा से भरा है जिसका अनुभव नहीं किया गया, इसीलिए इसे गहन काला  उर्जा  तत्व कहा जाता है|

प्रश्न :  कला क्या है? कवितायेँ कहाँ से आती है, क्या करती हैं ?
श्री श्री रविशंकर :  ओह! आप जिसकी भी प्रशंसा करते हैं  वह एक कला बन जाती है! यदि आपको पत्थरों का एक ढेर दिखे तो इसे आप एक ढेर ही समझेंगे, लेकिन यदि किसी ने उन्ही टुकड़ों को व्यवस्थित संजो कर रख दिया तो आप उसकी प्रशंसा करेंगे, वह एक कलाकृति बन गयी! इसी प्रकार कागज़ पर कुछ रंग बिखेर देने से और उसमे एक अर्थ देख पाने से उसकी प्रशंसा होती है; वह भी एक कला का नमूना बन जाता है|
और कवितायेँ! वे मन की गहराईयों में पनपते हैं, जब श्वांस एक विशेष तारतम्य में चलता हो, जब एक विशेष नाडी खुल जाए, तब कुछ शब्द बाहर आते हैं जिसे आप लिख देते हैं! और फिर शब्दों में तुकबंदी..! यह एक उपहार है, कल्पना कर सकना  एक उपहार है| ये वह जरिया है जिस से चेतना और मन अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं, और जब आप इसकी प्रशंसा करते  हैं  तो यह एक कला बन जाता है!
प्रशंसा के नाम पर यूँ ही कुछ शब्द बोल देना काफी नहीं है, इसके लिए थोड़ी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है |  उदहारण के लिए आईये आधुनिक कविता की एक पंक्ति लें,  एक पत्ती ज़मीन पर यूँ ही पड़ा,  पानी उसे आगे ले बढ़ा| (हंसकर..) बस इतने ही शब्द, जिस तरह लिखे गए, इस कारण एक पूरी कविता बन गयी| अब इन शब्दों के अनेक अर्थ निकाले जा सकते हैं, जैसे क्या पत्ती पहले ही जमीन पर पड़ा था या टूट कर गिरा, 'जमीन पर' था यानी लगभग मृत था, प्रेम (पानी यहाँ प्रेम का पर्यायवाची है) उसे ले बढ़ा, 'पानी उसे आगे ले बढ़ा' से यह भी अर्थ निकालता है कि प्रत्येक मायूसी के क्षण में भी एक आशा रखी जा सकती है| अतः, व्याख्या कई प्रकार से की जा सकती है| कवितायेँ ऐसी ही होती हैं,  शब्द जिसमें भावनाएं थोड़ी व्यक्त और थोड़ी छिपी हुई होती हैं| थोड़ी गूढ़ता और थोड़ी स्पष्टता - ये ही कविता के गुण है|
एक कवि ने ईश्वर से कहा " भगवन, आपके हाथ में सारा संसार है, इसे थोडा  और स्पष्ट क्यों नहीं बना देते आप!" (हंसकर) जिन्हें सब साफ-साफ दीखता है, वे संत बन जाते है, और जिन्हें यह नहीं दीख पड़ता कि सबकुछ आपके नियंत्रण में है, वे संघर्ष करते रह जाते हैं | आप इसे इस तरह भी समझ सकते हैं, है कि नहीं?
जब आपकी कोई सराहना करता है तो आपको लगता है कि वह आपको 'फंसा' रहा है, और यदि नहीं करता, तो आपको लगता है कि वे ईर्ष्यालु हैं | एक संपन्न व्यक्ति को यदि लोग महत्व दें, तो उसे लग सकता है कि लोग उसके धनी होने के कारण उसे अहमियत दे रहे हैं; और यदि लोग उसे अनदेखा कर दें, तो उसे लग सकता है कि लोग बड़े रूखे है, उसकी सम्पन्नता से  ईर्ष्या करते है! हमारा मन कितना चालबाज़ है! और, कभी-कभी तो कोई श्रमिक-यूनियन वाली मनःस्थिति में आ सकता है; जानते है यह मनःस्थिति कैसी होती है? "मुझे किसी की नहीं सुनना, सभी मरे खिलाफ है!"  कौन है आपके खिलाफ? यह बुलबुला दिमाग का बनाया हुआ है.. "कोई मुझे नियंत्रित करना चाहता है, मुझपर हावी होना चाहता है मुझे परेशान करना चाहता है.."
एक दिन कोई कह रहे थे, "मुझे ऑफिस में सभी परेशान करते हैं"| 'सभी' तुम्हे कैसे परेशान कर सकते हैं? आप स्वयं कुछ  ऐसा भयंकर कर रहे होंगे| "मुझे ऑफिस में सभी परेशान करते है",  यह एक श्रमिक-यूनियन वाली मानसिकता है| जो स्वयं के बारे में अच्छा नहीं सोच पाते, वे इस विचार को दूसरों पर थोप देते है "सभी बुरे हैं, सभी मेरे ही पीछे पड़े रहते हैं "| उन्हें आपके पीछे पड़े रहकर या आपको परेशान कर के क्या फायदा! दुखी होने का कारण आप स्वयं है, समझ गए!  और यदि किसी संस्था में मैनेजर की कुर्सी पर ऐसी मानसिकता का व्यक्ति बैठा हो तो पूरी संस्था को भुगतना पड़ता है क्योंकि वह अपनी शक्ति का दिखावा कर के कई चालें खेलता है यह एहसास किये बिना कि वह उसी डाल को काट रहा है जिस पर वह बैठा है|
ऐसे लोग हैं! आर्ट ऑफ़ लिविंग के दो टीचर्स ने विश्व-बैंक में TLEX प्रोग्राम किया और ऐसे कई मामले उभर कर आए सिर्फ ३-३ घंटे के तीन दिन के कोर्स से उनमे काफी बदलाव आया, और अब विश्व-बैंक के सभी कर्मचारियों के लिए यह कोर्स अनिवार्य है और TLEX उनके लीडरशिप ट्रेनिंग का भी हिस्सा है| उन्होंने अफ्रीका जैसे देशों के अपने लीडर्स के लिए सुदर्शन क्रिया का भी आग्रह किया अतः हमने लघु सुदर्शन क्रिया सम्मिलित कर दिया! इससे लोगों के अन्दर एक सचेतना जागृत हो रही है; ऐसी चेतना जिसके बिना लोग अपने आपको किसी का शिकार समझ बैठते है!  
"हम शिकार है" इस प्रवृत्ति का छा जाना ही कई देशों को गरीब बनाए रखता है| लोग पुरे समय यही सोचते हैं  "हम पीड़ित हैं" - पीड़ित होने वाली चेतना शक्ति क्षीण कर देती है और कमजोरी आ जाती है!
यही हाल महिला सशक्तिकरण का है| किसी और से अपने को सशक्त करने का आग्रह न करें; आपका अपना एक स्थान है वह सुनिश्चित करें| अधिकतर सशक्तिकरण का आन्दोलन चलाने वाले क्रुद्ध, उत्तेजित और विद्रोही व्यवहार के होते हैं | इससे जोई लाभ नहीं होता| मैं  यह नहीं कह रहा कि सभी कार्यकर्ता ऐसे ही होते हैं, लेकिन, क्रोध से काम नहीं बनाए वाला; शांत, स्थिर मन से आप अपनी गौरवपूर्ण स्थिति प्राप्त कर सकते हैं, वह हासिल करें, यह सब मन का खेल है|
यदि कोई सुन्दर दिखता है तो स्वयं के बारे में नीचा न सोच लें, उनके पास सुन्दर शरीर है तो आपके विचार सुन्दर हो सकते हैं, और किसी की बुद्धि तीक्ष्ण हो सकती है| यानि कोई शरीर से, कोई विचार से तो कोई बुद्धि से सुन्दर हो सकता है| आपके पास क्या है, वह देखें! किसी के पास बहुत सारा पैसा है, लेकिन आपके पास प्रतिभा और सुन्दर मन हो सकता है | सभी के पास कुछ तो है| जब हम तुलना करने में पड़ जाते हैं  तो अपने ही अन्दर विद्यमान एक आयाम को भूल जाते हैं  जो सबसे बड़ा है, और जो सभी को सबकुछ देता है, जब आप उस पर केन्द्रित हो जाते हैं तो इन सभी कुंठाओं से ऊपर आ जाते हैं| आप समझ रहे हैं न मै क्या कह रहा हूँ?
हमें सभी मानसिक जटिलताओं और कुंठाओं से ऊपर आना चाहिए,  मनिवैज्ञानिक परामर्श से नहीं, आध्यात्मिकता के साथ| अपने आतंरिक विस्तार से जुड़ जाने से सभी कुंठाओं   हीनता, श्रेष्ठता, वाह्य हों या आन्तरिक, से ऊपर आ सकते हैं| आपको सबकुछ ख़ुशनुमा और शांत लगेगा! हिंदी में एक कहावत है "मन मीठा तो जग मीठा"
जीवन भी एक कला है; जीवन जीने की कला| कला एक व्यवसाय हो सकता है लेकिन व्यवसाय को कला सिर्फ इसी सन्दर्भ में कह सकते हैं जब आज के जटिल और भ्रष्ट माहौल में भी किस तरह नीतिगत रह कर कुशलता के साथ  सबकुछ व्यवस्थित रखें; यह आता हो।  व्यवसाय में यह थोडा भिन्न हो जाता है क्योंकि हमें बाज़ार के अनुसार चलना होता है, आप यह नहीं कह सकते: 'मुझे बाज़ार की कोई परवाह नहीं है, मैं वही करूँगा जो मुझे पसंद है'| नहीं! बिजनेस थोडा अलग तरह की कला है, यह फाईन - आर्ट के सामान नहीं है; फाईन - आर्ट में आप दूसरों की तरफ देखे बिना अपने अन्दर की सृजनात्मकता को खिलने देते हैं| व्यवसाय में लोगो और बाज़ार के साथ सरोकार रखना होता है, अतः आपको मालूम होना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं; अपना सामान कैसे और किस भाव में बेच रहे हैं; और इसी तरह के अन्य विवरण!   
प्रश्न:  क्या नाड़ी कोई संकेत देती है ?
श्री श्री रविशंकर :  (नासिका जाँचते हुए), हाँ, नाड़ी का संकेत है 'शांत हो जाएं'| जब दोनों नाड़ी धीमे-धीमे चल रही हों, इसका अर्थ है - शांत हो जाएं, कुछ न कहें, सिर्फ ध्यान लगाएं| लेकिन नाड़ी बदलती रहती हैं, पूरा विश्व परिवर्तनशील है!  

प्रश्न :   (सुना नहीं जा सका)
श्री श्री रविशंकर :  आपके पास और कोई विकल्प है भी नहीं! अभी या बाद में सभी को ऐसा करना ही है| आप अपने अच्छे गुणों के लिए श्रेय ले  भी नहीं सकते। क्या सूर्यमुखी का यह पीला फूल यह कह सकता है "मैं पीला हूँ", आखिर पीला होने के लिए इसने स्वयं क्या किया? इसे तो पीला रंग दिया गया है! या, गुलाब यह नहीं कह सकता मैं सुन्दर गुलाबी हूँ, मैंने अपने आपको गुलाबी बनाया| आपके गुण और प्रतिभा आपको दिए गए हैं; उनका श्रेय स्वयं नहीं ले सकते!
इसी तरह नकारात्मक गुणों के लिए भी अपराध-बोध न रखे! आप जैसे हैं, वैसे ही हैं।
यदि आप विद्रोही प्रवृत्ति के हैं तो उसका भी अच्छा उपयोग करें; जहाँ अन्याय है, लड़ें| लड़ें, लेकिन एक मुस्कराहट के साथ; मेरे साथ लड़ें! (हंसकर) अशिक्षा के खिलाफ लड़ें, अन्याय के खिलाफ लड़ें, अभाव के खिलाफ लड़ें, बस आगे बढे! इस रास्ते में कभी ऊपर-नीचे होगा, चिंता न करें, "जो भी  हो" सोचकर आगे बढे!
इसलिय अपना धर्म समझाना अनिवार्य है, आपका धर्म क्या है? शिक्षा देना, विरोध करना, मध्यस्तता करना, या सेवा करना? उस क्षण-विशेष में आपका जो भी धर्म हो, वैसा करें! आप चारो एक-एक कर के भी उपयोग कर सकते है; पहले शिक्षित करिए, फिर मनाइए (मार्केटिंग की तकनीकों से विवश भी कर सकते है), फिर भी काम न बने तो उनकी सेवा करें और काम न ही बने तो विरोध करें! आप जो भी प्राकृतिक तरीके से कर सकते हैं, वही आपका धर्म है, और इससे सब आसान हो जाता है| क्या आपको लगता है कि यह सब पढाना आसान है? नहीं, लोगों को पढ़ना बहुत बड़ा सिरदर्द है : तेलुगु में एक मुहावरा है जिसका अर्थ है " एक शिक्षक को बच्चे को पढ़ाने के लिए उसने खुद क्या पढ़ा, यह भूल जाना ज़रूरी होता है; नहीं तो वह (शिक्षक होने के) इस बंधन से मुक्त हो ही नहीं सकता"  
पढ़े अवश्य, लेकिन उसे भूल भी जाये और खाली और खोखले हो जाएँ| एक शिक्षक को स्वयं पढ़ कर, अपने विद्यार्थियों के साथ वह बाँटकर सबकुछ भूल जाना चाहिए! तो शिक्षकों के लिए यही नियम है - पढो, सिखाओ और भूला दो! अन्यथा, प्रकृति तो ऐसा करा ही देगी| उम्र के साथ सबकुछ भूलता जाता है| तेलुगु में एक और विनोदपूर्ण कहावत है " तुम्हे अपना शिष्य बनाकर और पढ़ाकर मैंने अपनी छबि को खो दिया; तुम्हे कुछ (मेरा पढाया हुआ) याद नहीं रहा, और मैं कुछ भुला नहीं पाया"| क्योंकि जब कोई आपसे पूछेगा आपके गुरु कौन है तो आप बताएँगे की फलां-फलां मेरे गुरु है  अर्थात, पढाना भी कोई आसान काम नहीं है; विरोध प्रदर्शन करना भी बड़ा मुश्किल है, किसी को मानना भी टेढ़ा काम है और सेवा करने में भी रुकावटें आतीं हैं! आप लोगों की सेवा करने के लिए तत्पर हों तो भी लोग आप पर लांछन लगाने तैयार रहते हैं, ठीक है?  
आपसे जितना बन पड़े, जितना अच्छा बन पड़े, करें! सेवा करना भी आसान नहीं है| हरेक काम एक नज़रिए से कठिन तो लगेगा ही, बस ऐसा सोचिये कि जो करते बने उतना कर के मैं शांत रहूँगा! शांत रहना  भी मुश्किल हो सकता है! यानि कुछ करना भी मुश्किल और नहीं करना भी मुश्किल! इसलिए - जय जय राधा रमण हरी बोल!