गहन अन्तः परिवर्तन!!!

२२
२०१२
सितम्बर
आचेन, जर्मनी
तो आज का विषय है, IT- नए आयाम|
आप जानते हैं मेरे लिए IT मायने Inner Transformation - अन्तः परिवर्तन और जैसे आप कहते हो IIT, इसका मतलब हो जाता है Intense Inner Transformation - गहन अन्तः परिवर्तन|
हम अपने शरीर, अपने मन, अपनी श्वासों को ही भूल जाते हैं, जो कि स्वयं में एक संपूर्ण तकनीक है| शरीर एक मशीन है, और ये चेतना इस शरीर को चलाती है, जिसने इस शरीर को बनने में मदद की है, हम उसको ही भूल जाते हैं| हमें उस पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है, तब जीवन का एक नया आयाम खुलता है| आत्मा की वजह से ही आज विश्व में तकनीक का अस्तित्व है| किसी के दिमाग में कुछ विचार आते हैं, फिर विचार रूप बदल कर तकनीक बन जाते हैं लेकिन ये विचार आते कहाँ से हैं? और इन विचारों को हकीक़त का रूप देने में कौन मदद करता है? वो आत्मा है|
आज हमारे पास सेल फ़ोन हैं, लेकिनं आज से २०-३० वर्ष पूर्व सेल फ़ोन का किसी को पता भी नहीं था| सेल फ़ोन कैसे बनाएं ऐसा विचार किसी की चेतना में आया, और फिर वो विचार अंतःकरण की मदद से साकार भी हो गया, है या नहीं? ये अंतःकरण जो सब प्रकार के सृजनात्मकता की वजह है, सब प्रकार की वैज्ञानिक खोज, सब प्रकार का संगीत, कला, फैशन, फिल्में, और बाकि सब कुछ, इसके ऊपर ध्यान देने की आवश्यकता है|
यही चेतना जिसकी वजह से ये सब वैज्ञानिक विष्कार हुए, कला और निर्माण का विकास हुआ, यही ख़ुशी का भंडार गृह भी है| यही चेतना प्रदर्शित करती है स्वास्थ्य को, ख़ुशी को, प्यार एवं करुणा को| यही एक चेतना जो दिमाग में कार्य करती है, शरीर के भिन्न भिन्न अंगो में काम करती है और इसमें और बहुत कुछ करने का सामर्थ्य है| यही चेतना बहुत तार्किक हो सकती है, इसके द्वारा समझा जा सकता है, समझाया जा सकता है, ये सृजन कर सकती है, और ये ही करुणा, प्यार, ख़ुशी और शांति को भी बना सकती है - बिलकुल सेल फ़ोन के जैसे|
देखिये, इस सेल फ़ोन में कितने सारे प्रोग्राम होते हैं, इसमें एक कैमरा है (श्रीश्री ने श्रोताओं की एक तस्वीर लेते हुए कहा), फिर इसमें twitter है, क्या आपको मेरा twitter अकाउंट पता है @SriSriSpeaks, तो इसमें एक twitter अकाउंट है, इसमें sms की सुविधा है, एक टेलीफ़ोन बुक है और एक म्यूजिक प्लयेर भी है (श्री श्री ने म्यूजिक प्लयेर में कुछ म्यूजिक बजा के दिखाया)| अब मुझे ये भी पता होने चाहिए की इसको बंद कैसे करना है, ये देखिये अब मुझे पता चल गया की मुझे कौन सा बटन दबाना है| कभी कभी दिमाग भी ऐसे ही हो जाता है, वो एक बार चलना शुरू हो जाता है और बस फिर चलता ही जाता है, और हमें पतानाही चलता की इसको कैसे बंद करना है, है ! एक सेल फ़ोन में कितनी सारी सेवाएं होती हैं, एक घड़ी भी होती है| जैसे सेल फ़ोन बहुत से कार्य करता है ऐसे ही हमारा दिमाग और हमारा जीवन भी है| हम अपनी चेतना से वास्तविकता की अलग अलग परतें खोल सकते हैं, क्या केवल यही एक सच्चाई नहीं है जिसका अस्तित्व है?
तो अगर आप इस चेतना को केवल कला या संगीत के लिए सजग रखते हो बस, तब जीवन संपूर्ण नहीं है| या केवल विज्ञान और तथ्य के लिए रखते हो तब भी ये अधूरा है, अगर केवल मौज-मस्ती के लिए करते हो तब भी जीवन पूरा नहीं| तो जैसे आप सेलफोन के अलग अलग कार्य अलग अलग बटन से कर सकते हो ऐसे ही हमें अपने अन्दर की सब प्रतिभाओं को बाहर निकलने और उभरने की शक्ति प्रकृति ने दी है| आप सब के अन्दर एक भोलापन है, एक सादगी है| हम सब उस मासूमियत, उस सादगी के साथ पैदा हुए हैं| जैसे जैसे हम बड़े हुए, हमने उसे खो दिया| जैसे जैसे हम बड़े हुए, हमने मुस्कुराना छोड़ दिया, हमने सहज रहना छोड़ दिया, हमने सरल रहना छोड़ दिया, ऐसा नहीं है क्या? तो ज़रूरी ये है कि दोनों हो, बोध एवं संवेदनशीलता| तार्किक होना, तर्कसंगत होना ज़रूरी है, किसी भी बात को सिर्फ इसलिए स्वीकार करना ठीक नहीं कि क्योंकि कोई कह रहा है| हमने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए|ये मानव का सबसे पहला कार्य है| कोई भी बात जिसका कोई तथ्य हो, कोई वजह हो, उसको स्वीकार नहीं करना चाहिए| तो सबसे पहले तर्क है, ये आवश्यक है क्योंकि इससे बोध उत्पन्न होता है| अब केवल बोध होना पर्याप्त नहीं, संवेदनशीलता भी आवश्यक है, संवेदनशीलता दिल की वस्तु है| आप बहुत तर्कसंगत हो सकते हैं लेकिन आपको दूसरों का पक्ष भी समझना बहुत ज़रूरी है| बहुत बार, लोग जो कहते हैं, वो वैसे ही बर्ताव भी करते हैं, ये बिलकुल सही है, लेकिन वो दूसरों को दुःख पहुंचा सकते हैं| जो कोई भी क्रोध में होते है, वो अपने क्रोध को तर्क से सही ठहराते हैं, लेकिन वो नहीं जानते कि उनके क्रोध से दूसरों को दुःख पहुंचा रहे होते हैं, केवल दूसरे व्यक्ति को बल्कि स्वयं को भी| तो दूसरी आवश्यक बात है संवेदनशील होना|
आप जानते हैं, कोइ मूर्ख हो सकता है, या आप उसे मूर्ख कह सकते हैं, उन पर चिल्ला सकते हैं, डांट सकते हैं लेकिन उस बात से कुछ फायदा नहीं होगा| आपको संवेदनशील होना चाहिए| आप जानते हैं, एक दिन एक कार्यक्रम में एक महिला एक व्यक्ति को डांट रही थी क्योंकि उसने अपना कार्य ठीक से नहीं किया था|मैंने उस महिला को बुलाया और पूछा, "सुनो, क्या आपके डांटने से वो व्यक्ति बदल जायेगा?" उस महिला ने कहा, "नहीं" मैंने कहा कि फिर क्या फायदा है उस पर चिल्लाने का? आपने सिर्फ अपनी छवि खराब कि ऐसा करके| जिस क्षण आप किसी को डांटते हो भले ही आप उसे कोई अच्छा या लाभदायक सुझाव ही दे रहे हों, वो आपसे दूर हों जाते हैं, आपका दूसरों पर चिल्लाने का मक्सद उसको होश में लाना होता है, लेकिन जब चिल्ला कर आप ऐसा कर नहीं पाते तो उसका क्या फायदा है?”
उसने कहा कि आप ठीक कहते हैं, मैं अपनी सारी उम्र यही करती रही और अपने आस पास इतने सारे दुश्मन बना लिए| मैंने पूछा कि फिर क्यों आप एक गधे से घोड़े कि तरह दौड़ने की उम्मीद करते हो? आप एक गधे पर बैठते हों और उम्मीद करते हो कि वो घोड़े की तरह दौड़े| एक गधे को गधे की तरह स्वीकार करो और घोड़े को घोड़े की तरह स्वीकार करो, फिर क्रोध की जगह कहाँ हैं? ये संवेदनशील होना है, दूसरे की भावनाओं और उनकी ज़रुरतों की तरफ संवेदनशील होना| ये दिल की एक गुण है|
ऐसे भी लोग हैं जो बहुत संवेदनशील हैं, वो अपना तर्क खो देते हैं, वो एक भावुक बेवकूफ के जैसे होते हैं, वो भी अच्छा नहीं है, आपको विवेकपूर्ण और संवेदनशील दोनों होना चाहिए, आप क्या कहते हैं? मैं ठीक कह रहा हूँ?
(श्रोताओं ने हाँ कहा)
इसलिए विवेकपूर्ण और संवेदनशील होना, ये चेतना का एक कार्य है, उसके बाद आती है शांति, शांतचित्त होना| हर एक व्यक्ति, कभी कभी अपने जीवन में कुछ क्षण के लिए, कुछ मिनट के लिए शांत ज़रूर होते हैं, जब आप शांत होते हैं, आप ख़ामोशी भी महसूस होती है, और आप आध्यात्मिकता को महसूस करते हैं, शांति और ख़ामोशी का एक गहरा अहसास| कई बार हम अपने मोबाइल में कोई क्रिया बंद कर देते हैं या उसका उपयोग नहीं कर रहे होते| हमरी चेतना में भी कई बार हम किसी हिस्से को छूते नहीं और तब आर्ट ऑफ़ लिविंग आती है, ये आपको और ज्यादा मुस्कुराने में, और ज्यादा सेवा करने में मदद करती है|
आप जानते हैं, एक शिशु दिन में ४०० बार मुस्कुराता है, एक युवा केवल १७ बार और एक वयस्क कभी नहीं मुस्कुराता| ज्यादा मुस्कुराना, यही तो आर्ट ऑफ़ लिविंग आपको सिखाती है मुस्कुराना और सेवा करना| तर्कसंगत और संवेदनशील होना|शांत चित और ख़ामोशी को महसूस करना| बस...

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, अनुशासन और आज़ादी में कैसे सामंजस्य बिठाएं?
श्री श्री रवि शंकर : आपको ये पता होना चाहिए कि ये सुनने में, देखने में विपरीत लगते हैं लेकिन एक दूसरे के पूरक हैं|जब आप बच्चे थे, रोजाना सुबह शाम अपने दाँत साफ़ करना आपके लिए अनुशासन था, उस अनुशासन से ही आपको दाँत का दर्द और उनके टूटने से आज़ादी मिली, है ! अगर आप ट्रेडमिल पर जाने का अनुशासन बना लें तो आपको cholesterol और बाकी परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी|

प्रश्न : सब कुछ मौन होने के बाद क्या आता है? और ये मृत होने से कैसे अलग है?
श्री श्री रवि शंकर : बहुत अंतर है, मौन सब सृजन की माता है, मौन से सुन्दरता, प्यार, अंतर्ज्ञान, खोज, काव्य, ये सब उत्पन्न होता है| यहाँ तक की सुदर्शन क्रिया का जन्म भी मौन से ही हुआ है| मैं जानता हूँ की आप में से अधिकतर ने सुदर्शन क्रिया का अनुभव किया है और आपको उसकी उपयोगिता पता है|
इस बार मैं यात्रा पर था, दक्षिण भारत से दक्षिण अफ्रीका, और बाद में दक्षिण अमरीका और बाद में उत्तरी अमरीका, और अब यूरोप, और ये सब एक महीने से भी कम में हुआ| आपको पता है, मैं ब्राज़ील और अर्जेंटीना में जेल में गया| वहां अर्जेंटीना में ५२०० कैदी थे जिन्होंने आर्ट ऑफ़ लिविंग का कोर्स किया है और सुदर्शन क्रिया ने सबकी आँखों में आंसू ला दिए| कोई एक भी ऐसा नहीं था जिसकी आँखें सूखी थी, वो सब अपने जीवन में एक बड़ा परिवर्तन महसूस कर रहे थे| उन्होंने कहा, "जब हम बाहर थे तब मुक्त नहीं थे, अब हम जेल में हैं, मुक्त हैं और खुश हैं| आपका बहुत धन्यवाद है, इस कोर्स ने हमारा जीवन पूरी तरह से बदल दिया है|" आप जानते हैं, सुप्रीम कोर्ट के जज मेरे साथ जेल में आये और बोले, "गुरुदेव, यह तो अविश्वसनीय है, यहाँ क्या हुआ? मैं चाहता हूँ कि ये सब जेलों में किया जाये|" इस परिवर्तन को देखते हुए, वहां के विश्वविद्यालय ने मुझे doctorate कि उपाधि भी दी|एक दिन में मैं विश्वविद्यालय का पूर्व छात्र बन गया, मैं ऐसे मजाक कर रहा था|
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि हम एक हिंसा मुक्त समाज बना सकें| मेरा सपना है हिंसा मुक्त समाज, रोग मुक्त शरीर, व्याकुलता मुक्त मन, अवरोध मुक्त बुद्धि, कटु अनुभव मुक्त याददाश्त, और दुःख से मुक्त आत्मा|
देखिये आज विश्व में क्या पागलपन हो रहा है, किसी ने एक फिल्म बनायीं, और कई देशों में हलचल मच गयी, ये पागलपन नहीं है क्या, क्यों? क्योंकि उन सब को अहिंसा की शिक्षा नहीं दी गयी, जोकि बहुत ज़रूरी है|

प्रश्न : गुरुदेव, क्या गुरु का अनुसरण करना ज़रूरी है?
श्री श्री रवि शंकर : ये सवाल क्यों पूछ रहे हो? ये सवाल पूछ कर आप खुद ही जाल में फँस रहे हो, जब मैं आपको कुछ जवाब दूंगा और आप उसको मानोगे तो इसका मतलब ये है कि आप मेरा अनुसरण कर रहे हो|
अगर मैं कहता हूँ कि अनुसरण करने की कोई ज़रूरत नहीं, और आप कहते हो की ठीक है, मैं अनुसरण नहीं करूंगा, तब आपने मेरी बात मान ली| और अगर मैं कहता हूँ कि हाँ और आप मान लेते हो तब भी आपने मेरी बात का अनुसरण कर लिया, तो बेहतर ये है कि मैं नहीं कह दूं, ये बहुत रोचक प्रश्न है|
देखिये, आपको फुटबल खेलने के लिए आपको एक कोच चाहिए, हर फ़ुटबल खिलाडी को एक कोच की आवश्यकता है, आपको कोई भी खेल खेलने के लिए, संगीत की शिक्षा के लिए, एक अध्यापक, एक कोच की ज़रूरत होती है| जब आप स्कूल जाते हो और आप किसी विषय में कमज़ोर होते हो तब आपको एक कोच की आवश्यकता होती है| ऐसे ही ध्यान करते हुए, आध्यात्म सीखते हुए शुरू शुरू में एक निर्देशन की ज़रूरत होती है, होती है या नहीं! और इसलिए ही ये ज़रूरी है, और अगर आपको लगता है कि ये ज़रूरी नहीं है तो ये आप पर है|

प्रश्न : गुरुदेव, मैं अपनी की हुई गलती के अपराध बोध से कैसे बाहर निकलूँ?
श्री श्री रवि शंकर : ध्यान कीजिये|

प्रश्न : यहाँ यूरोप कि क्या बड़ी समस्या है जिसे हल करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : मैंने सुना है कि यहाँ यूरोप में ३०% से ४० % तक जनसँख्या को अवसाद की समस्या है| इतने सारे लोग Prozac खाते हैं और उनके बच्चों को Autism की समस्या हो रही है| ये चिंता का विषय है| हमें इसके लिए कुछ करना चाहिए|
इसलिए ही ध्यान, सुदर्शन क्रिया है, Health & Happiness workshop हैं| हमें इन सब को अपनाना चाहिए, इस से हम एक प्रसन्न समाज बना सकते हैं| मुझे पूरा यकीन है कि इस से हम ख़ुशी की एक लहर फैला सकते हैं|

प्रश्न : मैं व्यायाम करता हूँ, और इसलिए मैं अपनी श्वास को काबू में कर सकता हूँ| आर्ट ऑफ़ लिविंग कोर्स कैसे अलग है? मुझे लगता है कि व्यायाम भी मुझे वही दे सकता है जो ये कोर्स देंगे| कृपया बताएं कि इन कोर्स से मुझे कैसे मदद मिलेगी?
श्री श्री रवि शंकर : ये आपको बहुत से तरीकों से मदद करेंगे, और इसलिए ही ये इतने लोकप्रिय हैं| अगर लाखो लोगों को इस से लाभ हुआ है और वो इसे अपना रहे हैं तो कुछ तो होगा ना! मैं बताता हूँ, ये बहुत गहन, गंभीर है और साथ साथ ये बहुत आसान और साधारण सी भी है| ये सिर्फ एक व्यायाम नहीं है, ये एक ऊर्जा के आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया है| ये बात पक्की है की जब आप इस कोर्स से जायेंगे तब आपके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान होगी, और आपके दिल में एक संतोष होगा जो आपकी ज़िन्दगी को एक नया आयाम देगा|
आप जानते हैं कि हमारे मन में बहुत से पूर्वग्रह होते हैं, हमें इन सब पूर्वग्रहों से मुक्त होना चाहिए| मन में बहुत से प्रकार के पूर्वग्रह होते हैं| देखिये, हम विश्व के हर हिस्से का भोजन स्वीकार करते हैं, हम हर हिस्से का संगीत स्वीकार करते हैं, लेकिन जब बात ज्ञान की, बुद्धि की, लोगों से जुड़ने की आती है तब हमारे मन में पूर्वग्रह जाते हैं| हमें इन सब पूर्वग्रहों से ऊपर आकर ऐसे सोचना चाहिए कि हर व्यक्ति मेरा अपना है, सारा संसार एक परिवार है|