कुंभ मेले का महत्व !!!



हिंदू धर्म में कुंभ मेला सबसे पवित्र तीर्थयात्रा है | ‘कुंभशब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है घड़ा या कलशऔर मेलाका अर्थ है त्यौहार’, इसलिये इसे कुंभ मेला कहते हैं | यह वह मेला है जो आपके मन और आत्मा को ऊर्जा प्रदान करता है | श्री श्री रविशंकर
गंगा ज्ञान का प्रतीक है और यमुना प्रेम का प्रतीक है | प्रयाग ( जहाँ पर गंगा , यमुना और सरस्वती का संगम होता है ) प्रेम और ज्ञान का संगम है | जब ज्ञान और प्रेम का संगम या मिलन होता है तो वह उत्सव बन जाता है | कुंभ का अर्थ है जब संत , विद्वान और कथा वाचक साथ में आते हैं | वे विश्व लाभ के लिये संकल्प से साथ वार्ता और ध्यान में सम्मलित होते हैं | लोगों को अलग अलग स्थानों पर जाने की जरूरत नहीं | वे सब एक स्थान पर आ सकते हैं | मेले की परिकल्पना की शुरुआत भारत में हुई | आज कल इसे एक्सपो कहते हैं | आज कल गाड़ी , किताब , कपड़ों के एक्सपो होते हैं जहाँ पर उनके सभी उत्पादों का प्रदर्शन एक ही स्थान पर किया जाता है | उसी परिकल्पना के अनुसार सारे संत १२ साल के उपरांत एक ही स्थान पर एकत्रित होते थे | उन दिनों में परिवहन व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी और यात्रा में बहुत समय लगता था | कुंभ मेला लोगों को आपस में बातचीत करने का और आपस में ज्ञान का आदान प्रदान करने का अवसर देता था | यही इसे ग्रहों के परिपेक्ष में देखे तो कुंभ मेला तब घटित होता है जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है | गंगा में स्नान करने से चित्त या चेतना आनंदमय हो जाती है | आपकी चेतना शुद्ध हो जाती है | सारे पाप धुल जाते हैं | यह बहुत ही सुंदर है | सारे पाप इतने सतही स्तर के होते हैं कि सिर्फ गंगा में डुबकी लगाने से धुल जाते हैं | सदाबहार चेतना कभी भी अशुद्ध नहीं हो सकती |