दिल और दिमाग का संतुलन

२०१३
जनवरी
कोच्चि , केरल
(अंतर्राष्ट्रीय लीडरशिप सम्मेलन में श्री श्री)

क्या आप जानते हैं कि घर में वास्तविक अगुआ (लीडर) कौन होता है ? क्या पिता घर का अगुआ होता है , या कि बच्चा ? आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि बच्चा ही घर को चलाता है । बच्चे के गिर्द ही सारा परिवार घूमता है , ऐसा ही नहीं होता क्या ?

इसीलिये , मैं स्वयं को बच्चा समझता हूँ ; एक शिशु ।

एक वास्तविक नेता(लीडर) में दो गुणों का होना आवश्यक है , एक दिमाग का और एक दिल का , अर्थात - समझ और संवेदनशीलता ।

अक्सर हम क्या देखते हैं कि जो लोग बहुत समझदार होते हैं , संवेदनशील नहीं होते , क्योंकि वे विचार शक्ति पर ही इतने केंद्रित रहते हैं कि समझदार व तर्कशील बनने में ही लगे रहते हैं l और वो जो इतने संवेदनशील होते हैं कि जरा सा कुछ होने पर ही उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं , वे ज्यादा समझदार नहीं होते ।

इन दोनों में से कोई भी अच्छा नेता नहीं बन सकता , क्योंकि दोनों में संतुलन होना जरूरी है समझ और संवेदनशीलता में ; दिल और दिमाग के बीच , क्योंकि हम सब जीवन के इन दो अति महत्त्वपूर्ण पहलुयों से निर्मित हैं ।

बुद्धि का अपना विशेष स्थान है , और भावनाओं का भी ।पिछ्ली सदी में ,बुद्धि पर विशेष जोर दिया जाता था। एक पुरुष की आँखों में आये आँसुओं को अजीब समझा जाता था । एक पुरुष कैसे रो सकता है ?

और एक महिला का माइक लेकर खड़ा होना और बोलना , या अपने अधिकारों के लिये लड़ना अजीब समझा जाता था । समाज ऐसा ही था । महिलायें नेतृत्व नहीं कर सकती थीं !

निस्संदेह , केरल की बात नहीं है यह । केरल में एक भिन्न प्रणाली रही है । पर विश्व भर में महिलाओं को बोलने का बौद्धिक अधिकार नहीं था , क्योंकि उन्हें अधिक नम्र व संवेदनशील समझा जाता था । आज , परिपेक्ष्य बदल चुका है । आज , हमें समझ व संवेदनशीलता दोनों ही चाहिये । हर नेता में नारी जैसी कोमलता चाहिये , और हर नारी में एक पुरुष जैसी ताकत और दृढ़ता , तभी कोई किसी संस्था का नेतृत्व कर सकता है । आप क्या कहते हैं?

मैं आपको एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहता हूँ । जब कभी भी नेतृत्व के विषय में बात करनी होती है , या फिर अपने को प्रिय किसी भी चीज़ के बारे में , तो हमें एक अनौपचारिक वातावरण में रहने की आवश्यकता है । तो , आइये बस आधा मिनट लें और अपने आगे , पीछे और साथ वाले लोगों को कहें कि , “मैं आपका हूँ

हो गया ? आपने आसपास के लोगों से बोल दिया ?आप में से कुछ तो अभिवादन करने में भी सकुचा रहे थे । बहुत बार , हम नेताओं को भी इस स्थिति में पाते हैं । वे लोगों की ओर देखते तक नहीं , वे कहीं ओर देख रहे होते हैं और बात करते रहते हैं । वे लोगों से जुड़ नहीं पाते । है न ?

तो , क्या आपने आसपास के लोगों से मैं आपका हूँ” , सच में कहा ; या फिर मात्र औपचारिकतावश ऐसा बोला ?
आपने देखा होगा कि जब आप विमान से उतर रहे होते हैं , तो विमान परिचारिका आपका अभिवादन यह बोल कर करती है , “आपका दिन शुभ हो!वे ऐसा केवल कहती ही हैं , उनका भाव ऐसा नहीं होता ।
इसी प्रकार जो ही अच्छे अच्छे अभिवादन हम अपने रोज़ के जीवन में प्रयोग करते हैं , वो इसी भाव से बोले जाते हैं । हम नमस्तेया सुस्वागतम्बोलते तो हैं , पर इसमें स्वागत वाला भाव कदापि नहीं होता ।

परंतु यही शब्द आपके किसी अपने , जैसे कि माँ या बहन या फिर किसी परम मित्र द्वारा बोले जाते हैं तो इनके साथ कुछ तरंगें भी होती हैं ।
हम आपस में जो भी संवाद करते हैं , वो अधिकतर तरंगों द्वारा होता है ,शब्दों की भूमिका इसमें बहुत ही कम होती है । आपकी तरंगे शब्दों के बाहर आने से पहले ही बहुत कुछ कह देती हैं ।

एक नेता जब अपने शब्दों पर निर्भर कर रहा होता है तो उसे यह निश्चित तौर पर पता होना चाहिये कि उसके शब्दों पर भरोसा नहीं किया जायेगा । यदि आप शब्दों पर अधिक निर्भर रहेंगे तो लोग आपकी बातों पर भरोसा नहीं करेंगे । इन्हें भीतर की गहराई से आना होगा । यही ईमानदारी है , जबकि आपकी तरंगों , आपके विचारों और आपके शब्दों में एक संयोजन होता है ।
आप शायद बोलेंगे कि , “गुरुदेव , इन तीनों का संयोजन कितना कठिन है । यह कैसे संभव है ? यदि हर कोई इन तीनों का संयोजन कर पाता तो हर कोई संत हो जाता । यह व्यवहारिक नहीं है !

मैं कहता हूँ , ठीक है , मैं आपसे सहमत हूँ । आप इन्हें १००% नहीं मिला सकते , पर कम से कम २५% तो मिला सकते हो । इतना तो आप कर सकते हैं , क्योंकि इसे लोग महसूस कर सकते हैं ; समझ सकते हैं ।
इस तरह से हम बात को दूसरों तक अपनी तरंगों द्वारा शब्दों से अधिक पहुँचा सकते हैं । शब्द महत्त्वपूर्ण हैं , पर इन्हें तरंगों की आवश्यकता है । लोग बुद्धिमान हैं , वे जान सकते हैं कि कब आप किसी का सच में स्वागत कर रहे हैं और कब आप केवल औचारिकतावश बोल रहे हैं ।

ठीक है , एक और अभ्यास करते हैं । करेंगे न ? क्या आप तैयार हैं ?

क्या आप अपने से अगले व्यक्ति की ओर मुड़ कर उसे बता सकते हैं कि मुझे आप पर विश्वास नहीं है !
यदि आपका जीवनसाथी आपके साथ बैठा है , तो यह तो बहुत अच्छा अवसर है ! (सब हँस पड़ते हैं)
आप सब ने इतनी जल्दी बोल भी दिया ?
आपने देखा न कि यह इतना आसान नहीं था । शायद यह पहली बार होगा कि आपने किसी को बोला होगा कि मुझे आप पर विश्वास नहीं है” , और फिर आपने भी हँसना शुरु कर दिया और उन्होंने भी ।
परिवर्तन शुरु हो गया है ।

आप उनके शब्दों पर भरोसा नहीं कर रहे और वे आपके शब्दों पर । ऐसा ही है न ?
बस एक क्षण के लिये अपनी आँखें बंद कीजिये और कल्पना कीजिये कि कोई भी आप पर विश्वास नहीं करता । हर कोई आपसे कह रहा है , “मैं आप पर भरोसा नहीं करता !”
अब आप अपनी आँखें खोल सकते हैं ।
कैसा महसूस कर रहे हैं ? राहत भरा ? खराब ?
(
श्रोता : खराब ; दु:खी ; व्याकुल ; हताश ; उदास ; भयानक ; निरुत्साहित)

देखा , हमें ये मिलता है , जब हमारी प्रवृति ऐसी होती है कि मुझे किसी पर विश्वास नहीं है
हम ऐसी तरंगों का निर्माण कर देते हैं , कि जो कोई भी हमारे आसपास आता है , वह इस बात को अनुभव करता है कि हम ऐसा महसूस कर रहे हैं , और फिर समाज में अविश्वास पैदा हो जाता है , और इस तरह से समाज पतन की ओर जाने लगता है और द्वंद्व शुरु हो जाता है । क्या आप जानते हैं कि ,अधिकतर द्वंद्व शुरु में ही टाले जा सकते हैं , यदि विश्वास के नियम का पालन किया जाये।

देखिये , जब आपको लगता है कि कोई भी आप पर विश्वास नहीं करता ,आपको इतना खराब लगता है , और आपको हर ओर इतनी खराब तरंगों की अनुभूति होती है कि एक ऐसे वातावरण का निर्माण हो जाता है जोकि न तो आपके लिये और न ही किसी और के लिये अच्छा होता है ।

मेरा मतलब यह नहीं कि आप एकदम सीधे बन जायें , पर साथ ही मैं चाहता हूँ कि आप विश्वास के इस पहलू पर भी ध्यान दें । जो समाज मानवीय मूल्यों पर विश्वास नहीं करता वह किसी भी कीमत पर विकास , या प्रगति नहीं कर सकता या सृजनात्मक नहीं हो सकता । मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ ।

अब आप पूछ सकते हैं , “आत्मसंदेह का क्या ? मैं दूसरों पर तो भरोसा करता हूँ , पर मुझे स्वयं पर विश्वास नहीं है ।
यह उसी बीमारी का दूसरा रूप है । स्वयं में विश्वास न होने से ही हम दूसरों पर विश्वास नहीं कर पाते , और दूसरों पर विश्वास न होने से समाज के मूल्यों पर विश्वास समाप्त हो जाता है , जिस से कि व्यक्ति स्वयं पर विश्वास खो देता है ।

इसे सुधारने की आवश्यकता है और जो चीज़ भी इसमें सुधार ला सकती है ,उसका स्वागत होना चाहिये ।
समुदायों के बीच , परिवार के सदस्यों के बीच विश्वास का होना अति महत्त्वपूर्ण है । मैं तो कहूँगा कि यह तनाव ही है जोकि अविश्वास के लिये जिम्मेदार है ।

ऐसा मत सोचिये कि हर कोई धोखेबाज है । इस धरती पर अच्छे लोग हैं और उनकी गिनती ज्यादा है । आज विश्व खराब है , तो कुछ बुरे लोगों के कारण नहीं , बल्कि यह अच्छे लोगों का मौन है जिसने कि प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी हैं । अब इन्हें बदलना हमारे हाथ में है ।

आप में से हर एक ही नेता है , इसलिये नेता की तलाश न करें ।
पीछे से नेतृत्व करना महत्त्वपूर्ण है । एक वास्तविक नेता वह नहीं होता , जो यह कहता है कि , “मैं नेता हूँ । मेरा अनुसरण करें” , बल्कि वो यह कहता है, “आगे बढ़िये” , और वह दूसरों को आगे बढ़ाता है ।

मैं यहाँ आपके साथ हूँ , इसलिये आप भागिये” , बिल्कुल रेस के या तैराकी सिखाने वाले इस कोच की भाँति
किसी ने तर्क दिया , मैं पानी में कैसे कूद सकता हूँ , जबकि मैं तैरना नहीं जानता। परंतु जब तक कि आप पानी में नहीं उतरेंगे , आप तैराकी कैसे सीख सकते हैं ? आप हवा में तैराकी नहीं कर सकते ।

यह मार्गदर्शन हमें हमारे अपने जीवन के दृष्टांत से ही मिलना चाहिये । आपने भारत में हुए बड़े हो हल्ले को देखा । अंतत: लोग महिलाओं की दुर्दशा के प्रति जागृत हो ही गये । ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ था कि एक महिला के साथ दुराचार हुआ हो , यह तो कई सालों से , कई स्थानों पर हो रहा था । लोग जाग गये हैं , और हर कोई यह माँग कर रहा है कि इन लोगों को सज़ा दी जाये , पर वे एक व्यक्ति को भूल रहे हैं , और वो है , मिस्टर अल्कोहल । (शराब)

यदि उन लोगों ने शराब न पी रखी होती तो शायद वे अपना होश न खोते ;और यदि उन्होंने अपना होश न खोया होता तो शायद ऐसा अपराध भी न करते । पर वे तो पूरी तरह से नशे में धुत्त थे । है न ! शराब सबसे पहले दोषी है ।

मैं हर दिन ऐसा सुनता रहता हूँ , हर एक दिन l पुरुष रात को शराब पीते हैं और फिर वे जा कर अपनी पत्नियों को पीटते हैं , और सुबह माफी माँग लेते हैं , और वो माफ कर देती हैं और जीवन चलता रहता है ।
 
प्रश्न : आपने अभी बताया कि दिल्ली गैंगरेप केस के पीछे शराब मुख्य वजह रही है । पर आज तो ऐसे भी केस होते हैं जहाँ युवा लड़कियों का उनके पिता द्वारा ही शोषण किया जाता है । उन केसों में यह केवल शराब नहीं होती । बड़ी समस्या क्या है ?

श्री श्री रविशंकर : सही है , इस केस के पीछे मुख्य कारण शराब नहीं है ।
सेक्स अपराधियों की तीन मुख्य समस्यायें होती हैं । एक है हार्मोंस की समस्या , जहाँ पर कि उनमें कोई गम्भीर हार्मोन असंतुलन हो सकता है ।

दूसरी है भावनात्मक गड़बड़ी । वह व्यक्ति अपने आप में , किसी प्रकार से पीड़ित हो सकता है।

और तीसरी है मानवीय मूल्यों का पूर्ण ह्रास ।

इस प्रकार से , ये तीनों चीज़ें मिल कर व्यक्ति से ऐसा आपराधिक कृत्य करवा सकती हैं , जिस पर कि वह स्वयं पछ्तावा महसूस करे ।

ऐसा नहीं है कि वे बहुत खुश होंगे कि उन्होंने कुछ बहुत बड़ी चीज़ हासिल कर ली हो । वे एक छोटे बच्चे के साथ ऐसा बुरा कृत्य कर रहे हैं ।

उनके बीमार मन , असंतुलित भावनायें और हार्मोंस उन्हें ऐसा करने के लिये विवश करते हैं । इसलिये ऐसे लोगों को उपचार की आवश्यकता है । उन्हें निश्चित रूप से काउन्सलिंगकी आवश्यकता है , और समाज को उन्हें बिना कलंकित किये इस प्रकार की काउन्सलिंग उपलब्ध करवानी चाहिये ।

जानते हैं , यह केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं होता , बल्कि विकसित देशों में अधिक होता है । विश्व भर में , बाल उत्पीड़न की समस्या व्याप्त है । इसलिये बहुत सी ऐसी घटनायें हो रही हैं । पिता द्वारा अपनी पुत्री का शोषण , यह हम भारत में आज सुन रहे हैं , अमरीका में यह कई सालों से सुनने में आ रहा है । और इन टीवी में दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों से यह इस हद तक पहुँच गया है कि कई बार बच्चे को लगने लगता है कि , ‘ओह , शायद मेरे पिता ने भी मेरे साथ ऐसा किया हो ।
मैं आपको ऐसी एक घटना के विषय में बताना चाहूँगा । 

एक बुजुर्ग दम्पत्ति मेरे पास आये । उनकी बेटी , जोकि 38 वर्ष की हो चुकी थी , को ऐसे कार्यक्रम देखने के बाद अचानक लगने लगा कि वह भी एकपीड़ितहै । जब वह बच्ची थी तो उसके पिता ने भी उसके साथ ऐसा ही किया होगा ।
तो अचानक ही , इस टीवी शो के बाद से माता-पिता और बेटी के बीच सम्बन्ध बहुत ही खराब हो गये ।
पिता रो रहा था , “मैं ऐसा अपराध कैसे कर सकता हूँ । मेरी बेटी सोचती है कि मैंने उसके साथ ऐसा किया ।
इस प्रकार , ऐसे कुछ टीवी शो इतना प्रभाव छोड़ जाते हैं , जो कि पूरे परिवार को ही बर्बाद कर देता है ।

क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ ? मुझे कुछ समय लगा उन लोगों को इकट्ठा बिठाने में , उनको समझाने में , उन्हें ध्यान आदि करवाने में ।

बहुत बार लोग ध्यान आकर्षित करने के लिये स्वयं को पीड़ित समझने लग जाते हैं । समाज में ऐसा भी होता है । हमें किसी भी कीमत पर महिलाओं व बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों का अंत करने की आवश्यकता है । ऐसा तभी सम्भव है यदि समाज अधिक आध्यात्मिक , अधिक मानवीय और अधिक संवेदनशील बने ।

प्रश्न : यदि सरकार भ्रष्ट हो , तो राष्ट्र एक अच्छे शासन का निर्माण कैसे कर सकता है ?

श्री श्री रविशंकर : सरकार का कोई व्यक्तित्व नहीं होता , ये सरकार में शामिल लोग ही हैं , जोकि भ्रष्ट हो जाते हैं । और यह लोग ही हैं जोकि भ्रष्टाचार से बाहर निकल सकते हैं ।

देखिये , भ्रष्टाचार वहाँ से शुरु होता है , जहाँ पर कि अपनेपन का अंत होता है । कोई भी व्यक्ति उनके साथ भ्रष्ट नहीं हो सकता जिन्हें कि वो अपना समझता है । वे अपने परिवार और मित्रों से रिश्वत नहीं लेते । वे उन्हीं से रिश्वत लेते हैं , जोकि उनके अपनेपन के दायरे में नहीं आते ।

इसलिये , भ्रष्टाचार और अपराध , ये दोनों चीज़ें खत्म होनी ही चाहिये , नहीं तो सरकार प्रभावी नहीं हो सकती ।
सरकार में अपराधी तत्वों का होना बहुत ही भयानक चीज़ है ।

जानते हैं कि हर दल के लोग अपराधियों को टिकट क्यों देते हैं ? क्योंकि उनके पास वोट बैंक है । यदि आप अच्छे लोग अपना वोट बैंक बना लो , तो आप भी हर दल को आदेश दे सकते हैं , ‘यदि आप अपराधिक तत्वों को टिकट देंगे तो हम आपको वोट नहीं देंगे’ , फिर कोई भी दल भ्रष्ट लोगों को अथवा अपराधिक तत्वों को टिकट देने की हिम्मत नहीं करेगा ।

इसीलिये मैंने कहा था कि , हम सब को समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिये एक साथ , इकट्ठा खड़े होना होगा ।
अकेले तो हम सब मूल्यों का समर्थन करते हैं , पर हमें इकट्ठे इनके लिये खड़ा होने की आवश्यकता है ।

यदि कोचीन के सभी अच्छे लोग इकट्ठा होकर बोलें , “हम कोचीन को प्रदूषित नहीं होने देंगे । हम अपने शहर की सफाई की जिम्मेदारी लेते हैं” ,तब चीज़ें बदलने लग जायेंगी। मेरे विचार से यह आवश्यक है ।

प्रश्न : बहुत सी संस्थायें हैं , जोकि सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रही हैं , पर हाल ही में सरकार ने कुछ नीतियाँ बनाई हैं , जिनसे कि इन संस्थाओं को धक्का लगा है। आपको इस विषय में क्या कहना है ?

श्री श्री रविशंकर : यदि सरकार कहती है कि कम्पनियों को अपने लाभ का३% सामाजिक जिम्मेदारी के लिये खर्च करना होगा , तो एक अच्छी संस्था अपने लाभ का ४% खर्च करेगी , और सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार ३% तक सीमित नहीं रहेगी ।
यह अच्छी बात है कि सरकार ने ऐसे दिशानिर्देश दिये हैं । कम से कम २% से ३% तक सामाजिक जिम्मेदारियों पर खर्च होना ही चाहिये ।

मुझे नहीं लगता कि सरकार के इस निर्णय में कोई खराबी है । मैं समझता हूँ कि यह निर्णय बहुत अच्छा है कि हर संस्था को अपने लाभ का कुछ प्रतिशत दूसरों की भलाई पर खर्च करना चाहिये ।

ऐसा हमारे धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है । जिसको भी कुछ भी लाभ होता है , उसे इसमें से कुछ भाग सामाजिक भलाई के लिये देना चाहिये ।

प्रश्न : आप उद्यमशीलता के विषय में कुछ कहेंगे ?

श्री श्री रविशंकर : उद्यम सृजनात्मकता का ही प्रक्षेपण है । सृजनात्मकता का एक पहलू । एक उद्यमी को अपनी सुविधाओं को त्यागना पड़ता है । कोई यह नहीं कह सकताकि , “मैं अपनी सुविधाओं के साथ रहूँगा और मैं नेक उद्यमी भी बनूँगा।ऐसा नहीं हो पायेगा ।उद्यमशीलता में खतरे और कठिनाइयाँ झेलना हमेशा शामिल रहता है ।

प्रश्न : संस्थाओं में नेतृत्व की संस्कृति का क्या महत्त्व है ?

श्री श्री रविशंकर : एक नेता को अपनी बात पर चलना पड़ता है । समझदार, संवेदनशील और सहानुभूतिशील होना पड़ता है । जीवन में तीन चीज़ों की आवश्यकता है : जोश , संयम और संवेदना ।

आप सिर्फ जोश से ही काम नहीं चला सकते । तब तो आप बहुत तनावग्रस्त महसूस करेंगे । आपको संयम की भी आवश्यकता है , आप को यह जानने की आवश्यकता है कि चीज़ों को जाने कैसे दिया जाये । जब आप उन चीज़ों को थामे रखने की कोशिश करते हैं , जोकि आप की पहुँच से बाहर होती हैं , तो आप केवल तनावग्रस्त ही होते हैं और एक तनावग्रस्त व्यक्ति स्वयं के लिये , समाज के लिये और हर एक के लिये बोझ बन जाता है ।

एक तनावग्रस्त व्यक्ति हानिप्रद और कड़ुवाहट से भरा होता है ।

किसी भी संस्था में आपको उन लोगों को पहचानना होगा जोकि तनावग्रस्त हैं । जो तनावग्रस्त हैं , वो जल्दी ही कड़ुवाहट से भर जायेंगे । इसलिये , यह ध्यान रखिये कि वे व्यक्ति अपने दृष्टिकोण को बदलें और अपने बारे में बेहतर महसूस करें ।
जब लोग तनाव से मुक्त होते हैं , उस समय उठने वाली परिवर्तन की लहर ,देखने वाली होती है ।

यह कोई आसान काम नहीं है । यदि कोई अपने तनाव को छोड़ने का इच्छुक नहीं होता , तो आप उसे ऐसा करने के लिये मजबूर नहीं कर सकते । तो ,यह एक अति कठिन काम है और आपको इसे करना ही है ।

प्रश्न : आपने पहले ही कहा है कि महिलायें प्राकृतिक रूप से ही अच्छी नेता होती हैं , पर अधिक महिला नेता हैं नहीं । क्या आप बत सकते हैं कि एक अच्छा नेता बनने में क्या बाधायें आती हैं ?

श्री श्री रविशंकर : मैं आपको बताना चाहता हूँ कि भारत में विश्व के किसी भी अन्य भाग से अधिक महिला नेता हैं । क्या आपको यह पता है ?
हमारे यहाँ संसद में कई महिला सदस्य हैं , विधानसभा में भी कई महिलायें हैं , और बहुत से राज्यों में महिला मुख्यमंत्री हैं ।
पूरे देश में ही कई दशकों तक महिला शासक रहीं हैं ; इसलिये ऐसा कभी न सोचें कि आपको किसी को समर्थ बनाने की आवश्यकता है । यहाँ भारत में महिलायें पहले से ही समर्थ हैं । अमरीका को यह सीखने की आवश्यकता है । जहाँ तक महिला सशक्तिकरण का प्रश्न है , अमरीका अभी उस स्तर तक नहीं पहुँच पाया है ।
 
प्रश्न : अपने कार्य क्षेत्र में , मैं विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलता हूँ , और मैं शायद उनमें से कुछ लोगों से बात करना पसंद नहीं करता । मैं व्यवहारकुशल कैसे बन सकता हूँ ?

श्री श्री रविशंकर : यह बहुत ही पेचीदा सवाल है ।
कभी कभी यदि आप सीधे तौर पर , उनके मुँह पर बात नहीं कहते , तो वे समझते हैं कि आप छुपे रूप से उन्हें कुछ और कहना चाह रहे हैं , या फिर उस बात से सहमत हैं जोकि वे अपने मन में सोच रहे हैं ।
साथ ही , अपने विचारों , या मत को प्रकट करते समय रुखाई की आवश्यकता भी नहीं है । इसलिये , संतुलन बनाने की आवश्यकता है ।

कोई निश्चित फार्मूला नहीं है । आपको स्थिति के अनुसार ही काम करना होता है ।
व्यवहार कुशल कैसे बने इसे यहाँ सिखाया जाये और बाद में इसका प्रयोग किया जाये , ऐसा संभव नहीं । इसे उसी क्षण पर आप के भीतर से स्वाभाविक रूप से आना होता है ।