इस होली पर “भीतर के स्वयं” को रंग लिजियें !!!

२७
२०१३
मार्च
बैंगलुरु आश्रम, भारत


होली के पावन पर्व पर ज्ञान के मोती की वेब टीम की ओर से सभी पाठकों को हार्दिक सुभकामनायें !!!  

होली रंगों का त्यौहार है | प्रकृति के जैसे हमारे मोनोभाव और भावनाओं के अनेक रंग होते हैं | प्रत्येक व्यक्ति रंगों का फुहारा हैं, जो बदलता रहता है | अग्नि के जैसे आपकी भावनाए आपको भस्म कर देती है | परन्तु जब वे रंगों के फुहारे के जैसी होती हैं, तो वे आपके जीवन मे आनंद ले आती है |
सभी विचार और भावनाए स्वयं(आत्मा) से उत्पन्न होते हैं, जो शरीर के भीतर और बहार आकाश तत्व के जैसे हैं | यह आकाश तत्व आपके जीवन पर राज करता है, और आप सिर्फ एक कठपुतली के जैसे हैं | मानवों के साथ कठनाई यह हैं कि, वे कभी कभी अपने भावनाओं और विचारों पर ध्यान देने के लिए समय निकालते हैं,कि कैसे भीतर क्या बदलाव हुआ| हम बिना सोचे और अपने भावनाओं का समाधान किये बिना कृत्य करते हैं | इसके कई नियम है, परन्तु जब आपकी भावनायें उच्च स्थर की होती हैं, तो आप अपनी स्वयं की भावनाओं का शिकार बन जाते हैं | भीतर के नियम चौकीदार और दरबान के जैसे हैं ,परन्तु घर का मालिक सिर्फ भावनाए हैं | इसलिए जब घर का मालिक हस्तक्षेप करता है तो दरबान को रास्ता देना ही पड़ता है |
विचार और भावनाए आती है और चली जाती है लेकिन जब आप भीतर जाकर स्वयं की गहन अनुभूति करते हैं, तो उसे आप सिर्फ खाली पाते हैं और वही आपका वास्तविक स्वभाव है | जब आप अपनी पहचान मनोभाव,भावनाओं और विचारों से करते हैं, तो आप अपने आप को बहुत छोटा और फँसा हुआ पाते हैं | परन्तु वास्तव में आपका भीतर का आकाश तत्व बहुत ही उदार है और उसमे आप पूर्ण शान्ति का अनुभव करते हैं | उन क्षणों में जब आप पूर्णता प्रेम और शांति का अनुभव करते हैं तो आप स्वयं में फैलाव,असीमता अनुभव करते हैं जो आपका वास्तविक स्वभाव है | और वही सबसे सुन्दर है | इसलिए अज्ञानता में भावनाए आपको परेशान करती है और ज्ञान में उन्ही भावनायो में रंग आ जाता है |
होली के जैसे जीवन भी रंगमय होना चाहिए जिसमे प्रत्येक रंग स्पष्ट रूप से दिखाई देता है | प्रत्येक भूमिका और भावनाए स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए | भावनात्मक भ्रम परेशानी उत्पन्न करता है | आप अपने आप से कहे कि मैं प्रत्येक भूमिका के साथ न्याय करूँगा | आप प्रत्येक भूमिका निभा सकते हैं | मै अच्छी पत्नी,अच्छा बालक,अच्छा पालक और अच्छा नागरिक हूँ | आप ऐसा मान ले कि आप में यह सभी समानतायें मौजूद है | यह सभी वास्तव मे आप मे मौजूद है | इसे बस खीलने दीजिए | विविधता में सामंजस्यता जीवन को आनंदमय और रंगमय बना देता है |
उत्सव की अवस्था मे मन अक्सर दैव को भूल जाता है | आपको दिव्यता की उपस्थिति का अनुभव करना चाहिए जिसमे किसी भी किस्म का कोई वियोग नहीं होता है | क्या आप अपने आप को इस पृथ्वी,वायु और सागर का हिस्सा मानते हैं? क्या आप इस आस्तित्व मे अपने आप को विलीन होने का अनुभव करते हैं ? इसे ही दिव्य प्रेम कहते हैं ! दिव्यता को देखने का प्रयास न करे | उसे सिर्फ और सिर्फ मान कर चले | वह वायु के जैसे मौजूद है | आप श्वास के द्वारा वायु को लेकर उसे छोड़ देते है | आप वायु को देख नहीं सकते परन्तु आप को मालूम है कि वायु मौजूद हैं | उसी तरह दिव्यता सब जगह मौजूद है | सिर्फ दिल उसकी अनुभूति कर सकता है | जब आप पूर्णता विश्रामयुक्त होते हैं,तब आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे दिव्यता की अनुभूति करते हैं | जब आपका मन और शरीर पूर्णता विश्रामयुक्त होता है, तो फिर, पक्षियों का चहकना,पत्तियों का हिलना, जल का बहना सब कुछ मे दिव्यता की अनुभूति होती है, यहाँ तक लोगो का लड़ना और पर्वत मे भी प्राचुर्य और समृद्ध दिव्यता अनुभव होती है | इन सभी बातो से परे एक शक्ति या आभास आस्तित्व मे होता हैं,वही दिव्यता है | जब स्वाभाविक रूप से उत्सव का उदय होता है तो जीवन पूर्णता रंगमय बन जाता है |